बुधवार, 20 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 21 यश का लव लेटर

 

श्रेया ने डायरी में लिखना शुरू किया - “ इस समय शाम के 5 बजकर 20 मिनट हो रहे हैं। बाहर रिमझिम रिमझिम बारिश हो रही है। एक तो पहले ही वह उड़ने वाला इंसान रहस्य बना हुआ है। ऊपर से अभी अभी टीवी में एक नई न्यूज़ सुनी। पत्थर की कोई प्रतिमा अचानक कहीं से आ गई है और वो भी जीवित प्रतिमा ! ऐसी अजीब चीजें हो रही है, जिनके बारे में पहले न तो कभी सुना और न ही जिनके होने की कभी कोई कल्पना की! मेरी पसन्दीदा पेंटिंग, जिसको देखकर मुझे हमेशा सुकून मिलता था, अब उससे भी डर लगने लगा है। मुझे किसी बहुत बड़ी मुसीबत के आने का पूर्वाभास हो रहा है। पता नहीं क्यों, लेकिन जब भी कोई मुसीबत आने वाली होती है, मुझे उसका पूर्वाभास होने लगता है और इस बार तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई बहुत ही बड़ी मुसीबत आने वाली है। पता नहीं क्या होने वाला है! अचानक से मुझे इस शहर में रहने से ही डर लगने लगा है। ऐसा कुछ भी तो इस शहर में नहीं है, जो मुझे यहाँ रुकने के लिए मजबूर करे! कॉलेज में कुछ फ्रेंड्स है जरूर। लेकिन वे इतने इंपोर्टेंट नहीं है कि मैं उनके लिए इस शहर में ही रुकने के लिए मजबूर हो जाऊँ। कॉलेज के अधिकतर लड़के पीछे पड़े ही रहते हैं। लेकिन वे तो ऐसे है कि उनको मैं अपना फ्रेंड भी नहीं बोल सकती, क्योंकि मेरी तरफ उनके आकर्षित होने की एकमात्र वजह मेरा रूप है। अगर मैं इतनी सुंदर नहीं होती, तो शायद वे इस तरह मेरे पीछे नहीं पड़ते। इस बात से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं क्या सोचती हूँ, क्या महसूस करती हूँ। कितना अच्छा होता, अगर कोई मुझे समझने वाला होता! पिताजी को तो अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। माँ समझती तो है, लेकिन कभी कभी वे भी अजीब हरकतें करने लगती है और कॉलेज फ्रेंड्स में भी ऐसा कोई नहीं है जो पूरी तरह से मुझे समझ सके।… पता नहीं क्यों, लेकिन आज अचानक ही मुझे किसी अपने की कमी बहुत ज्यादा खल रही है। काश, कोई ऐसा होता, जिसके बारे में मैं सोच सकती, जिसके खयालों में खो सकती! कोई ऐसा, जिससे मैं खूब प्यार कर सकती! लेकिन, ये सब सोचने से क्या फ़ायदा! क्योंकि ऐसा शख्स मुझे तो कल्पनाओं में भी दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं देता। “


•••••


“ बस, बहुत हो गया। अब मत रोकना मुझे। “ - यश अब मानने वाला नहीं था - “ आज तो उसे मैं ये लेटर देकर ही रहूँगा। “

“ मुझे लग नहीं रहा कि इससे बात बनेगी। “ - उसे समझाते हुए पवन बोला - “ पहले उसके दिल में अपने लिए फीलिंग लाओ। “

“ और वो कैसे लाते हैं ? “

“ उसकी हेल्प करो। “

“ क्या ? “

“ अरे, छोटे छोटे मामलों में उसकी मदद करो। उसके सामने अच्छा बनकर दिखाओ। “

“ ये सब पुराने फॉर्मूले है। “ - यश लापरवाही से बोला। 

“ अच्छा! और ये लव लेटर देने का आईडिया तो बिल्कुल नया है ना, जो कि लगता है तुम्हीं ने ईजाद किया है! “

“ खिल्ली मत उड़ाओ मेरी। कल को जब वो मेरे साथ हाथों में हाथ डालकर घूम रही होगी, तब तुमको अफसोस होगा कि क्यों तुमने मेरी खिल्ली उड़ाई! “

“ वो तो होते होते होगा। फिलहाल तो वो तुम्हें सूखी घास तक नहीं डाल रही। “

कॉलेज ग्राउंड में घूमते हुए यश के हाथ में सफेद रंग का एक A4 साइज का पेपर था, जो निश्चित रूप से लव लेटर ही था। पिछले एक सप्ताह से वह इसे लिए लिए घूम रहा था। यह लेटर वह जिसको देना चाहता था, उसे देने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। लेकिन, आज तो जैसे वह कसम खाकर ही आया था कि लेटर उसको देकर ही रहेगा।

इसी मामले में वह अपने बेस्ट फ्रेंड पवन से बात कर रहा था।

कॉलेज ग्राउंड में कई सारे स्टूडेंट घूम रहे थे। सुबह 11 बजे का समय था और अभी तक पहली क्लास का भी टाइम नहीं हुआ था। 

“ डालेगी पवन! “ - यश बोला - “ सूखी क्या हरी घास भी डालेगी, जब वो यह लेटर पढ़ लेगी। “

“ अब ऐसा भी क्या लिख दिया इसमें तुमने कि इसे पढ़ते ही वो तुमसे प्यार कर बैठेगी ? “

“ अपना दिल खोलकर रख दिया है इस लेटर में मैंने। तुम बस देखते जाओ। तुम्हारे सामने ही दूँगा इसे मैं। “ - यश पूरे आत्म विश्वास से, नहीं नहीं अति आत्मविश्वास से भरा बोले जा रहा था। 

 “ मुझे तो बिल्कुल नहीं लगता कि वो इस लेटर को हाथ भी लगाएगी। “

“ तो.. “ - बोलते हुए यश ने अपने जींस की पॉकेट से एक छोटा सा फोल्ड किया हुआ चाकू निकालकर उसे खोलते हुए पवन के सामने लहराकर कहा - “ इसे तो लेगी ही। “

“ य.. ये क्या है! “ - थोड़ा सा घबराते हुए चकित स्वर में पवन बोला - “ तुम पागल तो नहीं हो गए हो ! “

“ हो ही गया हूँ। “ - रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए यश बोला - “ पिछले एक सप्ताह से दिन रात मैं एक ही बात सोच रहा हूँ और आज मैं पक्का इरादा करके आया हूँ कि या तो उसे ये लव लेटर देकर रहूँगा या फिर अपनी जान। अब ये उसी को तय करना है कि वह क्या लेना चाहती है। “

“ ये तो पागलपन है! “ - पवन बोला - “ ऐसी हरकतें करोगे तो कभी वो तुमसे प्यार नहीं करेगी। “

“ कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं करता हूँ ना, बस बहुत है। “

“ दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा, जो ऐसी बातें कर रहे हो। मेरी बात सुनो, किसी तरह इंप्रेस करो उसे और ये लेटर वेटर का चक्कर छोड़ो। इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला। “

“ भाड़ में जाओ तुम! “ - अचानक ही बदले तेवर के साथ गुस्से में भरा यश बोला और वहाँ से चला गया। 

“ ये उस लड़की के प्यार में पूरी तरह से पागल हो चुका है। “ - खुद से ही बात करते हुए पवन बोला - “ मुझे इसके पीछे जाना होगा। कहीं ये कोई ऐसी हरकत ना कर दे, जो इसी के लिए भारी नुकसान दायक हो! “

दौड़ते हुए पवन यश के पीछे गया। आगे आगे चलते हुए यश उस लड़की को ढूँढने की कोशिश कर रहा था, जिसने उसके दिन का चैन और रात की नींद चुरा रखी थी। कैंटिन में, लाइब्रेरी में, क्लास रूम में - सब जगह जा जाकर ढूँढ रहा था वह उसे। लेकिन, उसे वह कहीं नहीं दिखी। 

“ ये कहाँ चली गई ? आज कॉलेज भी आई है या नहीं ? “ - सोचते हुए यश बेचैन हो उठा। 


मंगलवार, 19 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 20 श्रेया की पेंटिंग

 

“ तो क्या शहर के बाकी लोगों की तरह हम भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें ? “ - श्रेया बोली - “ कुछ ना करें ? “

“ पर ऐसा हुआ क्या है, जो कुछ करने की नौबत आ गई ! “ - चकित स्वर में माँ बोली - न उड़ने वाले इंसान ने और न ही पत्थर के उस आदमी ने, ऐसा कुछ किया है, जो हम आम इंसानों को दहशत में डाल दे। “

“ तब क्या हम उनके कुछ करने का इंतजार करें ? “

“ तू क्या करना चाहती है ? “

“ कुछ नहीं। “ - गुस्से से बोलते हुए श्रेया उठ खड़ी हुई। 

“ अब जा कहाँ रही हो ? “ - श्रेया को वहाँ से जाते देख माँ ने पूछा। 

“ कहीं नहीं। बस अपने रूम में जा रही हूँ। “ - जवाब देने के साथ ही श्रेया आगे बढ़कर सीढ़ियों से होते हुए ऊपरी मंजिल पर चली गई। 

तेजी से चलते हुए वह अपने रूम में दाखिल हुई। उसका स्टडी रूम, उसका बेडरूम - सब कुछ वही था। 

रूम में प्रवेश करते ही सामने की दीवार पर एक पेंटिंग लगी हुई थी, जिसमें बहती हुई नदी दिख रही थी। नदी में चट्टाननुमा बड़े बड़े पत्थर रखे हुए थे, जो आधे पानी में डूबे हुए थे। इन पत्थरों से टकराकर नदी का जल लहरों की सृष्टि कर रहा था। इन्ही में से एक पत्थर पर एक लड़की बैठी हुई थी, जिसने ग्रीन कलर की ड्रेस पहन रखी थी। उसने अपने बायें हाथ की कोहनी को अपने घुटने से टिका रखा था और हथेली से ठुड्डी को थाम रखा था। वह किसी गहरे विचार में डूबी हुई लग रही थी। 

यह लड़की और कोई नहीं बल्कि खुद श्रेया ही थी। श्रेया को पेंटिंग बनाने का बहुत शौक था और यह उसी की बनाई हुई पेंटिंग थी। 

वैसे तो श्रेया ने इसके पहले भी ऐसी कुछ पेंटिंग्स बनाई थी और बाद में भी, जिनको कि सही मायनों में पेंटिंग का खिताब दिया जा सकता है। लेकिन, उनमें उसकी सबसे पसंदीदा पेंटिंग यही थी। इसीलिए तो यह रूम के ठीक सामने लगी हुई थी, जिससे कि कोई भी रूम के भीतर आये तो उसकी नजर सबसे पहले इसी पेंटिंग पर पड़े। 

अपनी ही बनाई इस पेंटिंग को देखकर श्रेया अक्सर कहीं खो जाया करती थी, उसे एक अलग ही अनुभूति होती थी। ऐसा लगता था, जैसे इस पूरे संसार में किसी भी वस्तु का कोई अस्तित्व नहीं है। बस यह नदी है, चट्टाननुमा ये बड़े बड़े पत्थर है और है वह खुद, बिल्कुल अकेली! यह अनुभूति उसे डराती नहीं थी, अकेलेपन का एहसास नहीं कराती थी, बल्कि यह तो उसे सुकून महसूस कराती थी। 

लेकिन, आज इस पेंटिंग को देखकर उसे कोई अलौकिक या अद्भूत अनुभूति नहीं हो रही थी। पेंटिंग को देखकर आज उसे किसी तरह का कोई सुकून हासिल नहीं हो रहा था और इसकी वजह थी, पत्थर के आदमी की न्यूज़! पत्थर की प्रतिमा के जीवित हो उठने की जो सच्ची खबर उसने टीवी पर देखी थी, उसकी वजह से ही आज इस पेंटिंग के बड़े बड़े पत्थर भी उसे डरा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि पेंटिंग में दिख रहे इन पत्थरों में से अभी कोई पत्थर जीवित होकर इंसानी रूप धारण कर लेगा और पत्थर पर बैठी गहरी सोच में डूबी लड़की को दहशत में डाल देगा। इस खौफनाक कल्पना से एक पल के लिए तो श्रेया सिहर उठी। लेकिन, फिर अगले ही पल अपना सिर झटक कर उस डरावनी कल्पना से बाहर निकल आई। 

उसका गुस्सा अब जा चुका था। गुस्से का स्थान डर ने ले लिया था।

धीरे धीरे चलते हुए वह खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। 

आकाश में बादल छाये हुए थे और हल्की हल्की बारिश आ रही थी। धीरे धीरे बारिश तेज होने लगी। बारिश की बूँदें ग्लास विंडो से टकराकर टप - टप की आवाज कर रही थी। बादल गरजने लगे थे, बिजलियाँ चमकने लगी थी। ऐसे सुहाने मौसम में श्रेया का मन मयूर की भाँति नृत्य करने लगा। उड़ने वाले इंसान और पत्थर के आदमी के बारे में सोचकर जो डर उसे लगा था और फिर माँ से बात करते हुए उसे जो गुस्सा आया था, वो सब एकाएक ही कहीं गायब हो गया। अब तो बेवजह उसे खुशी हो रही थी, जो कि स्वाभाविक ही था। उसने धीरे से ग्लास विंडो खोलकर देखा, हवा का एक झोंका बारिश की बूँदों के साथ भीतर आया और मिट्टी की सौंधी गंध के साथ उसे ठंडक का एहसास करा गया। उसने जल्दी से विंडो वापस बंद कर दी। उसे काफी अच्छा लगा। फिर से उसने खिड़की खोल दी और इस बार खिड़की के दोनों पल्ले पूरी तरह खोल दिए। बारिश की बौछारें ठंडी हवा और सौंधी खुशबू के साथ अंदर आकर श्रेया को भिगोने लगी थी। चेहरे पर बारिश की ठंडी बूँदें पड़ने से श्रेया को बहुत अच्छा लग रहा था। अब उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और चेहरे पर पड़ने वाली बारिश की बूँदों को वह गहराई से महसूस कर रही थी। कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही। फिर जब उसने ठंडक बढ़ती महसूस की, तो फिर से खिड़की बंद कर दी। 

वहीं रखे कपड़ा स्टैंड से तौलिया लेकर पहले उसने अपना मुँह पोंछा, फिर स्टडी टेबल के पास रखी चेयर पर जा बैठी। टेबल की दराज में से उसने अपनी डायरी और पेन निकाला। 

डायरी ! 

श्रेया डायरी लिखने की शौकीन थी। 

कई सारी बातें थी, जो उसके मन में आती थी। कई सारे विचार थे, जो उसके दिमाग में घूमते रहते थे। कुछ बातें और विचार तो वह अपनी फ्रेंड्स और माँ - पिताजी से शेयर कर लेती थी। लेकिन, कई सारी ऐसी बातें भी होती थी, जिनको वह किसी के भी साथ शेयर नहीं कर सकती थी। कई सारे ऐसे विचार होते थे, जिनको वह किसी के भी साथ साझा नहीं कर सकती थी। ऐसी सभी बातों और विचारों को वह डायरी में लिख लेती थी। 

इस समय भी उसके मन में ऐसी ही कुछ बातें आ रही थी, जिनको वह किसी के भी साथ शेयर नहीं कर सकती थी। 

इसीलिए उसने डायरी हाथ में ली। 

डायरी के मुखपृष्ठ पर उगते सूरज का चित्र था। 

डायरी खोलकर श्रेया ने लिखना शुरू किया। सबसे पहले उसने डायरी के खाली पेज पर सबसे ऊपर दाहिनी ओर पेन से उस दिन की दिनांक डाली - ‘ 8 अगस्त, 2024 ‘

फिर दिनांक के ठीक नीचे उसने दिन लिखा - ‘ गुरुवार ‘

फिर अगली पंक्ति में बायीं ओर से उसने अपने मन की भावनाएँ लिखनी शुरू की। 


रविवार, 17 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 19 देवदूतों का आगमन


 “ मुझ तक कोई भी पहुँच नहीं पायेगा। “ - स्टोन मेन बोला। 

“ मूर्खों जैसी बातें मत करो। अपने भारी भरकम और पत्थर के शरीर को तुम लोगों से छिपाकर नहीं रख पाओगे। “

“ अगर इतनी परवाह थी आपको इस मिशन के सफल होने की, तो ऐसा धोख़ा क्यों किया मेरे साथ ? क्यों मुझे ऐसी प्रतिमा में से प्रकट करने की प्रोग्रामिंग की, जिसके आसपास लोगों की भीड़ थी ? “

“ मैंने तुम्हारे साथ कोई धोख़ा नहीं किया है! “ - महीपति चिल्लाया - “ तुम्हें एकांत स्थान में ही प्रकट होना था। प्रतिमा का चुनाव भी सही था। मेरी जानकारी के मुताबिक उस प्रतिमा को किसी म्युजियम में नहीं, बल्कि निर्जन जंगल में होना चाहिए था। वो वहीं थी। “

“ फिर म्युजियम में कैसे पहुँची ? “

“ यही वो बात है जो मुझे परेशान कर रही है। कहीं कुछ गड़बड़ हुई है और जल्दी ही उसका पता मैं लगा लूँगा। “ - आत्मविश्वास से लबरेज महीपति बोला - “ तुम अपना फोकस उस रहस्यमयी प्रतिमा की तलाश पर बनाये रखो। “

“ आप उसकी चिन्ता मत करो। “ - बोलने के साथ ही स्टोन मेन ने दीवार पर छाया चित्र के रूप में चल रही किरणों को फिर से अपनी आँखों में सोख लिया। 

दीवार पहले की तरह सामान्य हो गई। 


•••••


“ जैसा कि आप इस CCTV फुटेज में देख पा रहे हैं, अचानक से एक तेज आवाज के साथ हिरण्यकश्यप की प्रतिमा में विस्फोट हुआ और उसके बाद काँच का केबिन धूल के गुबार से भर उठा। हैरत की बात तो यह है कि धूल का गुबार छँटने के बाद काँच के केबिन को तोड़कर उसमें से पत्थर की एक प्रतिमा बाहर निकली। “ - शहर के एक लोकल न्यूज़ चैनल पर पत्थर के आदमी की न्यूज़ आज का हॉट टॉपिक बनी हुई थी। 

अपने नाजुक हाथों से रिमोट उठाकर बड़ी ही बेरहमी से श्रेया ने उसका रेड कलर का पॉवर बटन दबा दिया। 

“ अरे, टीवी बंद क्यों कर दिया ? “ - पास ही बैठी श्रेया की माँ शालिनी अग्रवाल बोली। 

रात के भोजन की तैयारी करते हुए वे मटर छिलने के साथ साथ न्यूज़ भी सुन रही थी। 

“ तो और क्या करूँ माँ! “ - श्रेया जोर से चिल्लाई - “ पहले वो उड़ने वाला इंसान और अब ये पत्थर की प्रतिमा! पता नहीं क्या हो रहा है इस शहर में! “ 

“ पूरी न्यूज़ तो सुन ले पहले! “ - शालिनी अग्रवाल बोली - “ क्या पता, वह कोई चलने वाला पत्थर का खिलौना ही हो ! “

“ अरे, माँ! ये कोई टीवी सीरियल नहीं है, जिसमें पहले ढेर सारा सस्पेंस क्रिएट होता है और फिर अंत में पता चलता है कि बात तो असल में कुछ थी ही नहीं। “ 

“ अब वो कोई खिलौना ही है या सच में कोई आदमी, यह तो पूरी न्यूज़ देखने पर ही पता चलेगा। “ 

बेमन से श्रेया ने फिर से टीवी ऑन कर दिया। 

टीवी में न्यूज एंकर बोल रही थी - “ पुलिस से हुई मुठभेड़ में पत्थर के आदमी ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वह तो शांतिपूर्ण तरीके से जंगल की ओर चला गया। कयास लगाया जा रहा है कि पत्थर का वह आदमी किसी का अहित करने की मंशा तो बिल्कुल भी नहीं रखता। लेकिन सबसे जरूरी सवाल तो अपनी जगह अभी भी कायम है कि ग्लास चैंबर में पत्थर की वह प्रतिमा आई कहाँ से ? क्या हिरण्यकश्यप की मिट्टी की प्रतिमा के भीतर पहले से ही पत्थर के आदमी की प्रतिमा रखी हुई थी ? अगर ऐसा है भी तो उस प्रतिमा में अचानक विस्फोट कैसे हो गया ? नृसिंह भगवान की प्रतिमा भी मिट्टी की ही बनी हुई है। हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में विस्फोट हुआ, काँच का केबिन भी टूटा, लेकिन भगवान नृसिंह की प्रतिमा को खरोंच तक नहीं आई ? यह कैसे संभव हुआ ? क्या ये महज एक संयोग है या कोई ईश्वरीय चमत्कार ? और सबसे अहम सवाल, पत्थर की प्रतिमा जीवित कैसे हो गई ? 

ये सारे सवाल अभी तक रहस्य बने हुए हैं। लेकिन, पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर जतिन जैन का कहना है कि जल्दी ही वे पत्थर के आदमी की गुत्थी को सुलझा लेंगे। “

“ सुन लिया माँ! “ - पूरी न्यूज़ देखने के बाद श्रेया बोली - “ कोई पत्थर का खिलौना नहीं है, कोई झूठी कहानी नहीं है। “

“ हाँ, सुन लिया। “ - कुछ सोचते हुए श्रेया की माँ बोली - “ लेकिन, जैसा कि न्यूज़ में बताया गया है, उस आदमी ने किसी का कोई नुकसान नहीं किया। “

“ तो ? “

“ और उस उड़ने वाले आदमी के बारे में भी सुनने में आया है कि वह लोगों की भलाई के लिए ही काम कर रहा है। “

“ तो क्या हुआ माँ! “

“तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आया अभी तक ? “

“ नही। “

“ अरे, देख नहीं रही हो, घोर कलियुग आ चुका है। अन्याय, अत्याचार सब तरह के पापों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे समय में या तो भगवान खुद आते हैं संसार की रक्षा करने के लिए या फिर अपने किसी दूत को भेजते हैं। “

“ माँ! आप भी कहाँ की बात कहाँ ले जाती हो। “

“ तुझे मेरी बातों पर भले ही विश्वास ना हो, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि ईश्वर ने धरती पर अपने देवदूत भेजना शुरू कर दिये है। ये दोनों जरूर ईश्वर के ही भेजे हुए दूत है। “

“ ये सब सिर्फ कपोल कल्पनाएँ है माँ! “ - श्रेया बोली - “ मुझे तो लगता है कि इस शहर पर कोई बहुत बड़ी मुसीबत टूटने वाली है और ये तो बस शुरुआत है। “

“ शुरुआत ? “ - श्रेया की माँ आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोली - “ किस चीज की शुरुआत ? “

“ वर्षा बता रही थी कि उड़ने वाला इंसान कोई ड्रैक्युला भी हो सकता है। “

“ ड्रैक्युला! “

“ हाँ, माँ! मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि अचानक से शहर में अजीब घटनाएँ क्यों होने लगी ? “ - अचानक ही घबराहट भरे स्वर में श्रेया बोली - “ हम इस शहर में आए ही क्यों! पिताजी से कहो ना, किसी और जगह चलने को। “

“ ये तू कैसी बातें कर रही है श्रेया! “ - माँ समझाते हुए बोली - “ भागना किसी समस्या का हल थोड़े ही है और अभी तक तो शहर पर कोई मुसीबत भी नहीं टूटी है। और लोग भी तो है शहर मे। जो उनके साथ होगा, वही हमारे साथ भी होगा। फिर डरने की क्या जरूरत! “



शनिवार, 16 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 18 रहस्यमयी स्टोन मेन

 

“ बात आपकी सही है। “ - स्नेहा बोली - “ लेकिन हिस्ट्री क्या है उसकी ? पता चले रात के हम सोए सुबह उठकर देखे तो घर का सारा माल गायब… “

“ अब लगती तो नहीं ऐसी वो, बाकी तुम जानो। “ - सोचते हुए मिसेज मेहता बोली - “ वैसे भी रिपोर्टर तो सुना है, चेहरे से ही मन के भाव समझ जाते हैं। “

“ हाँ, कुछ अंदाजा तो हो ही जाता है। “

“ तो, क्या तय किया ? “ - निर्णय सुनने की आतुरता में पूछा मिसेज मेहता ने। 

“ भेज दीजिये आप उसे। “ - स्नेहा बोली - “ डिनर बना तैयार कर लेगी। वैसे भी आज वर्क ज्यादा था तो थकान तो है ही। “

“ ठीक है। “ - कॉफी का खाली कप मेज पर रखते हुए मिसेज मेहता बोली - “ चलती हूँ फिर मैं। “


•••••


म्युजियम की टेरिस से कूदकर पत्थर का वह आदमी जंगल की तरफ चला गया था। रास्ते में पड़ने वाले छोटे मोटे पौधों को अपने विशाल पैरों से रौंधते हुए वह घने जंगल की तरफ बढ़ा जा रहा था। उसके चलने की आवाज से खरगोश, हिरण जैसे छोटे जानवरों को खतरे का आभास होने लगा था। डरकर वे इधर उधर भागने लगे थे। अभी दोपहर का ही समय था। पेड़ की शाखाओं से उसे देखते हुए बंदर ऐसे चिल्ला रहे थे, जैसे कि उनको खतरे का आभास हो गया हो! खतरे को भाँपकर ही जंगल में पेड़ों पर रहने वाले तरह तरह के पक्षी भी भरी दुपहरी में ही चहचहाने लगे थे। 

लेकिन पत्थर के आदमी को तो इसका अहसास तक नहीं था। वह तो बस अपनी ही धुन मे चले जा रहा था। इस समय उसका एक ही लक्ष्य था। एकांत, घोर एकांत स्थान पर जाना और यह लक्ष्य उसे जंगल के अंदरूनी हिस्से में ही मिल सकता था।

अंततः उसकी तलाश पूरी हुई। घने जंगल में उसे पहाड़ी गुफ़ाएँ दिखाई दी। वह एक ऐसी गुफा में दाखिल हुआ, जिसका प्रवेश द्वार काफी बड़ा था। गुफा अंदर से काफी बड़ी भी थी। 

लेकिन उसकी इच्छा तब भी पूरी नहीं हुई, क्योंकि गुफा में उसे बिल्कुल एकांत तो मिल ही नही पाया। वहाँ एक विशालकाय शेर गहरी नींद में सोया हुआ था। वह गुफा ही शायद उसका आश्रय थी। लेकिन पत्थर के आदमी को अब किसी की परवाह नहीं थी। उसे जिस एकांत की दरकार थी, वह तो अब उस शेर के वहाँ से चले जाने पर ही संभव था। 

शेर की नींद में खलल डालना उसे उचित नहीं लगा। इसीलिए उसने शेर को परेशान किए बिना ही गुफा से बाहर निकालने का फैसला किया। वह शेर की तरफ बढ़ा और अपने मजबूत हाथों से उसने शेर को उठाया। इसके बाद उसे लिए हुए वह गुफा से बाहर निकला और एक पेड़ के नीचे उसे रखकर वापस गुफा की ओर चल दिया। गुफा के बाहर बड़ी बड़ी चट्टाने रखी हुई थी। पत्थर के आदमी ने एक बड़ी सी चट्टान गुफा के प्रवेश द्वार के पास खिसकायी और गुफा में दाखिल होकर भीतर की ओर से चट्टान को गुफा के द्वार पर ऐसे लगा दिया कि उस चट्टान को हटाये बिना न कोई भीतर आ सकता था और न ही बाहर जा सकता था। 

गुफा में दिन के समय भी अंधेरे का साम्राज्य छा गया था। जिस एकांत की तलाश में पत्थर का वह आदमी भटक रहा था, वह एकांत अब जाकर उसे मिल पाया था। 

धीरे धीरे चलता हुआ वह गुफा में काफी भीतर तक चला गया। इसके बाद उसकी आँखों से एक तरह की लेजर किरणें निकली और गुफा की दीवार से टकराकर छाया चित्र की तरह का पर्दा बनाने लगी। जल्द ही दीवार में एक अजीब से व्यक्ति का अक्स उभरा। उस व्यक्ति के सिर पर एक भी बाल नहीं था। एक तरह से कहा जा सकता है कि वह एक गंजा व्यक्ति था। उसने सफेद रंग का कोट धारण कर रखा था और उसी रंग की पतलून भी पहन रखी थी। दोहरे बदन का वह व्यक्ति आयु में करीब 55 साल का लग रहा था। उसके चेहरे से क्रूरता टपक रही थी। क्रोध भरे स्वर में उसने बात शुरू की - “ हो गया काम ? “

“ नहीं। “ - पत्थर के आदमी ने अपनी स्वाभाविक भारी भरकम आवाज में जवाब दिया - “ अभी तक तो नहीं। “

“ तो जल्दी करो। “ - दीवार पर गिरी प्रकाश की किरणों के उस पार से क्रूर स्वर में वह व्यक्ति बोला - “ जानते हो ना, तुम्हारे पास समय बहुत कम है। “

“ हाँ। मैं जानता हूँ। “ - भारी आवाज में पत्थर का आदमी बोला - “ लेकिन, तुमने मेरे साथ धोख़ा किया है। “

“ क्या बकते हो ? “ - गुस्से में वह व्यक्ति बोला - “ कैसा धोख़ा ? “

“ तुमने कहा था कि अतीत की इस यात्रा में मैं 21वीं शताब्दी में जंगल के एकांत में स्थित किसी प्रतिमा के भीतर प्रकट होऊँगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। “

“ क्या तुम प्रतिमा में से प्रकट नहीं हुए स्टोन मेन ? “ - उस व्यक्ति ने पहली बार पत्थर के आदमी का नाम लेते हुए कहा। 

“ ऐसा नहीं है महीपति! “ - स्टोन मेन बोला - “ प्रकट तो मैं प्रतिमा में से ही हुआ हूँ। लेकिन किसी जंगल के एकांत स्थान में नहीं, जैसा कि आपने मुझे बताया था। बल्कि यहाँ के किसी म्युजियम में लोगों की भीड़ के बीच! “

“ क्या! “ - बुरी तरह से चौंका महीपति - “ किसी की नजरों में तो नहीं आए ना तुम ? “

“ कैसे संभव होता ऐसा ? जबकि मैं बता चुका हूँ कि वहाँ पर लोगों की भीड़ थी और उसी भीड़ के बीच में से काँच के एक केबिन मे रखी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में से प्रकट हुआ मैं यहाँ। “

“ ओह, तो इसका अर्थ यह हुआ कि अनेक लोगों द्वारा तुम देखे जा चुके हो। “ - इस बार थोड़े शांत और चिंतित स्वर में बोला महीपति। 

“ हाँ। “ - कहते हुए स्टोन मेन ने पुलिस से सामना होने की घटना भी बयान की। 

“ यह तो बहुत बुरा हुआ। हमारा खुफिया मिशन अब रहस्य नहीं रह जायेगा। उस युग के मानवों में से कोई न कोई अवश्य ही तुम्हारे वहाँ पर होने के उद्धेश्य का पता लगा लेगा। अगर ऐसा हुआ तो संभव है कि तुम अपने मिशन में नाकाम हो जाओ और अपनी नाकामयाबी के गंभीर परिणाम तुम्हें ही भुगतने होंगे। “

“ नहीं होगा। “ - स्टोन मेन अपनी भारी भरकम आवाज और गंभीर मुख मुद्रा के साथ बोला - “ ऐसा कभी नहीं होगा। मैं इस मिशन से सफल होकर ही लौटूंगा। “

“ किसी मुगालते में मत रहो। “ - महीपति बोला - “ तुम्हारी तो तलाश भी अब शुरू हो गई होगी। तुम्हारे लिए अच्छा यही होगा कि जल्दी से जल्दी उस प्रतिमा को लेकर बिना कोई उत्पात मचाये तुम लौट आओ। “



शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 17 स्नेहा को मिली हाउस मेड

 “ वर्षा के भरोसे ? “ - स्नेहा बोली। 

“ बहुत काम की लड़की है वो। “ - हल्के से मुस्कुराते हुए विशाल बोला - “ हाँ, कभी कभी कुछ गड़बड़ जरूर कर देती है। “ 

“ अच्छा! “ 

“ हाँ। अब देखो ना, रॉकी के सामने ही उसने चैरिटी की बात छेड़ दी। “ - विशाल बोला - “ वो तो मैंने बात संभाल ली। वरना, रॉकी को अगर पता चल जाता कि उसे और उसके दोस्तों को मैं चैरिटी के पैसों से पार्टी देने वाला हूँ, तो वह कोई इंफोर्मेशन देना तो दूर की बात है और उल्टे गुस्से में आ जाता। “

“ सही है। “ - हँसते हुए स्नेहा बोली - “ इसका तो सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि वर्षा से तुमको सावधान रहने की जरूरत है। उसकी वजह से कभी तुम किसी मुसीबत में पड़ सकते हो। “

“ बातों को छिपाकर रखने की कला उसमें नहीं है। हमेशा कुछ न कुछ बोलती ही रहती है। लेकिन फिर भी बहुत सी बार बहुत काम की साबित होती है। “ - विशाल बोला। 

“ ठीक है। बट, बी केयरफुल! “

तभी दरवाजे पर से डोरबेल की आवाज सुनाई दी। 

“ मैं देखता हूँ। “ - बोलते हुए विशाल उठा। 

आगे बढ़कर उसने गेट खोला तो सामने , पड़ोस में रहने वाली साक्षी मेहता को खड़े पाया। 

साक्षी करीब 30 वर्षीय महिला थी, जो अपने बिजनेसमैन पति और 5 साल के बेटे के साथ उनके ठीक सामने वाले मकान में रहती थी। 

“ स्नेहा है घर में ? “ - विशाल के पीछे घर के भीतर दाँये बाएँ झांकते हुए मिसेज मेहता ने पूछा। 

स्नेहा अभी बस कुछ देर पहले ही आई थी। उसकी स्कूटी भी अभी तक बाहर ही खड़ी थी। जाहिर सी बात थी कि मिसेज मेहता ये कन्फर्म करके ही आई थी कि स्नेहा घर में ही है। फिर भी यह स्त्री सुलभ स्वभाव ही था कि उन्होंने ऐसा प्रश्न किया। 

“ हाँ। वो बस अभी ही आई है। “ - व्यवहार सुलभ मुस्कुराहट चेहरे पर लाते हुए विशाल बोला - “ आप आइये ना भीतर! “

विशाल दरवाजे से पीछे हटा। मिसेज मेहता घर में दाखिल हुई। 

“ अरे, मिसेज मेहता! आइये ना! कैसी है आप ? “ - औपचारिकतावश उठते हुए स्नेहा बोली। 

“ मैं ठीक हूँ। तुम बताओ। “ - साक्षी मेहता सोफे पर बैठते हुए बोली - “ तुम कैसी हो ? और सब कैसा चल रहा है ? “

“ सब ठीक ही है। “

“ सॉरी टू डिस्टर्ब यू! “ - मिसेज मेहता बोली - “ मुझे पता है कि तुम ऑफिस से बस अभी ही लौटी हो और डिनर की तैयारी भी करनी होगी तुमको! “

“ हाँ। आपकी दोनों ही बातें सही है मिसेज मेहता! “ - स्नेहा बोली - “ ये रोज के काम तो चलते ही रहते है। पर, आप कहाँ रोज रोज आती हो! “

मिसेज मेहता रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए बोली - “ हाँ। मैं रोज नहीं आ पाती और इसकी वजह ये नहीं है कि मुझे टाइम नहीं मिलता। मेरे पास तो बहुत टाइम होता है। लेकिन, तुम्हारे पास नहीं होता। पर, आज जो डील मैं तुम्हारे लिए लेकर आई हूँ ना, उसको अगर तुम मान लो, तो तुम्हारे पास टाइम ही टाइम होगा। “

“ डील ? “ - स्नेहा ने चकित स्वर में पूछा। 

“ हाँ, डील। “ - मिसेज मेहता बोली - “ और इसी की वजह से मुझे इस समय तुमको डिस्टर्ब करने आना पड़ा। “

इसी समय विशाल, जो काफी समय से वहाँ से गायब था, किचन से आता दिखा। उसके हाथ में कॉफी का कप था। 

सोफे के सामने की मेज पर उसने वह कप रख दिया। 

“ तुमने बेवजह तकलीफ की विशाल! “

“ इसमें तकलीफ कैसी मिसेज मेहता! “ - बोलते हुए विशाल अपने स्टडी रूम की ओर बढ़ गया। 

“ क्या बात है मिसेज मेहता! “ - स्नेहा ने उत्सुक होकर पूछा - “ ऐसी क्या डील लेकर आई हो, जिसे मान लेने पर मेरे पास टाइम ही टाइम होगा ? “

“ तुमको एक सर्वेंट की जरूरत थी ना ? “

“ हाँ। मैंने कई बार आपसे कहा भी है कि कोई सस्ती सी मेड मिल जाए जो रसोई संभालने के साथ साथ घर का बाकी काम भी करने को तैयार हो, तो मजा आ जाए। “ 

“ समझ लो स्नेहा! मेड की तुम्हारी तलाश पूरी हो गई। “

“ सच में ? “

“ हाँ और वो भी फ्री ऑफ कोस्ट! “

“ क्या! फ्री ऑफ कोस्ट! “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली - “ आप मजाक तो नहीं कर रही! यहाँ सस्ती मेड मिलना मुश्किल है और आप फ्री में काम करने वाली मेड की बात कर रही है ! “

“ नहीं, कोई मजाक नहीं है ये। “ - कॉफी सिप करते हुए मिसेज मेहता बोली - “ काम करने के लिए पैसा तो वह नहीं लेगी। लेकिन, उसकी एक शर्त है। “

“ शर्त ? “ 

“ हाँ। उसे रहने के लिए छत, पहनने को कपड़ा और दो वक्त के भोजन की दरकार है। इसके बदले जितना चाहो, उससे काम ले सकती हो। “

“ क्या ? “ - स्नेहा चौंकी - “ ये कैसी सस्ती मेड हुई ? इतनी डिमांड कौन करता है! “

“ कोई नहीं करता। “ - मिसेज मेहता बोली - “ लेकिन ये स्पेशल केस है। “

“ स्पेशल केस ? “

“ किस्मत की मारी लड़की है। बेघर, बेसहारा। और तुमको भी तो हर किसी की मदद करने में खुशी मिलती है। इसीलिए मुझे लगा, शायद तुम मान जाओगी। “

“ ओह! पर है कौन वो और अभी कहाँ रहती है ? “

“ मेरे घर पर। उसी के भरोसे तो बेटे को घर पर छोड़कर आई हूँ। “ - मिसेज मेहता बोली - “ और जहाँ तक रहने का सवाल है तो एक बेसहारा लड़की भला कहाँ रहेगी! यूँ ही भटकती फिर रही थी और भटकते हुए आज दोपहर में मेरे घर आ पहुँची और लगी काम माँगने। “ 

“ अच्छा! “ - स्नेहा बहुत ध्यान से सुन रही थी। 

“ और नहीं तो क्या! मेरे घर में भला काम ही कितना होता है! तो अपने यहाँ तो उसे मैं रख नहीं सकती थी। पर फिर मुझे तुम्हारा खयाल आया और मैंने सोचा कि शाम को ही तुमसे इस बारे में बात करती हूँ। “

“ ओह! “ - स्नेहा बोली - “ नाम क्या बताया आपने उसका ? “

“ बताया कहाँ है अभी तक ? “

“ नहीं बताया ? “ - दिमाग पर जोर देते हुए स्नेहा बोली - “ हाँ, तो नहीं बताया होगा। अब बता दीजिये। “

“ श्रद्धा। “ - मिसेज मेहता बोली

“ श्रद्धा ! “ - बोलते हुए स्नेहा सोचने लगी - “ ये नाम तो सुना हुआ सा लग रहा है।… कहाँ सुना था! “

“ क्या हुआ स्नेहा! “ - मिसेज मेहता बोली - “ किस सोच में डूब गई ? “

“ यह नाम मैंने सुना हुआ है। “

“ हाँ, तो सुना होगा कहीं। क्या बड़ी बात है! “ - मिसेज मेहता बोली - “ तुम तो रिपोर्टर हो। दिनभर में पचासों नाम सुना करती हो। इसी नाम की किसी और लड़की का नाम सुन लिया होगा। अब इस नाम पर किसी का कॉपीराइट तो नहीं , जो यह अपने आप में अकेला हो! “



गुरुवार, 14 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 16 विशाल और प्रतिमा को मिली नई जानकारी

 

डेली न्यूज़ एजेंसी के ऑफिस से निकालकर दक्ष और स्नेहा सीधे प्रताप म्युजियम पहुँचे। 

वहाँ पर म्युजियम के मैनेजर विकास सक्सेना ने सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए पत्थर के आदमी के बारे में उनको सारी जानकारी मुहैया करवाई। उसी जानकारी के आधार पर दक्ष और स्नेहा ने एक रिपोर्ट तैयार की और न्यूज़ के रूप में छपने के लिए प्रकाश आहूजा को मेल कर दी। 

इन सब कामों में शाम के 6 बज गए, जबकि उनका ऑफिस टाइम तो 5 बजे तक ही था। 

बहरहाल अब वे अपने अपने घर जाने के लिए फ्री थे। 

दक्ष और स्नेहा ने एक दूसरे से विदा ली और अपनी अपनी मंजिल की ओर चल पड़े। 

दक्ष ने अपनी बाइक संभाली और अपने निवास स्थान विनायक कॉलोनी की ओर चल पड़ा। ऑफिस से घर जाते समय तो वह रास्ते में पड़ने वाले नीलम रेस्टोरेंट में ही डिनर लेता था। लेकिन आज तो उसे महेश रोड़ से अपने घर की ओर जाना था, जहाँ से कि नीलम रेस्टोरेंट काफी दूर पड़ जाता था। इसीलिए रास्ते में पड़ने वाले किसी और ही रेस्टोरेंट में उसने डिनर लेने का मन बना लिया था। 

स्नेहा ने अपनी स्कूटी मानसरोवर कॉलोनी के रास्ते पर डाल दी। घर तक पहुँचने में उसे करीब एक घंटा लग गया। 

ठीक 7 बजे उसने स्कूटी मानसरोवर कॉलोनी में मकान नम्बर 85 के सामने पार्क की और मकान की कॉल बेल बजाई। 

जल्दी ही दरवाजा खुला। 

 “ आज तो काफी देर लगा दी आने में आपने। “ - स्नेहा को देखते ही उसका भाई विशाल बोला। 

वही विशाल, जो आर्ट्स कॉलेज में बी ए फाइनल ईयर का स्टूडेंट था। 

“ हाँ। “ - बुझे स्वर मे बोलकर स्नेहा भीतर आई और अपना हैंड बैग एक तरफ पटक कर सोफे पर ढेर होते हुए बोली - “ आज कुछ ज्यादा ही काम था ऑफिस में। “

“ सिर्फ ऑफिस में ? “ - विशाल जानता था कि स्नेहा एक रिपोर्टर थी और उसका काम महज ऑफिस की चारदीवारी के भीतर रहना नहीं था। फील्ड वर्क भी करना होता था। 

“ फील्ड में भी था। “ - स्नेहा जम्हाई लेते हुए बोली - “ और ऐसा था कि सुनोगे तो पैरों तले जमीन खिसक जायेगी। “

“ अच्छा! “ - आश्चर्य प्रकट करते हुए बोला विशाल - “ ऐसा क्या काम था ? “

“ बताती हूँ, बताती हूँ। “ - उठते हुए स्नेहा बोली - “ पहले कुछ तरोताजा तो हो लूँ। “ 

“ हाँ। वैसे भी आज आप बहुत थकी थकी सी लग रही हो। तब तक मैं आपके के लिए कॉफी बनाता हूँ। “ - बोलते हुए विशाल किचन की तरफ बढ़ गया और स्नेहा बाथरूम की तरफ। 

फेसवॉश से मुँह धोने के बाद स्नेहा ने अपनी मैली हो चुकी ड्रेस के स्थान पर आरामदायक सलवार सूट धारण किया, गुलाबी कलर का था। अब वह खुद को तरोताजा और नहाया हुआ महसूस कर रही थी। वैसे भी शाम के 7 बजे का समय नहाने के लिए उपयुक्त होता नहीं है। 

जब स्नेहा हॉल में लौटी तो विशाल को उसने सोफे पर बैठे पाया। सोफे के सामने ही मेज पर से कॉफी का कप उठाते हुए वह विशाल के सामने ही एक कुर्सी पर बैठ गई। 

“ अब बताओ। “ - विशाल उत्सुक होकर बोला - “ क्या किया आज ? “

स्नेहा ने सब कुछ कॉफी सिप करते हुए बड़े आराम से बताया, जिसे सुनकर विशाल न केवल आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा बल्कि कुछ हद तक परेशान भी हो उठा। 

“ इतना बड़ा रिस्क! “ - चकित होते हुए विशाल बोला - “ नहीं लेना चाहिए था। तुमको अगर कुछ हो जाता तो! “

“ क्राईम रिपोर्टिंग वैसे भी रिस्क का ही दूसरा नाम है। “ - स्नेहा बोली। 

“ वो तो ठीक है। “ - विशाल कुछ चिंतित स्वर में बोला - “ लेकिन इसके लिए जान जोखिम में डालने की क्या जरूरत थी! “

“ अरे, ऐसा नहीं करते तो इंटरव्यू नहीं हो पाता और इंटरव्यू नहीं हो पाता.. “

“ तो क्या हो जाता! जीवन से बढ़कर भी किसी चीज का महत्व होता है क्या ? “

“ होता है ना! “

“ क्या ? “

“ तुम भूल रहे हो, मैंने रिपोर्टिंग को करियर के रूप में क्यों चुना था! “

“ एडवेंचर के लिए! हर किसी की मदद करने के लिए! “

“ बिल्कुल। “ - मुस्कुराते हुए स्नेहा बोली - “ और वही तो कर रही हूँ मैं। यकीन मानो, मैं अपने काम से बहुत, बहुत, बहुत खुश हूँ। “

“ ठीक है। लेकिन आप अपना ध्यान रखा करो। “ - विशाल बोला - “ और हाँ, एडवेंचर से ध्यान आया उस उड़ने वाले इंसान के बारे में कुछ और बातें पता चली है। “

“ उड़ने वाले इंसान के बारे में ! “ - स्नेहा बोली। 

“ हाँ। उसका केस इंस्पेक्टर अभय माथुर देख रहे हैं। “

“ अभय माथुर! “ - हैरत भरे स्वर में बोली स्नेहा - “ लगता है पुलिस विभाग में और कोई जिम्मेदार पुलिस ऑफिसर बचा ही नहीं है। सारे विचित्र केस इंस्पेक्टर अभय के हिस्से ही आ रहे हैं। “

“ सारे विचित्र केस! “ - विशाल चौंका - “ आप कहना क्या चाह रही हो ? और भी कोई अजीब केस हाथ में लिया है क्या इंस्पेक्टर माथुर ने ? “

“ हाँ। और वह इतना अजीब है कि उसके सामने उड़ने वाले इंसान की गुत्थी तो कुछ भी नहीं है। “ - कहते हुए स्नेहा ने पत्थर वाले आदमी के बारे में म्युजियम के मैनेजर विकास सक्सेना से जो कुछ सुना था, सब बताया। 

“ क्या ? “ - बुरी तरह से चौंक पड़ा विशाल - “ ये तो बिल्कुल ही असम्भव है ! कोई इंसान पत्थर से बना कैसे हो सकता है! “

“ कल उड़ने वाला इंसान और आज पत्थर का आदमी! क्या पता, आगे और क्या कुछ देखना पड़ जाए! “ 

“ ये सब हो क्या रहा है! “

“ वैसे तुम कुछ नई जानकारी देने वाले थे, उस उड़ने वाले इंसान के बारे में ? “

“ हाँ। लेकिन पहले ये जान लो कि उस जानकारी का सोर्स क्या है। “

“ क्या है ? “

“ रॉकी। “

“ क्या ? “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली - “ रॉकी ! उससे कोई जानकारी निकलवाना तो बड़ी टेढी खीर है! आसानी से तो कुछ उगला नहीं होगा उसने। “

“ एक ग्रैंड पार्टी की डिमांड की उसने। “

“ फिर ? “

“ फिर क्या! आपके बारे में सोचकर मैंने हाँ कर दी। “

“ वो तो ठीक है, पर जानकारी कुछ काम की भी है या नहीं। “

“ अब ये तो आप ही तय करना। मुझे बस इतना पता है कि ये रॉकी नेचर का चाहे जैसा हो, आपकी पत्रकारिता के लिए है बड़े काम का। “

“ मानती हूँ। “

इसके बाद विशाल ने रॉकी से मिली जानकारी स्नेहा के साथ साझा की। 

“ ये तो बड़े काम की जानकारी निकली तूने! “ - खुश होते हुए स्नेहा बोली - “ लेकिन, अब रॉकी के लिए पार्टी का इंतजाम कैसे होगा ? “

“ चैरिटी से। “ - कुटिलता पूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए विशाल बोला। 






बुधवार, 13 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 15 विधायक का इंटरव्यू लेने में स्नेहा हुई सफल

 

तभी कहीं से उसे नल से पानी गिरने की आवाज सुनाई दी। 

ध्यान देने पर उसे समझ आया कि आवाज बाथरूम से आ रही है। 

“ ओह! तो वह उधर है। “ - खुद से ही बोलते हुए वह सोफा चेयर पर आराम से बैठ गया। 

कुछ ही समय बाद स्नेहा वहाँ आई। उसके हाथों में एक नैपकीन था, जिससे वह अपना मुँह व हाथ पोंछ रही थी। 

“ नहा ही लेती। “ - दक्ष उसकी ओर देखते हुए बोला। 

“ क्या ? “

“ हालत तो तुम्हारी नहाने जैसी ही हो रही है। “

“ हो तो रही है। पर, अभी इतना टाइम नहीं है। मैं तो बॉस को इस इंटरव्यू के बारे में बताने के लिए बहुत उत्सुक हूँ। “

उसने नैपकीन को सूखने के लिए कपड़ा स्टैंड पर डाला और वहीं रखी एक दूसरी सोफा चेयर पर बैठकर उसने रिलेक्स भरी लंबी साँस ली। 

“ मजा आ गया आज तो। “ - खुशी से चहकते हुए स्नेहा बोली - “ जिस एडवेंचर के लिए मैंने रिपोर्टिंग के फील्ड को करियर के रूप में चुना था, उसका असली अनुभव तो आज हुआ मुझे। “

“ ये तो कुछ भी नहीं था। क्राइम रिपोर्टिंग में इससे भी कई गुना ज्यादा एडवेंचर है। “ - कॉफी का कप स्नेहा की ओर बढ़ाते हुए दक्ष बोला - “ बस जज्बा होना चाहिए कुछ बड़ा करने का। “

“ सही कहा। “

“ वैसे कोई परेशानी तो नहीं हुई इंटरव्यू लेने में ? “ - मेज पर से कॉफी का दूसरा कप उठाकर सिप करते हुए दक्ष ने पूछा। 

“ ज्यादा तो कोई परेशानी नहीं आई। बस कुछ सवालों के जवाब टालने की कोशिश कर रहे थे विधायकजी। “ स्नेहा बोली - “ लेकिन मैंने उन्हें उनकी जान बचाने की दुहाई देकर जवाब देने के लिए मना लिया। “

“ बढ़िया। “ - खुश होते हुए दक्ष बोला - “ मतलब, हम कह सकते है कि विधायक जी का इंटरव्यू लेने का जो टास्क हमें मिला था, उसको हमने सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। “

“ हाँ। बिल्कुल। “ - स्नेहा बोली - “ लेकिन एक बात मुझे समझ नहीं आ रही। “ 

“ क्या ? “

“ म्युजियम में अगर हम विधायक जी का इंटरव्यू नहीं ले पाते तो उनके घर जाकर या और किसी जगह उनसे मिलकर भी ले सकते थे ना ? “

“ बिल्कुल ले सकते थे। “

“ फिर तुमने इतना बड़ा रिस्क क्यों लिया ? अगर पकड़े जाते तो… “

“ पकड़े गए क्या ? “

“ नहीं। लेकिन अगर पकड़े जाते तो… “

“ तो जो होता, देखा जाता। “ - दक्ष लापरवाही से बोला - “ वैसे भी, ये विधायक कोई बहुत अच्छा आदमी है नहीं। इसीलिए मुझे तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि यह आसानी से अपना इंटरव्यू देता। “

“ हाँ। ये बात तो मैंने भी नोट की। “ - कुछ सोचते हुए स्नेहा बोली। 

इसके बाद विधायक जी के इंटरव्यू पर विस्तार से चर्चा करने के बाद वे दोनों डेली न्यूज़ एजेंसी के ऑफिस की ओर रवाना हुए। 


•••••


“ क्या! “ - चकित स्वर में बोला प्रकाश आहूजा - “ वो इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गया! “

दक्ष और स्नेहा डेली न्यूज एजेंसी में बॉस के पर्सनल केबिन में उसके सामने विजिटर्स चेयर पर बैठे थे। 

“ आपको खुशी नहीं हुई सर ? “ - स्नेहा बोली।

“ अरे, नहीं नहीं। ऐसी कोई बात नहीं। मैं तो बहुत खुश हूँ। “ - अपने चेहरे पर से आश्चर्य के भाव छिपाते हुए बोला आहूजा - “ मैं तो बस यही सोच रहा था कि वहाँ इतनी भीड़ में और भी कई रिपोर्टर रहे होंगे। फिर भी उन्होंने हमें इंटरव्यू देने के लिए अपना कीमती समय दिया! “

“ किस्मत अच्छी थी सर हमारी। “ - दक्ष बोला। 

“ हो सकता है। “ - एकाएक ही आहूजा के चेहरे पर कठोरता पूर्ण भाव आए - “ लेकिन तुम लोगों ने कोई बहुत बड़ा तीर भी नहीं मार लिया। “

दक्ष और स्नेहा दोनों चुप रहे। 

“ तुम लोगों को म्युजियम के उद्घाटन की न्यूज़ भी कवर करनी चाहिए थी। “ - आहूजा नाराजगी भरे स्वर में बोला। 

“ हमने की सर! “ - स्नेहा बोली। 

“ सच में! “ - आहूजा बोला - “ रिपोर्ट दिखाओ मुझे। “

स्नेहा ने रिपोर्ट दिखाई। 

आहूजा के चेहरे पर पराजय के भाव प्रकट हुए। 

“ तुम लोगों ने पत्थर के आदमी की न्यूज़ कवर की ? “ - आहूजा ने पूछा। 

“ पत्थर का आदमी ? “ - दोनों के ही मुँह से निकला। 

“ मतलब नहीं की! “ - आहूजा तनिक अप्रसन्न भाव से बोला - “ करनी चाहिए थी। “

“ सर! आप क्या बोल रहे है ? मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा है। “ - स्नेहा बोली। 

“ समझ में आता। अगर तुममें से एक ही विधायक बंसल का इंटरव्यू लेता और दूसरा म्युजियम में उपस्थित रहता। “

दक्ष और स्नेहा ने सवालिया नजरों से आहूजा की तरफ देखा। 

“ अब ऐसे मूर्खों की तरह मेरी तरफ देखना बंद करो और जाकर म्युजियम में जो घटना हुई, उसकी डिटेल निकालो। “ - आहूजा कठोर स्वर में बोला - “ विधायक के इंटरव्यू से ज्यादा महत्व उस घटना का है। उस पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करो, ताकि कल के एडीशन में हम उसे छाप सके। “

बॉस का संकेत समझकर दक्ष और स्नेहा बाहर आये। 

“ मैं कसम खाकर कह सकती हूँ कि भगवान भी आ जाए ना, तो इस खडूस को संतुष्ट नहीं कर सकता। “ - काफी देर से अपने गुस्से को दबाये बैठी स्नेहा बोली - “ इस आदमी को हमारी मेहनत बिल्कुल नहीं दिखती। “

“ इग्नोर करो। “ - दक्ष लापरवाही से बोला। 

“ उसकी बातों से तो ऐसा लग रहा था जैसे कि उसे पूरा विश्वास था कि हम विधायक जी का इंटरव्यू ले ही नहीं पाएंगे! “

“ हाँ। क्योंकि बॉस विधायक जी की फितरत को जानते है। उन्हें पहले से ही पता था कि विधायक बंसल हमारे जैसे छोटे पत्रकारों को अपने पास भी नहीं फटकने देगा। “

“ और तुमको भी ये बात पता थी! “ - आश्चर्य के साथ स्नेहा बोली। 

दक्ष मुस्कुराया। 

“ और इसीलिए तुमने इतना बड़ा रिस्क लिया! क्योंकि तुम जानते थे कि विधायक जी को इंटरव्यू देने के लिए राजी करने का बस वही एक रास्ता था! “

“ देर से ही सही, आखिर तुम समझ ही गई कि विधायक को शूट करने का नाटक करने की मुख्य वजह क्या थी! “

“ उफ! मैं भूल कैसे गई। “ - स्नेहा बोली - “ मैं तुम्हें कॉलेज टाइम से ही जानती हूँ। जो कार्य हाथ में लेते हो, उसे पूरा करके ही रहते हो। चाहे फिर उसके लिए कितना ही बड़ा रिस्क क्यों न लेना पड़े। “

“ क्या कर सकते है। आदत से मजबूर जो ठहरा। “

“ लेकिन ये पत्थर के आदमी की क्या बात है ? “ - स्नेहा बोली - “ क्या घटित हुआ होगा म्युजियम में ? और तुमने तो कहा था कि विधायक को शूट करने का नाटक करने के बाद तुम गए थे म्युजियम में ? “

“ हाँ। गया तो था। “ - दक्ष बोला - “ लेकिन उस समय तो सब ठीक ही चल रहा था। ऐसी तो कोई घटना घटित नहीं हुई थी, जो कि जिक्र के काबिल हो। “

“ तो ? “ 

“ मेरे वहाँ से आ जाने के बाद कुछ हुआ हो सकता है। “

“ क्या हुआ होगा ? “ 

“ अब ये तो म्युजियम जाकर ही पता लगेगा। “



मंगलवार, 12 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 14 दक्ष के घर आई स्नेहा

 

म्युजियम के प्रदर्शनी हॉल में सब तरफ तलाश करने पर भी पुलिस को म्युजियम का कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं दिया। 

“ लगता है, उस पत्थर वाले आदमी से डरकर बाकी लोगों के साथ साथ यहाँ के सारे कर्मचारी भी भाग गये हैं, “ - एक पुलिस कर्मी बोला। 

“ कैसे गैर जिम्मेदार कर्मचारियों की नियुक्ति की है सरकार ने इस म्युजियम में। जरा सा खतरा देखा नहीं कि भाग खड़े हुए! “ - आवेशित स्वर में बोला इंस्पेक्टर अभय - “ और एक हम पुलिस वाले है कि दिन रात जान हथेली पर लिए खतरों से दो दो हाथ होते रहते हैं। “

“ भागे नहीं है सर! “ - अचानक ही न जाने कहाँ से म्युजियम का एक कर्मचारी सामने आते हुए बोला - “ अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए हम यहीं रुके हुए थे। “

“ हम जान चुके थे कि उस विचित्र प्राणी का मुकाबला करना हमारे वश से बाहर की बात है। “ - म्युजियम का एक दूसरा कर्मचारी बोला - “ इसीलिए उससे बचने के लिए हम यहीं एक कमरे छिपे हुए थे। “

“ अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आप लोग कमरे में छिपकर बैठे हुए थे ! “ - एक पुलिस कर्मचारी बोला तो बाकी सभी पुलिस वाले खिल्ली उड़ाते हुए हँसने लगे। 

“ हाँ। हम लोग कमरे में छिपकर ही अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। “ - एकाएक ही गंभीर स्वर में बोलते हुए म्युजियम का मैनेजर विकास सक्सेना सामने आया - “ और इस तरह छिपकर बैठने की योजना मैंने ही बनाई थी। क्योंकि यहाँ का मैनेजर होने के नाते इस म्युजियम की जिम्मेदारी के साथ साथ यहाँ के कर्मचारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है। और आपको यह भूलना नहीं चाहिए कि इस तरह कमरे में छिपकर बैठने से ही मुझे पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाने का अवसर मिल पाया था। “

“ आपने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है सक्सेना जी। “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ अब मेहरबानी करके हमें घटना की पूरी जानकारी भी दीजिए। आया कहाँ से था वह पत्थर का आदमी ? “

जवाब में मैनेजर ने इंस्पेक्टर अभय को भगवान नृसिंह की प्रतिमा दिखाते हुए पत्थर के उस आदमी के प्रकट होने की सारी कहानी सुना दी। 

“ क्या! “ - वह घटना इंस्पेक्टर के लिए विश्व आठवाँ अजूबा थी - “ आप कहना चाह रहे है कि वह विचित्र प्राणी भगवान नृसिंह की गोद में लेटी हुई हिरण्यकशिपु की प्रतिमा फोड़कर प्रकट हुआ था ? “

“ सुरक्षा की दृष्टि से इस म्युजियम की सभी दुर्लभ वस्तुयें काँच के ऐसे मजबूत शोकेस में रखी हुई है, जिनको आसानी से तोड़ पाना हर किसी के वश की बात नहीं है। भगवान नृसिंह और हिरण्यकशिपु की प्रतिमा काँच के जिस शोकेस में रखी हुई थी, उसी में वह पत्थर का विचित्र प्राणी दिखाई दिया था और ऐसा तब हुआ था, जब अचानक ही रहस्यमयी तरीके से हिरण्यकशिपु की प्रतिमा फूट गई और शीशे के पूरे केबिन में धूल का गुबार सा छा गया। जब धूल का गुबार हटा, तो वह पत्थर का अजीब आदमी दिखाई दिया और फिर सबके देखते - देखते काँच का केबिन तोड़कर वह बाहर आ गया। “ - मैनेजर बोला - “ अब यह सब देखकर तो यही लगता है कि वह आदमी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में से ही बाहर निकला होगा। “

“ आपकी बात को सच मान भी लिया जाए तो नया सवाल यह उठता है कि पत्थर का वह आदमी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में आया कहाँ से! “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले। 

“ बात तो सच है ही। क्योंकि इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शी एक, दो नहीं पूरे छह लोग है, जो उस समय शोकेस से नृसिंह भगवान की प्रतिमा को देख रहे थे। “ - मैनेजर बोला - “ बाकी हिरणकशिपु की प्रतिमा में वह अजीब आदमी आया कहाँ से, यह तो शोध का विषय है। “

“ ओके , मिस्टर विकास सक्सेना! “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ सहयोग के लिए शुक्रिया। “

इसके बाद इंस्पेक्टर अभय माथुर पुलिस फोर्स के साथ वहाँ से चले गए।


•••••


दक्ष म्युजियम से सीधा घर पहुँचा। 

उसे यह जानने की उत्सुकता थी कि स्नेहा विधायक जगमोहन बंसल का इंटरव्यू लेने में किस हद तक सफल हुई! 

इंटरव्यू लेने के बाद स्नेहा सीधे दक्ष के घर ही आने वाली थी। 

घर का मैन गेट खोलकर वह भीतर दाखिल हुआ ही था कि उसे अपने पीछे टैक्सी के इंजन की आवाज सुनाई दी। 

पीछे घूमकर देखने पर उसे टैक्सी रुकते हुए और उसमें से स्नेहा बाहर निकलते हुए दिखाई दी। 

टैक्सी वाले को रवाना करके स्नेहा दक्ष की ओर बढ़ी। 

उसके चेहरे की खुशी बता रही थी कि वह कामयाब होकर लौटी थी। 

“ क्या बात है! तुमको देखकर तो ऐसा लग रहा है , जैसे कोई बहुत बड़ा किला फतह करके आई हो! “ - दक्ष भी खुशी जाहिर करते हुए बोला। 

“ और नहीं तो क्या! “ - गर्वीली मुस्कान के साथ बोली स्नेहा - “ गढ़ जीतकर आई हूँ। “

“ बधाई फिर तो। “ 

“ बस यूँ ही ? बाहर खड़े खड़े ? “

“ अंदर चलते हैं ना! “ - अब तक गेट पर ही खड़ा दक्ष बोला - “ कॉफी के साथ कबूल करना बधाई। “

“ बिल्कुल। “ 

दोनों ही भीतर दाखिल हुए। 

स्नेहा ने उस समय रेड टी शर्ट और ब्लू जींस धारण की हुई थी। उसके लंबे काले बाल काफी अस्त व्यस्त थे। उसका सिर और कपड़े धूल में सने हुए थे। म्युजियम में भी उसने यही पोशाक धारण की हुई थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उस समय उन पर धूल मिट्टी नहीं लगी हुई थी। लेकिन, तब दक्ष का सारा ध्यान विधायक जी का इंटरव्यू लेने पर लगा हुआ था। इसीलिए उस समय स्नेहा पर वह इतना ध्यान नहीं दे पाया था। या फिर कह सकते है कि यह एक तरह का मानवीय स्वभाव या मानवीय कमजोरी ही है कि एक युवक जब किसी युवती को अकेला पाता है, ऐसी जगह जहाँ उन दो के अलावा तीसरा कोई न हो, तब वह उस पर अतिरिक्त ध्यान देने लगता है। 

इस समय शायद दक्ष के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था। 

दक्ष इंटरव्यू के बारे में स्नेहा से पूछने ही वाला था कि उसका ध्यान स्नेहा के चेहरे की ओर गया। वह काफी थकी हुई सी लग रही थी। 

“ तुम बैठो, मैं कॉफी बनाकर लाता हूँ। “ - कहते हुए दक्ष किचन की ओर बढ़ा। 

स्नेहा वहीं हॉल में रखे एक सोफा चेयर पर बैठ गई। 

कुछ ही देर में दक्ष कॉफी के साथ हाजिर हुआ तो उसने स्नेहा को नदारद पाया। 

“ अब ये कहाँ चली गई ? “ - कॉफी से भरे दोनों कप उसने सोफा चेयर के सामने रखी टेबल पर रखे और स्नेहा की तलाश में पूरे हॉल में अपनी नजरें घुमाई। 

स्नेहा उसे दिखाई नहीं दी। 


सोमवार, 11 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 13 पत्थर के आदमी का पुलिस से सामना


 “ यह गड़बड़ कैसे हो गई ? “ - पत्थर का वह आदमी जैसे खुद से ही बात कर रहा था - “ मुझे मिली सूचना के अनुसार, जिस प्रतिमा को विदीर्ण करके मुझे यहाँ प्रकट होना था, उसे किसी एकांत और निर्जन स्थान पर होना चाहिये था। लेकिन यह तो ऐसे स्थान पर रखी हुई थी, जो न तो एकांत में था और न ही निर्जन!... इसका एक ही अर्थ हो सकता है, किसी ने इस प्रतिमा को इसके मूल स्थान से हटाया है। किसने किया ये दुःसाहस! वह जो कोई भी है, सजा पाने का हकदार है। क्योंकि उसकी वजह से ही मुझे इतने सारे लोगों के बीच प्रकट होना पड़ा है और इस तरह इतने लोगों के द्वारा मुझे देखा जाना मेरे खुफिया मिशन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। “

पत्थर के उस आदमी के डर से कुछ ही पलों में लगभग सारा म्युजियम ही खाली हो गया। 

बिना किसी तोड़ फोड़ के पत्थर का वह आदमी किसी एकांत और निर्जन स्थान में चले जाना चाहता था। वह धीरे धीरे चलते हुए म्युजियम के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहा था। 

ठीक इसी समय म्युजियम के बाहर पुलिस की 6 - 7 गाड़ियां आकर रुकी। एकाएक ही म्युजियम पर टूट पड़ी इस मुसीबत को देखकर किसी कर्मचारी ने पुलिस को फोन कर दिया था। 

पुलिस जीप में से सबसे पहले इंस्पेक्टर अभय माथुर बाहर निकले, जो कि आर्ट्स कॉलेज के स्टूडेंट राकेश माथुर उर्फ रॉकी के पिता थे और उड़ने वाले इंसान के केस पर भी काम कर रहे थे। 

पत्थर के आदमी जैसे विचित्र प्राणी के बारे में पता चलने के बाद पूरी की पूरी पुलिस फोर्स ही उससे निपटने के लिए भेजी गई थी। ये संख्या में करीब 40 थे। 

पुलिस की गाड़ियों से सशस्त्र वर्दीधारी पुलिसकर्मी बाहर आये और तेजी से दौड़कर म्युजियम में दाखिल हो गए। 

यह वही पल था, जबकि पत्थर का वह आदमी किसी एकांत और निर्जन स्थान की तलाश में म्युजियम से बाहर निकलने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहा था। 

एंट्री गेट पर ही पुलिस और उस विचित्र प्राणी का आमना सामना हो गया। 

ब्राउन कलर के पत्थर के छोटे छोटे टुकड़ों से जुड़कर बने उस अजीब प्राणी को देखकर एक पल के लिए तो पुलिस वाले ठिठक कर रह गए। लेकिन अगले ही पल एक दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने एक साथ ही अपनी राईफलो का रुख पत्थर के उस विचित्र प्राणी की ओर किया और लगातार फायर करने लगे। फायरिंग जो एक बार शुरू हुई तो तब तक नहीं रुकी, जब तक कि उनकी बुलेट खत्म नहीं हो गई।  

गोलियां दागने से उठे धुऐं ने उस प्राणी को पूरी तरह से ढँक लिया था। पुलिसकर्मियों को पूरा भरोसा था कि जब धुआँ छँटेगा तो उन्हें वह प्राणी फर्श पर गिरा पड़ा मिलेगा। इसी उम्मीद में कुछ देर वे धुआँ छँटने का इंतजार करते रहे और कुछ समय बाद जब धुआँ छँटा तो यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही कि पत्थर का वह अजीब प्राणी अपने पैरों पर सही सलामत खड़ा था। 

“ यह कैसे हो सकता है!” - एक पुलिसकर्मी बोला। 

“ असम्भव है ये तो! “ - दूसरा बोला। 

“ नकली गोलियां तो नहीं चलाई थी ना हमने ? “ - एक दूसरा पुलिसकर्मी बोला। 

“ गोलियां नकली नहीं हो सकती। “ - इंस्पेक्टर अभय माथुर बोले - “ यह प्राणी सच में पत्थर का ही बना हुआ है! “

“ लेकिन, सर! फायरिंग से पत्थर भी तो टूट जाते हैं। यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ। “ - किसी अन्य पुलिसकर्मी ने कहा - “ अब हम क्या करें सर ? “

इससे पहले कि इंस्पेक्टर अभय कोई जवाब दे पाते, पत्थर का वह आदमी अपने कदम पीछे हटाने लगा। 

“ यह तो पीछे हट रहा है। लगता है हमसे डर गया। “ - कोई पुलिस वाला बोला। 

जवाब में इंस्पेक्टर माथुर ने गुस्से से उसकी ओर देखा, तो सहमकर वह दूसरी तरफ देखने लगा। 

उधर पत्थर का वह आदमी मुड़कर वापस म्युजियम के अंदर जाने लगा। पुलिस कर्मी भी धीरे धीरे उसके पीछे चलने लगे। कुछ आगे जाने पर एक तरफ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। वह सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपरी मंजिल पर जाने लगा। 

“ यह ऊपर क्यों जा रहा है ? आखिर करना क्या चाहता है यह ? “ - एक पुलिस वाले ने कहा। 

“ पता नहीं। बस चुपचाप इसके पीछे चलते रहो। “ - बोलते हुए इंस्पेक्टर माथुर मारे सस्पेंस के उसके पीछे चलते रहे। 

उनका अनुमान था कि वह प्राणी जहाँ से आया था, वहीं जा रहा था। 

पत्थर वाले आदमी के पीछे चलते हुए वे सब ऊपरी मंजिल पर पहुँचें। लेकिन, वह अभी भी रुका नहीं। वह दूसरी मंजिल की सीढियाँ भी चढ़ने लगा। 

सीढियाँ चढ़ते हुए वह टेरिस पर पहुँचा। टेरिस पर चलते हुए उसने चारदिवारी पर खड़े होकर नीचे छलाँग लगा दी। 

किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसा करेगा! 

पीछा कर रहे सारे पुलिस कर्मियों ने चार दिवारी से नीचे की ओर देखा। छलाँग लगाकर वह प्राणी बड़े आराम से नीचे जमीन पर अपने पैरों के बल पर खड़ा था। 

फिर अपने कदम आगे की ओर बढ़ाते हुए वह वहाँ से जाने लगा। 

टेरिस से छलाँग लगाने के बाद जमीन पर जिस जगह वह खड़ा हुआ था, उस जगह पर उसके पैरों के दबाव से दो बड़े गड्ढे हो गए थे और जमीन में थोड़ा कंपन भी हुआ था, जैसे कोई भूकंप आया हो। 

“ यह तो कोई दानव लगता है सर! “ - एक पुलिस कर्मी बोला। 

“ लेकिन यह बिना कोई तोड़ फोड़ किये, बिना किसी को कोई नुकसान पहुंचाए चला कैसे गया! “ - कोई आश्चर्य प्रकट करता हुआ बोला। 

“ हाँ और इसके यहाँ आने का मकसद क्या था ? “ - कोई दूसरा पुलिस कर्मी बोला। 

“ अब तो लगता है यह जंगल की तरफ जा रहा है! “ - कोई तीसरा पुलिस वाला बोला। 

“ यह भी उस उड़ने वाले इंसान की तरह हमारे एक पहेली बन गया है। “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ इसने तो किसी को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया। फिर महज इसके विशालकाय शरीर को देखकर हम इसे राक्षस कैसे कह दें ! “

“ लेकिन, यह आया कहाँ से होगा ? “ - किसी ने सवाल किया। 

“ इसका जवाब तो म्युजियम के कर्मचारी ही दे सकते हैं। “ - इंस्पेक्टर अभय माथुर बोले। 

इसके बाद वे सभी नीचे की ओर चले गए। ग्राउंड फ्लोर पर, जहाँ म्युजियम के हाॅल में वस्तुओं की प्रदर्शनी लगी थी, वहाँ पहुंचकर वे म्युजियम के कर्मचारियों को तलाश करने लगे। 




रविवार, 10 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 12 पत्थर का आदमी

 

विधायक जगमोहन बंसल पर फायर करने के बाद दक्ष पेड़ों के झुरमुट के भीतर बहुत अंदर तक जाकर 2 - 3 किलोमीटर तक दौड़ता चला गया। इसके बाद वह पेड़ों की ओट से निकालकर मुख्य सड़क पर आया। 

शहर से बाहर होने की वजह से आम दिनों में यह इलाका ज्यादातर सुनसान ही रहता था। इस तरफ बहुत ही कम वाहनों की आवाजाही हुआ करती थी। लेकिन आज का दिन बाकी दिनों की तरह आम न होकर बेहद खास था। आज का दिन ऐतिहासिक दिन होने जा रहा था, क्योंकि शहर को पहली बार एक म्युजियम की सौगात मिली थी। पुरानी वस्तुओं के प्रति आकर्षण किसमें नहीं होता ! म्युजियम में लगी एक से एक पुरानी दुर्लभ वस्तुओं की नुमाइश देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा था। यही वजह थी कि अक्सर सुनसान रहने वाले इस इलाके में आज वाहनों की आवाजाही लगातार जारी थी। बाइक, स्कूटी, कार, टैक्सी और सिटी बस में सवार होकर लोग म्युजियम में लगी प्रदर्शनी देखने जा रहे थे। 

मुख्य सड़क पर आकर दक्ष ने हाथ देकर एक सिटी बस रुकवाई और उसमें सवार हो गया। बस जल्दी ही प्रताप म्युजियम के सामने रुकी और बाकी यात्रियों के साथ ही दक्ष भी बस से उतरकर म्युजियम की ओर बढ़ चला। 

दक्ष ऐसे बिहेव कर रहा था, जैसे वह पहली बार ही आया हो। 

कई सारे लोग थे वहाँ। उनके साथ वह म्युजियम के भीतर प्रविष्ट हुआ। म्युजियम की इमारत काफी विस्तार लिए हुए थी, जिसमें एक बड़े से गेट से एंट्री थी। 

अंदर जाते ही एक विशाल हॉल था और इसी हाॅल में प्रदर्शनी की सारी वस्तुयें सजी हुई थी। 

“ ये तो बहुत दुर्लभ और पुरानी वस्तुयें लगती है। “ दक्ष ने वहीं रिसेप्शन पर बैठे एक व्यक्ति से पूछा। 

“ हाँ, लग रही है, क्योंकि ये है। “

“ बढ़िया! मजा आयेगा फिर तो देखने में। “

“ जरूर सर! “

प्रदर्शनी में 16वीं सदी की पेंटिंग्स, पुरानी मूर्तियाँ, पुराने जमाने की मुद्राएँ, आभूषण और ऐसी ही कई एंटिक चीजें काँच के शोकेस में रखी हुई थी। 

दक्ष इन वस्तुओं के फोटो क्लिक करना चाहता था। लेकिन इसकी अनुमति नहीं थी। 

म्युजियम में अच्छी खासी भीड़ थी। पूरा म्युजियम अच्छी तरह से घूम लेने के बाद दक्ष ने वहाँ से जाने का मन बनाया। 

“ पता नहीं, स्नेहा विधायक जी का इंटरव्यू ले भी पाई होगी या नहीं! “ - दक्ष को यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी। 

म्युजियम से बाहर आकर दक्ष ने अपनी बाइक संभाली और वह घर की ओर चल पड़ा। 

काश, दक्ष कुछ देर और म्युजियम में रुक जाता तो विश्व के आठवें आश्चर्य को देखने का सौभाग्य मिलने के साथ साथ डेली न्यूज़ के लिए उसे एक लाइव न्यूज भी मिल जाती! 

दक्ष के म्युजियम से बाहर निकलते ही वहाँ ऐसा दृश्य दिखाई दिया, जिसकी कल्पना तक करना संभव नहीं था। 

सब लोग दुर्लभ वस्तुओं को देख रहे थे। उनके बारे में बातें भी कर रहे थे। 

म्युजियम में पुरानी तस्वीरों, शिलालेखों के साथ ही कई सारी सदियों पुरानी और दुर्लभ प्रतिमाएँ भी थी। शिव, विष्णु, कृष्ण आदि के साथ ही प्राचीन राजाओं की भी तरह तरह की प्रतिमाएँ म्युजियम में काँच के शोकेस में सजी थी। 

लोग इन प्रतिमाओं को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे। एक शोकेस में भगवान नृसिंह की काफी बड़ी प्रतिमा थी, जिसमें वे हिरण्यकशिपु का पेट चिर रहे थे। 

“ कितनी बढ़िया प्रतिमा है। “ - एक व्यक्ति बोला। 

“ नक्काशी भी शानदार की हुई है। “ - दूसरा बोला। 

भगवान नृसिंह की प्रतिमा के पास चार - पांच व्यक्ति खड़े बातें कर रहे थे। 

इसी समय शोकेस के भीतर अचानक ही एक धमाका सा हुआ। 

उस धमाके के बाद शोकेस में धूल का गुबार सा उठा, साथ ही शोकेस के काँच से कुछ टकराने की आवाज भी आई। 

वहाँ खड़े लोग कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से ये क्या हो रहा है! 

लेकिन, जब शोकेस के भीतर से धूल छंटी तो जो कुछ उन्होंने देखा उस पर आसानी से यकीन तो किया ही नहीं जा सकता था। 

भगवान नृसिंह की प्रतिमा तो बिल्कुल ठीक हालत में थी। लेकिन, उनकी जांघों पर गिरी पड़ी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा का नामोनिशां तक मिट चुका था। क्योंकि वह प्रतिमा टूटकर हजारों टुकड़ों में बँट चुकी थी। उसी प्रतिमा के कुछ टुकड़े शोकेस के काँच से टकराये थे। लेकिन प्रतिमा मिट्टी की बनी हुई थी , इसीलिए काँच को कोई नुकसान नहीं पहुँचा था।

शोकेस के भीतर पता नहीं कहाँ से पत्थर की एक प्रतिमा प्रकट हो गई थी! वह ब्राउन कलर की थी और ऐसा लग रहा था जैसे कि वह भूरे रंग के पत्थर के छोटे - छोटे टुकड़ों को किसी पदार्थ की सहायता से जोड़कर बनाई गई हो। 

“ यह क्या हो रहा है! हिरण्यकशिपु की मूर्ति अचानक फूट कैसे गई ? “ - वहाँ खड़ा एक व्यक्ति बोला। 

“ भगवान नृसिंह की प्रतिमा तो बिल्कुल सही सलामत है। ये कैसा चमत्कार है! “ - दूसरा व्यक्ति बोला। 

“ और… और ये पत्थर की मूर्ति कहाँ से आ गई ? “ - कोई और बोला। 

“ यह न तो किसी राक्षस की मूर्ति है, न देवता की। यह तो किसी मानव की प्रतिमा लग रही है! “

“ मैं प्रतिमा नहीं हूँ। “ - शोकेस के भीतर प्रकट हुई पत्थर की प्रतिमा अचानक भारी भरकम आवाज में बोलने लगी - “ मैं एक इंसान हूँ, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि तुम सब हो। “

“ य… यह क्या! ये मूर्ति बोल कैसे रही है! “ - चीखते हुए एक व्यक्ति वहाँ से भागा। 

“ मूर्ति नहीं बोल रही है। मूर्ति बोल ही नहीं सकती। मैं कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं हूँ। मैं भी तुम लोगों की तरह एक इंसान ही हूँ। “ - भारी आवाज में बोलते हुए पत्थर की उस प्रतिमा ने गुस्से में आकर शोकेस के काँच पर मुष्ठि प्रहार किया। 

एक जोरदार आवाज के साथ शोकेस का काँच टूटकर बिखर गया और पत्थर की वह प्रतिमा शोकेस से आजाद हो गई, जिसे अब प्रतिमा कहना अनुचित था। 

“ भागो! ये तो कोई राक्षस है! “ - चिल्लाते हुए लोग म्युजियम से बाहर की ओर भागने लगे। 

म्युजियम के दूसरे हिस्सों में अलग अलग दुर्लभ वस्तुओं को देख रहे बाकी लोगों का ध्यान भी शोकेस के टूटने और पत्थर के उस अजीबोगरीब आदमी की आवाज से उसकी तरफ आकर्षित हुआ। 

कुछ लोगों को चिल्लाते और भागते देख म्युजियम में उपस्थित बाकी लोग भी डरकर बाहर की तरफ भागने लगे। 

“ तुम सब लोग भाग क्यों रहे हो ? मेरा यकीन करो, मैं एक इंसान हूँ। बिल्कुल तुम लोगों की तरह। “ - पत्थर का वह आदमी चिल्लाते हुए बोला। 




शनिवार, 9 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 11 - स्नेहा ने बचाई विधायक की जान


 “ अरे, तुम तो बहुत डर गई लगती हो। “ - मुस्कुराते हुए दक्ष बोला।

“ तुम बात ही ऐसी कर रहे हो! “ - गुस्से में बोल रही थी स्नेहा - “ अब अगर एक और बार तुमने विधायक जी को शूट करने वाली बात बोली तो मैं सीधे सौ नम्बर डायल करूँगी। “ - अपने शोल्डर पर लटके पर्स में से मोबाइल निकालते हुए स्नेहा बोली।

“ शूट तो मैं करूँगा विधायक जी को। “ - दक्ष बोला - “ क्योंकि अकेले में उनका इंटरव्यू लेने का यही एकमात्र उपाय है। “

“ कैसी मूर्खों जैसी बातें कर रहे हो! “ - स्नेहा आवेशपूर्ण स्वर में बोली - “ उनको शूट करके कैसे तुम उनका इंटरव्यू लोगे ? “

“ इंटरव्यू तो तुम लोगी। मैं तो बस शूट करूँगा। “

स्नेहा ने सवालिया नजरों से दक्ष की ओर देखा। 

“ नहीं समझी ? “

स्नेहा ने नकारात्मक भाव से सिर हिलाया। 

दक्ष ने अपनी योजना स्नेहा को समझाई। 

“ क्या! “ - पूरी बात सुनकर स्नेहा बोली - “ सोच लो दक्ष! ये सब करके कहीं हम किसी बड़ी मुसीबत में ना फंस जाये। “

“ कुछ नहीं होगा। भरोसा रखो मुझ पर। “ आश्वासनपूर्ण भाव से दक्ष बोला - “ और अगर कुछ हुआ भी तो मुझे होगा, क्योंकि शूट मुझे करना है। तुम्हें कुछ नही होने वाला। “

“ ठीक है। “ - कहते हुए स्नेहा अकेली ही म्युजियम की ओर बढ़ गई। 

दक्ष अपनी रिवॉल्वर के साथ एक पेड़ के पीछे छिप गया। धीमी गति से चलते हुए स्नेहा म्युजियम के पास पहुँची। लेकिन वहाँ लोगों की भीड़ में शामिल होने की जगह वह म्युजियम से थोड़ा दूर उस जगह रुक गई, जहाँ विधायक जी और उनके समर्थकों के वाहन खड़े थे। 

करीब दस मिनट बाद उद्घाटन की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद विधायक जगमोहन बंसल ने वहाँ उपस्थित लोगों से विदा ली। 

इसके बाद वे समर्थको से घिरे अपनी कार की ओर बढ़े। 

अब दक्ष के एक्शन लेने का समय आ चुका था। उसने अपने एक हाथ में रिवॉल्वर संभाल रखी थी। दूसरे हाथ से उसने जींस की पॉकेट से अपना रुमाल निकाला और उससे रिवॉल्वर को ढँक दिया, जिससे कि कोई गलती से भी उसकी तरफ देख ले, तो उसे दक्ष के हाथ में केवल रुमाल ही दिखाई दे, न कि उसके नीचे छिपी रिवॉल्वर। 

दक्ष ने रिवॉल्वर को अपने दोनों हाथों में थाम रखा था। 

रुमाल से ढँकी रिवॉल्वर का रुख उसने विधायक की ओर किया। उसकी अंगुली ने ट्रिगर पर हल्का सा दबाव लगाया और ट्रिगर दबा दिया। 

अपने समर्थकों के साथ आगे बढ़ते हुए विधायक जी जैसे ही अपनी कार के नजदीक पहुँचे, मुस्तैदी से आगे बढ़कर ड्राईवर ने कार की पिछली सीट का दरवाजा खोला। 

कार में बैठने से ठीक पहले विधायक जी के समर्थक वहाँ से हट गए। उनके आस पास अब कोई भीड़ नहीं थी।

यही सही समय था। म्युजियम के सामने, पेड़ों के झुरमुट के पीछे से दक्ष ने रुमाल से ढँकी रिवॉल्वर को अपने हाथों में मजबूती से पकडा, विधायक को निशाना बनाया, अंगुली से ट्रिगर पर दबाव लगाया और कार में बैठने के लिए विधायक जैसे ही थोड़ा झुका, दक्ष ने ट्रिगर दबा दिया। 

रिवॉल्वर में साइलेंसर लगा होने से उसके चलने की आवाज तो नहीं आई। लेकिन गोली लगने से कहीं शीशे के चरमराकर टूटने की आवाज जरूर आई थी। 

असल में, हुआ यह था कि दक्ष के फायर करते समय विधायक जी थोड़ा झुककर कार में बैठने की कोशिश कर ही रहे थे कि पीछे से दौड़कर आते हुए स्नेहा ने उनको तेजी से बाहर की ओर खींचा और उनके साथ ही जमीन पर गिर पड़ी। गोली कार के खुले दरवाजे से अंदर गई और उसके दूसरे बंद दरवाजे के शीशे में सुराख बनाते हुए बाहर निकल गई। 

विधायक जी को तो कुछ समझ ही नहीं आया। लेकिन उनकी कार का ड्राईवर, जो अभी तक कार के बाहर ही खड़ा था और उनकी कार के आगे पीछे की कारों में जो उनकी पार्टी के लोग थे, वे विधायक जी को जमीन पर गिरते हुए देखकर उनकी ओर दौड़े। 

ड्राईवर ने पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर सबसे पहले विधायक जी को उठने में मदद की। 

“ आप ठीक तो है सर! “ ड्राईवर के साथ ही कार्यकर्ता भी बोले। 

“ मैं ठीक हूँ। “ - मिट्टी में सन चुके अपने सफेद कुर्ते से धूल झाड़ते हुए विधायक बंसल बोले - “ उस लड़की की उठने में मदद करो, जिसने मेरी जान बचाई है। “

विधायक जी के कहने भर की देर थी कि सारे के सारे कार्यकर्ता स्नेहा की मदद करने को दौड़े। लेकिन उनके कुछ करने से पहले ही स्नेहा अपने आप उठ खड़ी हुई। 

“ तुम ठीक तो हो ? “ - स्नेहा की तरफ बढ़ते हुए विधायक जी ने पूछा। 

“ मैं ठीक हूँ सर! “ - स्नेहा बोली - “ माफी चाहूँगी, मजबूरी में मुझे आपके साथ ऐसा व्यवहार करना पड़ा। “

“ अरे! तुम माफी क्यों मांग रही हो! “ - चकित स्वर में विधायक बंसल बोले - “ मुझे तो तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहिए। आखिर तुमने अपनी सतर्कता से जान पर खेलकर मेरा जीवन बचाया है। “

“ यह तो मेरा फर्ज था सर! आखिर आप हमारे शहर के विधायक है। “

“ वैसे तुम्हें कैसे पता चला कि मुझ पर हमला होने वाला है ? “

“ मुझे वहाँ “ - स्नेहा ने सामने पेड़ों के झुरमुट की ओर संकेत करते हुए कहा - “ उस तरफ एक रिवॉल्वर दिखाई दी थी, जिसे किसी ने अपने हाथों से पकड़ रखा था और उसका रुख आपकी तरफ ही था। “

स्नेहा की बात सुनते ही वहाँ उपस्थित सारे तेजी से

पेड़ों के झुरमुट की तरफ दौड़े। कुछ देर तक वे वहाँ पर उस शख्स को ढूँढने की कोशिश करते रहे, जिसने विधायक जी को शूट करने की कोशिश की थी। लेकिन वहाँ पर कोई था ही कहाँ जो मिलता! अपना काम खत्म करने के बाद उसने वहाँ न रुकना था, न वो रुका। 

अंततः थक हार कर सब वापिस विधायक जी के पास आये। 

“ वहाँ पर तो कोई भी नहीं है। “ - आते ही एक कार्यकर्ता बोला। 

“ फायर करने के बाद ही गायब हो गया होगा वो। “ - स्नेहा बोली। 

इसके बाद सारे कार्यकर्ता कार में बैठे। विधायक जी भी अपनी कार की ओर बढे। 

“ ये कैसा एहसान फरामोश इंसान है! “ - स्नेहा मन ही मन खुद से बोली - “ अपनी जान बचाने की एवज में महज शुक्रिया अदा करके ही पतली गली से निकल रहा है ये तो! इसका इंटरव्यू नहीं ले पायी तो सारी मेहनत बेकार चली जायेगी।… रोक स्नेहा! विधायक जी को ऐसे मत जाने दे। तुझे इंटरव्यू लेना है इनका। “

स्नेहा आवाज लगाते हुए विधायक बंसल के पीछे दौड़ी - “ एक मिनट सर! “

आवाज सुनकर कार की ओर बढ़ते विधायक जी के कदम ठिठके। उन्होंने मुड़कर स्नेहा की ओर देखा। 

अब तक स्नेहा दौड़कर उनके पास आ चुकी थी। 

“ सर! आप शहर के विधायक है। एक तरह से वी आई पी पर्सन है। “ - बड़ी ही चालाकी से भूमिका बनाते हुए बोल रही थी स्नेहा - “ तभी तो आप यहाँ इस म्युजियम के उद्घाटन के लिए आये। “

“ तो ? “ - सवालिया नजरों से स्नेहा की तरफ देखते हुए विधायक बोले। 

“ मैं एक मीडिया पर्सन हूँ। डेली न्यूज़ एजेंसी में रिपोर्टर हूँ। “ - स्नेहा अब धीरे धीरे मतलब की बात पर आ रही थी - “ यहाँ म्युजियम के उद्घाटन की न्यूज़ को कवर करने के लिए आई थी। “ 

“ गुड। अच्छी बात है। तो तुम रिपोर्टर हो! तुम्हारी इतनी ज्यादा सतर्कता और चुस्ती फुर्ती देखकर मुझे तो लगा था कि शायद तुम पुलिस में हो। “

“ एक ही बात है सर! हम पत्रकारों को भी पुलिस वालों की ही तरह दिन रात भागदौड़ करनी पड़ती है। “

“ मेरा समय कीमती है, इसीलिए अब मतलब की बात पर आओ। “ 

विधायक जी की बात सुनकर स्नेहा हैरत में पड़ गई। अभी थोड़ी देर पहले जिस इंसान को उसने मरने से बचाया था, उसके इस तरह से बात करने पर उसे आश्चर्य होना स्वाभाविक ही था, फिर भले ही वो शख्स शहर का विधायक क्या देश का राष्टृपति ही क्यों न हो। 

“ सर! न्यूज़ तो मैंने कवर कर ली। “ - अपनी आवाज में शहद सी मिठास घोलते हुए स्नेहा बोली - “ अब लगे हाथ अगर आप अपना इंटरव्यू भी दे दें, तो हमारे अखबार को चार चाँद लग जायेंगे। “

पता नहीं यह स्नेहा की शहद सी मीठी बोली का जादू था या उसके मुँह से सुनी अपनी प्रशंसा का कमाल कि वह इंटरव्यू देने के लिए राजी हो गया। 

“ ठीक है। “ - विधायक बंसल बोले - “ लेकिन जल्दी ही मुझे कहीं पहुंचना है। मेरे साथ कार में चलो , रास्ते में ही ले लेना इंटरव्यू। “ 

“ थैंक यू सर! “ - बोलते हुए स्नेहा सोच रही थी - “ अच्छा हुआ, जो कल ही मैंने इंटरव्यू में विधायक जी से पूछे जाने वाले प्रश्नों का रट्टा मार लिया था। क्योंकि इनकी नजरों में तो इंटरव्यू बिना तैयारी के अचानक ही हो रहा है। ऐसे में इनके सामने उस पर्चे को तो निकाल भी नहीं सकती थी। “

विधायक बंसल और स्नेहा के कार में बैठने के बाद ड्राईवर ने कार स्टार्ट कर दी। 



रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 21 यश का लव लेटर

  श्रेया ने डायरी में लिखना शुरू किया - “ इस समय शाम के 5 बजकर 20 मिनट हो रहे हैं। बाहर रिमझिम रिमझिम बारिश हो रही है। एक तो पहले ही वह उड़...