मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

सोमवार, 29 जनवरी 2018

किसी एक की तलाश में

अजनबी सी राहें हैं,
चलते रहना जिंदगी हैं|
चले जा रहे हैं बिना रुके,
न राह का पता है,
न मंजिल का|
बस इसी उम्मीद में
कि शायद आज नहीं तो कल सही,
जान ही जायेंगे हकीकत अपनी जिंदगी की|
 कैसी राहें है ये,
कैसी दुनिया है ये,
नहीं दिखती रोशनी कहीं,
हर तरफ है गुमनामी के अँधेरे|
 इन्ही अँधेरों में कहीं,
खोकर रह गयी है जिंदगी मेरी भी|
बस जी रहे हैं किसी एक की तलाश में|

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