भारत देश के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर पर हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक रह चुके राधाकृष्णन पढाने से पूर्व उस विषय का गहन अध्ययन करते थे और दर्शन शास्त्र जैसे नीरस और बोझिल विषय को भी इतने सरल तरीके और रोचक शैली में पढ़ाते थे कि छात्रों को वह आसानी से समझ में आ जाता था।
वर्तमान समय में देखा जाए तो समय के साथ - साथ शिक्षक न केवल अपना सम्मान अपितु महत्व भी खोता जा रहा है।
क्या वजह है ?
मैं स्वयं एक शिक्षक हूँ और इसीलिए कुछ हद तक समझ सकता हूँ कि शिक्षक वर्ग की जो उपेक्षा हर जगह देखी जाती है, उसके क्या - क्या कारण हो सकते हैं !
सबसे पहले तो ये कि शिक्षक सम्मान का भूखा होता है।
क्यों ?
क्यों होता है शिक्षक सम्मान का भूखा ?
शायद इसलिए, क्योंकि विश्वगुरु भारत के प्राचीन गुरूओं को जो सम्मान मिलता था, उसे अपनी विरासत समझ लिया है शिक्षक वर्ग ने। और प्राचीन किस्से सुनते सुनते आज के शिक्षक को यह मुगालता हो चला है कि उसका स्थान प्राचीन भारत के गुरु के समकक्ष ही है।
क्या सच में है ?
गुरु और शिक्षक शब्द की व्याख्या ही यह स्पष्ट कर देने के लिए पर्याप्त होगी।
गुरु शब्द का अर्थ ही होता है - ज्ञान देने वाला। ज्ञान से तात्पर्य है - जीवन में नैतिक मूल्यों का विकास और सन्मार्ग पर अग्रसर होना।
जबकि शिक्षक शब्द का अर्थ है - शिक्षा देने वाला। सिखाने वाला।
आज के शिक्षक का ध्येय छात्रों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना नहीं रह गया है और ना ही सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना रह गया है। यहाँ तो किताबी शिक्षा और उसमें भी मात्र परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए और डिग्री हासिल करने के लिए पढाना ही शिक्षक का एकमात्र ध्येय रह गया है। छात्र के निजी जीवन में क्या समस्या है, उसके भटकाव, उसकी सही - गलत आदतों से शिक्षक को कोई सरोकार नहीं है। उसे तो बस रोजगार प्राप्त करने में छात्र की सहायता करनी है।
इससे तो छात्र को कोई बहुत लाभ नहीं मिलता। फिर क्यों सम्मान करे, वो शिक्षक का ?
औपचारिक शिक्षा, जो विद्यालयो में दी जाती है, उसके लिए छात्र फीस भरता है। भुगतान के बदले वह शिक्षा हासिल करता है। शिक्षक भी अपना रोजगार चलाने के लिए विद्यालयो में अपनी सेवाएं देता है। यहाँ सब कुछ स्वार्थ से होता है।
छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए भुगतान कर रहा है, शिक्षक मेहनताना प्राप्त करके छात्र को शिक्षित कर रहा है। फिर, सम्मान बीच में कहाँ से आ गया ?
पटवारी का होता है सम्मान, पुलिस का होता है , बैंक कर्मी का होता है, जितने आम जनता के स्वार्थ से जुड़े विभाग है, सबका सम्मान होता है, मात्र शिक्षा विभाग ही अपवाद है।
क्यों है ?
क्योंकि यहाँ पर उनका तत्काल वाला कोई बड़ा स्वार्थ पूरा नहीं होता।
अब शिक्षक भी सम्मान लेकर शिक्षा देने का कार्य करे, या कि किसी छात्र को ज्यादा पढाये, किसी को कम तो शायद हो सम्मान। लेकिन यह कैसे संभव है ! वह तो सारे छात्रों को बराबर ही शिक्षा देता है।
कहीं कहीं देखने में आता है कि परीक्षा में नकल करवाने वाले शिक्षक का भी सम्मान होने लगता है, क्योंकि तात्कालिक लाभ मिलता है उससे छात्र को।
और कभी किसी गरीब छात्र की स्कूल फीस भर दी किसी शिक्षक ने या मुफ्त में कुछ कपड़े दे दिए तो थोड़ा सम्मान मिल जाता है।
इन सबसे ऊपर, इन सबसे बढ़कर सम्मान तब मिलता है शिक्षक को, जबकि वह छात्रों को अपनत्व भाव से देखता है, उसके निजी जीवन की समस्याओ में रुचि लेकर उन्हें दूर करने में उसकी मदद करता है और अपने आचरण से ऐसा आदर्श प्रस्तुत करता है कि छात्र अनायास ही कह उठे - “ मैं बड़ा होकर अपने शिक्षक जैसा बनना चाहता हूँ। “
शिक्षक दिवस की सभी को शुभकामनाएं।
आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसटीक | शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंआज paid गुरुओं ने समर्पित गुरुओं के सम्मान को बहुत ठेस पहुँचाई है। मार्मिक लेख! सभी को शिक्षक दिवस की बधाई! 🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति शिक्षक दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका। आपको भी शिक्षक दिवस पर शुभकामनाएं
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