" रवि खन्ना ! " - वह बोला - " क्या बात है इंस्पेक्टर साहब ? "
देवेश चौबीसा कुछ बोल पाता , इसके पहले ही इंस्पेक्टर चौहान वहाँ आ पहुँचा।
" आप तो काफी जल्दी पहुँच गए ! " - आश्चर्य प्रकट करते हुए चौहान बोला।
" केस ही कुछ ऐसा है इंस्पेक्टर ! "
" तो क्या निष्कर्ष निकाला ?....यह वही है , जिसकी आपको तलाश थी ? "
" जी हाँ , शख्स भी वही है और इसका नाम भी। " - कहते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा रवि से रूबरू हुआ - " तुमको मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। "
" क्या ? " - रवि बुरी तरह से चौंका - " लेकिन मैंने किया क्या है ? "
" पुलिस स्टेशन चलने में दिक्कत हो तो हम किसी रेस्टोरेंट में भी चल सकते हैं। "
रवि ने अजीब नजरों से इंस्पेक्टर की ओर देखा।
" आप मजाक कर रहे हैं ? "
" तुमसे कुछ बहुत जरूरी बातें करनी है।...अब ये बातें तुम कहाँ करना चाहते हो , ये तुम डिसाइड कर सकते हो। "
" आप अपराधियों के साथ बड़ी नरमी से पेश आते हैं ! " - इंस्पेक्टर चौहान बोला।
" यह अपराधी की स्थिति पर निर्भर करता है और मेरे विचार से इस अपराधी की स्थिति इस समय दयनीय है। " - कहते हुए देवेश चौबीसा रवि से बोला - " तो क्या सोचा ? "
" आपके घर चल सकते हैं हम ? " - रवि मासूमियत से बोला।
" तुमसे यही उम्मीद थी। " - मुस्कराते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा ने कहा।
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इंस्पेक्टर देवेश चौबीसा के घर का ड्राइंगरूम !
20 वर्षीय रवि के चेहरे से मासूमियत छलक रही थी।
" तो , शुरू हो जाओ। " - चौबीसा बोला।
" क्या ? "
" कौन हो ? कहाँ से आये हो ? क्या करते हो ?...अपने बारे में जो बता सकते हो , बताना शुरू करो। "
रवि ने आश्चर्य से चौबीसा की ओर देखा।
" आप मेरे बारे में क्यों जानना चाहते हो ? " - रवि ने पूछा - " मैंने किया क्या है ? "
" ईशा को जानते हो ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।
" ईशा ? "
" ईशा सिंह। बिज़नेसमैन अर्जुनसिंह की भतीजी ! "
" हाँ , जानता हूँ। "
" लास्ट बार कब देखा था तुमने उसे ? "
" कल रात को ही मिला हूँ। "
" कहाँ ? "
" निहारिका मॉल में। "
" क्यों ? "
" क्या ? "
" क्यों मिले थे ? "
" बस यूँ ही। "
" क्या बोल रहे हो तुम ? "
" सच कह रहा हूँ सर ! "
" उससे मिलने की कोई खास वजह नहीं थी तुम्हारे पास ? "
" नहीं। " - रवि ने दृढ़ता से जवाब दिया।
" उसने फोन किया था तुमको। "
" नहीं। "
चौबीसा चौंका - " ईशा ने कॉल करके तुमको मॉल में नहीं बुलाया था ? "
" नहीं। " - रवि निर्विकार भाव से बोला - " हम वहाँ एक्सिडेंटली मिले थे। "
" ओके। ये बताओ कि ईशा से तुम्हारी क्या बात हुई थी ? "
" खास कुछ नहीं ! "
" फिर भी। "
" उससे आपको कोई मतलब नहीं। "
" मतलब नहीं होता तो तुम इस वक़्त यहाँ नहीं होते। "
" मैं नहीं बता सकता। " - रवि बोला - " आप ईशा से ही क्यों नहीं पूछ लेते यह सब ? "
" क्या ? " - इंस्पेक्टर ने रवि की ओर चौंककर देखा।
" क्या हुआ ? "
" तुम ये क्या बोल रहे हो ? "
" क्या बोल रहा हूँ ? "
" क्या तुम्हें नहीं पता कि ईशा…"
" ईशा ?...ईशा क्या ? "
" ईशा मर चुकी है। "
" ये आप क्या कह रहे हैं इंस्पेक्टर साहब ? "
" तुम तो ऐसे बिहेव कर रहे हो , जैसे तुम्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं। "
" मुझे सच में नहीं पता और ना ही मैं अब भी इस बात पर यकीन कर पा रहा हूँ। "
" यकीन कर लो। तुम्हारे लिए यही ज्यादा बेहतर होगा , क्योंकि इस वक़्त तुमसे की जा रही इन्क्वायरी की इकलौती वजह ईशा के कातिल की तलाश है। "
" क्या मतलब ? " - रवि फिर चौंका - " ईशा का किसी ने कत्ल किया है ? "
" हाँ। " - देवेश चौबीसा ने बताया - " दिनकर ब्रिज पर उसकी लाश पाई गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात क्लियर हो चुकी है कि किसी ने काफी करीब से उसे शूट किया है। "
" लेकिन कोई ईशा को क्यों मारना चाहेगा ? "
" यही पता करने के लिए तो तुमसे पूछताछ की जा रही है और अगर तुम मदद करो तो शायद कातिल तक पहुंचना काफी आसान हो जायेगा। "
" कैसी मदद ? "
" कल रात तुम ईशा से मिले थे ? "
" मैं बता चुका हूँ। "
" लेकिन ये नहीं बताया कि तुम दोनों के बीच बात क्या हुई थी ? "
" वह मुझे देखकर बुरी तरह से चौंक उठी थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उसके सामने जीवित खड़ा हूँ। "
" ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें होटल में देखकर मैं चौंका था ? "
" हाँ , कुछ - कुछ वैसे ही। " - रवि कुछ सोचते हुए बोला - " लेकिन आप मुझे देखकर क्यों चौंके थे ? "
" जिस वजह से ईशा चौंकी थी। "
" क्या ? मतलब मुझे जीवित देखकर ? "
" बिल्कुल ! "
" पर आपको कैसे पता कि मैं…"
" यह सब छोड़ो।...तुम आगे बताओ। "
" ठीक है। " - कहते हुए रवि ने मॉल में ईशा से हुई बातचीत के बारे में विस्तार से बताना शुरू किया।
□ □ □
" उसे एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं जीवित उसके सामने खड़ा हूँ। "
" तुम ? "
" ईशा ! " - मैं खुशी से चहकते हुए बोला - " तुम कैसी हो ? "
" तुम तो मर चुके थे ! "
" ज्यादा बात नहीं। मैं थोड़ी शॉपिंग कर लूँ , फिर बात करते हैं। "
करीब एक घंटे तक हम मॉल में शॉपिंग करते रहे।
उस पूरे टाइम वह आश्चर्य में पड़ी खोई - खोई सी रही।
इसके बाद हम बाहर आकर एक रेस्टोरेंट में पहुँचे।
" तुम कौन हो ? " - एकाएक ही ईशा ने पूछा।
" रवि ! " - मैं बोला - " तुम्हारा रवि , ईशा। "
" झूठ ! वो तो बहुत पहले मर चुका है। "
मैं हँसा।
" तुम्हारी शक्ल रवि से मिलती जरूर है , लेकिन तुम रवि नहीं हो सकते। "
" क्यों नहीं हो सकता ? "
" क्योंकि वह मर चुका है। "
" कोई लड़का रेल की पटरी पर मरा हुआ मिलता है और महज उसकी जेब में मिले एक लेटर के आधार पर उसकी शिनाख्त कर ली जाती है। कमाल है ! "
" तुम...तुम कहना क्या चाहते हो ? " - आशंकित स्वर में वह बोली।
" वह मैं नहीं था। "
" ये तो मुझे पता है। "
" अरे , मेरे कहने का मतलब है कि वह मैं यानी कि रवि नहीं था। "
" अच्छा ! फिर वो कौन था ? "
" उस दिन जब 10th क्लास का रिजल्ट आया था और मैं बहुत अपसेट था , तब यूँ ही घूमते हुए मैं एकांत में उस स्थान पर जा पहुँचा , जहाँ से हर 10 मिनट मैं एक ट्रेन गुजरती थी। मैं दुःखी तो था ही , साथ ही डरा हुआ भी था। मुझे डर था कि मैं अपने पापा के गुस्से का सामना कैसे करूँगा। मेरे मन में आया कि मैं ट्रेन की पटरियों पर लेट जाऊं , कुछ देर में ट्रेन आएगी और फिर सारी प्रॉब्लम खत्म !...मैं बस सोच ही रहा था कि तभी कुछ ऐसा हुआ , जिसके बारे में मैंने कल्पना भी नहीं की थी।...अचानक ही कहीं से एक लड़का पटरियों के बीच आकर खड़ा हो गया , इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता , अचानक ही एक ट्रेन वहां से गुजरी और लड़का मर गया। एक ही पल बाद सब शांत हो गया। उस लड़के को जिस हाल में मैंने देखा था , उसके बारे में सोचते ही मेरी रूह तक काँप उठती है। उसकी हालत देखकर मेरे दिमाग में अब दो बातें घूम रही थी। या तो मैं भी उस लड़के की तरहअपना जीवन समाप्त कर दूँ , या फिर वहां से गुजरने वाली अगली ट्रेन में बैठकर कहीं दूर , बहुत दूर भाग जाऊँ।...लेकिन मैं जानता था कि मैं कहीं भी जाऊं , मेरे पापा मुझे कहीं से भी ढूंढ निकालेंगे। तब मेरे दिमाग में एक तीसरी बात आई। मैंने जल्दी से एक कागज और पेन का बंदोबस्त किया और एक सुसाइड नोट लिखा। फिर , वह नोट उस लड़के की पॉकेट में डाल दिया।
फिर रेलवे स्टेशन पहुंचकर एक ट्रेन में बैठकर दिल्ली चला गया। "
" क्या ? " - पूरी कहानी सुनकर ईशा चौंक उठी - " ये सब तो किसी फिल्मी कहानी की तरह लग रहा है ! "
" हाँ , लेकिन सच यही है। "
" तुम वापस क्यों आये हो ? "
" मैंने सोचा था कि बाहर आज़ादी से रह सकूँगा। लेकिन अपने कंप्यूटर के सीमित ज्ञान की वजह से मैं सिर्फ एक छोटी सी नौकरी ही हासिल कर पाया , जिससे बड़ी ही मुश्किल से मैं जीवन जीने लायक पैसे कमा पा रहा था। अब मेरा हौंसला टूट चुका है और साथ ही अकेलापन भी मुझसे सहन नहीं हो रहा था। घर की याद आई तो मैं यहाँ आ गया। "
" तो अभी तक घर नहीं गए ? "
" हिम्मत नहीं हो रही। एक होटल में रुका हुआ हूं। 2 - 3 दिन में पर्याप्त हिम्मत जुटा लेने के बाद मैं घर चला जाऊंगा। "
" अच्छा ! "
" प्लीज , तुम मेरे बारे में किसी को मत बताना। अभी मैं किसी का भी सामना करने की हालत में नहीं हूँ। "
" नहीं बताऊंगी। अब मैं चलती हूँ। "
" मैं इतने सालों बाद आया हूँ। तुम्हें मुझसे और कुछ नहीं कहना ? "
" सच कहूँ तो मुझे अभी भी तुम्हारी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा। जब मुझे भरोसा हो जाएगा कि तुम ही मेरे रवि हो , तब बात करूँगी। "
मैं मुस्कराया - " तुम आज भी वैसी ही हो। अजनबियों से बहुत डरती हो। "
इसके बाद वह चली गई।
मैं भी होटल में लौट आया। "
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