शनिवार, 2 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 4 ) - खतरे की घंटी

 


 “ सब कुछ इतना अचानक से हुआ कि श्रद्धा तो कुछ समझ ही नहीं पाई। वह कभी तो मेरी तरफ और कभी उन दोनों के जख्मी घुटनों की तरफ देख रही थी। वे दोनों ही अपने घुटने थामे फर्श पर पड़े कराह रहे थे। उनके चाकू हाथों से छिटककर दूर जा गिरे थे। “ - दक्ष बता रहा था - “ मैं बहुत ही सावधानी से उनकी तरफ बढ़ा। मैं समझ गया कि अब वे कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है। बड़े ही आराम से मैंने उनके नकाब के नीचे छिपे खतरनाक चेहरे देखने के लिए एक - एक करके उनको बेनकाब किया और यह देखकर मुझे बड़ी निराशा हुई कि उन काले मास्क के पीछे छिपे चेहरे बड़े ही मासूम से थे। 18 - 19 साल के लड़के, जो बस मौज मस्ती के लिए किसी छोटी मोटी जगह हाथ साफ करने के इरादे से घर से निकले थे। 

“ आह! बहुत दर्द हो रहा है। “ - उनमें से एक चिल्लाया। 

“ क्या अब हम मर जायेंगे ? “ - दूसरा घबराते हुए मायूस स्वर में बोला। 

“ चुप रहो। “ - डांटने के से अंदाज में कहा मैंने - “ बहुत गलत घर में घुस आए हो तुम लोग। घुटने पर गोली लगने से मरोगे तो नहीं, लेकिन तुमको यह जानकर बड़ा अफसोस होगा कि मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ। अब मैं तुम लोगों की फोटो क्लिक करूँगा और कल सुबह के अखबार में तुम लोगों की ये खूबसूरत तस्वीरें न्यूज़ के साथ छपेगी। फिर तुम्हारे घर वाले जो तुम्हारे साथ करेंगे, तुम लोग जी भी नहीं पाओगे। “

“ क्या ? अखबार में फोटो छपेगी ? “ - पहला वाला बोला। 

“ न्यूज़ भी। “

“ और हमारे घर तक ये बात पहुँचेगी कि हम यहाँ चोरी करने आए थे ? “ - दूसरे के स्वर में घबराहट थी। 

“ बिल्कुल। “

“ ऐसा मत करना। प्लीज हमारी तस्वीरें मत खींचना। “ - घबराते हुए दोनों एक साथ बोले। 

“ ठीक है। फिर दफा हो जाओ यहाँ से। जल्दी! “ - मैं उन पर चिल्लाया। 

बस फिर क्या था! 

जल्दी से अपने अपने नकाब पहनकर घुटने के दर्द की परवाह किए बगैर ही दोनों बाहर की ओर लंगड़ाते हुए भागे। 

उनके जाते ही सबसे पहले तो मैंने मेन डोर को भीतर से अच्छी तरह लॉक किया। फिर मेरा ध्यान श्रद्धा की ओर गया। उसे देखकर ऐसे लग रहा था जैसे किसी बहुत बड़ी मुसीबत के टल जाने के बाद उसने राहत की साँस ली हो। 

“ मुझे लगा था कि कहीं उन दोनों को मेरे चाचा ने ही ना भेजा हो। “ - बिना कुछ पूछे ही वह बोली। 

“ चिन्ता मत करो। तुम यहाँ पूरी तरह सुरक्षित हो। “

“ तुम तो बहुत तेज और फुर्तिले हो। मुझे तो पता भी नहीं चला कि कब वे दोनों घर में घुस आए और तुमने तो बिजली की सी तेजी से उन पर फायर भी कर दिया! अब मुझे सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि शक्ल से लगते भले ही नहीं हो, पर हो तुम बहुत खतरनाक! “

“ शहर में रहना खतरे से खाली नहीं होता। “ - मुस्कुराते हुए मैं बोला - “ यहाँ जीने के लिए खतरनाक होना ही पड़ता है। “

इसके बाद उसे गेस्ट रूम में सोने को बोलकर मैं बेडरूम में चला गया। 

“ सुबह जब 8 बजे मेरी आँख खुली तो उठते ही मैंने गेस्ट रूम का रुख किया। मुझे लगा कि श्रद्धा भी अभी तक सोयी होगी। लेकिन मैं गलत था, क्योंकि श्रद्धा उस समय अपने बेड पर नहीं थी। उसे आवाज लगाते हुए मैंने पूरे घर में तलाश किया, वो घर में ही नहीं थी। फिर मेरे मस्तिष्क में एक विचार आया और मैंने मेन डोर चेक किया। वह अंदर से लॉक नहीं था, जिसका सीधा सा अर्थ यही हो सकता था कि कोई घर से बाहर गया था और वह कोई श्रद्धा ही हो सकती थी। “ - दक्ष ने स्नेहा को बीती रात घटित हुई दोनों घटनाएँ विस्तार से बताते हुए कहा - “ फिर मैं अपने डेली रुटिन के मुताबिक तैयार होकर यहाँ ऑफिस पहुँचा। “

“ ओह! ये तो सच में बड़ी अजीब बात हुई। “ - स्नेहा बोली - “ फिर उस लड़की श्रद्धा का क्या हुआ ? कहाँ गई होगी वो ? “

“ पता नहीं। “ - दक्ष लापरवाही से बोला। 

“ कोशिश नहीं की तुमने उसको तलाश करने की ? “ - स्नेहा चिंतित स्वर में बोली - “ शहर में उस देहाती लड़की का अकेले ही घूमते फिरना उसके लिए खतरनाक हो सकता है। “

“ जानता हूँ। लेकिन उसे ढूँढे भी तो कैसे ? कोई क्लू भी तो नहीं छोड़ा उसने जाने से पहले। “

“ खैर, उम्मीद है कि वह सुरक्षित रहेगी और खुद को शहर माहौल में ढालने में सफल होगी। फिलहाल, अब चलें ऑफिस ? “

“ हाँ। चलो। “ - कहते हुए दक्ष ने वेटर को बुलाकर कॉफी का बिल पे किया। 

इसके बाद स्नेहा और दक्ष रेस्टोरेंट से बाहर निकलकर वापस ऑफिस पहुँचे। 

अभी वे जाकर अपने - अपने केबिन में बैठे ही थे कि ऑफिस बॉय जगन के मार्फत बॉस ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया।

बॉस का बुलावा…स्पेशियली उन दोनों के लिए और वो भी ऑफिस में सेक्रेटरी व इंटरकॉम का बंदोबस्त होने के बावजूद बॉस का जगन को उन्हें बुलाने भेजना!...आश्चर्य का विषय था। 

“ मैंने पहले ही कहा था। “ - दक्ष के साथ बॉस के पर्सनल केबिन की ओर बढ़ते हुए स्नेहा बोली - “ हमें ऑफिस के वर्किंग आवर्स के बीच में यहाँ से बाहर नहीं जाना चाहिए था।…मुझे तो ऐसी फीलिंग आ रही है जैसे कि हमने स्कूल या कॉलेज में पढ़ते हुए बंक मार लिया हो और अब प्रिंसिपल हमारी अच्छे से क्लास लेने वाला है। “

जवाब में उसे दक्ष की जोर से हँसने की आवाज सुनाई दी। 

“ अभी तुमको हँसी आ रही है। “ - दिखावटी गुस्से के साथ स्नेहा बोली - “ लेकिन बॉस के सामने जाते ही तुम्हारी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाने वाली है। “

“ ज्यादा टेंशन मत लो स्नेहा! “ - दक्ष लापरवाही से बोला - “ डर डर के नौकरी नहीं की जाती। अब जो हो गया, सो हो गया। चलकर देखते हैं, हो सकता है बॉस ने किसी और काम से बुलाया हो ! “

“ मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता। “ - स्नेहा चिंतित स्वर में बोली - “ अगर कोई और ही काम होता, तो वो हम दोनों में से किसी एक को बुलाता या फिर अपनी सेक्रेटरी स्मिता खन्ना को बोलकर इंटरकॉम से हमें बुलवाता। इस तरह जगन को भेजकर हमें बुलवाने का क्या मतलब! जरूर उसने हमें जॉब से डिसमिस करने के लिए बुलाया होगा। “

“ डोंट बी निगेटिव। ज्यादा मत सोचो। अरे, ऐसा भी क्या घबराना! चिन्ता मत करो, मैं सब संभाल लूँगा। “

धीमे धीमे कदमों से चलते हुए वे बॉस के पर्सनल केबिन की ओर बढ़ रहे थे। सारे सहकर्मी उन्हें अजीब नजरों से देख रहे थे, क्योंकि जब भी ऑफिस बॉय जगन किसी को ये बोलने आता था कि बॉस ने बुलाया है तो यह उस बुलाये गए सहकर्मी के लिए खतरे की घंटी होती थी। 

चलते हुए वे अब बॉस के पर्सनल केबिन तक आ पहुँचे थे। 

- शेष अगले भाग में





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