… और,
आज फिर
लगा लाँछन
किसी महापुरुष पर।
आज फिर
हुआ बदनाम
कोई महामानव।
आज फिर
हुआ प्रत्यारोपित
एक गंभीर आरोप
किसी श्रेष्ठ पुरुष पर।
आज फिर
लाख गुणों,
अनगिनत अच्छाइयों,
और,
सेकड़ो त्याग,
बलिदान
के बीच ,
करके कड़ी मेहनत
घोर कलियुग के
किसी निकृष्ट मानव ने,
बना दिया अपयश का भागी
किसी महान आत्मा को।
आज फिर
संकुचित सोच वाले,
किसी पशुवत नर ने
दिखा दिया
दुनिया को जैसे,
है दाग इस चाँद में भी!
कौन है ये लोग
कहाँ से आते हैं
समझ नहीं पाता मैं।
एक साधारण इंसान,
बना हो जो,
अपने ही प्रबल पुरुषार्थ से,
महामानव!
करके बदनाम
ऐसे महात्मा को
अपनी संकुचित सोच से,
क्या हासिल करना चाहते हैं ये लोग ?
क्या बैठे है खाये खुन्नस,
कि कर नहीं पाए खुद तो कुछ,
तो कर क्यों न दे बदनाम
इन महापुरुषों को!
कैसे हो सकता है कोई इंसान,
भगवान समान
निकालते है नुक्स।
इतने लम्बे जीवन में
इतने किए कार्यो में
होगा कहीं तो छिद्र कोई
होगी कहीं तो बुराई कोई।
ढूँढते है,
ना मिले तो गढ़ देते है खुद ही
और करते है सार्वजनिक उसको।
निकालते है अपनी नाकामी की भडास
इन्ही ईश्वर तुल्य महामानवो पर!
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