नहीं है परवाह किसी को

हर कोई जी रहा है,
जिन्दगी को अपने हिसाब से।
नहीं है परवाह किसी को
इंसानियत की,
न मानवता की,
न नैतिकता की।
हर कोई भाग रहा है,
भौतिक सुखों के पीछे,
नहीं है परवाह किसी को
अच्छाई की-बुराई की,
न किसी के जीने-मरने की,
न किसी के हंसने-रोने की।
जी रहे है जिन्दगी को सभी अपने हिसाब से।
खत्म होती जा रही है संसार से,
मानवीय भावनायें,
परदुःखकातरता,
और,
वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना।
हर कोई चाहता है बस,
अपने स्वार्थों की पूर्ति,
मौज-मस्ती करना,
हमेशा खुश रहना,
और,
हंसते-खिलखिलाते हुए जीवन बिताना।
चाहे चुकानी पडे कीमत इसकी,
दूसरों के दु:ख के रूप में,
दूसरों की खुशियाँ छीनकर,
दूसरों को तकलीफ पहुंचाकर।
नहीं है परवाह किसी एक को,
दूसरे की,
हर कोई जी रहा है जिन्दगी को,
बस अपने हिसाब से ।