रविवार, 10 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 12 पत्थर का आदमी

 

विधायक जगमोहन बंसल पर फायर करने के बाद दक्ष पेड़ों के झुरमुट के भीतर बहुत अंदर तक जाकर 2 - 3 किलोमीटर तक दौड़ता चला गया। इसके बाद वह पेड़ों की ओट से निकालकर मुख्य सड़क पर आया। 

शहर से बाहर होने की वजह से आम दिनों में यह इलाका ज्यादातर सुनसान ही रहता था। इस तरफ बहुत ही कम वाहनों की आवाजाही हुआ करती थी। लेकिन आज का दिन बाकी दिनों की तरह आम न होकर बेहद खास था। आज का दिन ऐतिहासिक दिन होने जा रहा था, क्योंकि शहर को पहली बार एक म्युजियम की सौगात मिली थी। पुरानी वस्तुओं के प्रति आकर्षण किसमें नहीं होता ! म्युजियम में लगी एक से एक पुरानी दुर्लभ वस्तुओं की नुमाइश देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा था। यही वजह थी कि अक्सर सुनसान रहने वाले इस इलाके में आज वाहनों की आवाजाही लगातार जारी थी। बाइक, स्कूटी, कार, टैक्सी और सिटी बस में सवार होकर लोग म्युजियम में लगी प्रदर्शनी देखने जा रहे थे। 

मुख्य सड़क पर आकर दक्ष ने हाथ देकर एक सिटी बस रुकवाई और उसमें सवार हो गया। बस जल्दी ही प्रताप म्युजियम के सामने रुकी और बाकी यात्रियों के साथ ही दक्ष भी बस से उतरकर म्युजियम की ओर बढ़ चला। 

दक्ष ऐसे बिहेव कर रहा था, जैसे वह पहली बार ही आया हो। 

कई सारे लोग थे वहाँ। उनके साथ वह म्युजियम के भीतर प्रविष्ट हुआ। म्युजियम की इमारत काफी विस्तार लिए हुए थी, जिसमें एक बड़े से गेट से एंट्री थी। 

अंदर जाते ही एक विशाल हॉल था और इसी हाॅल में प्रदर्शनी की सारी वस्तुयें सजी हुई थी। 

“ ये तो बहुत दुर्लभ और पुरानी वस्तुयें लगती है। “ दक्ष ने वहीं रिसेप्शन पर बैठे एक व्यक्ति से पूछा। 

“ हाँ, लग रही है, क्योंकि ये है। “

“ बढ़िया! मजा आयेगा फिर तो देखने में। “

“ जरूर सर! “

प्रदर्शनी में 16वीं सदी की पेंटिंग्स, पुरानी मूर्तियाँ, पुराने जमाने की मुद्राएँ, आभूषण और ऐसी ही कई एंटिक चीजें काँच के शोकेस में रखी हुई थी। 

दक्ष इन वस्तुओं के फोटो क्लिक करना चाहता था। लेकिन इसकी अनुमति नहीं थी। 

म्युजियम में अच्छी खासी भीड़ थी। पूरा म्युजियम अच्छी तरह से घूम लेने के बाद दक्ष ने वहाँ से जाने का मन बनाया। 

“ पता नहीं, स्नेहा विधायक जी का इंटरव्यू ले भी पाई होगी या नहीं! “ - दक्ष को यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी। 

म्युजियम से बाहर आकर दक्ष ने अपनी बाइक संभाली और वह घर की ओर चल पड़ा। 

काश, दक्ष कुछ देर और म्युजियम में रुक जाता तो विश्व के आठवें आश्चर्य को देखने का सौभाग्य मिलने के साथ साथ डेली न्यूज़ के लिए उसे एक लाइव न्यूज भी मिल जाती! 

दक्ष के म्युजियम से बाहर निकलते ही वहाँ ऐसा दृश्य दिखाई दिया, जिसकी कल्पना तक करना संभव नहीं था। 

सब लोग दुर्लभ वस्तुओं को देख रहे थे। उनके बारे में बातें भी कर रहे थे। 

म्युजियम में पुरानी तस्वीरों, शिलालेखों के साथ ही कई सारी सदियों पुरानी और दुर्लभ प्रतिमाएँ भी थी। शिव, विष्णु, कृष्ण आदि के साथ ही प्राचीन राजाओं की भी तरह तरह की प्रतिमाएँ म्युजियम में काँच के शोकेस में सजी थी। 

लोग इन प्रतिमाओं को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे। एक शोकेस में भगवान नृसिंह की काफी बड़ी प्रतिमा थी, जिसमें वे हिरण्यकशिपु का पेट चिर रहे थे। 

“ कितनी बढ़िया प्रतिमा है। “ - एक व्यक्ति बोला। 

“ नक्काशी भी शानदार की हुई है। “ - दूसरा बोला। 

भगवान नृसिंह की प्रतिमा के पास चार - पांच व्यक्ति खड़े बातें कर रहे थे। 

इसी समय शोकेस के भीतर अचानक ही एक धमाका सा हुआ। 

उस धमाके के बाद शोकेस में धूल का गुबार सा उठा, साथ ही शोकेस के काँच से कुछ टकराने की आवाज भी आई। 

वहाँ खड़े लोग कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से ये क्या हो रहा है! 

लेकिन, जब शोकेस के भीतर से धूल छंटी तो जो कुछ उन्होंने देखा उस पर आसानी से यकीन तो किया ही नहीं जा सकता था। 

भगवान नृसिंह की प्रतिमा तो बिल्कुल ठीक हालत में थी। लेकिन, उनकी जांघों पर गिरी पड़ी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा का नामोनिशां तक मिट चुका था। क्योंकि वह प्रतिमा टूटकर हजारों टुकड़ों में बँट चुकी थी। उसी प्रतिमा के कुछ टुकड़े शोकेस के काँच से टकराये थे। लेकिन प्रतिमा मिट्टी की बनी हुई थी , इसीलिए काँच को कोई नुकसान नहीं पहुँचा था।

शोकेस के भीतर पता नहीं कहाँ से पत्थर की एक प्रतिमा प्रकट हो गई थी! वह ब्राउन कलर की थी और ऐसा लग रहा था जैसे कि वह भूरे रंग के पत्थर के छोटे - छोटे टुकड़ों को किसी पदार्थ की सहायता से जोड़कर बनाई गई हो। 

“ यह क्या हो रहा है! हिरण्यकशिपु की मूर्ति अचानक फूट कैसे गई ? “ - वहाँ खड़ा एक व्यक्ति बोला। 

“ भगवान नृसिंह की प्रतिमा तो बिल्कुल सही सलामत है। ये कैसा चमत्कार है! “ - दूसरा व्यक्ति बोला। 

“ और… और ये पत्थर की मूर्ति कहाँ से आ गई ? “ - कोई और बोला। 

“ यह न तो किसी राक्षस की मूर्ति है, न देवता की। यह तो किसी मानव की प्रतिमा लग रही है! “

“ मैं प्रतिमा नहीं हूँ। “ - शोकेस के भीतर प्रकट हुई पत्थर की प्रतिमा अचानक भारी भरकम आवाज में बोलने लगी - “ मैं एक इंसान हूँ, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि तुम सब हो। “

“ य… यह क्या! ये मूर्ति बोल कैसे रही है! “ - चीखते हुए एक व्यक्ति वहाँ से भागा। 

“ मूर्ति नहीं बोल रही है। मूर्ति बोल ही नहीं सकती। मैं कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं हूँ। मैं भी तुम लोगों की तरह एक इंसान ही हूँ। “ - भारी आवाज में बोलते हुए पत्थर की उस प्रतिमा ने गुस्से में आकर शोकेस के काँच पर मुष्ठि प्रहार किया। 

एक जोरदार आवाज के साथ शोकेस का काँच टूटकर बिखर गया और पत्थर की वह प्रतिमा शोकेस से आजाद हो गई, जिसे अब प्रतिमा कहना अनुचित था। 

“ भागो! ये तो कोई राक्षस है! “ - चिल्लाते हुए लोग म्युजियम से बाहर की ओर भागने लगे। 

म्युजियम के दूसरे हिस्सों में अलग अलग दुर्लभ वस्तुओं को देख रहे बाकी लोगों का ध्यान भी शोकेस के टूटने और पत्थर के उस अजीबोगरीब आदमी की आवाज से उसकी तरफ आकर्षित हुआ। 

कुछ लोगों को चिल्लाते और भागते देख म्युजियम में उपस्थित बाकी लोग भी डरकर बाहर की तरफ भागने लगे। 

“ तुम सब लोग भाग क्यों रहे हो ? मेरा यकीन करो, मैं एक इंसान हूँ। बिल्कुल तुम लोगों की तरह। “ - पत्थर का वह आदमी चिल्लाते हुए बोला। 




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