स्वाभिमान

स्वाभिमान 



घर में आज बहुत रौनक है,दामादजी आने वाले हैं।कुसुम सुबह से अपना सामान पैक करने में लगी है।पापा और भाई एक तरफ खडे पता नहीं क्या बातें कर रहे हैं।मम्मी और भाभी भी ना जाने क्यूँ नजरें चुरा रही हैं।कुसुम विनय को फोन कर सुनिश्चित करती है कि विनय शाम छह बजे तक पहुँच जायेंगे।सभी फिर तैयारी में लग जाते हैं।पापा, मम्मी, भाई, भाभी-सब सामान गिनवा रहे हैं।
'कुसुम! ये अंगूठी दामादजी के लिए है।'
'ये महंगी वाली साडी तेरी सास के लिए है।'
'और 500 रुपये तेरी ननद के लिए, बाकी छोटू के लिए ये कपडे और खिलौने।तेरे लिए गहने और कपडे अलग बैग में रख दिये हैं।'
'छोटू होने के बाद पहली बार ससुराल जा रही है, देना तो पडता ही है।'
तभी पापा बोले-'सारा सामान पैक कर लेना अच्छे से' फिर भाई की तरफ देखकर बोले-'फिर तेरे साइन भी चाहिये, फाॅर्म पर।'
'कैसे साइन पापा?'-कुसुम ने पूछा।
'वो तेरी शादी हो गयी और अब एक बेटा भी हो गया है, तो सोचा कि अपनी प्रॉपर्टी तेरे भाई प्रवीण के नाम कर दूँ'-पापा थोडा हिचकिचाते हुए बोल रहे थे-'तू साइन कर दे कि तुझे हमसे कुछ नहीं चाहिये।मेरा मतलब है कि प्रॉपर्टी से तुझे तेरा हिस्सा नहीं चाहिये।'
कुसुम बस मुस्कुराकर आंखों में आंसू लिए, गुस्से का घूँट पीकर बोली-'ठीक है पापा! मैं साइन कर दूंगी, लेकिन पहले मेरी बात सुन ले; आप ये जो सामान दे रहे हैं वो वापस ले ले।ये गहने, साडियाँ, खिलौने, रुपये सब।'
कुसुम अब तक रोने लगी थी।
तभी भाई - भाभी बोले-'ऐसा क्यों कह रही हो? ये सब तो देना पडता है, वरना तेरे ससुराल वाले क्या सोचेंगे, हमारे बारे में....और फिर ऐसा थोड़े ही है कि हम तुझे बाद में नहीं देंगे,तू जब-जब मायके आएगी,कुछ न कुछ तो देंगे ही तुझे...'
कुसुम,जो अब तक तीन बैग पैक कर चुकी थी,एक बैग में अपने और छोटू के कपडे पैक करते हुए बोली-'आप कहते है न,में बहुत समझदार हूँ,तो बस.....' और गहरी सांस लेकर कुसुम बोली-'आप मुझे मेरा हक़ नहीं दे सकते और मैं आपसे दान नहीं ले सकती ...विनय आते होंगे ....मैं तैयार हो जाती हूँ।'
आगे विनय खड़ा ही था। शायद उसने सब सुन लिया,वह कुसुम की तरफ देखकर मुस्कुराकर बोला-'चलो,अच्छा है !मुझे एक बैग ही उठाना पड़ेगा,वरना मेरी तो कमर ही अकड़ जाती...'
कुसुम विनय के सीने से लगकर रोने लग गयी और बोली-'हम गनु (विनय की बहन) के साथ ऐसा नहीं करेंगे,बिल्कुल नहीं...।'