रास्ता लम्बा था,
मंज़िल दूर थी ,
कदम जवाब चुके थे
पर चलना था मुझे।
नदियों ने कहा-
'जल पीकर थकान दूर कर ले'
पर मैं रुका नहीं ।
वृक्षों ने कहा-
'हमारी छाया में आराम कर ले'
पर मैं थमा नहीं ।
बाधायें बहुत थी,
कष्ट बहुत थे।
पर ललक थी ,
मंज़िल तक पहुंचने की।
उत्सुकता थी,
रास्ता तय करने की,
पर था धैर्य भी।
मैं चला और चलता गया,
अपनी ही गति से।
हताश भी हुआ,
निराश भी हुआ,
पर हार नहीं मानी।
धैर्य का दामन नहीं छोड़ा,
उम्मीद अभी बाकी थी।
मैं चलता गया,
अपनी ही धीमी गति से ।
और आज,
कट गया रास्ता,
मिल गयी मंज़िल।
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