म्युजियम के प्रदर्शनी हॉल में सब तरफ तलाश करने पर भी पुलिस को म्युजियम का कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं दिया।
“ लगता है, उस पत्थर वाले आदमी से डरकर बाकी लोगों के साथ साथ यहाँ के सारे कर्मचारी भी भाग गये हैं, “ - एक पुलिस कर्मी बोला।
“ कैसे गैर जिम्मेदार कर्मचारियों की नियुक्ति की है सरकार ने इस म्युजियम में। जरा सा खतरा देखा नहीं कि भाग खड़े हुए! “ - आवेशित स्वर में बोला इंस्पेक्टर अभय - “ और एक हम पुलिस वाले है कि दिन रात जान हथेली पर लिए खतरों से दो दो हाथ होते रहते हैं। “
“ भागे नहीं है सर! “ - अचानक ही न जाने कहाँ से म्युजियम का एक कर्मचारी सामने आते हुए बोला - “ अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए हम यहीं रुके हुए थे। “
“ हम जान चुके थे कि उस विचित्र प्राणी का मुकाबला करना हमारे वश से बाहर की बात है। “ - म्युजियम का एक दूसरा कर्मचारी बोला - “ इसीलिए उससे बचने के लिए हम यहीं एक कमरे छिपे हुए थे। “
“ अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आप लोग कमरे में छिपकर बैठे हुए थे ! “ - एक पुलिस कर्मचारी बोला तो बाकी सभी पुलिस वाले खिल्ली उड़ाते हुए हँसने लगे।
“ हाँ। हम लोग कमरे में छिपकर ही अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। “ - एकाएक ही गंभीर स्वर में बोलते हुए म्युजियम का मैनेजर विकास सक्सेना सामने आया - “ और इस तरह छिपकर बैठने की योजना मैंने ही बनाई थी। क्योंकि यहाँ का मैनेजर होने के नाते इस म्युजियम की जिम्मेदारी के साथ साथ यहाँ के कर्मचारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है। और आपको यह भूलना नहीं चाहिए कि इस तरह कमरे में छिपकर बैठने से ही मुझे पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाने का अवसर मिल पाया था। “
“ आपने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है सक्सेना जी। “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ अब मेहरबानी करके हमें घटना की पूरी जानकारी भी दीजिए। आया कहाँ से था वह पत्थर का आदमी ? “
जवाब में मैनेजर ने इंस्पेक्टर अभय को भगवान नृसिंह की प्रतिमा दिखाते हुए पत्थर के उस आदमी के प्रकट होने की सारी कहानी सुना दी।
“ क्या! “ - वह घटना इंस्पेक्टर के लिए विश्व आठवाँ अजूबा थी - “ आप कहना चाह रहे है कि वह विचित्र प्राणी भगवान नृसिंह की गोद में लेटी हुई हिरण्यकशिपु की प्रतिमा फोड़कर प्रकट हुआ था ? “
“ सुरक्षा की दृष्टि से इस म्युजियम की सभी दुर्लभ वस्तुयें काँच के ऐसे मजबूत शोकेस में रखी हुई है, जिनको आसानी से तोड़ पाना हर किसी के वश की बात नहीं है। भगवान नृसिंह और हिरण्यकशिपु की प्रतिमा काँच के जिस शोकेस में रखी हुई थी, उसी में वह पत्थर का विचित्र प्राणी दिखाई दिया था और ऐसा तब हुआ था, जब अचानक ही रहस्यमयी तरीके से हिरण्यकशिपु की प्रतिमा फूट गई और शीशे के पूरे केबिन में धूल का गुबार सा छा गया। जब धूल का गुबार हटा, तो वह पत्थर का अजीब आदमी दिखाई दिया और फिर सबके देखते - देखते काँच का केबिन तोड़कर वह बाहर आ गया। “ - मैनेजर बोला - “ अब यह सब देखकर तो यही लगता है कि वह आदमी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में से ही बाहर निकला होगा। “
“ आपकी बात को सच मान भी लिया जाए तो नया सवाल यह उठता है कि पत्थर का वह आदमी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में आया कहाँ से! “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले।
“ बात तो सच है ही। क्योंकि इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शी एक, दो नहीं पूरे छह लोग है, जो उस समय शोकेस से नृसिंह भगवान की प्रतिमा को देख रहे थे। “ - मैनेजर बोला - “ बाकी हिरणकशिपु की प्रतिमा में वह अजीब आदमी आया कहाँ से, यह तो शोध का विषय है। “
“ ओके , मिस्टर विकास सक्सेना! “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ सहयोग के लिए शुक्रिया। “
इसके बाद इंस्पेक्टर अभय माथुर पुलिस फोर्स के साथ वहाँ से चले गए।
•••••
दक्ष म्युजियम से सीधा घर पहुँचा।
उसे यह जानने की उत्सुकता थी कि स्नेहा विधायक जगमोहन बंसल का इंटरव्यू लेने में किस हद तक सफल हुई!
इंटरव्यू लेने के बाद स्नेहा सीधे दक्ष के घर ही आने वाली थी।
घर का मैन गेट खोलकर वह भीतर दाखिल हुआ ही था कि उसे अपने पीछे टैक्सी के इंजन की आवाज सुनाई दी।
पीछे घूमकर देखने पर उसे टैक्सी रुकते हुए और उसमें से स्नेहा बाहर निकलते हुए दिखाई दी।
टैक्सी वाले को रवाना करके स्नेहा दक्ष की ओर बढ़ी।
उसके चेहरे की खुशी बता रही थी कि वह कामयाब होकर लौटी थी।
“ क्या बात है! तुमको देखकर तो ऐसा लग रहा है , जैसे कोई बहुत बड़ा किला फतह करके आई हो! “ - दक्ष भी खुशी जाहिर करते हुए बोला।
“ और नहीं तो क्या! “ - गर्वीली मुस्कान के साथ बोली स्नेहा - “ गढ़ जीतकर आई हूँ। “
“ बधाई फिर तो। “
“ बस यूँ ही ? बाहर खड़े खड़े ? “
“ अंदर चलते हैं ना! “ - अब तक गेट पर ही खड़ा दक्ष बोला - “ कॉफी के साथ कबूल करना बधाई। “
“ बिल्कुल। “
दोनों ही भीतर दाखिल हुए।
स्नेहा ने उस समय रेड टी शर्ट और ब्लू जींस धारण की हुई थी। उसके लंबे काले बाल काफी अस्त व्यस्त थे। उसका सिर और कपड़े धूल में सने हुए थे। म्युजियम में भी उसने यही पोशाक धारण की हुई थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उस समय उन पर धूल मिट्टी नहीं लगी हुई थी। लेकिन, तब दक्ष का सारा ध्यान विधायक जी का इंटरव्यू लेने पर लगा हुआ था। इसीलिए उस समय स्नेहा पर वह इतना ध्यान नहीं दे पाया था। या फिर कह सकते है कि यह एक तरह का मानवीय स्वभाव या मानवीय कमजोरी ही है कि एक युवक जब किसी युवती को अकेला पाता है, ऐसी जगह जहाँ उन दो के अलावा तीसरा कोई न हो, तब वह उस पर अतिरिक्त ध्यान देने लगता है।
इस समय शायद दक्ष के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था।
दक्ष इंटरव्यू के बारे में स्नेहा से पूछने ही वाला था कि उसका ध्यान स्नेहा के चेहरे की ओर गया। वह काफी थकी हुई सी लग रही थी।
“ तुम बैठो, मैं कॉफी बनाकर लाता हूँ। “ - कहते हुए दक्ष किचन की ओर बढ़ा।
स्नेहा वहीं हॉल में रखे एक सोफा चेयर पर बैठ गई।
कुछ ही देर में दक्ष कॉफी के साथ हाजिर हुआ तो उसने स्नेहा को नदारद पाया।
“ अब ये कहाँ चली गई ? “ - कॉफी से भरे दोनों कप उसने सोफा चेयर के सामने रखी टेबल पर रखे और स्नेहा की तलाश में पूरे हॉल में अपनी नजरें घुमाई।
स्नेहा उसे दिखाई नहीं दी।
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