संभल जा ओ राही

रुक गया वो फिर से चलते-चलते,
थम गया वो फिर से चलते-चलते, 
आ गयी है कुछ बाधायें राह में। 

मिल गयी है, 
कुछ अनजानी सी राहें,
आकर उसकी राहों में। 
भटक गया है वो,
फिर से अपनी मंज़िल से। 

रखना होगा याद उसे,
सदा ही,
अपनी मंज़िल को,
अपनी राहों को। 

क्यों भटक जाता है वो,
बार-बार। 
समझना होगा उसे,
जानना होगा उसे,
अपनी  मंज़िल को,
अपनी राहों को। 




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4 Comments

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन,,,
    सादर

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  2. सुप्रभात ! धन्यवाद।

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  3. मंज़िल की ओर बढ़ते रहना ही जीवन का लक्ष्य है बाधाएँ तो अपना असर दिखायेंगीं और विचलित करेंगी राही को किन्तु आगे बढ़ना ही होगा।
    आशावाद का मर्म जगाती सुंदर रचना।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं। लिखते रहिये, आप अच्छा लिखते हैं।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।

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