“ क्या बात है ? “ - बॉस के केबिन से ही सटे एक ओपन केबिन में बैठी रिसेप्शनिस्ट काव्या विजयवर्गीय ने संजीदा स्वर में पूछा।
“ बॉस से मिलना है। “ - जवाब दक्ष ने दिया - “ इंफॉर्म करो उनको कि हम लोग - दक्ष और स्नेहा आ गए हैं। “
“ आ गए हैं, मतलब ? “ - अपने रिमलेस चश्मे को ठीक करते हुए काव्या ने पूछा - “ आपको बुलाया है बॉस ने ? “
“ तभी तो आए हैं यहाँ। “
“ कमाल है! मुझे तो इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। “ - काव्या बोली - “ और एक मिनट! मैंने तो तुममें से किसी को भी कॉल नहीं किया। सर को किसी भी एम्प्लॉयी से मिलना होता है तो मेरे मार्फत ही बुलाया जाता है। “
“ आम स्थितियों में मैडम! आम स्थितियों में! “ - दक्ष नाटकीय अंदाज में बोला - “ विशेष परिस्थितियों में जगन के माध्यम से ही किसी एम्प्लॉयी को बुलाया जाता है। “
“ ओह! “ - बात को समझते हुए काव्या व्यंग्यपूर्ण तरीके से मुस्कुराई - “ मैं इंफॉर्म करती हूँ सर को। “
उस मुस्कुराहट का मतलब समझना न दक्ष के लिए मुश्किल था और न ही स्नेहा के लिए।
इसके बाद काव्या इंटरकॉम के साथ बिज़ी हो गई।
एक ही पल के बाद वह बोली - “ आप भीतर जा सकते हैं। “
बॉस के केबिन का ग्लास डोर धकेलकर वे भीतर दाखिल हुए।
सामने ही एक बड़ी सी मेज के पीछे अपनी एग्जीक्युटिव चेयर पर विराजमान डेली न्यूज़ का कर्ता धर्ता और मालिक प्रकाश आहूजा कोई 50 वर्ष की अर्धशताब्दी को पार कर चुका दोहरे बदन और चेहरे पर हमेशा गंभीर हाव भाव रखने वाला व्यक्ति था।
उसने एक तेज नजर दोनों पर ही डाली।
उस तेज नजर का जो मतलब होता था, वो कोई बच्चा भी समझ सकता है। तो जाहिर सी बात है कि स्नेहा और दक्ष भी समझ ही गए थे और न केवल समझ गए थे, बल्कि अपनी मूक प्रतिक्रिया देना भी शुरू कर चुके थे। इसी का परिणाम था कि स्नेहा के चेहरे पर घबराहट के भाव तेजी से आने लगे और जॉब से डिसमिस किए जाने का खौफ उस पर पहले से भी ज्यादा तेजी से हावी होने लगा।
इधर दक्ष का दिमाग अपनी स्वाभाविक गति की तुलना में कई गुना तेजी से काम करने लगा था।
“ कम एंड सिट। “ - आहूजा की सख्त आवाज उनके कानों में पड़ी।
कदम मशीनी अंदाज में स्वत: ही आगे बढ़ने लगे।
शीघ्र ही वे बॉस के सामने मेज के इस पार रखी दो विजिटर्स चेयर पर विराजमान थे।
“ तो…” - अपनी आदत के अनुसार आहूजा ने बोलना शुरू किया - “ ऑफिस में हाजिरी भरकर वर्किंग आवर्स में कहीं भी तफरीह के लिए निकल जाना क्या साबित करता है ? “
“ क्या साबित करता है ? “
“ मैंने एक सवाल किया है, जिसका कि तुमको जवाब देना है। “
“ ये सवाल तो आपको उसी से करना चाहिये, जिसने ऐसी गुस्ताखी की हो। “ - दक्ष लापरवाही से बोला।
“ वही कर रहा हूँ। “
“ जी! “
“ तो, अब बनने की कोशिश मत करो। “
“ आप क्या कह रहे है, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। “ - अनजान बनते हुए दक्ष बोला।
“ अच्छा! “ - आहूजा अपनी ठुड्डी पर हाथ रखते हुए सोचने के से अंदाज में बोला - “ तो, आज तुम ऑफिस लेट नहीं आए, ना ही तुमने स्नेहा को कॉफी पर अपने साथ चलने के लिए बोला था !... तो, वो तुम नहीं थे, तो वो कौन था!.. तुम बताओ स्नेहा, कौन था वो ? “
स्नेहा के तो चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थी।
इतना तय था कि बॉस को सारी बात की जानकारी थी, इसीलिए झूठ बोलना व्यर्थ था। कुछ बोलने से पहले स्नेहा ने दक्ष की ओर देखा। उसका चेहरा अभी भी भावहीन था, जैसे इन सब से उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो।
लेकिन यह सच नहीं था।
फर्क तो उसे भी पड़ा था, पर वह स्नेहा की तरह अपने मन की घबराहट को चेहरे पर जाहिर नहीं होने देना चाहता था। उसे किसी तरह तो बात को संभालना ही था।
दोनों को चुप देखकर आहूजा ने अपनी सेक्रेटरी स्मिता को एक संकेत किया और वह कंप्यूटर पर कुछ टाइप करने लगी।
स्नेहा समझ चुकी थी, यह जरूर उनका डिसमिस लेटर होगा। ये जॉब तो अब गई हाथ से!
“ सर! मैं… “ - स्नेहा ने कुछ बोलना शुरू ही किया था कि दक्ष को लगा, कुछ गड़बड़ ना हो जाए इसीलिए वह बीच में ही बोल उठा - “ हाँ, वो मैं ही था, जो ऑफिस के नियत समय से पूरे एक घंटे लेट 11 बजे यहाँ पहुँचा। वो मैं ही था जिसने स्नेहा को ऑफिस के वर्किंग आवर्स में कॉफी पर चलने के लिए बोला था। “
दक्ष बेखौफ तरीके से और निर्भीकता से बोलता चला गया। उसके बोलने का लहजा ऐसा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा हिरोगिरी वाला काम कर दिखाया हो!
जवाब में आहूजा ऐसे मुस्कुराया जैसे उसने कोई बहुत बड़ा किला फतेह कर लिया हो।
“ तो, तुम मानते हो कि तुमने ऑफिस का अनुशासन तोडा है ? “ - मन ही मन अपनी जीत पर खुश होते हुए उसने पूछा।
अब वह दक्ष का पराजय से झुका हुआ मुँह देखना चाहता था।
पर अफसोस, उसकी यह कामना कम से कम आज तो पूरी होने वाली नहीं थी।
“ सर, मैं मानता हूँ कि मैं ऑफिस लेट आया और वर्किंग आवर्स में स्नेहा के साथ कॉफी पीने के लिए बाहर भी गया। “ - अपने स्वर में शहद जैसी मिठास घोलते हुए दक्ष बोला - “ पर इसमें अनुशासन तोड़ने वाली बात कहाँ से आ गई ? “
आहूजा को लगा जैसे किसी ने उसके गाल पर तमाचा जड़ दिया हो। उसके साथ इतनी दबंगाई से बात करने की हिम्मत आज दिन तक किसी ने नहीं की और ये.. महज 28 साल का नौजवान, इसका इतना दुःसाहस!
“ तुम्हें होंश भी है लड़के कि तुम कहाँ बैठे हो! “ - अचानक ही बदले तेवर और क्रोधित स्वर में बोला आहूजा - “ क्या बोल रहे हो! किसके सामने बोल रहे हो! और इसका क्या अंजाम हो सकता है! “
“ अरे, सर! आप पहले मेरी पूरी बात तो सुनो। “ - दक्ष पूर्वतः शांत स्वर में बोला - “ मैं ये नहीं कह रहा कि देरी से ऑफिस आना और काम के समय ऑफिस के बाहर होना - अनुशासन तोड़ने वाले कार्य नहीं है।.. है, बिल्कुल है। कोई अगर ऐसा करता है तो उसे तो खड़े पैर ही नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। फिर चाहे वो कोई मैं या स्नेहा ही क्यों न हो। “
दक्ष के मुँह से जॉब से डिसमिस किए जाने की बात सुनकर स्नेहा के पैरों तले जमीन खिसक गई और उसका ध्यान सेक्रेटरी स्मिता की ओर गया, जो कि बॉस के निर्देशानुसार लेटर टाइप करके प्रिंटर से उसकी हार्ड कॉपी निकाल रही थी।
शेष अगले भाग में
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