मुझे कुछ करना है

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

हिन्दी प्रेमी

 

आ गया फिर से

हिन्दी दिवस

उपेक्षित!

अनादृत!

हिन्दी भाषा को गौरव दिलाने का दिन! 


वही दिन

जब

बहुतेरे आंग्ल भाषी भारतीय

सप्रयास

बोलेंगे

हिन्दी,

खंगाले जाएंगे शब्दकोश।


महज इसलिए

कि

कर पाए वार्तालाप

हिन्दी भाषा में

महज एक दिन के लिए,


ताकि


हो सके मनाना सार्थक

यह खास दिन

और कर सके प्रमाणित

कि

है हम हिन्दी प्रेमी। 


गुरुवार, 5 सितंबर 2024

आज फिर..



 … और, 

आज फिर

लगा लाँछन

किसी महापुरुष पर। 


आज फिर

हुआ बदनाम

कोई महामानव। 


आज फिर 

हुआ प्रत्यारोपित 

एक गंभीर आरोप 

किसी श्रेष्ठ पुरुष पर। 


आज फिर

लाख गुणों, 

अनगिनत अच्छाइयों, 

और, 

सेकड़ो त्याग, 

बलिदान

के बीच , 

करके कड़ी मेहनत

घोर कलियुग के

किसी निकृष्ट मानव ने, 

बना दिया अपयश का भागी

किसी महान आत्मा को। 


आज फिर

संकुचित सोच वाले, 

किसी पशुवत नर ने

दिखा दिया

दुनिया को जैसे, 

है दाग इस चाँद में भी! 


कौन है ये लोग 

कहाँ से आते हैं

समझ नहीं पाता मैं। 


एक साधारण इंसान, 

बना हो जो,

अपने ही प्रबल पुरुषार्थ से, 

महामानव! 


करके बदनाम

ऐसे महात्मा को

अपनी संकुचित सोच से, 

क्या हासिल करना चाहते हैं ये लोग ? 


क्या बैठे है खाये खुन्नस, 

कि कर नहीं पाए खुद तो कुछ, 

तो कर क्यों न दे बदनाम

इन महापुरुषों को! 


कैसे हो सकता है कोई इंसान, 

भगवान समान

निकालते है नुक्स। 


इतने लम्बे जीवन में 

इतने किए कार्यो में

होगा कहीं तो छिद्र कोई

होगी कहीं तो बुराई कोई। 


ढूँढते है, 

ना मिले तो गढ़ देते है खुद ही

और करते है सार्वजनिक उसको। 

निकालते है अपनी नाकामी की भडास

इन्ही ईश्वर तुल्य महामानवो पर! 

बुधवार, 4 सितंबर 2024

एक शिक्षक क्या चाहे, बस थोड़ा सा सम्मान

 


भारत देश के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर पर हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 

दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक रह चुके राधाकृष्णन पढाने से पूर्व उस विषय का गहन अध्ययन करते थे और दर्शन शास्त्र जैसे नीरस और बोझिल विषय को भी इतने सरल तरीके और रोचक शैली में पढ़ाते थे कि छात्रों को वह आसानी से समझ में आ जाता था। 

वर्तमान समय में देखा जाए तो समय के साथ - साथ शिक्षक न केवल अपना सम्मान अपितु महत्व भी खोता जा रहा है। 

क्या वजह है ? 

मैं स्वयं एक शिक्षक हूँ और इसीलिए कुछ हद तक समझ सकता हूँ कि शिक्षक वर्ग की जो उपेक्षा हर जगह देखी जाती है, उसके क्या - क्या कारण हो सकते हैं ! 

सबसे पहले तो ये कि शिक्षक सम्मान का भूखा होता है। 

क्यों ? 

क्यों होता है शिक्षक सम्मान का भूखा ? 

शायद इसलिए, क्योंकि विश्वगुरु भारत के प्राचीन गुरूओं को जो सम्मान मिलता था, उसे अपनी विरासत समझ लिया है शिक्षक वर्ग ने। और प्राचीन किस्से सुनते सुनते आज के शिक्षक को यह मुगालता हो चला है कि उसका स्थान प्राचीन भारत के गुरु के समकक्ष ही है। 

क्या सच में है ? 

गुरु और शिक्षक शब्द की व्याख्या ही यह स्पष्ट कर देने के लिए पर्याप्त होगी। 

गुरु शब्द का अर्थ ही होता है - ज्ञान देने वाला। ज्ञान से तात्पर्य है - जीवन में नैतिक मूल्यों का विकास और सन्मार्ग पर अग्रसर होना। 

जबकि शिक्षक शब्द का अर्थ है - शिक्षा देने वाला। सिखाने वाला। 

आज के शिक्षक का ध्येय छात्रों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना नहीं रह गया है और ना ही सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना रह गया है। यहाँ तो किताबी शिक्षा और उसमें भी मात्र परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए और डिग्री हासिल करने के लिए पढाना ही शिक्षक का एकमात्र ध्येय रह गया है। छात्र के निजी जीवन में क्या समस्या है, उसके भटकाव, उसकी सही - गलत आदतों से शिक्षक को कोई सरोकार नहीं है। उसे तो बस रोजगार प्राप्त करने में छात्र की सहायता करनी है। 

इससे तो छात्र को कोई बहुत लाभ नहीं मिलता। फिर क्यों सम्मान करे, वो शिक्षक का ? 

औपचारिक शिक्षा, जो विद्यालयो में दी जाती है, उसके लिए छात्र फीस भरता है। भुगतान के बदले वह शिक्षा हासिल करता है। शिक्षक भी अपना रोजगार चलाने के लिए विद्यालयो में अपनी सेवाएं देता है। यहाँ सब कुछ स्वार्थ से होता है। 

छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए भुगतान कर रहा है, शिक्षक मेहनताना प्राप्त करके छात्र को शिक्षित कर रहा है। फिर, सम्मान बीच में कहाँ से आ गया ? 

पटवारी का होता है सम्मान, पुलिस का होता है , बैंक कर्मी का होता है, जितने आम जनता के स्वार्थ से जुड़े विभाग है, सबका सम्मान होता है, मात्र शिक्षा विभाग ही अपवाद है। 

क्यों है ? 

क्योंकि यहाँ पर उनका तत्काल वाला कोई बड़ा स्वार्थ पूरा नहीं होता। 

अब शिक्षक भी सम्मान लेकर शिक्षा देने का कार्य करे, या कि किसी छात्र को ज्यादा पढाये, किसी को कम तो शायद हो सम्मान। लेकिन यह कैसे संभव है ! वह तो सारे छात्रों को बराबर ही शिक्षा देता है। 

कहीं कहीं देखने में आता है कि परीक्षा में नकल करवाने वाले शिक्षक का भी सम्मान होने लगता है, क्योंकि तात्कालिक लाभ मिलता है उससे छात्र को। 

और कभी किसी गरीब छात्र की स्कूल फीस भर दी किसी शिक्षक ने या मुफ्त में कुछ कपड़े दे दिए तो थोड़ा सम्मान मिल जाता है। 

इन सबसे ऊपर, इन सबसे बढ़कर सम्मान तब मिलता है शिक्षक को, जबकि वह छात्रों को अपनत्व भाव से देखता है, उसके निजी जीवन की समस्याओ में रुचि लेकर उन्हें दूर करने में उसकी मदद करता है और अपने आचरण से ऐसा आदर्श प्रस्तुत करता है कि छात्र अनायास ही कह उठे -  “ मैं बड़ा होकर अपने शिक्षक जैसा बनना चाहता हूँ। “

शिक्षक दिवस की सभी को शुभकामनाएं। 

रविवार, 25 अगस्त 2024

ईशा मर्डर केस ( सभी भाग )

 

ईशा मर्डर केस ( भाग - 1 )

ईशा मर्डर केस ( भाग - 2 )

ईशा मर्डर केस ( भाग - 3 )

ईशा मर्डर केस ( भाग - 4 )

ईशा मर्डर केस ( भाग - 5 )

ईशा मर्डर केस ( भाग - 6 )

ईशा मर्डर केस ( भाग - 6 )

  


" उस रेस्टोरेंट में तुम लोग कितनी देर तक रुके थे ? " - " इंस्पेक्टर चौबीसा ने पूछा।

" करीब 2 घंटे तक। "

चौबीसा चौंका - " मतलब , 10 बजे तक ? " 

" हाँ।...नहीं।….मेरे विचार से 9.30 बजे से कुछ ऊपर का टाइम हुआ होगा। "

" तुमने ईशा को उसके घर तक ड्रॉप करने के बारे में नही सोचा ? "

" कैसे सोचता ?...मुझे खुद टैक्सी करके जाना पड़ा। मेरे पास कोई निजी साधन तो था नहीं। "

" ईशा ने कुछ बताया था , कहाँ जा रही है वो ? "

" नहीं। लेकिन मैंने देखा था , वो पैदल ही जाने के मूड में दिख रही थी। "

" किस तरफ गई थी ? " 

" दिनकर ब्रिज की ओर। "

" वहाँ से दिनकर ब्रिज की दूरी तकरीबन कितनी रही होगी ? "

" पैदल चलने वाले इंसान को करीब 15 मिनट तो लग ही जायेंगे वहाँ से। "

" ठीक है। तो अब आगे क्या प्रोग्राम है ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।

" प्रोग्राम ? " 

" होटल में कितने दिन और रुकोगे ? "

" मैं अपने मम्मी - पापा से मिलना चाहता हूँ। पर हिम्मत नहीं हो रही। "

" वो तो जुटानी  ही पड़ेगी और बेहतर होगा कि यह काम तुम जल्द ही कर लो। "

" जल्द ही , क्यों ? "

" क्योंकि खुद को दुनिया की नजरों में मरा हुआ साबित करके न केवल अपनी फैमिली को , बल्कि पुलिस को भी तुमने धोखा दिया है। अब जल्द ही हकीकत सबके सामने लेकर आओ। "

" जी सर ! "

" अभी तुम जा सकते हो। लेकिन अगली बार तुमसे होटल में नहीं , तुम्हारे घर पर मिलना चाहूँगा तुमसे। "

बिना कुछ बोले रवि वहाँ से चला गया। 


□  □  □


शाम के 6 बज चुके थे।

सुबह 8 बजे से ही इंस्पेक्टर चौबीसा ईशा मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे।

कई लोगों से मिलने के बाद , कइयों से पूछताछ करने के बाद अब वह काफी थक चुके थे। 

लेकिन कुछ और लोगों से मिलना अभी बाकी था।

महज 15 मिनट की हल्की - सी झपकी और एक कप कॉफी लेने के बाद इंस्पेक्टर ने खुद को दोबारा तरोताजा महसूस किया और घर के बाहर लॉन में आकर केस की बारीकियों पर विचार करने लगा।

" ईशा का कातिल कौन हो सकता है ?...क्या उसके अंकल ने प्रोपर्टी हथियाने के लिए उसका कत्ल किया ?... या अमित ने ही ईशा को मार डाला , सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अमित के अलावा किसी और से भी प्यार करती थी ? "

इंस्पेक्टर चौबीसा किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था।

जल्द ही वह बाइक लेकर बाहर निकला।

करीब 2 घंटे बाद पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर चौबीसा ईशा मर्डर केस से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लोगों के साथ मौजूद था।

अर्जुनसिंह , रवि , अमित , पायल , सुरेश , आयशा , चाँद भाई - ये सभी वहाँ उपस्थित थे।

ये सभी पुलिस स्टेशन के एक कॉन्फ्रेंस रूम में एकत्र हुए थे।

" आप लोगों को यह जानकर खुशी होगी कि ईशा के कातिल का पता चल चुका है। "

" कौन है वो ? " - अर्जुनसिंह ने पूछा। 

" बस थोड़ा सा सब्र रखिये। " - कहते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा ने बताना शुरू किया - " कातिल के रूप में जिन लोगों पर मुझे संदेह था , वे थे - अर्जुनसिंह , अमित , चाँद और रवि। इन चारों में से कोई एक कातिल होना चाहिए था। जैसे - जैसे मैं मामले की गहराई में उतरता गया , मुझे कुछ नई और चौंकाने वाली जानकारियां हासिल हुई। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली जानकारी तो ये थी कि ईशा का अभिनव नाम का जो बॉयफ्रेंड था , उसका अस्तित्व ही नहीं है। अभिनव के बारे में पता करने के लिए मैं शारदा नगर गया , तो मुझे पता चला कि इस नाम का कोई शख्स वहाँ रहता ही नहीं है। तब मेरा ध्यान उस मोबाइल की ओर गया , जो पायल से लिया गया था। मैं जल्द ही सायबर ब्रांच पहुंचा और ईशा के साथ अभिनव नाम के उस शख्स की फोटो और जिस मोबाइल नंबर से वो फोटो send की गई थी , उस नम्बर के बारे में पता किया।...फोटो एडिट की हुई थी। "

" क्या मतलब ? " - अर्जुनसिंह ने पूछा।

" मतलब , दो अलग - अलग इमेज को जोड़कर फेक फोटोज बनाई गई थी। " 

" ऐसा किसने और क्यों किया ? "

" यह पता करने का एक ही तरीका था। उस मोबाईल नम्बर का पता करना , जिसके माध्यम से वह फोटो पायल के मोबाइल में भेजी गई।...सायबर ब्रांच वालों को यह पता करने में ज्यादा समय नहीं लगा। वह नम्बर पायल के नाम से ही दर्ज था। "

" यह झूठ है ! " - पायल चीखी - " वो नम्बर मेरा नहीं था। मेरे मोबाइल पर किसी ने वे फोटोज send की थी। "

" तुम सही कह रही हो , वो मोबाइल नंबर तुम्हारा नहीं था। लेकिन , उस नम्बर की सिम खरीदने के लिए तुम्हारे डॉक्यूमेंट यूज़ किये गए थे और इसीलिए वह नम्बर तुम्हारे नाम पर दर्ज था। "

" मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि जिस किसी ने भी यह सब किया , उसे तो अपना काम हो जाने के बाद सिमकार्ड को तोड़ कर फेंक देना चाहिए था और उसने ऐसा किया भी होगा। " - एकाएक अमित बोला - " फिर आपको कैसे पता चला कि उस सिमकार्ड को यूज़ कौन कर रहा था ? "

" बुद्धिमत्तापूर्ण सवाल ! " - चौबीसा बोला - " लेकिन थोड़ा सा और दिमाग पर जोर दिया होता , तो तुमको ये सवाल पूछने की जरूरत नहीं पड़ती। "

" मतलब ? " 

" हमने ये पता किया कि पिछले एक हफ्ते के दौरान उस नम्बर वाली सिम को किसने और कहाँ से खरीदा। "

" लेकिन यह पता करना तो काफी मुश्किल काम है ? " 

" हमारे आपके लिए मिस्टर अमित ! …. साइबर ब्रांच वालों के लिए नहीं। "

" किसने खरीदी थी वो सिम ? " - पायल ने पूछा।

" सुरेश ने। " - इंस्पेक्टर चौबीसा ने कहा।

सभी बुरी तरह से चौंक उठे।

किसी को यकीन नहीं हो रहा था।

" लेकिन सुरेश ऐसा क्यों करेगा ? " - अमित ने पूछा।

" बताओ सुरेश ! " - इंस्पेक्टर ने सुरेश की ओर देखते हुए कहा।

" मैंने किसी का खून नहीं किया। " - सुरेश चीखा।

अचानक से इंस्पेक्टर ने रिवॉल्वर निकालकर सुरेश की कनपटी पर तान दी और ट्रिगर पर अपनी अँगुली का दबाव बढ़ाने लगा।

" नहीं। रुको। बताता हूँ। " - सुरेश चीखा - " अपनी गलत आदतों की वजह से मुझ पर बहुत सारा कर्ज हो गया था। जुआ और ड्रग्स - मेरी इन दो बुरी आदतों की वजह से ऐसा हुआ था। तब ईशा ने मेरी मदद की।...यह करीब दो महीने पहले की बात है। कर्ज से मुक्त होने के बाद मैंने अपनी दोनों ही बुरी आदतें छोड़ दी थी। लेकिन ईशा के दिये हुए 5 लाख रुपये मैं चुका नहीं पा रहा था और ईशा मुझे अपने अंकल को सब कुछ बताने की धमकी दे रही थी। अगर ऐसा हो जाता , तो बात मेरे घर तक पहुँच सकती थी , जो कि मैं नहीं चाहता था और 5 लाख रुपये चुकाने की क्षमता भी मुझमें नहीं थी।...इस मुसीबत से निकलने के लिए मैंने एक योजना बनाई। किसी तरीके से पायल के डॉक्यूमेंट हासिल करके उसके नाम का सिम कार्ड खरीद लिया और उसे वे एडिट किये हुए फोटोज और मैसेज भेजे। कल रात जब अमित पायल से मिलने गया तो मैंने आयशा को उसके घर ड्रॉप किया और ईशा के पीछे लग गया। दिनकर ब्रिज पर उसे अकेला पाकर मैंने रिवॉल्वर से शूट कर दिया। मुझे लगा कि मेरी प्रॉब्लम खत्म हो गई। "

अपनी बात खत्म करते हुए सुरेश फूट - फूटकर रोने लगा।

" केवल पाँच लाख रुपये जैसी छोटी रकम के लिए तुमने मेरी भतीजी को मार डाला ! " - अर्जुनसिंह चीखा।

सुरेश का बयान रिकॉर्ड हो चुका था , जो कि अदालत में काम आने वाला था। 


  • समाप्त


ईशा मर्डर केस ( भाग - 5 )

  


" रवि खन्ना ! " - वह बोला - " क्या बात है इंस्पेक्टर साहब ? "

देवेश चौबीसा कुछ बोल पाता , इसके पहले ही इंस्पेक्टर चौहान वहाँ आ पहुँचा।

" आप तो काफी जल्दी पहुँच गए ! " - आश्चर्य प्रकट करते हुए चौहान बोला।

" केस ही कुछ ऐसा है इंस्पेक्टर ! "

" तो क्या निष्कर्ष निकाला ?....यह वही है , जिसकी आपको तलाश थी ? " 

" जी हाँ , शख्स भी वही है और इसका नाम भी। " - कहते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा रवि से रूबरू हुआ - " तुमको मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। "

" क्या ? " - रवि बुरी तरह से चौंका - " लेकिन मैंने किया क्या है ? " 

" पुलिस स्टेशन चलने में दिक्कत हो तो हम किसी रेस्टोरेंट में भी चल सकते हैं। "

रवि ने अजीब नजरों से इंस्पेक्टर की ओर देखा।

" आप मजाक कर रहे हैं ? "

" तुमसे कुछ बहुत जरूरी बातें करनी है।...अब ये बातें तुम कहाँ करना चाहते हो , ये तुम डिसाइड कर सकते हो। "

" आप अपराधियों के साथ बड़ी नरमी से पेश आते हैं ! " - इंस्पेक्टर चौहान बोला।

" यह अपराधी की स्थिति पर निर्भर करता है और मेरे विचार से इस अपराधी की स्थिति इस समय दयनीय है। " - कहते हुए देवेश चौबीसा रवि से बोला - " तो क्या सोचा ? " 

" आपके घर चल सकते हैं हम ? " - रवि मासूमियत से बोला।

" तुमसे यही उम्मीद थी। " - मुस्कराते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा ने कहा।


□  □  □


इंस्पेक्टर देवेश चौबीसा के घर का ड्राइंगरूम !

20 वर्षीय रवि के चेहरे से मासूमियत छलक रही थी।

" तो , शुरू हो जाओ। " - चौबीसा बोला।

" क्या ? "

" कौन हो ? कहाँ से आये हो ? क्या करते हो ?...अपने बारे में जो बता सकते हो , बताना शुरू करो। "

रवि ने आश्चर्य से चौबीसा की ओर देखा।

" आप मेरे बारे में क्यों जानना चाहते हो ? " - रवि ने पूछा - " मैंने किया क्या है ? "

" ईशा को जानते हो ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।

" ईशा ? " 

" ईशा सिंह। बिज़नेसमैन अर्जुनसिंह की भतीजी ! "

" हाँ , जानता हूँ। "

" लास्ट बार कब देखा था तुमने उसे ? "

" कल रात को ही मिला हूँ। "

" कहाँ ? "

" निहारिका मॉल में। "

" क्यों ? "

" क्या ? "

" क्यों मिले थे ? "

" बस यूँ ही। "

" क्या बोल रहे हो तुम ? "

" सच कह रहा हूँ सर ! "

" उससे मिलने की कोई खास वजह नहीं थी तुम्हारे पास ? "

" नहीं। " - रवि ने दृढ़ता से जवाब दिया।

" उसने फोन किया था तुमको। "

" नहीं। "

चौबीसा चौंका - " ईशा ने कॉल करके तुमको मॉल में नहीं बुलाया था ? "

" नहीं। " - रवि निर्विकार भाव से बोला - " हम वहाँ एक्सिडेंटली मिले थे। "

" ओके। ये बताओ कि ईशा से तुम्हारी क्या बात हुई थी ? "

" खास कुछ नहीं ! "

" फिर भी। "

" उससे आपको कोई मतलब नहीं। "

" मतलब नहीं होता तो तुम इस वक़्त यहाँ नहीं होते। " 

" मैं नहीं बता सकता। " - रवि बोला - " आप ईशा से ही क्यों नहीं पूछ लेते यह सब ? "

" क्या ? " - इंस्पेक्टर ने रवि की ओर चौंककर देखा।

" क्या हुआ ? "

" तुम ये क्या बोल रहे हो ? " 

" क्या बोल रहा हूँ ? "

" क्या तुम्हें नहीं पता कि ईशा…"

" ईशा ?...ईशा क्या ? "

" ईशा मर चुकी है। "

" ये आप क्या कह रहे हैं इंस्पेक्टर साहब ? "

" तुम तो ऐसे बिहेव कर रहे हो , जैसे तुम्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं। "

" मुझे सच में नहीं पता और ना ही मैं अब भी इस बात पर यकीन कर पा रहा हूँ। "

" यकीन कर लो। तुम्हारे लिए यही ज्यादा बेहतर होगा , क्योंकि इस वक़्त तुमसे की जा रही इन्क्वायरी की इकलौती वजह ईशा के कातिल की तलाश है। "

" क्या मतलब ? " - रवि फिर चौंका - " ईशा का किसी ने कत्ल किया है ? "

" हाँ। " - देवेश चौबीसा ने बताया - " दिनकर ब्रिज पर उसकी लाश पाई गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात क्लियर हो चुकी है कि किसी ने काफी करीब से उसे शूट किया है। "

" लेकिन कोई ईशा को क्यों मारना चाहेगा ? "

" यही पता करने के लिए तो तुमसे पूछताछ की जा रही है और अगर तुम मदद करो तो शायद कातिल तक पहुंचना काफी आसान हो जायेगा। "

" कैसी मदद ? "

" कल रात तुम ईशा से मिले थे ? "

" मैं बता चुका हूँ। "

" लेकिन ये नहीं बताया कि तुम दोनों के बीच बात क्या हुई थी ? "

" वह मुझे देखकर बुरी तरह से चौंक उठी थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उसके सामने जीवित खड़ा हूँ। "

" ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें होटल में देखकर मैं चौंका था ? "

" हाँ , कुछ - कुछ वैसे ही। " - रवि कुछ सोचते हुए बोला - " लेकिन आप मुझे देखकर क्यों चौंके थे ? "

" जिस वजह से ईशा चौंकी थी। "

" क्या ? मतलब मुझे जीवित देखकर ? "

" बिल्कुल ! "

" पर आपको कैसे पता कि मैं…"

" यह सब छोड़ो।...तुम आगे बताओ। "

" ठीक है। " - कहते हुए रवि ने मॉल में ईशा से हुई बातचीत के बारे में विस्तार से बताना शुरू किया।


□  □  □


 " उसे एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं जीवित उसके सामने खड़ा हूँ। "

" तुम ? "

" ईशा ! " - मैं खुशी से चहकते हुए बोला - " तुम कैसी हो ? "

" तुम तो मर चुके थे ! " 

" ज्यादा बात नहीं। मैं थोड़ी शॉपिंग कर लूँ , फिर बात करते हैं। "

करीब एक घंटे तक हम मॉल में शॉपिंग करते रहे।

उस पूरे टाइम वह आश्चर्य में पड़ी खोई - खोई सी रही।

इसके बाद हम बाहर आकर एक रेस्टोरेंट में पहुँचे।

" तुम कौन हो ? " - एकाएक ही ईशा ने पूछा।

" रवि ! " - मैं बोला - " तुम्हारा रवि , ईशा। "

" झूठ ! वो तो बहुत पहले मर चुका है। "

मैं हँसा।

" तुम्हारी शक्ल रवि से मिलती जरूर है , लेकिन तुम रवि नहीं हो सकते। "

" क्यों नहीं हो सकता ? "

" क्योंकि वह मर चुका है। "

" कोई लड़का रेल की पटरी पर मरा हुआ मिलता है और महज उसकी जेब में मिले एक लेटर के आधार पर उसकी शिनाख्त कर ली जाती है। कमाल है ! "

" तुम...तुम कहना क्या चाहते हो ? " - आशंकित स्वर में वह बोली।

" वह मैं नहीं था। "

" ये तो मुझे पता है। " 

" अरे , मेरे कहने का मतलब है कि वह मैं यानी कि रवि नहीं था। "

" अच्छा ! फिर वो कौन था ? "

" उस दिन जब 10th क्लास का रिजल्ट आया था और मैं बहुत अपसेट था , तब यूँ ही घूमते हुए मैं एकांत में उस स्थान पर जा पहुँचा , जहाँ से हर 10 मिनट मैं एक ट्रेन गुजरती थी। मैं दुःखी तो था ही , साथ ही डरा हुआ भी था। मुझे डर था कि मैं अपने पापा के गुस्से का सामना कैसे करूँगा। मेरे मन में आया कि मैं ट्रेन की पटरियों पर लेट जाऊं , कुछ देर में ट्रेन आएगी और फिर सारी प्रॉब्लम खत्म !...मैं बस सोच ही रहा था कि तभी कुछ ऐसा हुआ , जिसके बारे में मैंने कल्पना भी नहीं की थी।...अचानक ही कहीं से एक लड़का पटरियों के बीच आकर खड़ा हो गया , इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता , अचानक ही एक ट्रेन वहां से गुजरी और लड़का मर गया। एक ही पल बाद सब शांत हो गया। उस लड़के को जिस हाल में मैंने देखा था , उसके बारे में सोचते ही मेरी रूह तक काँप उठती है। उसकी हालत देखकर मेरे दिमाग में अब दो बातें घूम रही थी। या तो मैं भी उस लड़के की तरहअपना जीवन समाप्त कर दूँ , या फिर वहां से गुजरने वाली अगली ट्रेन में बैठकर कहीं दूर , बहुत दूर भाग जाऊँ।...लेकिन मैं जानता था कि मैं कहीं भी जाऊं , मेरे पापा मुझे कहीं से भी ढूंढ निकालेंगे। तब मेरे दिमाग में एक तीसरी बात आई। मैंने जल्दी से एक कागज और पेन का बंदोबस्त किया और एक सुसाइड नोट लिखा। फिर , वह नोट उस लड़के की पॉकेट में डाल दिया।

फिर रेलवे स्टेशन पहुंचकर एक ट्रेन में बैठकर दिल्ली चला गया। "

" क्या ? " - पूरी कहानी सुनकर ईशा चौंक उठी - " ये सब तो किसी फिल्मी कहानी की तरह लग रहा है ! "

" हाँ , लेकिन सच यही है। "

" तुम वापस क्यों आये हो ? "

" मैंने सोचा था कि बाहर आज़ादी से रह सकूँगा। लेकिन अपने कंप्यूटर के सीमित ज्ञान की वजह से मैं सिर्फ एक छोटी सी नौकरी ही हासिल कर पाया , जिससे बड़ी ही मुश्किल से मैं जीवन जीने लायक पैसे कमा पा रहा था। अब मेरा हौंसला टूट चुका है और साथ ही अकेलापन भी मुझसे सहन नहीं हो रहा था। घर की याद आई तो मैं यहाँ आ गया। "

" तो अभी तक घर नहीं गए ? "

" हिम्मत नहीं हो रही। एक होटल में रुका हुआ हूं। 2 - 3 दिन में पर्याप्त हिम्मत जुटा लेने के बाद मैं घर चला जाऊंगा। "

" अच्छा ! " 

" प्लीज , तुम मेरे बारे में किसी को मत बताना। अभी मैं किसी का भी सामना करने की हालत में नहीं हूँ। "

" नहीं बताऊंगी। अब मैं चलती हूँ। " 

" मैं इतने सालों बाद आया हूँ। तुम्हें मुझसे और कुछ नहीं कहना ? " 

" सच कहूँ तो मुझे अभी भी तुम्हारी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा। जब मुझे भरोसा हो जाएगा कि तुम ही मेरे रवि हो , तब बात करूँगी। "

मैं मुस्कराया - " तुम आज भी वैसी ही हो। अजनबियों से बहुत डरती हो। "

इसके बाद वह चली गई।

मैं भी होटल में लौट आया। "


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हिन्दी प्रेमी

  आ गया फिर से हिन्दी दिवस उपेक्षित! अनादृत! हिन्दी भाषा को गौरव दिलाने का दिन!  वही दिन जब बहुतेरे आंग्ल भाषी भारतीय सप्रयास बोलेंगे हिन्द...