मंगलवार, 12 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 14 दक्ष के घर आई स्नेहा

 

म्युजियम के प्रदर्शनी हॉल में सब तरफ तलाश करने पर भी पुलिस को म्युजियम का कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं दिया। 

“ लगता है, उस पत्थर वाले आदमी से डरकर बाकी लोगों के साथ साथ यहाँ के सारे कर्मचारी भी भाग गये हैं, “ - एक पुलिस कर्मी बोला। 

“ कैसे गैर जिम्मेदार कर्मचारियों की नियुक्ति की है सरकार ने इस म्युजियम में। जरा सा खतरा देखा नहीं कि भाग खड़े हुए! “ - आवेशित स्वर में बोला इंस्पेक्टर अभय - “ और एक हम पुलिस वाले है कि दिन रात जान हथेली पर लिए खतरों से दो दो हाथ होते रहते हैं। “

“ भागे नहीं है सर! “ - अचानक ही न जाने कहाँ से म्युजियम का एक कर्मचारी सामने आते हुए बोला - “ अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए हम यहीं रुके हुए थे। “

“ हम जान चुके थे कि उस विचित्र प्राणी का मुकाबला करना हमारे वश से बाहर की बात है। “ - म्युजियम का एक दूसरा कर्मचारी बोला - “ इसीलिए उससे बचने के लिए हम यहीं एक कमरे छिपे हुए थे। “

“ अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आप लोग कमरे में छिपकर बैठे हुए थे ! “ - एक पुलिस कर्मचारी बोला तो बाकी सभी पुलिस वाले खिल्ली उड़ाते हुए हँसने लगे। 

“ हाँ। हम लोग कमरे में छिपकर ही अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। “ - एकाएक ही गंभीर स्वर में बोलते हुए म्युजियम का मैनेजर विकास सक्सेना सामने आया - “ और इस तरह छिपकर बैठने की योजना मैंने ही बनाई थी। क्योंकि यहाँ का मैनेजर होने के नाते इस म्युजियम की जिम्मेदारी के साथ साथ यहाँ के कर्मचारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है। और आपको यह भूलना नहीं चाहिए कि इस तरह कमरे में छिपकर बैठने से ही मुझे पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाने का अवसर मिल पाया था। “

“ आपने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है सक्सेना जी। “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ अब मेहरबानी करके हमें घटना की पूरी जानकारी भी दीजिए। आया कहाँ से था वह पत्थर का आदमी ? “

जवाब में मैनेजर ने इंस्पेक्टर अभय को भगवान नृसिंह की प्रतिमा दिखाते हुए पत्थर के उस आदमी के प्रकट होने की सारी कहानी सुना दी। 

“ क्या! “ - वह घटना इंस्पेक्टर के लिए विश्व आठवाँ अजूबा थी - “ आप कहना चाह रहे है कि वह विचित्र प्राणी भगवान नृसिंह की गोद में लेटी हुई हिरण्यकशिपु की प्रतिमा फोड़कर प्रकट हुआ था ? “

“ सुरक्षा की दृष्टि से इस म्युजियम की सभी दुर्लभ वस्तुयें काँच के ऐसे मजबूत शोकेस में रखी हुई है, जिनको आसानी से तोड़ पाना हर किसी के वश की बात नहीं है। भगवान नृसिंह और हिरण्यकशिपु की प्रतिमा काँच के जिस शोकेस में रखी हुई थी, उसी में वह पत्थर का विचित्र प्राणी दिखाई दिया था और ऐसा तब हुआ था, जब अचानक ही रहस्यमयी तरीके से हिरण्यकशिपु की प्रतिमा फूट गई और शीशे के पूरे केबिन में धूल का गुबार सा छा गया। जब धूल का गुबार हटा, तो वह पत्थर का अजीब आदमी दिखाई दिया और फिर सबके देखते - देखते काँच का केबिन तोड़कर वह बाहर आ गया। “ - मैनेजर बोला - “ अब यह सब देखकर तो यही लगता है कि वह आदमी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में से ही बाहर निकला होगा। “

“ आपकी बात को सच मान भी लिया जाए तो नया सवाल यह उठता है कि पत्थर का वह आदमी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में आया कहाँ से! “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले। 

“ बात तो सच है ही। क्योंकि इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शी एक, दो नहीं पूरे छह लोग है, जो उस समय शोकेस से नृसिंह भगवान की प्रतिमा को देख रहे थे। “ - मैनेजर बोला - “ बाकी हिरणकशिपु की प्रतिमा में वह अजीब आदमी आया कहाँ से, यह तो शोध का विषय है। “

“ ओके , मिस्टर विकास सक्सेना! “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ सहयोग के लिए शुक्रिया। “

इसके बाद इंस्पेक्टर अभय माथुर पुलिस फोर्स के साथ वहाँ से चले गए।


•••••


दक्ष म्युजियम से सीधा घर पहुँचा। 

उसे यह जानने की उत्सुकता थी कि स्नेहा विधायक जगमोहन बंसल का इंटरव्यू लेने में किस हद तक सफल हुई! 

इंटरव्यू लेने के बाद स्नेहा सीधे दक्ष के घर ही आने वाली थी। 

घर का मैन गेट खोलकर वह भीतर दाखिल हुआ ही था कि उसे अपने पीछे टैक्सी के इंजन की आवाज सुनाई दी। 

पीछे घूमकर देखने पर उसे टैक्सी रुकते हुए और उसमें से स्नेहा बाहर निकलते हुए दिखाई दी। 

टैक्सी वाले को रवाना करके स्नेहा दक्ष की ओर बढ़ी। 

उसके चेहरे की खुशी बता रही थी कि वह कामयाब होकर लौटी थी। 

“ क्या बात है! तुमको देखकर तो ऐसा लग रहा है , जैसे कोई बहुत बड़ा किला फतह करके आई हो! “ - दक्ष भी खुशी जाहिर करते हुए बोला। 

“ और नहीं तो क्या! “ - गर्वीली मुस्कान के साथ बोली स्नेहा - “ गढ़ जीतकर आई हूँ। “

“ बधाई फिर तो। “ 

“ बस यूँ ही ? बाहर खड़े खड़े ? “

“ अंदर चलते हैं ना! “ - अब तक गेट पर ही खड़ा दक्ष बोला - “ कॉफी के साथ कबूल करना बधाई। “

“ बिल्कुल। “ 

दोनों ही भीतर दाखिल हुए। 

स्नेहा ने उस समय रेड टी शर्ट और ब्लू जींस धारण की हुई थी। उसके लंबे काले बाल काफी अस्त व्यस्त थे। उसका सिर और कपड़े धूल में सने हुए थे। म्युजियम में भी उसने यही पोशाक धारण की हुई थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उस समय उन पर धूल मिट्टी नहीं लगी हुई थी। लेकिन, तब दक्ष का सारा ध्यान विधायक जी का इंटरव्यू लेने पर लगा हुआ था। इसीलिए उस समय स्नेहा पर वह इतना ध्यान नहीं दे पाया था। या फिर कह सकते है कि यह एक तरह का मानवीय स्वभाव या मानवीय कमजोरी ही है कि एक युवक जब किसी युवती को अकेला पाता है, ऐसी जगह जहाँ उन दो के अलावा तीसरा कोई न हो, तब वह उस पर अतिरिक्त ध्यान देने लगता है। 

इस समय शायद दक्ष के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था। 

दक्ष इंटरव्यू के बारे में स्नेहा से पूछने ही वाला था कि उसका ध्यान स्नेहा के चेहरे की ओर गया। वह काफी थकी हुई सी लग रही थी। 

“ तुम बैठो, मैं कॉफी बनाकर लाता हूँ। “ - कहते हुए दक्ष किचन की ओर बढ़ा। 

स्नेहा वहीं हॉल में रखे एक सोफा चेयर पर बैठ गई। 

कुछ ही देर में दक्ष कॉफी के साथ हाजिर हुआ तो उसने स्नेहा को नदारद पाया। 

“ अब ये कहाँ चली गई ? “ - कॉफी से भरे दोनों कप उसने सोफा चेयर के सामने रखी टेबल पर रखे और स्नेहा की तलाश में पूरे हॉल में अपनी नजरें घुमाई। 

स्नेहा उसे दिखाई नहीं दी। 


सोमवार, 11 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 13 पत्थर के आदमी का पुलिस से सामना


 “ यह गड़बड़ कैसे हो गई ? “ - पत्थर का वह आदमी जैसे खुद से ही बात कर रहा था - “ मुझे मिली सूचना के अनुसार, जिस प्रतिमा को विदीर्ण करके मुझे यहाँ प्रकट होना था, उसे किसी एकांत और निर्जन स्थान पर होना चाहिये था। लेकिन यह तो ऐसे स्थान पर रखी हुई थी, जो न तो एकांत में था और न ही निर्जन!... इसका एक ही अर्थ हो सकता है, किसी ने इस प्रतिमा को इसके मूल स्थान से हटाया है। किसने किया ये दुःसाहस! वह जो कोई भी है, सजा पाने का हकदार है। क्योंकि उसकी वजह से ही मुझे इतने सारे लोगों के बीच प्रकट होना पड़ा है और इस तरह इतने लोगों के द्वारा मुझे देखा जाना मेरे खुफिया मिशन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। “

पत्थर के उस आदमी के डर से कुछ ही पलों में लगभग सारा म्युजियम ही खाली हो गया। 

बिना किसी तोड़ फोड़ के पत्थर का वह आदमी किसी एकांत और निर्जन स्थान में चले जाना चाहता था। वह धीरे धीरे चलते हुए म्युजियम के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहा था। 

ठीक इसी समय म्युजियम के बाहर पुलिस की 6 - 7 गाड़ियां आकर रुकी। एकाएक ही म्युजियम पर टूट पड़ी इस मुसीबत को देखकर किसी कर्मचारी ने पुलिस को फोन कर दिया था। 

पुलिस जीप में से सबसे पहले इंस्पेक्टर अभय माथुर बाहर निकले, जो कि आर्ट्स कॉलेज के स्टूडेंट राकेश माथुर उर्फ रॉकी के पिता थे और उड़ने वाले इंसान के केस पर भी काम कर रहे थे। 

पत्थर के आदमी जैसे विचित्र प्राणी के बारे में पता चलने के बाद पूरी की पूरी पुलिस फोर्स ही उससे निपटने के लिए भेजी गई थी। ये संख्या में करीब 40 थे। 

पुलिस की गाड़ियों से सशस्त्र वर्दीधारी पुलिसकर्मी बाहर आये और तेजी से दौड़कर म्युजियम में दाखिल हो गए। 

यह वही पल था, जबकि पत्थर का वह आदमी किसी एकांत और निर्जन स्थान की तलाश में म्युजियम से बाहर निकलने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहा था। 

एंट्री गेट पर ही पुलिस और उस विचित्र प्राणी का आमना सामना हो गया। 

ब्राउन कलर के पत्थर के छोटे छोटे टुकड़ों से जुड़कर बने उस अजीब प्राणी को देखकर एक पल के लिए तो पुलिस वाले ठिठक कर रह गए। लेकिन अगले ही पल एक दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने एक साथ ही अपनी राईफलो का रुख पत्थर के उस विचित्र प्राणी की ओर किया और लगातार फायर करने लगे। फायरिंग जो एक बार शुरू हुई तो तब तक नहीं रुकी, जब तक कि उनकी बुलेट खत्म नहीं हो गई।  

गोलियां दागने से उठे धुऐं ने उस प्राणी को पूरी तरह से ढँक लिया था। पुलिसकर्मियों को पूरा भरोसा था कि जब धुआँ छँटेगा तो उन्हें वह प्राणी फर्श पर गिरा पड़ा मिलेगा। इसी उम्मीद में कुछ देर वे धुआँ छँटने का इंतजार करते रहे और कुछ समय बाद जब धुआँ छँटा तो यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही कि पत्थर का वह अजीब प्राणी अपने पैरों पर सही सलामत खड़ा था। 

“ यह कैसे हो सकता है!” - एक पुलिसकर्मी बोला। 

“ असम्भव है ये तो! “ - दूसरा बोला। 

“ नकली गोलियां तो नहीं चलाई थी ना हमने ? “ - एक दूसरा पुलिसकर्मी बोला। 

“ गोलियां नकली नहीं हो सकती। “ - इंस्पेक्टर अभय माथुर बोले - “ यह प्राणी सच में पत्थर का ही बना हुआ है! “

“ लेकिन, सर! फायरिंग से पत्थर भी तो टूट जाते हैं। यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ। “ - किसी अन्य पुलिसकर्मी ने कहा - “ अब हम क्या करें सर ? “

इससे पहले कि इंस्पेक्टर अभय कोई जवाब दे पाते, पत्थर का वह आदमी अपने कदम पीछे हटाने लगा। 

“ यह तो पीछे हट रहा है। लगता है हमसे डर गया। “ - कोई पुलिस वाला बोला। 

जवाब में इंस्पेक्टर माथुर ने गुस्से से उसकी ओर देखा, तो सहमकर वह दूसरी तरफ देखने लगा। 

उधर पत्थर का वह आदमी मुड़कर वापस म्युजियम के अंदर जाने लगा। पुलिस कर्मी भी धीरे धीरे उसके पीछे चलने लगे। कुछ आगे जाने पर एक तरफ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। वह सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपरी मंजिल पर जाने लगा। 

“ यह ऊपर क्यों जा रहा है ? आखिर करना क्या चाहता है यह ? “ - एक पुलिस वाले ने कहा। 

“ पता नहीं। बस चुपचाप इसके पीछे चलते रहो। “ - बोलते हुए इंस्पेक्टर माथुर मारे सस्पेंस के उसके पीछे चलते रहे। 

उनका अनुमान था कि वह प्राणी जहाँ से आया था, वहीं जा रहा था। 

पत्थर वाले आदमी के पीछे चलते हुए वे सब ऊपरी मंजिल पर पहुँचें। लेकिन, वह अभी भी रुका नहीं। वह दूसरी मंजिल की सीढियाँ भी चढ़ने लगा। 

सीढियाँ चढ़ते हुए वह टेरिस पर पहुँचा। टेरिस पर चलते हुए उसने चारदिवारी पर खड़े होकर नीचे छलाँग लगा दी। 

किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसा करेगा! 

पीछा कर रहे सारे पुलिस कर्मियों ने चार दिवारी से नीचे की ओर देखा। छलाँग लगाकर वह प्राणी बड़े आराम से नीचे जमीन पर अपने पैरों के बल पर खड़ा था। 

फिर अपने कदम आगे की ओर बढ़ाते हुए वह वहाँ से जाने लगा। 

टेरिस से छलाँग लगाने के बाद जमीन पर जिस जगह वह खड़ा हुआ था, उस जगह पर उसके पैरों के दबाव से दो बड़े गड्ढे हो गए थे और जमीन में थोड़ा कंपन भी हुआ था, जैसे कोई भूकंप आया हो। 

“ यह तो कोई दानव लगता है सर! “ - एक पुलिस कर्मी बोला। 

“ लेकिन यह बिना कोई तोड़ फोड़ किये, बिना किसी को कोई नुकसान पहुंचाए चला कैसे गया! “ - कोई आश्चर्य प्रकट करता हुआ बोला। 

“ हाँ और इसके यहाँ आने का मकसद क्या था ? “ - कोई दूसरा पुलिस कर्मी बोला। 

“ अब तो लगता है यह जंगल की तरफ जा रहा है! “ - कोई तीसरा पुलिस वाला बोला। 

“ यह भी उस उड़ने वाले इंसान की तरह हमारे एक पहेली बन गया है। “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ इसने तो किसी को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया। फिर महज इसके विशालकाय शरीर को देखकर हम इसे राक्षस कैसे कह दें ! “

“ लेकिन, यह आया कहाँ से होगा ? “ - किसी ने सवाल किया। 

“ इसका जवाब तो म्युजियम के कर्मचारी ही दे सकते हैं। “ - इंस्पेक्टर अभय माथुर बोले। 

इसके बाद वे सभी नीचे की ओर चले गए। ग्राउंड फ्लोर पर, जहाँ म्युजियम के हाॅल में वस्तुओं की प्रदर्शनी लगी थी, वहाँ पहुंचकर वे म्युजियम के कर्मचारियों को तलाश करने लगे। 




रविवार, 10 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 12 पत्थर का आदमी

 

विधायक जगमोहन बंसल पर फायर करने के बाद दक्ष पेड़ों के झुरमुट के भीतर बहुत अंदर तक जाकर 2 - 3 किलोमीटर तक दौड़ता चला गया। इसके बाद वह पेड़ों की ओट से निकालकर मुख्य सड़क पर आया। 

शहर से बाहर होने की वजह से आम दिनों में यह इलाका ज्यादातर सुनसान ही रहता था। इस तरफ बहुत ही कम वाहनों की आवाजाही हुआ करती थी। लेकिन आज का दिन बाकी दिनों की तरह आम न होकर बेहद खास था। आज का दिन ऐतिहासिक दिन होने जा रहा था, क्योंकि शहर को पहली बार एक म्युजियम की सौगात मिली थी। पुरानी वस्तुओं के प्रति आकर्षण किसमें नहीं होता ! म्युजियम में लगी एक से एक पुरानी दुर्लभ वस्तुओं की नुमाइश देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा था। यही वजह थी कि अक्सर सुनसान रहने वाले इस इलाके में आज वाहनों की आवाजाही लगातार जारी थी। बाइक, स्कूटी, कार, टैक्सी और सिटी बस में सवार होकर लोग म्युजियम में लगी प्रदर्शनी देखने जा रहे थे। 

मुख्य सड़क पर आकर दक्ष ने हाथ देकर एक सिटी बस रुकवाई और उसमें सवार हो गया। बस जल्दी ही प्रताप म्युजियम के सामने रुकी और बाकी यात्रियों के साथ ही दक्ष भी बस से उतरकर म्युजियम की ओर बढ़ चला। 

दक्ष ऐसे बिहेव कर रहा था, जैसे वह पहली बार ही आया हो। 

कई सारे लोग थे वहाँ। उनके साथ वह म्युजियम के भीतर प्रविष्ट हुआ। म्युजियम की इमारत काफी विस्तार लिए हुए थी, जिसमें एक बड़े से गेट से एंट्री थी। 

अंदर जाते ही एक विशाल हॉल था और इसी हाॅल में प्रदर्शनी की सारी वस्तुयें सजी हुई थी। 

“ ये तो बहुत दुर्लभ और पुरानी वस्तुयें लगती है। “ दक्ष ने वहीं रिसेप्शन पर बैठे एक व्यक्ति से पूछा। 

“ हाँ, लग रही है, क्योंकि ये है। “

“ बढ़िया! मजा आयेगा फिर तो देखने में। “

“ जरूर सर! “

प्रदर्शनी में 16वीं सदी की पेंटिंग्स, पुरानी मूर्तियाँ, पुराने जमाने की मुद्राएँ, आभूषण और ऐसी ही कई एंटिक चीजें काँच के शोकेस में रखी हुई थी। 

दक्ष इन वस्तुओं के फोटो क्लिक करना चाहता था। लेकिन इसकी अनुमति नहीं थी। 

म्युजियम में अच्छी खासी भीड़ थी। पूरा म्युजियम अच्छी तरह से घूम लेने के बाद दक्ष ने वहाँ से जाने का मन बनाया। 

“ पता नहीं, स्नेहा विधायक जी का इंटरव्यू ले भी पाई होगी या नहीं! “ - दक्ष को यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी। 

म्युजियम से बाहर आकर दक्ष ने अपनी बाइक संभाली और वह घर की ओर चल पड़ा। 

काश, दक्ष कुछ देर और म्युजियम में रुक जाता तो विश्व के आठवें आश्चर्य को देखने का सौभाग्य मिलने के साथ साथ डेली न्यूज़ के लिए उसे एक लाइव न्यूज भी मिल जाती! 

दक्ष के म्युजियम से बाहर निकलते ही वहाँ ऐसा दृश्य दिखाई दिया, जिसकी कल्पना तक करना संभव नहीं था। 

सब लोग दुर्लभ वस्तुओं को देख रहे थे। उनके बारे में बातें भी कर रहे थे। 

म्युजियम में पुरानी तस्वीरों, शिलालेखों के साथ ही कई सारी सदियों पुरानी और दुर्लभ प्रतिमाएँ भी थी। शिव, विष्णु, कृष्ण आदि के साथ ही प्राचीन राजाओं की भी तरह तरह की प्रतिमाएँ म्युजियम में काँच के शोकेस में सजी थी। 

लोग इन प्रतिमाओं को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे। एक शोकेस में भगवान नृसिंह की काफी बड़ी प्रतिमा थी, जिसमें वे हिरण्यकशिपु का पेट चिर रहे थे। 

“ कितनी बढ़िया प्रतिमा है। “ - एक व्यक्ति बोला। 

“ नक्काशी भी शानदार की हुई है। “ - दूसरा बोला। 

भगवान नृसिंह की प्रतिमा के पास चार - पांच व्यक्ति खड़े बातें कर रहे थे। 

इसी समय शोकेस के भीतर अचानक ही एक धमाका सा हुआ। 

उस धमाके के बाद शोकेस में धूल का गुबार सा उठा, साथ ही शोकेस के काँच से कुछ टकराने की आवाज भी आई। 

वहाँ खड़े लोग कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से ये क्या हो रहा है! 

लेकिन, जब शोकेस के भीतर से धूल छंटी तो जो कुछ उन्होंने देखा उस पर आसानी से यकीन तो किया ही नहीं जा सकता था। 

भगवान नृसिंह की प्रतिमा तो बिल्कुल ठीक हालत में थी। लेकिन, उनकी जांघों पर गिरी पड़ी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा का नामोनिशां तक मिट चुका था। क्योंकि वह प्रतिमा टूटकर हजारों टुकड़ों में बँट चुकी थी। उसी प्रतिमा के कुछ टुकड़े शोकेस के काँच से टकराये थे। लेकिन प्रतिमा मिट्टी की बनी हुई थी , इसीलिए काँच को कोई नुकसान नहीं पहुँचा था।

शोकेस के भीतर पता नहीं कहाँ से पत्थर की एक प्रतिमा प्रकट हो गई थी! वह ब्राउन कलर की थी और ऐसा लग रहा था जैसे कि वह भूरे रंग के पत्थर के छोटे - छोटे टुकड़ों को किसी पदार्थ की सहायता से जोड़कर बनाई गई हो। 

“ यह क्या हो रहा है! हिरण्यकशिपु की मूर्ति अचानक फूट कैसे गई ? “ - वहाँ खड़ा एक व्यक्ति बोला। 

“ भगवान नृसिंह की प्रतिमा तो बिल्कुल सही सलामत है। ये कैसा चमत्कार है! “ - दूसरा व्यक्ति बोला। 

“ और… और ये पत्थर की मूर्ति कहाँ से आ गई ? “ - कोई और बोला। 

“ यह न तो किसी राक्षस की मूर्ति है, न देवता की। यह तो किसी मानव की प्रतिमा लग रही है! “

“ मैं प्रतिमा नहीं हूँ। “ - शोकेस के भीतर प्रकट हुई पत्थर की प्रतिमा अचानक भारी भरकम आवाज में बोलने लगी - “ मैं एक इंसान हूँ, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि तुम सब हो। “

“ य… यह क्या! ये मूर्ति बोल कैसे रही है! “ - चीखते हुए एक व्यक्ति वहाँ से भागा। 

“ मूर्ति नहीं बोल रही है। मूर्ति बोल ही नहीं सकती। मैं कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं हूँ। मैं भी तुम लोगों की तरह एक इंसान ही हूँ। “ - भारी आवाज में बोलते हुए पत्थर की उस प्रतिमा ने गुस्से में आकर शोकेस के काँच पर मुष्ठि प्रहार किया। 

एक जोरदार आवाज के साथ शोकेस का काँच टूटकर बिखर गया और पत्थर की वह प्रतिमा शोकेस से आजाद हो गई, जिसे अब प्रतिमा कहना अनुचित था। 

“ भागो! ये तो कोई राक्षस है! “ - चिल्लाते हुए लोग म्युजियम से बाहर की ओर भागने लगे। 

म्युजियम के दूसरे हिस्सों में अलग अलग दुर्लभ वस्तुओं को देख रहे बाकी लोगों का ध्यान भी शोकेस के टूटने और पत्थर के उस अजीबोगरीब आदमी की आवाज से उसकी तरफ आकर्षित हुआ। 

कुछ लोगों को चिल्लाते और भागते देख म्युजियम में उपस्थित बाकी लोग भी डरकर बाहर की तरफ भागने लगे। 

“ तुम सब लोग भाग क्यों रहे हो ? मेरा यकीन करो, मैं एक इंसान हूँ। बिल्कुल तुम लोगों की तरह। “ - पत्थर का वह आदमी चिल्लाते हुए बोला। 




शनिवार, 9 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 11 - स्नेहा ने बचाई विधायक की जान


 “ अरे, तुम तो बहुत डर गई लगती हो। “ - मुस्कुराते हुए दक्ष बोला।

“ तुम बात ही ऐसी कर रहे हो! “ - गुस्से में बोल रही थी स्नेहा - “ अब अगर एक और बार तुमने विधायक जी को शूट करने वाली बात बोली तो मैं सीधे सौ नम्बर डायल करूँगी। “ - अपने शोल्डर पर लटके पर्स में से मोबाइल निकालते हुए स्नेहा बोली।

“ शूट तो मैं करूँगा विधायक जी को। “ - दक्ष बोला - “ क्योंकि अकेले में उनका इंटरव्यू लेने का यही एकमात्र उपाय है। “

“ कैसी मूर्खों जैसी बातें कर रहे हो! “ - स्नेहा आवेशपूर्ण स्वर में बोली - “ उनको शूट करके कैसे तुम उनका इंटरव्यू लोगे ? “

“ इंटरव्यू तो तुम लोगी। मैं तो बस शूट करूँगा। “

स्नेहा ने सवालिया नजरों से दक्ष की ओर देखा। 

“ नहीं समझी ? “

स्नेहा ने नकारात्मक भाव से सिर हिलाया। 

दक्ष ने अपनी योजना स्नेहा को समझाई। 

“ क्या! “ - पूरी बात सुनकर स्नेहा बोली - “ सोच लो दक्ष! ये सब करके कहीं हम किसी बड़ी मुसीबत में ना फंस जाये। “

“ कुछ नहीं होगा। भरोसा रखो मुझ पर। “ आश्वासनपूर्ण भाव से दक्ष बोला - “ और अगर कुछ हुआ भी तो मुझे होगा, क्योंकि शूट मुझे करना है। तुम्हें कुछ नही होने वाला। “

“ ठीक है। “ - कहते हुए स्नेहा अकेली ही म्युजियम की ओर बढ़ गई। 

दक्ष अपनी रिवॉल्वर के साथ एक पेड़ के पीछे छिप गया। धीमी गति से चलते हुए स्नेहा म्युजियम के पास पहुँची। लेकिन वहाँ लोगों की भीड़ में शामिल होने की जगह वह म्युजियम से थोड़ा दूर उस जगह रुक गई, जहाँ विधायक जी और उनके समर्थकों के वाहन खड़े थे। 

करीब दस मिनट बाद उद्घाटन की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद विधायक जगमोहन बंसल ने वहाँ उपस्थित लोगों से विदा ली। 

इसके बाद वे समर्थको से घिरे अपनी कार की ओर बढ़े। 

अब दक्ष के एक्शन लेने का समय आ चुका था। उसने अपने एक हाथ में रिवॉल्वर संभाल रखी थी। दूसरे हाथ से उसने जींस की पॉकेट से अपना रुमाल निकाला और उससे रिवॉल्वर को ढँक दिया, जिससे कि कोई गलती से भी उसकी तरफ देख ले, तो उसे दक्ष के हाथ में केवल रुमाल ही दिखाई दे, न कि उसके नीचे छिपी रिवॉल्वर। 

दक्ष ने रिवॉल्वर को अपने दोनों हाथों में थाम रखा था। 

रुमाल से ढँकी रिवॉल्वर का रुख उसने विधायक की ओर किया। उसकी अंगुली ने ट्रिगर पर हल्का सा दबाव लगाया और ट्रिगर दबा दिया। 

अपने समर्थकों के साथ आगे बढ़ते हुए विधायक जी जैसे ही अपनी कार के नजदीक पहुँचे, मुस्तैदी से आगे बढ़कर ड्राईवर ने कार की पिछली सीट का दरवाजा खोला। 

कार में बैठने से ठीक पहले विधायक जी के समर्थक वहाँ से हट गए। उनके आस पास अब कोई भीड़ नहीं थी।

यही सही समय था। म्युजियम के सामने, पेड़ों के झुरमुट के पीछे से दक्ष ने रुमाल से ढँकी रिवॉल्वर को अपने हाथों में मजबूती से पकडा, विधायक को निशाना बनाया, अंगुली से ट्रिगर पर दबाव लगाया और कार में बैठने के लिए विधायक जैसे ही थोड़ा झुका, दक्ष ने ट्रिगर दबा दिया। 

रिवॉल्वर में साइलेंसर लगा होने से उसके चलने की आवाज तो नहीं आई। लेकिन गोली लगने से कहीं शीशे के चरमराकर टूटने की आवाज जरूर आई थी। 

असल में, हुआ यह था कि दक्ष के फायर करते समय विधायक जी थोड़ा झुककर कार में बैठने की कोशिश कर ही रहे थे कि पीछे से दौड़कर आते हुए स्नेहा ने उनको तेजी से बाहर की ओर खींचा और उनके साथ ही जमीन पर गिर पड़ी। गोली कार के खुले दरवाजे से अंदर गई और उसके दूसरे बंद दरवाजे के शीशे में सुराख बनाते हुए बाहर निकल गई। 

विधायक जी को तो कुछ समझ ही नहीं आया। लेकिन उनकी कार का ड्राईवर, जो अभी तक कार के बाहर ही खड़ा था और उनकी कार के आगे पीछे की कारों में जो उनकी पार्टी के लोग थे, वे विधायक जी को जमीन पर गिरते हुए देखकर उनकी ओर दौड़े। 

ड्राईवर ने पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर सबसे पहले विधायक जी को उठने में मदद की। 

“ आप ठीक तो है सर! “ ड्राईवर के साथ ही कार्यकर्ता भी बोले। 

“ मैं ठीक हूँ। “ - मिट्टी में सन चुके अपने सफेद कुर्ते से धूल झाड़ते हुए विधायक बंसल बोले - “ उस लड़की की उठने में मदद करो, जिसने मेरी जान बचाई है। “

विधायक जी के कहने भर की देर थी कि सारे के सारे कार्यकर्ता स्नेहा की मदद करने को दौड़े। लेकिन उनके कुछ करने से पहले ही स्नेहा अपने आप उठ खड़ी हुई। 

“ तुम ठीक तो हो ? “ - स्नेहा की तरफ बढ़ते हुए विधायक जी ने पूछा। 

“ मैं ठीक हूँ सर! “ - स्नेहा बोली - “ माफी चाहूँगी, मजबूरी में मुझे आपके साथ ऐसा व्यवहार करना पड़ा। “

“ अरे! तुम माफी क्यों मांग रही हो! “ - चकित स्वर में विधायक बंसल बोले - “ मुझे तो तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहिए। आखिर तुमने अपनी सतर्कता से जान पर खेलकर मेरा जीवन बचाया है। “

“ यह तो मेरा फर्ज था सर! आखिर आप हमारे शहर के विधायक है। “

“ वैसे तुम्हें कैसे पता चला कि मुझ पर हमला होने वाला है ? “

“ मुझे वहाँ “ - स्नेहा ने सामने पेड़ों के झुरमुट की ओर संकेत करते हुए कहा - “ उस तरफ एक रिवॉल्वर दिखाई दी थी, जिसे किसी ने अपने हाथों से पकड़ रखा था और उसका रुख आपकी तरफ ही था। “

स्नेहा की बात सुनते ही वहाँ उपस्थित सारे तेजी से

पेड़ों के झुरमुट की तरफ दौड़े। कुछ देर तक वे वहाँ पर उस शख्स को ढूँढने की कोशिश करते रहे, जिसने विधायक जी को शूट करने की कोशिश की थी। लेकिन वहाँ पर कोई था ही कहाँ जो मिलता! अपना काम खत्म करने के बाद उसने वहाँ न रुकना था, न वो रुका। 

अंततः थक हार कर सब वापिस विधायक जी के पास आये। 

“ वहाँ पर तो कोई भी नहीं है। “ - आते ही एक कार्यकर्ता बोला। 

“ फायर करने के बाद ही गायब हो गया होगा वो। “ - स्नेहा बोली। 

इसके बाद सारे कार्यकर्ता कार में बैठे। विधायक जी भी अपनी कार की ओर बढे। 

“ ये कैसा एहसान फरामोश इंसान है! “ - स्नेहा मन ही मन खुद से बोली - “ अपनी जान बचाने की एवज में महज शुक्रिया अदा करके ही पतली गली से निकल रहा है ये तो! इसका इंटरव्यू नहीं ले पायी तो सारी मेहनत बेकार चली जायेगी।… रोक स्नेहा! विधायक जी को ऐसे मत जाने दे। तुझे इंटरव्यू लेना है इनका। “

स्नेहा आवाज लगाते हुए विधायक बंसल के पीछे दौड़ी - “ एक मिनट सर! “

आवाज सुनकर कार की ओर बढ़ते विधायक जी के कदम ठिठके। उन्होंने मुड़कर स्नेहा की ओर देखा। 

अब तक स्नेहा दौड़कर उनके पास आ चुकी थी। 

“ सर! आप शहर के विधायक है। एक तरह से वी आई पी पर्सन है। “ - बड़ी ही चालाकी से भूमिका बनाते हुए बोल रही थी स्नेहा - “ तभी तो आप यहाँ इस म्युजियम के उद्घाटन के लिए आये। “

“ तो ? “ - सवालिया नजरों से स्नेहा की तरफ देखते हुए विधायक बोले। 

“ मैं एक मीडिया पर्सन हूँ। डेली न्यूज़ एजेंसी में रिपोर्टर हूँ। “ - स्नेहा अब धीरे धीरे मतलब की बात पर आ रही थी - “ यहाँ म्युजियम के उद्घाटन की न्यूज़ को कवर करने के लिए आई थी। “ 

“ गुड। अच्छी बात है। तो तुम रिपोर्टर हो! तुम्हारी इतनी ज्यादा सतर्कता और चुस्ती फुर्ती देखकर मुझे तो लगा था कि शायद तुम पुलिस में हो। “

“ एक ही बात है सर! हम पत्रकारों को भी पुलिस वालों की ही तरह दिन रात भागदौड़ करनी पड़ती है। “

“ मेरा समय कीमती है, इसीलिए अब मतलब की बात पर आओ। “ 

विधायक जी की बात सुनकर स्नेहा हैरत में पड़ गई। अभी थोड़ी देर पहले जिस इंसान को उसने मरने से बचाया था, उसके इस तरह से बात करने पर उसे आश्चर्य होना स्वाभाविक ही था, फिर भले ही वो शख्स शहर का विधायक क्या देश का राष्टृपति ही क्यों न हो। 

“ सर! न्यूज़ तो मैंने कवर कर ली। “ - अपनी आवाज में शहद सी मिठास घोलते हुए स्नेहा बोली - “ अब लगे हाथ अगर आप अपना इंटरव्यू भी दे दें, तो हमारे अखबार को चार चाँद लग जायेंगे। “

पता नहीं यह स्नेहा की शहद सी मीठी बोली का जादू था या उसके मुँह से सुनी अपनी प्रशंसा का कमाल कि वह इंटरव्यू देने के लिए राजी हो गया। 

“ ठीक है। “ - विधायक बंसल बोले - “ लेकिन जल्दी ही मुझे कहीं पहुंचना है। मेरे साथ कार में चलो , रास्ते में ही ले लेना इंटरव्यू। “ 

“ थैंक यू सर! “ - बोलते हुए स्नेहा सोच रही थी - “ अच्छा हुआ, जो कल ही मैंने इंटरव्यू में विधायक जी से पूछे जाने वाले प्रश्नों का रट्टा मार लिया था। क्योंकि इनकी नजरों में तो इंटरव्यू बिना तैयारी के अचानक ही हो रहा है। ऐसे में इनके सामने उस पर्चे को तो निकाल भी नहीं सकती थी। “

विधायक बंसल और स्नेहा के कार में बैठने के बाद ड्राईवर ने कार स्टार्ट कर दी। 



गुरुवार, 7 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 10 ) - दक्ष ने बनाई विधायक बंसल को शूट करने की प्लानिंग


 “ क्या ? “ - चकित स्वर में रॉकी ने पूछा - “ ये चैरिटी का क्या चक्कर है ? “

“ अरे, कुछ खास नहीं। “ - विशाल बोला - “ अपने कॉलेज के पास में ही एक अनाथ आश्रम है। होली, दिवाली जैसे त्योहारों पर वर्षा अपनी फ्रेंड्स के साथ मिलकर अनाथ आश्रम के बच्चों के लिए चैरिटी इकठ्ठा करती है, जिससे कि वे भी इन त्योहारों को खुशी खुशी मना सके। “

“ अच्छा! “

“ अब बताओ भी उड़ने वाले इंसान के बारे में कुछ। “ 

“ हाँ। ठीक है। “ - रॉकी ने बताना शुरू किया - “ उड़ने वाला इंसान तो बाद में आता है। सारी कहानी शुरू होती है, बैंक डकैती से। हकीकत में हुआ यह था कि कल रात पहले से ही बनाई हुई योजना के अनुसार पाँच लुटेरों ने यूनियन बैंक को लूटने की कोशिश की। रात के अंधेरे में वे रस्सियों के सहारे उस इमारत में दाखिल हुए, जिसकी निचली मंजिल पर यूनियन बैंक की शाखा चलती है। लेकिन, वे जैसे ही रस्सियों की सहायता से टेरिस पर पहुँचे, पता नहीं कहाँ से उड़ता हुआ वह इंसान आया और दो लुटेरों को अपने दोनों हाथों से उठाकर उसने आकाश से नीचे फेंक दिया। टेरिस पर खड़े बाकी तीनों लुटेरे इस खौफनाक मंजर को देख उस पर रिवॉल्वर से फायर करने लगे। उड़ने वाले इंसान को गोली तो लगी थी, लेकिन उसे कुछ हुआ नहीं आ। इस बात ने उन लुटेरों को बुरी तरह से डरा दिया। फिर वे तीनों डर के मारे टेरिस से सीढ़ियों के सहारे उस इमारत के निचले हिस्से में पहुँचे। उनको लगा कि वह उड़ने वाला इंसान, इंसान नहीं बल्कि कोई प्रेत था। वे इतना ज्यादा डर गये कि खुद को बचाने के लिए उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया। बाद में पुलिस वहाँ पहुँची और उनको गिरफ्तार करके थाने ले गई। जिन दो लोगों को आकाश से नीचे फेंका गया था, उनको चोटें तो बहुत आई, लेकिन उनकी साँसें अभी चल रही थी। इसीलिए उन्हें हॉस्पिटल में इलाज के लिए ले जाया गया। उनके बयान से इतना तो क्लीयर हो गया कि उड़ने वाला इंसान कोई प्रेत नहीं बल्कि एक साधारण इंसान ही था। “

“ ओह, तो ये था पूरा मामला! “ - चकित स्वर में विशाल बोला - “ इसका मतलब, वह जो कोई भी था, उसे ये पता चल चुका था कि वे लुटेरे बैंक लूटने आये थे और बैंक को लुटने से बचाने के लिए ही उसने उन लुटेरों का मुकाबला किया था। “

“ लगता तो ऐसा ही है। “ - रॉकी बोला - “ लेकिन सच चाहे जो भी हो, उड़ने वाला इंसान मिस्ट्री बना हुआ है और पापा ने बोला है कि वे उसकी सच्चाई पता करके रहेंगे। “


शास्त्री रोड़ पर ‘ प्रताप म्युजियम ‘ की ओपनिंग पर शहर के विधायक जगमोहन बंसल ने रिबन काटकर म्युजियम का उद्घाटन किया।

रिबन कटते ही तालियों की गड़गड़ाहट से वहाँ का वातावरण गूँज उठा। साथ ही कई कैमरों की फ्लैश लाइट रिबन काटते विधायक के चेहरे पर पड़ी और साथ ही क्लिक की आवाज भी हुई, जो इस बात का संकेत थी कि वहाँ कई सारे मीडिया पर्सन भी मौजूद थे, जो कि इस अवसर को न्यूज़ का रूप देकर अखबार और टीवी के माध्यम से इसे आम जनता तक पहुंचाना चाहते थे। 

शहर में पहली बार कोई म्युजियम खुलने जा रहा था और साथ ही शहर के विधायक भी वहाँ मौजूद थे, तो लोगों की भारी भीड़ थी।

वहाँ उपस्थित मीडिया पर्सन में दक्ष और स्नेहा भी शामिल थे। म्युजियम के उद्घाटन की न्यूज़ तो उनको कवर करनी ही थी। लेकिन साथ ही इससे भी बड़ी चुनौती उनके लिए थी, विधायक महोदय का इंटरव्यू लेना। भीड़ बहुत ज्यादा होने की वजह से वे विधायक बंसल तक पहुँच नहीं पा रहे थे। 

भीड़ के शोरगुल के बीच उनको आपस में बात करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था। 

“ स्नेहा! “ - अचानक ही दक्ष तेज आवाज में बोला - “ चलो, बाहर निकलते है यहाँ से। “

“ क्या ? “ - विस्मय भरे स्वर में बोली स्नेहा - “ ये तुम क्या बोल रहे हो! अभी तो हमने इंटरव्यू भी नहीं लिया। “

“ इतनी भीड़ देखकर मेरा तो मूड ऑफ हो रहा है। “

“ तुमको अपने मूड की पड़ी है! “ - चिल्लाते हुए स्नेहा बोली - “ अगर इंटरव्यू लिए बिना ही हम लौट गए, तो बॉस का जो मूड होगा, उसके बारे में भी सोच लो थोड़ा। “

“ अरे, इंटरव्यू लिए बिना जाने की बात कौन कर रहा है ! “ - स्नेहा का हाथ पकड़कर उसे भीड़ की विपरीत दिशा में खींचते हुए दक्ष बोला - “ मैं तो बस कुछ देर के लिए इस भीड़ भाड़ वाले माहौल से दूर जाने की बात कर रहा हूँ। हम वापस आयेंगे ना। “

म्युजियम शहर से थोड़ा दूर, ऐसे इलाके में बनाया गया था, जिसका ज्यादातर हिस्सा वन क्षेत्र के पास पड़ता था। इसीलिए वहाँ पेड़ काफी थे। म्युजियम के ठीक सामने पेड़ों के एक झुरमुट के पास पहुंचकर दक्ष बोला - “ ये तो हमारे मुश्किल काम हो गया। अच्छा होता अगर हम इनके बंगले पर चलकर ही इनका इंटरव्यू ले पाते। “

“ बोल तो तुम सही रहे हो। “ - स्नेहा बोली - “ लेकिन अब जब यहाँ आए ही है तो इंटरव्यू तो लेकर ही जायेंगे। “

“ सहमत हूँ तुम्हारी बात से। लेकिन इसके लिए हमें विधायक जी से अकेले में मिलना होगा और इसकी कोई संभावना लग नहीं रही है। “

“ फिर ? “

“ कोई तिकड़म लगानी पड़ेगी। “ - बोलते हुए दक्ष कुछ सोचने में व्यस्त हो गया। 

“ तुम सोचते ही रह जाओगे और उधर विधायक जी निकल भी जायेंगे। “

“ मिल गया आईडिया! “ - बोलते हुए दक्ष ने अपनी पॉकेट में से अपनी रिवॉल्वर निकाली और स्नेहा को दिखाते हुए बोला - “ ये आयेगी अब काम। “

“ क्या! “ - स्नेहा चकित स्वर में बोली - “ तुम विधायक जी को गन प्वाइंट पर रखकर उनका इंटरव्यू लोगे ? “

दक्ष जोर से हँसा - “ किसी को गन प्वाइंट पर रखकर उसका इंटरव्यू लिया जाता है क्या! “

“ तो ? “

“ मैं विधायक जी को शूट करूँगा। “ - रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए बोला दक्ष। 

“ फिर उनकी लाश का इंटरव्यू लोगे! “ - मजाकिया लहजे में हँसते हुए स्नेहा बोली - “ गजब के टैलेंटेड हो तुम! क्या दिमाग पाया है! “

स्नेहा की बात सुनकर हँसी तो दक्ष को भी आ रही थी। लेकिन, वो हँसा नहीं। उसके लिए ये वक्त था भी नहीं हँसने का। 

“ मैं कोई मजाक नहीं कर रहा। “ - दक्ष गंभीर स्वर में बोला - “ मैं सच में विधायक को शूट करने जा रहा हूँ। “

दक्ष का सीरियस चेहरा देखकर स्नेहा थोड़ा घबराते हुए बोली - “ य…ये तुम क्या बोल रहे हो दक्ष! हम यहाँ विधायक जी का इंटरव्यू लेने आए है और हम कोई टेररिस्ट है क्या, जो ये सब करेंगे! “

“ हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। “

“ क्या बक रहे हो दक्ष! “ - इस बार स्नेहा आवेशित स्वर में बोली - “ तुम पागल तो नहीं हो गए हो! या तुमने विधायक जी की अपोजिशन पार्टी से उनको मारने के लिए पैसा तो नहीं खा लिया ? “




रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 9 ) - विशाल और रॉकी


 “ लेकिन, एक बात समझ में नही आई। “ - कुछ सोचते हुए सूरज बोला।

“ क्या ? “

“ रमेश नाम के इस व्यक्ति ने रिवॉल्वर से फायर होने की बात कही थी। पर, जो उसने देखा, उसमें रिवॉल्वर या फायर का तो कोई जिक्र ही नहीं आया। “

“ इस सवाल का जवाब मेरे पास है। “ - विशाल के कुछ बोलने से पहले ही कैंटिन में एक तरफ से आवाज आई। 

आवाज की दिशा में घूमकर देखने पर सूरज और विशाल को रॉकी दिखाई दिया। 

रॉकी कॉलेज का सबसे ज्यादा बिगडैल और आवारा किस्म का लड़का था। असली नाम तो उसका राकेश माथुर था, लेकिन वह रॉकी नाम से बुलाया जाना ज्यादा पसंद करता था। उसके आस पास हमेशा ही फ्री की दावत उड़ाने वाले लड़को का समूह रहता था। वह दिल खोलकर खर्च करता था। इन सबसे ऊपर सबसे बड़ी बात यह थी कि उसके पिता अभय माथुर पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर की पोस्ट पर थे। 

“ तुम्हारे पास कोई नई खबर है उस उड़ने वाले इंसान के बारे में ? “ - विशाल ने पूछा। 

“ हाँ। बिल्कुल। “ - कहते हुए रॉकी अपनी चेयर से उठा और विशाल के पास आकर एक खाली चेयर पर बैठते हुए बोला - “ मेरे पास पूरी खबर है और सच बात तो यह है कि ये केस मेरे पिता ही सॉल्व कर रहे है। “

“ क्या ? “ - विशाल और सूरज दोनों चकित थे। 

“ बैंक डकैती का केस। “ - एक नई बात बताते हुए रॉकी बोला। 

“ बैंक डकैती! “ - विशाल थोड़ा आवेशित स्वर में बोला - “ ये बैंक डकैती की बात बीच में कहाँ से आ गई ? उड़ने वाले इंसान ने दो लोगों को आकाश से नीचे फेंका था।… हम उसकी बात कर रहे है, किसी बैंक डकैती की नहीं। “

“ बहुत चालाक हो तुम! “ - कुटिलता से मुस्कुराते हुए बोला रॉकी - “ सब कुछ उगलवा लेना चाहते हो मुझसे। पर तुमको ये क्यों लगता है कि मैं फ्री में तुमको सब कुछ बता दूँगा ? “

ठीक इसी पल जिस मेज के इर्द गिर्द वे लोग बैठे हुए थे, उस पर कुरकुरे का एक पैकेट प्रकट हुआ। 

“ अब तो बता दोगे ? “ - पीछे से आई आवाज की दिशा में पलटकर देखने पर उन्हें वर्षा दिखाई दी। 

उसके साथ मधु और मिनाक्षी भी थी।

चलते हुए तीनों वहाँ पहुंची।

“ ये कुरकुरे खिलाकर तुम वे सीक्रेट बातें जानना चाहती हो जो इस शहर की पुलिस के अलावा कोई नहीं जानता ? “ - मेज से पैकेट उठाकर उसे वर्षा के सामने लहराते हुए रॉकी बोला।

“ कम है ? “ - एक खाली चेयर पर बैठते हुए वर्षा बोली - “ मैं और भी दे सकती हूँ। “

“ क्या बकवास है ये! “ - हँसते हुए रॉकी बोला - “ और वैसे भी तुमको क्या करना उस उड़ने वाले इंसान के बारे में जानकर ?... तुम तो सुना है, जान भी चुकी हो कि वो कोई इंसान नहीं, बल्कि इंसानों का खून पीने वाला ड्रैक्यूला है। “

“ किसने बोला ऐसा ? “

जवाब में रॉकी ने लड़को के एक समूह की ओर संकेत किया। 

यश वहाँ मौजूद था। 

“ अरे, वो तो मैं श्रेया के साथ मजाक कर रही थी। “ - खिलखिलाते हुए वर्षा बोली। 

“ तुमने श्रेया को ड्रैक्यूला के नाम से डराया ? “ - विशाल थोड़ा इमोशनल होते हुए बोला। 

“ डराया नहीं, बस मजाक किया है और तुमको बड़ी चिन्ता हो रही है उसकी ? “

“ ऐसा कुछ नहीं है। “

“ कैसा है, वो तो तुम्हारे चेहरे से पता चल ही रहा है। “ - दबी हुई हँसी के साथ बोली वर्षा। 

फाइनल ईयर में वर्षा का क्लासमेट विशाल वैसे तो बाहर से सख्त मिजाज और गंभीर स्वभाव वाला इंसान था। लेकिन वह अपना कोमल और मासूम दिल श्रेया को दे चुका था। यही वजह थी कि उसका नाम सुनते ही विशाल के दिल की धड़कन अचानक तेज हो जाती थी। 

“ हाँ तो जरा बताओ ना उस उड़ने वाले इंसान के बारे में कुछ नया ? “ - रॉकी की ओर देखते हुए वर्षा बोली। 

“ फ्री में तो नहीं बताने वाला। “ - रॉकी बोला। 

“ कुरकुरे दिए तो। “ - रॉकी के हाथ में थमे कुरकुरे के पैकेट की ओर संकेत करते हुए वर्षा बोली - “ कहो तो एक और दे दूँ ! “

“ पकड़ो। “ - कुरकुरे का पैकेट रॉकी वर्षा की ओर बढ़ाते हुए बोला। 

हाथ बढ़ाकर पैकेट लेते हुए वर्षा बोली - “ क्या हुआ, कुरकुरे पसंद नहीं! “

रॉकी ने गुस्से से वर्षा की ओर देखा। 

“ मुझे तो बहुत पसंद है। “ - कहते हुए वर्षा ने पैकेट को ऊपर से फाड़कर खोला और कुछ कुरकुरे निकालकर मधु व मिनाक्षी को देते हुए बोली - “ लो गर्ल्स! तुम भी खाओ। “

“ इग्नोर करो इनको। “ - विशाल बोला - “ और बताओ क्या चाहिए तुमको उड़ने वाले इंसान के बारे में जानकारी देने के बदले में ? “

“ मुझे और मेरे दोस्तों को एक शानदार पार्टी। “ - रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए रॉकी ने कहा। 

“ तुम्हारा तो ठीक है। पर, तुम्हारे दोस्तों की संख्या बहुत ज्यादा है। सबको पार्टी देने जितना जेब खर्च... “

“ अब या तो तुम अपने जेब खर्च की परवाह कर लो या फिर उस खबर की, जिसके बारे में, इस शहर की पुलिस के अलावा किसी को भी कुछ पता नहीं है। “ - बोलते हुए अचानक ही रॉकी चेयर से उठ खड़ा हुआ। 

वहाँ से जाने के लिए उसने एक ही कदम आगे बढ़ाया था कि विशाल ने तेजी से खड़े होकर उसके कंधे पर अपना हाथ रखा और बोला - “ रुको भी दोस्त! “

वह वापिस चेयर पर बैठा - “ तो दोगे पार्टी ? “

“ जेब तो इसकी इजाजत नहीं देती। लेकिन.. “ - वर्षा की ओर देखते हुए बोला विशाल - “ मैं मैनेज कर लूँगा। “

“ गुड। “ 

कुरकुरे खाने में व्यस्त होने के बावजूद वर्षा विशाल की बात का मतलब समझ गई। पहले विशाल की तरफ देखते हुए वह जोर से बोली - “ क्या मैनेज कर लोगे तुम ? “

फिर रॉकी की ओर देखते हुए बोली - “ और गुड क्या है इसमें ? “

“ बात हम दोनों के बीच हो रही है। “ - रॉकी बोला - “ बीच में तुम क्यों गरम हो रही हो ? “

“ हमारी वर्षा को गरम यानी हॉट होने की जरूरत ही नहीं है। “ - मधु बोली। 

“ हाँ, यह तो हमेशा से हॉट ही है। “ - दबी हँसी हँसते हुए मिनाक्षी बोली। 

रॉकी ने अपने दोनों हाथों की कोहनियाँ मेज पर टिकायी और अपनी हथेलियों से सिर को थामते हुए बोला - “ पता नहीं आज सुबह उठते ही सबसे पहले किसकी सूरत देख ली मैंने, जो इन लोगों को झेलना पड़ रहा है। “

“ आईना देख लिया होगा। हम लोग तो सबसे पहले वही देखते है सुबह उठकर। “ - मिनाक्षी बोली। 

“ क्या बोला तुमने ? “ - गुस्से में आकर रॉकी चिल्लाया। 

“ तुम कहाँ इन गर्ल्स की बातों में उलझ रहे हो! “ - विशाल बोला - “ अब बताओ भी उड़ने वाले इंसान के बारे में कुछ। “

“ सुनो विशाल! “ - रॉकी के कुछ बोलने से पहले ही वर्षा बोली - “ पिछली बार भी तुम्हारे लिए चैरिटी के नाम पर रुपये इकट्ठे करने के चक्कर में मैं पूरा दिन शहर की सड़कों पर घूमती रही और थककर बीमार पड़ गई। चैरिटी से जितना रुपया तुम्हारे लिए इकठ्ठा किया था, उससे दुगुना तो मेरे इलाज में लग गया था।… इसीलिए इस बार मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली। मुझसे ऐसी कोई उम्मीद बिल्कुल भी मत रखना। “



बुधवार, 6 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 8 ) - उड़ने वाले इंसान का लाइव फुटेज

 

“ ये उड़ने वाले इंसान का क्या मैटर है ? “ - कॉलेज कैंटिन में एक चेयर पर बैठे सूरज ने विशाल से पूछा - “ जिसे देखो, उसी के बारे में बातें कर रहा है! “

“ तुझे नहीं मालूम ? “ - आश्चर्य में डूबा विशाल बोला। 

“ नहीं मालूम। तभी तो पूछ रहा हूँ। “ - हाथ में थमे कप से चाय सिप करते हुए सूरज बोला। 

“ अरे, कमाल करते हो! सारे शहर में जिसकी चर्चा हॉट टॉपिक बना हुआ है, हर दस मिनट में टेलीविजन पर जिस घटना को ब्रेकिंग न्यूज़ बताकर दिखाया जा रहा है, उसके बारे में तुमको नहीं मालूम! “

“ भई, अब सस्पेंस बढ़ाना बंद करके बताओगे भी कि आखिर ये मामला क्या है ? “

“ बताता हूँ ना। “ - बोलते हुए विशाल ने कप में बची हुई चाय का आखिरी घूँट भरा और कप को मेज पर रखकर अपने जीन्स की पॉकेट से मोबाइल निकाला। 

जल्द ही विशाल की अंगुलियाँ मोबाइल स्क्रीन पर शिरकत करते हुए उसका स्क्रीन लॉक खोलने लगी। 

इसके बाद विशाल ने यू ट्यूब ओपन किया और एक न्यूज़ चैनल पर लाइव न्यूज़ चला दी। 

“ ये देखो! “ - बोलते हुए उसने मोबाइल सूरज के हाथ में दिया। 

वह शहर का लोकल न्यूज चैनल था। शहर में होने वाली घटनाएँ ही उस पर प्रमुखता से दिखाई जाती थी। 

इस समय उस चैनल पर एक ही न्यूज़ बार बार दिखाई जा रही थी। 

न्यूज़ एंकर बोल रही थी - “ अब एक नजर खास खबर पर। कल रात शहर में उड़ने वाला इंसान देखा गया।…जी हाँ, बिल्कुल सही सुना आपने। एक उड़ने वाला इंसान! आपको यह कपोल कल्पना या कोरी गप्प लग सकती है, लेकिन असल मे ऐसा है नहीं और यह साबित करता है, वह लाइव फुटेज, जो हमारे जांबाज पत्रकारों के द्वारा उस समय रिकॉर्ड किया गया, जबकि ये हैरतअंगेज घटना हो रही थी। “

“ सारे न्यूज़ चैनल यही दावा कर रहे हैं कि इस उड़ने वाले इंसान का लाइव फुटेज उन्हीं के पत्रकारों द्वारा रिकॉर्ड किया गया, लेकिन किसी रिपोर्टर का नाम अभी तक सामने नहीं आया है। “ - विशाल बीच में ही बोल उठा - “ कोई भी नहीं जानता कि ये फुटेज रिकॉर्ड किसने की और इसीलिए सारे न्यूज़ चैनल इसका क्रेडिट खुद ही ले रहे हैं। “

सूरज ने विशाल की बात कुछ सुनी, कुछ नहीं भी सुनी। क्योंकि वह तो बेसब्री से उस घटना का लाइव फुटेज दिखाये जाने का इंतजार कर रहा था। 

जल्द ही उसके इंतजार की घडी खत्म हुई और फुटेज दिखाया जाना शुरू हुआ। बैकग्राउंड में न्यूज़ एंकर के बोलने की आवाज भी आ रही थी। 

“ यह शहर के महेश रोड़ पर स्थित यूनियन बैंक के बाहर का दृश्य है। आप देख सकते है, इसमें एक इंसान उड़ता हुआ दिख रहा है और वह अकेला नहीं है। उसने अपने हाथों में दो व्यक्तियों को उठा रखा है। इस उड़ते इंसान की तरफ इन व्यक्तियों की पीठ है और इनकी शर्ट को उसने एक एक हाथ से पकडा हुआ है। “ 

फुटेज दिखाने के बाद चैनल स्क्रीन पर फिर से न्यूज़ एंकर प्रकट हुई - “ जैसा कि आपने देखा उड़ते इंसान ने दो व्यक्तियों का गिरेबान पकड़ रखा था। हम ये तो नहीं पता लगा सके कि वह उड़ता इंसान कौन था। लेकिन जिन दो व्यक्तियों को उसने पकड़ रखा था, उनके बारे में घटना स्थल के कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से हमें थोड़ी बहुत जानकारी मिली है।… तो अब हम आपको लिए चलते हैं, घटना स्थल पर उपस्थित रहे उन लोगों के पास, जो खुद वहाँ मौजूद थे और जिन्होंने सब कुछ अपनी आँखों से देखा। “

इसके बाद चैनल स्क्रीन पर फिर से दृश्य बदला। 

अब न्यूज़ एंकर अपने संवाददाता से संपर्क स्थापित कर घटना का आँखों देखा हाल लेने लगी। 

संवाददाता के हाथ में माइक था, जिसका रुख उसने घटना के एक प्रत्यक्ष दर्शी की ओर कर रखा था। वह कोई 27 साल का एक लड़का था। 

“ सबसे पहले आप अपना नाम बताइये। “ - संवाददाता ने माईक का रुख उस व्यक्ति की ओर करते हुए कहा। 

“ रमेश। “ - नाम बताते हुए वह बोला। 

“ कल रात इसी इलाके में एक उड़ता हुआ इंसान देखा गया। “ - अपने अगले सवाल की भूमिका बाँधते हुए संवाददाता बोला - “ आप कुछ जानते है इस बारे में ? “

“ जानूंगा कैसे नहीं। मैं खुद मौजूद था उस वक्त यहाँ। “ 

“ अच्छा! तो क्या आप हमारे दर्शकों को बतायेंगे कि कल रात क्या देखा आपने ? “

“ भूल तो जाना चाहता हूँ कल रात की उस खौफनाक घटना को। “ - रमेश बोला - “ लेकिन, टीवी पर आने का ये सुनहरा मौका जिंदगी में फिर कभी मिले, न मिले। इसीलिए बताता हूँ। “

उड़ने वाले इंसान को अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखने वाले रमेश ने बताना शुरू किया - “ मैं यहीं पास के ही एक मकान में रहता हूँ। कल रात अचानक ही मुझे बड़े जोर की आवाज सुनाई दी। बिल्कुल वैसी ही आवाज, जैसी कि किसी रिवॉल्वर से फायर करने पर आती है। उस समय में सोया हुआ था और उस आवाज के कारण मेरी आँख खुल गई। वॉल क्लॉक में उस समय दो बज रहे थे। जिज्ञासा वश मैंने अपने घर की खिड़की से बाहर देखा तो मुझे आकाश में यूनियन बैंक की बिल्डिंग के ठीक सामने उड़ते हुए तीन व्यक्ति दिखाई दिए। पहले तो मुझे लगा कि कहीं वे कोई भूत - पिशाच तो नहीं! पर ध्यान से देखने पर समझ आया कि आकाश में उड़ने वाला इंसान तो एक ही था। उसने दो इंसानों को अपने हाथों में पकड़ रखा था और इसके बाद जो मैंने देखा, वो मेरी जिन्दगी का सबसे खौफनाक मंजर था। “

बोलते बोलते रमेश थोड़ा हाँफने लगा था। उसके दिल धड़कन तेज हो गई थी और घबराहट के कारण उसके चेहरे पर पसीने की बूँदे छलक आई थी। 

“ क्या देखा आपने ? “ - उत्सुकता वश पूछा संवाददाता ने। 

उन दोनों को ही उस उड़ने वाले इंसान ने आकाश से नीचे फेंक दिया और…और धड़ाम की तेज आवाज के साथ ही वे नीचे आ गिरे। “

“ फिर ? “

“ इतनी ऊँचाई से गिरने की वजह से शायद उनको बहुत ज्यादा चोटें आई थी। वे जोर से चीख चिल्ला रहे थे। मैंने आकाश की तरफ देखा तो वह उड़ने वाला इंसान आकाश में ठीक उसी तरह खड़ा था, जैसे कि हम जमीन पर खड़े होते हैं। ध्यान से देखने पर मुझे समझ आया कि उसने काले रंग के वस्त्र पहने हुए थे और उसकी पीठ पीछे काले रंग का ही लबादा लहरा रहा था। उसका चेहरा भी नकाब के पीछे छिपा हुआ था। इसके बाद मेरा ध्यान फिर से जमीन पर गिरकर लगातार कराह रहे उन दोनों व्यक्तियों की ओर गया। वे बहुत कष्ट में थे और मैं उनकी मदद करना चाहता था। लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने ऐसा करने की कोशिश भी की तो उड़ने वाला इंसान मुझ पर भी हमला ना कर दे। उसी समय पता नहीं कहाँ से एक पुलिस जीप आई और उनके पास ही आकर रुक गई। बस इसके बाद मैंने खिड़की बंद कर दी और फिर से सोने की कोशिश करने लगा। “ 

“ जानकारी हमारे दर्शकों के साथ साझा करने के लिए शुक्रिया मिस्टर रमेश! “ - रमेश का धन्यवाद करने के बाद संवाददाता दर्शकों से मुखातिब हुआ - “ तो ये था उड़ने वाले इंसान को अपनी आँखों से देखने वाले प्रत्यक्ष दर्शी रमेश का बयान। “

“ ये कैसे हो सकता है! “ - पूरी न्यूज़ देखने के बाद सूरज बोला - “ कोई इंसान उड़ कैसे सकता है! “

“ यही तो मिस्ट्री है मेरे दोस्त ! “ - विशाल बोला - “ है ना अजीब बात! तभी तो पूरे शहर में आज सिर्फ इसी उड़ने वाले इंसान की बातें हो रही है। “






मंगलवार, 5 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 7 ) - उड़ने वाला इंसान

  


“ यह तो आसानी से हो जायेगा। “ - दक्ष बोला। 

“ गुड! अब बताओ कि तुम किस धमाकेदार न्यूज़ की बात कर रहे थे ? ऐसी कौनसी न्यूज़ है, जिसको कवर करने के चक्कर में तुम ऑफिस देरी से पहुँचे ? “ - आहूजा ने पूछा। 

“ स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवान लड़कों के अपराध की ओर बढ़ते कदम - इस विषय पर मैं एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की सोच रहा हूँ। “ - दक्ष बोला - “ आज ऑफिस आने से पहले मैं ऐसे ही दो नौजवान लड़को से टकरा गया, जो अपनी छोटी मोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए चोरी जैसे अपराध की ओर अपने कदम बढ़ा चुके है। उन्हीं से इस विषय पर काम करने का आईडिया आया। नौजवान पीढी देश का भविष्य है। ऐसे विषय पर क्राईम लेखन करने की कोई सोचता तक नहीं है। इस पर अगर हम विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करते है तो इससे हमारे अखबार को काफी फ़ायदा हो सकता है। “

कल रात अपने साथ घटित हुई दोनों ही घटनाओं को साफ साफ छुपा गया दक्ष। क्योंकि दोनों में से किसी एक को भी अखबार में प्रकाशित होने देने का रिस्क वह नहीं ले सकता था। 

“ बात तो सही है। “ - कुछ सोचते हुए आहूजा बोला - “ ऐसे ही नए नए विचारों के साथ काम करते रहो। ‘ नौजवान पीढी के अपराध की ओर बढ़ते कदम ‘ विषय पर एक एंटीक रिपोर्ट हमारे अखबार में जरूर प्रकाशित होनी चाहिये। लेकिन पहले विधायक के इंटरव्यू पर ध्यान दो। “

“ बिल्कुल सर! “

“ गुड़! “ - मुस्कुराते हुए प्रकाश आहूजा बोला - “ नाउ यू मे गो। “

दक्ष और स्नेहा ने बॉस से विदा ली और अपने अपने केबिन की ओर बढे। 

बॉस के केबिन से निकलते समय उनके चेहरों पर जो खुशी थी, उसने सबसे पहले तो काव्या को, फिर ऑफिस के बाकी एम्प्लॉयी को उलझन में डाल दिया। सबको पता था कि दक्ष और स्नेहा मुरझाये चेहरे लिए बॉस के केबिन से बाहर आयेंगे, लेकिन वे तो फूल की तरह खिले हुए थे। 


शहर का आर्ट्स कॉलेज! 

रंग - बिरंगी ड्रेस पहने स्टूडेंट्स कॉलेज में प्रवेश कर रहे थे। 

जो पहले ही आ चुके थे, वे ग्राउंड में घूमते हुए आपस में बातें कर रहे थे। 

बातें ? 

किस विषय पर ? 

अब बातचीत का भी भला कोई विषय होता है! बातें तो ढेरों हो सकती है, किसी भी मैटर पर हो सकती है। लेकिन, वो सब आम दिनों की बातें होती है। 

लेकिन आज का दिन बाकी दिनों की तरह साधारण नहीं था। 

आज का दिन खास था। 

क्यों खास था ?

क्योंकि सिर्फ आर्ट्स कॉलेज में ही नहीं, बल्कि शहर के हर स्कूल, हर कॉलेज में और केवल एजुकेशन सेंटर्स पर ही क्यों, शहर के हर गली - मोहल्ले में, चौराहों पर, चाय - पान की दुकानों पर - शहर में हर जगह आज सिर्फ एक ही विषय पर बातचीत हो रही थी। 

लोगों के पास बात करने के लिए बस एक ही विषय था और यही वजह थी कि आज का दिन, बाकी दिनों की तुलना में खास बन गया था। 

 “ मुझे तो अभी भी यकीन नहीं आ रहा। “ - आर्ट्स कॉलेज में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट श्रेया कॉलेज ग्राउंड में घूमते हुए वर्षा से कह रही थी - “ कोई इंसान आकाश में कैसे उड़ सकता है! “

“ सही बोल रही है। इंसान नहीं उड़ सकता। “ - हाथ में थमे कुरकुरे के पैकेट में से एक कुरकुरा खाकर आँखें थोड़ी बड़ी और चेहरा डरावना बनाते हुए वर्षा बोली - “ ड्रैक्यूला उड़ सकता है। “

“ ड्रैक्यूला! “

“ ड्रैक्यूला नहीं जानती ? इंसानों का खून पीकर जीने वाला दरिंदा! “

“ क्या! “ - थोड़ा डरते हुए श्रेया बोली - “ ऐ… ऐसा हकीकत में थोड़े ही होता है। वो सब तो बस किस्से कहानियाँ है ना। “

“ क्यों, मूवी नहीं देखी ड्रैक्यूला की ? “

“ मैं नहीं देखती ऐसी डरावनी मूवीज। “ - श्रेया बोली - “ और वैसे फिल्में भी काल्पनिक ही होती है। “

“ अच्छा! तो कैसी मूवीज देखती है तू ? “ - वर्षा शरारत भरे अंदाज में बोली - “ रोमांस वाली ? “

“ अब तू टॉपिक से हट रही है। “ - बात बदलने की गरज से श्रेया बोली। 

“ टॉपिक ? “

“ वही कल रात वाली घटना! उड़ने वाला इंसान। “

“ ओह, वो ड्रैक्यूला! “ - पैकेट का आखिरी कुरकुरा मुँह में डालकर लापरवाही से रैपर पीछे की ओर उछालते हुए वर्षा बोली - “ अपनी सिक्योरिटी के लिए हमें अब रात में घर से बाहर निकलना बंद कर देना चाहिए। “

“ और दिन में ? “

“ तुझे पता नहीं है क्या ? ड्रैक्यूला को सूरज की रोशनी से परेशानी होती है। वह दिन में किसी ऐसी अंधेरी जगह पर छिपकर रहता है, जहाँ सूरज की एक किरण भी ना पहुँच सके। “

“ क्यों फिजूल में डरा रही हो इसे ? “ - पीछे की ओर से आई इस आवाज पर पलट कर देखा वर्षा ने तो यश को खड़े पाया। 

उसके हाथ में कुरकुरे का वही रैपर था, जिसे अभी हाल ही में वर्षा ने लापरवाही से पीछे की ओर उछाला था। 

“ डरा नहीं रही, संभावना व्यक्त कर रही हूँ। “ - आँखें तरेर कर देखते हुए वर्षा बोली - “ और ये तुम्हारे हाथ में क्या है ? “

“ आप ही की मेहरबानी है। “ - यश थोड़े शायराना अंदाज में बोला। 

“ क्या ? “

“ कुरकुरे खाकर जो रैपर तुमने अभी पीछे फेंका था, वही है ये। सीधे मेरे मुँह पर आकर गिरा था। “

“ ओह! सॉरी! “

“ इट्स ओके। “ - खाली रैपर को नीचे फेंकते हुए यश बोला। 

“ बाई दी वे, तुमको ऐसा क्यों लगता है कि कल रात जो उड़ता हुआ इंसान देखा गया था, वह आदमी न होकर ड्रैक्यूला था ? “

“ आधी रात के समय भला और कौन हो सकता है ! और वो उड़ रहा था, इंसान होता तो कैसे उड़ता ? “

“ इंसान होकर भी वह उड़ कैसे रहा था, ये तो मुझे नहीं पता। लेकिन ड्रैक्यूला वो नहीं हो सकता। क्योंकि ये ड्रैक्यूला या भूत सिर्फ किस्से कहानियों में होते हैं, हकीकत में नहीं। “

“ होते है। “

“ अब तुम इस मासूम सी श्रेया को डराना बंद भी करो। “

“ तुम अपने काम से काम क्यों नहीं रखते! “ - इस बार वर्षा थोड़ा तेज आवाज में बोली। 

“ बचकर रहना इससे। “ - यश श्रेया से बोला - “ सीनियर है तुमसे। रैगिंग तो ले नहीं सकती, पर डराने का कोई मौका भी नहीं छोड़ती। “

“ बस बहुत हो गया जाओ यहाँ से! “ - इस बार वर्षा चीखी। 

“ हाँ, पवन! “ - लड़कों के एक समूह की ओर देखते हुए वह बोला और उसी तरफ बढ़ गया। 

“ ये इसको आवाज किसने लगाई ? “ - चकित स्वर में श्रेया ने वर्षा से पूछा - “ मुझे तो बिल्कुल नहीं लगा कि कोई उसे बुला रहा है! “

“ बुला कोई नहीं रहा। जाने को बोल दिया मैंने तो इंसल्टिंग फील हुआ होगा। “ - हँसते हुए वर्षा बोली - “ इसीलिए उसने ऐसे बिहेव किया, जैसे उसे कोई बुला रहा हो। “

“ ओह! “ - वर्षा की बात सुनकर श्रेया को भी हँसी आ गई - “ अच्छा! चलती हूँ। “ 

“ ओके। ड्रैक्यूला से बचकर रहना और कितना ही जरूरी काम हो, रात को बाहर बिल्कुल मत निकलना। “

“ हाँ, ठीक है। “ 

“ इसे डराना कितना आसान था। “ - खुद से ही बातें करते हुए वर्षा बोली - “ ये मधु और मिनाक्षी कहाँ रह गई! “

आर्ट्स कॉलेज में फाइनल ईयर की स्टूडेंट वर्षा अवस्थी थोड़ा हेवी वैट वाली एक खुशमिजाज लड़की थी। हमेशा कुछ न कुछ खाते रहना, खूब बातें करना और हँसी मजाक में समय बिताना उसका प्रिय शगल था।

श्रेया ने अभी कुछ महीने पहले ही कॉलेज में एडमिशन लिया था। वह बला की खूबसूरत , सामान्य कद काठी और चांदी जैसी रंगत लिए हुए चेहरे की मालकिन थी। कॉलेज के कई लड़के उसके पीछे पड़े रहते थे, लेकिन वह किसी को तवज्जो नहीं देती थी। अभी कुछ देर पहले यश भी उसी के पीछे मंडराता हुआ यहाँ पहुँचा था। 



सोमवार, 4 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 6 ) - दक्ष और स्नेहा लेंगे विधायक का इंटरव्यू



 आहूजा ने कहर भरी नजरों से दक्ष की ओर देखा - “ तो, मानते हो ना कि तुम्हें आज, अभी और इसी वक्त जॉब से निकाल दिया जाना चाहिए! “

“ हाँ। “ - दक्ष बोला - “ बिल्कुल निकाल देना चाहिए। “

स्नेहा बुरी तरह घबरा उठी। 

स्मिता खन्ना भी बॉस के निर्देशानुसार टाइप किये हुए लेटर की हार्ड कॉपी लेकर उसकी ओर बढ़ रही थी। 

उसने लेटर आहूजा के हाथों में थमाया। 

यह दृश्य देखकर एक पल को दक्ष भी सिहर उठा। लेकिन जल्द ही खुद को संभालते हुए बोला - “ किसी एम्प्लॉयी के कार्यस्थल पर देरी से पहुँचने और ऑफिस के वर्किंग आवर्स में कहीं गायब हो जाने की वजह जाने बिना ही यदि उसे जॉब से डिसमिस कर देने से आपकी रूह को सुकून मिलता है तो बेशक आपको ऐसा कर ही लेना चाहिए, फिर भले ही इससे आपको या आपके अखबार को भारी नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े। “ 

अपनी बात पूरी होने के साथ ही दक्ष चेयर से उठा और बाहर जाने के लिए पलटा। 

“ भारी नुकसान से तुम्हारा क्या मतलब है लड़के! “ - आहूजा तेज आवाज और चकित स्वर में बोला। 

बाहर की ओर बढ़ते दक्ष के कदम रुके। घूमकर उसने आहूजा की ओर देखा और रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए बोला - “ जिस धमाकेदार न्यूज़ के पीछे भागते हुए आज मुझे ऑफिस आने में थोड़ी देर हो गई और जिसके बारे में अकेले में डिसकस करने के लिए मुझे स्नेहा को यहाँ से बाहर ले जाना पड़ा, वह न्यूज़ ‘ डेली न्यूज़ ‘ में न छपकर किसी और अखबार में छपती है तो आपका और आपके अखबार का भारी नुकसान होना तो तय है। “

“ ऐसी कौनसी न्यूज़ है जिसको न छापने से मेरा भारी नुकसान हो जायेगा ? “ - तीखी नजरों से देखते हुए आहूजा बोला। 

“ वो जब आपके किसी प्रतिद्वंदी अखबार में छपेगी, तो आपको खुद ही पता चल जायेगा। “ - दक्ष ने आगे जोड़ा - “ किसी ऐसे अखबार में , जो इतना तो समझता ही हो कि एक रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र सिर्फ चारदिवारी नहीं होती। “

“ तुम तो नाराज हो गए दक्ष! “ - अचानक ही तेवर बदलकर खुशामदी करते हुए बोला आहूजा - “ और तुम खड़े क्यों हो, आराम से बैठ जाओ। मुझे अगर पता होता कि तुम किसी बड़ी न्यूज़ के पीछे लगे हो तो क्यों मैं तुमसे देरी से आने और ऑफिस के बीच में बाहर जाने के बारे में सवाल पूछता! मैंने तो बस केजुअली पूछ लिया था और बात की बात में यह बात इतनी खिंची कि बस खिंचती ही चली गई। “

“ केजुअली पूछा था! “ - संदेह भरी नजरों से सीधे आहूजा की आँखों में देखते हुए दक्ष बोला। 

“ और नहीं तो क्या! “ 

“ तब आपने हमारा सस्पेंशन लेटर भी केजुअली ही तैयार करवाया होगा! “ - काफी देर से अपनी नीचे की साँस नीचे और ऊपर की साँस ऊपर को रोके बैठी स्नेहा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली। 

“ सस्पेंशन लेटर! “ विस्मित होते हुए आहूजा बोला - “ कब ? “

“ अभी, हमारे सामने। “ - स्मिता बोली - “ मिस स्मिता ने आपको टाइप करके दिया ना! “

“ ये कोई सस्पेंशन लेटर नहीं है। “ - अपने हाथ में थमे लेटर को स्नेहा की ओर बढ़ाते हुए आहूजा बोला - “ मुझे पता चला है कि आज तुम लोगों का मन ऑफिस में लग नहीं रहा है, इसीलिए तुम लोगों को शहर के विधायक जगमोहन बंसल का इंटरव्यू लेने के लिए फील्ड वर्क पर भेजने की योजना बनाई है मैंने। इसमें वही सवाल है, जो तुम लोगों को विधायक महोदय से इंटरव्यू के दौरान करने है। “

आहूजा की पूरी बात सुनकर स्नेहा ने वह लेटर लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ही था कि बीच में ही दक्ष ने आहूजा के हाथ से लेटर झपट लिया और जल्दी जल्दी पढ़ने लगा। स्नेहा की नजरें भी दक्ष के हाथ में थमे लेटर पर छपी तहरीर को पढ़ने में व्यस्त हो गई। 

लेटर में इंटरव्यू के दौरान विधायक से पूछे जाने वाले प्रश्न ही लिखे हुए थे। 

दोनों ने राहत की लम्बी साँस ली। 

“ तो, तुम लोगों को लग रहा था कि तुम्हें यहाँ सस्पेंशन लेटर देने के लिए बुलाया गया है! “ 

“ अब है तो कुछ ऐसा ही। “ - दक्ष और स्नेहा समवेत स्वर में बोले। 

“ और ऐसा लगने की वजह ? “

“ जगन का किसी एम्प्लॉयी को ये बोलना कि बॉस ने बुलाया है, हमेशा खतरे की घंटी ही माना जाता है। “ - दक्ष ने जवाब दिया। 

“ तो, मेरी भरपूर दहशत कायम है ऑफिस में !“ - सोचते हुए आहूजा मुस्कुराया और बोला - “ अच्छा! हाँ वैसे अक्सर मैं ऐसा ही किया करता हूँ। जब कभी किसी एम्प्लॉयी पर मेरी गाज गिरनी होती है तो मैं जगन की मार्फत ही उसे यहाँ अपने केबिन में बुलाता हूँ।… सामान्य कार्यो के लिए स्मिता ही इंटरकॉम से काव्या को किसी एम्प्लॉयी को यहाँ भेजने के लिए कहती है और आगे काव्या बाजरिया इंटरकॉम ही एम्प्लॉयी को यहाँ आने के लिए कहती है। लेकिन, अगर जगन किसी एम्प्लॉयी को मेरे पास आने के लिए कहता है तो इसका मतलब हमेशा खतरे की घंटी नहीं होता है। कभी कभी मैं महत्वपूर्ण जिम्मेदारी वाले काम सौंपने के लिए भी जगन की मार्फत अपने एम्प्लॉयी को यहाँ बुलाता हूँ और आज ऐसा ही दुर्लभ संयोग हुआ है, जिसका कि तुम लोगों ने कुछ और ही मतलब निकाल लिया। “

“ थैंक्स सर! “ - स्नेहा बोली - “ हमें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपने के लिए। “

“ उम्मीद करता हूँ कि तुम लोग इस काम को किसी और एम्प्लॉयी की तुलना में बेहतर तरीके से अंजाम दोगे। “ - प्रकाश आहूजा बोला। 

“ आपको निराश नहीं होना पड़ेगा सर! “ - स्नेहा बोली। 

“ तुम कुछ बोल नहीं रहे हो लड़के! “ - दक्ष को चुप देखकर आहूजा बोला - “ कोई समस्या है ?... ले पाओगे ना ये इंटरव्यू ? “

“ हाँ। “ - कुछ सोचते हुए दक्ष बोला - “ लेकिन हम तो क्राईम रिपोर्टर है ना! हमें विधायक का इंटरव्यू क्यों लेना है ? “ 

“ बच्चों जैसी बातें मत करो दक्ष! “ - मुस्कुराते हुए आहूजा बोला - “ आज के समय में इन सफेदपोश खद्दर नेताओं से बड़ा क्रिमिनल भला और कौन होगा! और ये जगमोहन बंसल तो 6 बार जेल भी जा चुका है। “

“ ओह! तब ठीक है। “ - दक्ष बोला - “ लेकिन एक समस्या और है। “

“ अब क्या ? “ - थोड़ा क्रोधित होते हुए बोला आहूजा। 

“ विधायक के बंगले में एंट्री आसान तो होगी नहीं और हम पत्रकारों से तो वैसे भी अपराधी कतराते है। “

“ ये तुमसे किसने कहा कि विधायक का इंटरव्यू उसके बंगले पर जाकर लेना है ? “

“ फिर ? “

“ शहर के शास्त्री रोड़ पर कल ही एक नया म्युजियम खुल रहा है, जिसका उद्घाटन विधायक बंसल ही करने वाले है। बहुत बड़ा समारोह आयोजित होगा। उसी दौरान तुम्हें उनका इंटरव्यू लेना है। “


शनिवार, 2 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 4 ) - खतरे की घंटी

 


 “ सब कुछ इतना अचानक से हुआ कि श्रद्धा तो कुछ समझ ही नहीं पाई। वह कभी तो मेरी तरफ और कभी उन दोनों के जख्मी घुटनों की तरफ देख रही थी। वे दोनों ही अपने घुटने थामे फर्श पर पड़े कराह रहे थे। उनके चाकू हाथों से छिटककर दूर जा गिरे थे। “ - दक्ष बता रहा था - “ मैं बहुत ही सावधानी से उनकी तरफ बढ़ा। मैं समझ गया कि अब वे कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है। बड़े ही आराम से मैंने उनके नकाब के नीचे छिपे खतरनाक चेहरे देखने के लिए एक - एक करके उनको बेनकाब किया और यह देखकर मुझे बड़ी निराशा हुई कि उन काले मास्क के पीछे छिपे चेहरे बड़े ही मासूम से थे। 18 - 19 साल के लड़के, जो बस मौज मस्ती के लिए किसी छोटी मोटी जगह हाथ साफ करने के इरादे से घर से निकले थे। 

“ आह! बहुत दर्द हो रहा है। “ - उनमें से एक चिल्लाया। 

“ क्या अब हम मर जायेंगे ? “ - दूसरा घबराते हुए मायूस स्वर में बोला। 

“ चुप रहो। “ - डांटने के से अंदाज में कहा मैंने - “ बहुत गलत घर में घुस आए हो तुम लोग। घुटने पर गोली लगने से मरोगे तो नहीं, लेकिन तुमको यह जानकर बड़ा अफसोस होगा कि मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ। अब मैं तुम लोगों की फोटो क्लिक करूँगा और कल सुबह के अखबार में तुम लोगों की ये खूबसूरत तस्वीरें न्यूज़ के साथ छपेगी। फिर तुम्हारे घर वाले जो तुम्हारे साथ करेंगे, तुम लोग जी भी नहीं पाओगे। “

“ क्या ? अखबार में फोटो छपेगी ? “ - पहला वाला बोला। 

“ न्यूज़ भी। “

“ और हमारे घर तक ये बात पहुँचेगी कि हम यहाँ चोरी करने आए थे ? “ - दूसरे के स्वर में घबराहट थी। 

“ बिल्कुल। “

“ ऐसा मत करना। प्लीज हमारी तस्वीरें मत खींचना। “ - घबराते हुए दोनों एक साथ बोले। 

“ ठीक है। फिर दफा हो जाओ यहाँ से। जल्दी! “ - मैं उन पर चिल्लाया। 

बस फिर क्या था! 

जल्दी से अपने अपने नकाब पहनकर घुटने के दर्द की परवाह किए बगैर ही दोनों बाहर की ओर लंगड़ाते हुए भागे। 

उनके जाते ही सबसे पहले तो मैंने मेन डोर को भीतर से अच्छी तरह लॉक किया। फिर मेरा ध्यान श्रद्धा की ओर गया। उसे देखकर ऐसे लग रहा था जैसे किसी बहुत बड़ी मुसीबत के टल जाने के बाद उसने राहत की साँस ली हो। 

“ मुझे लगा था कि कहीं उन दोनों को मेरे चाचा ने ही ना भेजा हो। “ - बिना कुछ पूछे ही वह बोली। 

“ चिन्ता मत करो। तुम यहाँ पूरी तरह सुरक्षित हो। “

“ तुम तो बहुत तेज और फुर्तिले हो। मुझे तो पता भी नहीं चला कि कब वे दोनों घर में घुस आए और तुमने तो बिजली की सी तेजी से उन पर फायर भी कर दिया! अब मुझे सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि शक्ल से लगते भले ही नहीं हो, पर हो तुम बहुत खतरनाक! “

“ शहर में रहना खतरे से खाली नहीं होता। “ - मुस्कुराते हुए मैं बोला - “ यहाँ जीने के लिए खतरनाक होना ही पड़ता है। “

इसके बाद उसे गेस्ट रूम में सोने को बोलकर मैं बेडरूम में चला गया। 

“ सुबह जब 8 बजे मेरी आँख खुली तो उठते ही मैंने गेस्ट रूम का रुख किया। मुझे लगा कि श्रद्धा भी अभी तक सोयी होगी। लेकिन मैं गलत था, क्योंकि श्रद्धा उस समय अपने बेड पर नहीं थी। उसे आवाज लगाते हुए मैंने पूरे घर में तलाश किया, वो घर में ही नहीं थी। फिर मेरे मस्तिष्क में एक विचार आया और मैंने मेन डोर चेक किया। वह अंदर से लॉक नहीं था, जिसका सीधा सा अर्थ यही हो सकता था कि कोई घर से बाहर गया था और वह कोई श्रद्धा ही हो सकती थी। “ - दक्ष ने स्नेहा को बीती रात घटित हुई दोनों घटनाएँ विस्तार से बताते हुए कहा - “ फिर मैं अपने डेली रुटिन के मुताबिक तैयार होकर यहाँ ऑफिस पहुँचा। “

“ ओह! ये तो सच में बड़ी अजीब बात हुई। “ - स्नेहा बोली - “ फिर उस लड़की श्रद्धा का क्या हुआ ? कहाँ गई होगी वो ? “

“ पता नहीं। “ - दक्ष लापरवाही से बोला। 

“ कोशिश नहीं की तुमने उसको तलाश करने की ? “ - स्नेहा चिंतित स्वर में बोली - “ शहर में उस देहाती लड़की का अकेले ही घूमते फिरना उसके लिए खतरनाक हो सकता है। “

“ जानता हूँ। लेकिन उसे ढूँढे भी तो कैसे ? कोई क्लू भी तो नहीं छोड़ा उसने जाने से पहले। “

“ खैर, उम्मीद है कि वह सुरक्षित रहेगी और खुद को शहर माहौल में ढालने में सफल होगी। फिलहाल, अब चलें ऑफिस ? “

“ हाँ। चलो। “ - कहते हुए दक्ष ने वेटर को बुलाकर कॉफी का बिल पे किया। 

इसके बाद स्नेहा और दक्ष रेस्टोरेंट से बाहर निकलकर वापस ऑफिस पहुँचे। 

अभी वे जाकर अपने - अपने केबिन में बैठे ही थे कि ऑफिस बॉय जगन के मार्फत बॉस ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया।

बॉस का बुलावा…स्पेशियली उन दोनों के लिए और वो भी ऑफिस में सेक्रेटरी व इंटरकॉम का बंदोबस्त होने के बावजूद बॉस का जगन को उन्हें बुलाने भेजना!...आश्चर्य का विषय था। 

“ मैंने पहले ही कहा था। “ - दक्ष के साथ बॉस के पर्सनल केबिन की ओर बढ़ते हुए स्नेहा बोली - “ हमें ऑफिस के वर्किंग आवर्स के बीच में यहाँ से बाहर नहीं जाना चाहिए था।…मुझे तो ऐसी फीलिंग आ रही है जैसे कि हमने स्कूल या कॉलेज में पढ़ते हुए बंक मार लिया हो और अब प्रिंसिपल हमारी अच्छे से क्लास लेने वाला है। “

जवाब में उसे दक्ष की जोर से हँसने की आवाज सुनाई दी। 

“ अभी तुमको हँसी आ रही है। “ - दिखावटी गुस्से के साथ स्नेहा बोली - “ लेकिन बॉस के सामने जाते ही तुम्हारी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाने वाली है। “

“ ज्यादा टेंशन मत लो स्नेहा! “ - दक्ष लापरवाही से बोला - “ डर डर के नौकरी नहीं की जाती। अब जो हो गया, सो हो गया। चलकर देखते हैं, हो सकता है बॉस ने किसी और काम से बुलाया हो ! “

“ मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता। “ - स्नेहा चिंतित स्वर में बोली - “ अगर कोई और ही काम होता, तो वो हम दोनों में से किसी एक को बुलाता या फिर अपनी सेक्रेटरी स्मिता खन्ना को बोलकर इंटरकॉम से हमें बुलवाता। इस तरह जगन को भेजकर हमें बुलवाने का क्या मतलब! जरूर उसने हमें जॉब से डिसमिस करने के लिए बुलाया होगा। “

“ डोंट बी निगेटिव। ज्यादा मत सोचो। अरे, ऐसा भी क्या घबराना! चिन्ता मत करो, मैं सब संभाल लूँगा। “

धीमे धीमे कदमों से चलते हुए वे बॉस के पर्सनल केबिन की ओर बढ़ रहे थे। सारे सहकर्मी उन्हें अजीब नजरों से देख रहे थे, क्योंकि जब भी ऑफिस बॉय जगन किसी को ये बोलने आता था कि बॉस ने बुलाया है तो यह उस बुलाये गए सहकर्मी के लिए खतरे की घंटी होती थी। 

चलते हुए वे अब बॉस के पर्सनल केबिन तक आ पहुँचे थे। 

- शेष अगले भाग में





रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 5 ) - दक्ष और स्नेहा की जॉब ट्रबल में



“ क्या बात है ? “ - बॉस के केबिन से ही सटे एक ओपन केबिन में बैठी रिसेप्शनिस्ट काव्या विजयवर्गीय ने संजीदा स्वर में पूछा। 

“ बॉस से मिलना है। “ - जवाब दक्ष ने दिया - “ इंफॉर्म करो उनको कि हम लोग - दक्ष और स्नेहा आ गए हैं। “

“ आ गए हैं, मतलब ? “ - अपने रिमलेस चश्मे को ठीक करते हुए काव्या ने पूछा - “ आपको बुलाया है बॉस ने ? “

“ तभी तो आए हैं यहाँ। “

“ कमाल है! मुझे तो इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। “ - काव्या बोली - “ और एक मिनट! मैंने तो तुममें से किसी को भी कॉल नहीं किया। सर को किसी भी एम्प्लॉयी से मिलना होता है तो मेरे मार्फत ही बुलाया जाता है। “

“ आम स्थितियों में मैडम! आम स्थितियों में! “ - दक्ष नाटकीय अंदाज में बोला - “ विशेष परिस्थितियों में जगन के माध्यम से ही किसी एम्प्लॉयी को बुलाया जाता है। “

“ ओह! “ - बात को समझते हुए काव्या व्यंग्यपूर्ण तरीके से मुस्कुराई - “ मैं इंफॉर्म करती हूँ सर को। “

उस मुस्कुराहट का मतलब समझना न दक्ष के लिए मुश्किल था और न ही स्नेहा के लिए। 

इसके बाद काव्या इंटरकॉम के साथ बिज़ी हो गई। 

एक ही पल के बाद वह बोली - “ आप भीतर जा सकते हैं। “

बॉस के केबिन का ग्लास डोर धकेलकर वे भीतर दाखिल हुए। 

सामने ही एक बड़ी सी मेज के पीछे अपनी एग्जीक्युटिव चेयर पर विराजमान डेली न्यूज़ का कर्ता धर्ता और मालिक प्रकाश आहूजा कोई 50 वर्ष की अर्धशताब्दी को पार कर चुका दोहरे बदन और चेहरे पर हमेशा गंभीर हाव भाव रखने वाला व्यक्ति था। 

उसने एक तेज नजर दोनों पर ही डाली। 

उस तेज नजर का जो मतलब होता था, वो कोई बच्चा भी समझ सकता है। तो जाहिर सी बात है कि स्नेहा और दक्ष भी समझ ही गए थे और न केवल समझ गए थे, बल्कि अपनी मूक प्रतिक्रिया देना भी शुरू कर चुके थे। इसी का परिणाम था कि स्नेहा के चेहरे पर घबराहट के भाव तेजी से आने लगे और जॉब से डिसमिस किए जाने का खौफ उस पर पहले से भी ज्यादा तेजी से हावी होने लगा। 

इधर दक्ष का दिमाग अपनी स्वाभाविक गति की तुलना में कई गुना तेजी से काम करने लगा था। 

“ कम एंड सिट। “ - आहूजा की सख्त आवाज उनके कानों में पड़ी। 

कदम मशीनी अंदाज में स्वत: ही आगे बढ़ने लगे। 

शीघ्र ही वे बॉस के सामने मेज के इस पार रखी दो विजिटर्स चेयर पर विराजमान थे।

“ तो…” - अपनी आदत के अनुसार आहूजा ने बोलना शुरू किया - “ ऑफिस में हाजिरी भरकर वर्किंग आवर्स में कहीं भी तफरीह के लिए निकल जाना क्या साबित करता है ? “

“ क्या साबित करता है ? “

“ मैंने एक सवाल किया है, जिसका कि तुमको जवाब देना है। “

“ ये सवाल तो आपको उसी से करना चाहिये, जिसने ऐसी गुस्ताखी की हो। “ - दक्ष लापरवाही से बोला। 

“ वही कर रहा हूँ। “

“ जी! “

“ तो, अब बनने की कोशिश मत करो। “

“ आप क्या कह रहे है, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। “ - अनजान बनते हुए दक्ष बोला। 

“ अच्छा! “ - आहूजा अपनी ठुड्डी पर हाथ रखते हुए सोचने के से अंदाज में बोला - “ तो, आज तुम ऑफिस लेट नहीं आए, ना ही तुमने स्नेहा को कॉफी पर अपने साथ चलने के लिए बोला था !... तो, वो तुम नहीं थे, तो वो कौन था!.. तुम बताओ स्नेहा, कौन था वो ? “

स्नेहा के तो चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थी। 

इतना तय था कि बॉस को सारी बात की जानकारी थी, इसीलिए झूठ बोलना व्यर्थ था। कुछ बोलने से पहले स्नेहा ने दक्ष की ओर देखा। उसका चेहरा अभी भी भावहीन था, जैसे इन सब से उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो। 

लेकिन यह सच नहीं था। 

फर्क तो उसे भी पड़ा था, पर वह स्नेहा की तरह अपने मन की घबराहट को चेहरे पर जाहिर नहीं होने देना चाहता था। उसे किसी तरह तो बात को संभालना ही था। 

दोनों को चुप देखकर आहूजा ने अपनी सेक्रेटरी स्मिता को एक संकेत किया और वह कंप्यूटर पर कुछ टाइप करने लगी। 

स्नेहा समझ चुकी थी, यह जरूर उनका डिसमिस लेटर होगा। ये जॉब तो अब गई हाथ से! 

“ सर! मैं… “ - स्नेहा ने कुछ बोलना शुरू ही किया था कि दक्ष को लगा, कुछ गड़बड़ ना हो जाए इसीलिए वह बीच में ही बोल उठा - “ हाँ, वो मैं ही था, जो ऑफिस के नियत समय से पूरे एक घंटे लेट 11 बजे यहाँ पहुँचा। वो मैं ही था जिसने स्नेहा को ऑफिस के वर्किंग आवर्स में कॉफी पर चलने के लिए बोला था। “

दक्ष बेखौफ तरीके से और निर्भीकता से बोलता चला गया। उसके बोलने का लहजा ऐसा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा हिरोगिरी वाला काम कर दिखाया हो! 

जवाब में आहूजा ऐसे मुस्कुराया जैसे उसने कोई बहुत बड़ा किला फतेह कर लिया हो। 

“ तो, तुम मानते हो कि तुमने ऑफिस का अनुशासन तोडा है ? “ - मन ही मन अपनी जीत पर खुश होते हुए उसने पूछा। 

अब वह दक्ष का पराजय से झुका हुआ मुँह देखना चाहता था। 

पर अफसोस, उसकी यह कामना कम से कम आज तो पूरी होने वाली नहीं थी। 

“ सर, मैं मानता हूँ कि मैं ऑफिस लेट आया और वर्किंग आवर्स में स्नेहा के साथ कॉफी पीने के लिए बाहर भी गया। “ - अपने स्वर में शहद जैसी मिठास घोलते हुए दक्ष बोला - “ पर इसमें अनुशासन तोड़ने वाली बात कहाँ से आ गई ? “

आहूजा को लगा जैसे किसी ने उसके गाल पर तमाचा जड़ दिया हो। उसके साथ इतनी दबंगाई से बात करने की हिम्मत आज दिन तक किसी ने नहीं की और ये.. महज 28 साल का नौजवान, इसका इतना दुःसाहस! 

“ तुम्हें होंश भी है लड़के कि तुम कहाँ बैठे हो! “ - अचानक ही बदले तेवर और क्रोधित स्वर में बोला आहूजा - “ क्या बोल रहे हो! किसके सामने बोल रहे हो! और इसका क्या अंजाम हो सकता है! “

“ अरे, सर! आप पहले मेरी पूरी बात तो सुनो। “ - दक्ष पूर्वतः शांत स्वर में बोला - “ मैं ये नहीं कह रहा कि देरी से ऑफिस आना और काम के समय ऑफिस के बाहर होना - अनुशासन तोड़ने वाले कार्य नहीं है।.. है, बिल्कुल है। कोई अगर ऐसा करता है तो उसे तो खड़े पैर ही नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। फिर चाहे वो कोई मैं या स्नेहा ही क्यों न हो। “

दक्ष के मुँह से जॉब से डिसमिस किए जाने की बात सुनकर स्नेहा के पैरों तले जमीन खिसक गई और उसका ध्यान सेक्रेटरी स्मिता की ओर गया, जो कि बॉस के निर्देशानुसार लेटर टाइप करके प्रिंटर से उसकी हार्ड कॉपी निकाल रही थी। 

शेष अगले भाग में


रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 14 दक्ष के घर आई स्नेहा

  म्युजियम के प्रदर्शनी हॉल में सब तरफ तलाश करने पर भी पुलिस को म्युजियम का कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं दिया।  “ लगता है, उस पत्थर वाले आदमी...