“ यह तो आसानी से हो जायेगा। “ - दक्ष बोला।
“ गुड! अब बताओ कि तुम किस धमाकेदार न्यूज़ की बात कर रहे थे ? ऐसी कौनसी न्यूज़ है, जिसको कवर करने के चक्कर में तुम ऑफिस देरी से पहुँचे ? “ - आहूजा ने पूछा।
“ स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवान लड़कों के अपराध की ओर बढ़ते कदम - इस विषय पर मैं एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की सोच रहा हूँ। “ - दक्ष बोला - “ आज ऑफिस आने से पहले मैं ऐसे ही दो नौजवान लड़को से टकरा गया, जो अपनी छोटी मोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए चोरी जैसे अपराध की ओर अपने कदम बढ़ा चुके है। उन्हीं से इस विषय पर काम करने का आईडिया आया। नौजवान पीढी देश का भविष्य है। ऐसे विषय पर क्राईम लेखन करने की कोई सोचता तक नहीं है। इस पर अगर हम विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करते है तो इससे हमारे अखबार को काफी फ़ायदा हो सकता है। “
कल रात अपने साथ घटित हुई दोनों ही घटनाओं को साफ साफ छुपा गया दक्ष। क्योंकि दोनों में से किसी एक को भी अखबार में प्रकाशित होने देने का रिस्क वह नहीं ले सकता था।
“ बात तो सही है। “ - कुछ सोचते हुए आहूजा बोला - “ ऐसे ही नए नए विचारों के साथ काम करते रहो। ‘ नौजवान पीढी के अपराध की ओर बढ़ते कदम ‘ विषय पर एक एंटीक रिपोर्ट हमारे अखबार में जरूर प्रकाशित होनी चाहिये। लेकिन पहले विधायक के इंटरव्यू पर ध्यान दो। “
“ बिल्कुल सर! “
“ गुड़! “ - मुस्कुराते हुए प्रकाश आहूजा बोला - “ नाउ यू मे गो। “
दक्ष और स्नेहा ने बॉस से विदा ली और अपने अपने केबिन की ओर बढे।
बॉस के केबिन से निकलते समय उनके चेहरों पर जो खुशी थी, उसने सबसे पहले तो काव्या को, फिर ऑफिस के बाकी एम्प्लॉयी को उलझन में डाल दिया। सबको पता था कि दक्ष और स्नेहा मुरझाये चेहरे लिए बॉस के केबिन से बाहर आयेंगे, लेकिन वे तो फूल की तरह खिले हुए थे।
शहर का आर्ट्स कॉलेज!
रंग - बिरंगी ड्रेस पहने स्टूडेंट्स कॉलेज में प्रवेश कर रहे थे।
जो पहले ही आ चुके थे, वे ग्राउंड में घूमते हुए आपस में बातें कर रहे थे।
बातें ?
किस विषय पर ?
अब बातचीत का भी भला कोई विषय होता है! बातें तो ढेरों हो सकती है, किसी भी मैटर पर हो सकती है। लेकिन, वो सब आम दिनों की बातें होती है।
लेकिन आज का दिन बाकी दिनों की तरह साधारण नहीं था।
आज का दिन खास था।
क्यों खास था ?
क्योंकि सिर्फ आर्ट्स कॉलेज में ही नहीं, बल्कि शहर के हर स्कूल, हर कॉलेज में और केवल एजुकेशन सेंटर्स पर ही क्यों, शहर के हर गली - मोहल्ले में, चौराहों पर, चाय - पान की दुकानों पर - शहर में हर जगह आज सिर्फ एक ही विषय पर बातचीत हो रही थी।
लोगों के पास बात करने के लिए बस एक ही विषय था और यही वजह थी कि आज का दिन, बाकी दिनों की तुलना में खास बन गया था।
“ मुझे तो अभी भी यकीन नहीं आ रहा। “ - आर्ट्स कॉलेज में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट श्रेया कॉलेज ग्राउंड में घूमते हुए वर्षा से कह रही थी - “ कोई इंसान आकाश में कैसे उड़ सकता है! “
“ सही बोल रही है। इंसान नहीं उड़ सकता। “ - हाथ में थमे कुरकुरे के पैकेट में से एक कुरकुरा खाकर आँखें थोड़ी बड़ी और चेहरा डरावना बनाते हुए वर्षा बोली - “ ड्रैक्यूला उड़ सकता है। “
“ ड्रैक्यूला! “
“ ड्रैक्यूला नहीं जानती ? इंसानों का खून पीकर जीने वाला दरिंदा! “
“ क्या! “ - थोड़ा डरते हुए श्रेया बोली - “ ऐ… ऐसा हकीकत में थोड़े ही होता है। वो सब तो बस किस्से कहानियाँ है ना। “
“ क्यों, मूवी नहीं देखी ड्रैक्यूला की ? “
“ मैं नहीं देखती ऐसी डरावनी मूवीज। “ - श्रेया बोली - “ और वैसे फिल्में भी काल्पनिक ही होती है। “
“ अच्छा! तो कैसी मूवीज देखती है तू ? “ - वर्षा शरारत भरे अंदाज में बोली - “ रोमांस वाली ? “
“ अब तू टॉपिक से हट रही है। “ - बात बदलने की गरज से श्रेया बोली।
“ टॉपिक ? “
“ वही कल रात वाली घटना! उड़ने वाला इंसान। “
“ ओह, वो ड्रैक्यूला! “ - पैकेट का आखिरी कुरकुरा मुँह में डालकर लापरवाही से रैपर पीछे की ओर उछालते हुए वर्षा बोली - “ अपनी सिक्योरिटी के लिए हमें अब रात में घर से बाहर निकलना बंद कर देना चाहिए। “
“ और दिन में ? “
“ तुझे पता नहीं है क्या ? ड्रैक्यूला को सूरज की रोशनी से परेशानी होती है। वह दिन में किसी ऐसी अंधेरी जगह पर छिपकर रहता है, जहाँ सूरज की एक किरण भी ना पहुँच सके। “
“ क्यों फिजूल में डरा रही हो इसे ? “ - पीछे की ओर से आई इस आवाज पर पलट कर देखा वर्षा ने तो यश को खड़े पाया।
उसके हाथ में कुरकुरे का वही रैपर था, जिसे अभी हाल ही में वर्षा ने लापरवाही से पीछे की ओर उछाला था।
“ डरा नहीं रही, संभावना व्यक्त कर रही हूँ। “ - आँखें तरेर कर देखते हुए वर्षा बोली - “ और ये तुम्हारे हाथ में क्या है ? “
“ आप ही की मेहरबानी है। “ - यश थोड़े शायराना अंदाज में बोला।
“ क्या ? “
“ कुरकुरे खाकर जो रैपर तुमने अभी पीछे फेंका था, वही है ये। सीधे मेरे मुँह पर आकर गिरा था। “
“ ओह! सॉरी! “
“ इट्स ओके। “ - खाली रैपर को नीचे फेंकते हुए यश बोला।
“ बाई दी वे, तुमको ऐसा क्यों लगता है कि कल रात जो उड़ता हुआ इंसान देखा गया था, वह आदमी न होकर ड्रैक्यूला था ? “
“ आधी रात के समय भला और कौन हो सकता है ! और वो उड़ रहा था, इंसान होता तो कैसे उड़ता ? “
“ इंसान होकर भी वह उड़ कैसे रहा था, ये तो मुझे नहीं पता। लेकिन ड्रैक्यूला वो नहीं हो सकता। क्योंकि ये ड्रैक्यूला या भूत सिर्फ किस्से कहानियों में होते हैं, हकीकत में नहीं। “
“ होते है। “
“ अब तुम इस मासूम सी श्रेया को डराना बंद भी करो। “
“ तुम अपने काम से काम क्यों नहीं रखते! “ - इस बार वर्षा थोड़ा तेज आवाज में बोली।
“ बचकर रहना इससे। “ - यश श्रेया से बोला - “ सीनियर है तुमसे। रैगिंग तो ले नहीं सकती, पर डराने का कोई मौका भी नहीं छोड़ती। “
“ बस बहुत हो गया जाओ यहाँ से! “ - इस बार वर्षा चीखी।
“ हाँ, पवन! “ - लड़कों के एक समूह की ओर देखते हुए वह बोला और उसी तरफ बढ़ गया।
“ ये इसको आवाज किसने लगाई ? “ - चकित स्वर में श्रेया ने वर्षा से पूछा - “ मुझे तो बिल्कुल नहीं लगा कि कोई उसे बुला रहा है! “
“ बुला कोई नहीं रहा। जाने को बोल दिया मैंने तो इंसल्टिंग फील हुआ होगा। “ - हँसते हुए वर्षा बोली - “ इसीलिए उसने ऐसे बिहेव किया, जैसे उसे कोई बुला रहा हो। “
“ ओह! “ - वर्षा की बात सुनकर श्रेया को भी हँसी आ गई - “ अच्छा! चलती हूँ। “
“ ओके। ड्रैक्यूला से बचकर रहना और कितना ही जरूरी काम हो, रात को बाहर बिल्कुल मत निकलना। “
“ हाँ, ठीक है। “
“ इसे डराना कितना आसान था। “ - खुद से ही बातें करते हुए वर्षा बोली - “ ये मधु और मिनाक्षी कहाँ रह गई! “
आर्ट्स कॉलेज में फाइनल ईयर की स्टूडेंट वर्षा अवस्थी थोड़ा हेवी वैट वाली एक खुशमिजाज लड़की थी। हमेशा कुछ न कुछ खाते रहना, खूब बातें करना और हँसी मजाक में समय बिताना उसका प्रिय शगल था।
श्रेया ने अभी कुछ महीने पहले ही कॉलेज में एडमिशन लिया था। वह बला की खूबसूरत , सामान्य कद काठी और चांदी जैसी रंगत लिए हुए चेहरे की मालकिन थी। कॉलेज के कई लड़के उसके पीछे पड़े रहते थे, लेकिन वह किसी को तवज्जो नहीं देती थी। अभी कुछ देर पहले यश भी उसी के पीछे मंडराता हुआ यहाँ पहुँचा था।
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