नवोदित कथाकार हिमाद्री पालीवाल:एक परिचय

लेखन का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है,उतने ही विस्तृत है हमारे विचार,उतनी ही विस्तृत है हमारी भावनायें और इन सबका कारण है-हमारे आसपास फैला,सामाजिक ताने-बाने से बुना ये विस्तृत संसार।
'अपने विचारों और भावनाओ के सहयोग से विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों और घटनाओं को गहरायी से समझना,उनके साथ एकाकार होना और उनमें इतना डूब जाना कि मानो,हम स्वयं ही उन परिस्थितियों और घटनाओं के भुक्त-भोगी हों।'-ये ही वे तत्व हैं,जो एक आम इंसान को विवश करते हैं,एक नयी रचना की सृष्टि करने को। जिन मनुष्यों में ये तत्व पाए जाते हैं,उनमे एक तरह की व्यग्रता रहती है और यही व्यग्रता उन्हें एक नयी रचना की सृष्टि करने को बाध्य करती है। परिणामस्वरूप संसार को समय-समय पर नए-नए कवि,लेखक और साहित्यकार मिलते रहते हैं। लेकिन यह आश्चर्य,घोर आश्चर्य का विषय है कि संसार को जितने रचनाकार मिल सकते हैं,उसकी तुलना में बहुत ही कम मिल पाते हैं। इसका एकमात्र कारण यही है कि अनेक रचनाकारों को अवसर ही नहीं  पाता अपनी प्रतिभा दिखाने  का,क्योंकि अधिकतर रचनाकारों को प्रोत्साहनयुक्त उचित वातावरण मिल ही नहीं पाता,उन्हें किसी का मार्गदर्शन नहीं मिल पाता। यही कारण है कि उनकी रचना करने की गति मंथर ही रहती है। इससे इतर कुछ रचनाकार ऐसे भी होते हैं,जो बिना किसी प्रोत्साहन और मार्गदर्शन के पूर्ण उत्साह से  रचनायें करते रहते हैं,लेकिन वे 'गुदड़ी के लाल' ही रहते हैं। वे अपनी रचनायें दुनिया के सामने लाने में थोड़ा संकोच महसूस करते हैं। शायद,उन्हें भय होता है कि लोग उनकी रचनाओं की महत्ता नहीं समझेंगे,ना ही कद्र करेंगे।
आज के ब्लॉग में  ऐसी ही एक रचनाकार से आपका परिचय कराया जा रहा है,जो सोशल मिडिया पर तो सक्रिय है,किन्तु अपनी रचनाओं को उन्होंने कभी किसी रूप में भी सोशल मिडिया पर या इंटरनेट पर साझा नहीं  किया है और ना ही किसी अन्य रूप में किसी के सामने उन्हें प्रस्तुत किया है।
 राजस्थान राज्य की जोधपुर निवासी हिमाद्री पालीवाल मूलतः कहानीकार है,जो सामाजिक यथार्थ को अत्यंत भावपूर्ण तरीके से अपनी कहानियों में व्यक्त करती हैं।
साहित्य में अपनी गहन रुचि के कारण मैं स्वयं हमेशा नये-नये रचनाकारों की तलाश में रहता हूँ। जब मुझे ज्ञात हुआ कि हिमाद्रीजी लिखती हैं और बहुत अच्छा लिखती है,तो उनकी रचनायें पढ़ने की उत्सुकता हुई और उन्होंने भी सिर्फ इसलिए मुझे अपनी रचनायें पढ़ने को दी,क्योंकि मैं भी साहित्य में थोड़ी बहुत रुचि रखता हूँ। मेरी दृष्टि में हिमाद्रीजी की रचनायें उत्कृष्ट कोटि की और बहुमूल्य है।
'ऐसी श्रेष्ठ रचनायें और रचनाकार हिन्दी साहित्य को और अधिक समृद्ध कर सकती हैं '-यह विचार आते ही मैंने हिमाद्रीजी से स्वयं का ब्लॉग बनाने की पेशकश की,किन्तु किसी कारणवश उन्होंने सहमति नहीं दी और अन्ततः तय हुआ कि मैं अपने ही ब्लॉग पर उनकी रचनायें पोस्ट करुँ,इसके लिए उनकी सहमति भी मिल गयी।
तो अब से आप इसी ब्लॉग पर हिमाद्री पालीवाल की रचनाएँ भी पढ सकेंगे।

जीवन की उलझन Poem On YouTube

अपनी मंजिल की ओर बढते राही के प्ेम और कर्तव्य के बीच अंतर्द्वंद को दर्शाती शानदार प्रेम कविता अब YouTube पर देखें।


क्यों

कल तक जो चाहते थे,
दूर जाना हमसे। 
क्यों आज पास आने के,
बहाने खोजा करते हैं। 
सहन न होता था जिनको,
हमारा आसपास भी होना। 
 क्यों आज वो ही हमे,
यहां वहाँ खोजा करते हैं। 
चाहते थे कभी,
ओझल  कर देना हमको,
नजरों से अपनी। 
क्यों आज वो ही खुद,
हमारी नज़रों में आना चाहते हैं। 
कहा था हमने तो,
कि,
बेक़सूर है हम,
लगा दिया फिर भी उन्होंने,
आरोप हम पर। 
और,
आज वो ही,
कसूरवार होना चाहते हैं।