अजीब सी बात है,
समझ नहीं पाता मैं।
रह गया सब कुछ पीछे,
इतना पीछे,
कि,
चाहकर भी नहीं पा सकता वो सब,
रह गया है जो,
अतीत के ऐसे अँधेरे कोने में,
जहां से न उसका आना हो सकता है,
न उसे वर्तमान में लाना।
सोच रहा हूँ बैठा कब से,
क्यों--कब-कैसे,
और किसलिये,
खो गया सब कुछ,
एक पल में,
पाने में जिसे लग गए थे,
कई साल।
चाहता तो हूँ कि,
संभल जाये किसी तरह,
रिश्ते सारे।
पर लगता नहीं संभव,
ऐसा हो पाना।
जानता हूँ कि,
कर सकता हूँ,
ठीक सब।
पर,
ईगो है कि,
रोक लेता है मुझे,
आगे बढ़ने से।