मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 14

मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 14

सुबह 7 बजे साकेत की आंख खुली।

दिमाग में रिचा मर्डर केस से संबंधित कई सवाल उठ रहे थे।

काॅफी पीते हुए एकाएक ही साकेत के मस्तिष्क में एक बेहद खौफनाक खयाल आया - " कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरी इन्वेस्टीगेशन गलत दिशा में हो रही है ! "

साकेत एक पल के लिये कांप उठा , उसने एक बार फिर से सारी घटनाओं पर विचार किया।

" रिचा उस रात आकाश के साथ थी और कत्ल उसका काॅलोनी के आसपास ही हुआ। हो सकता है कि काॅलोनी में रहने वाले ही किसी शख्स ने ऐसा किया हो !..यह काम अगर काॅलेज के किसी शख्स का होता तो उसे रिचा का कत्ल करने के लिये उसकी काॅलोनी में आने की क्या जरूरत थी ? यह काम तो वह काॅलेज में या शहर के किसी और हिस्से में भी कर सकता था , फिर काॅलोनी में ही क्यों ? और वेलेंटाइन की रात ?...कातिल ने वेलेंटाइन की रात ही क्यों चुनी ? " - साकेत को अब एक नयी दिशा में इन्वेस्टीगेशन करने की जरूरत महसूस हो रही थी।

जल्दी से तैयार होकर साकेत अपनी डिटेक्टिव एजेंसी पहुंचा।

हमेशा की तरह बरखा ने मुसकराकर ' हैलो सर ! ' बोला।

लेकिन साकेत ने कोई जवाब नहीं दिया।

वह सीधा अपने कैबिन में गया और मेज़ की दराज से उसने एक मोबाइल और सिमकार्ड निकालकर एक नंबर डायल किया।

" हैलो सर !...गुड माॅर्निंग सर ! " - फोन के उस तरफ से कोई बोला।

" ' आदर्श नगर काॅलोनी और उसके आसपास के इलाके का कोई भी घर रिचा के कातिल का निवास स्थान हो सकता है ' - इस तथ्य के आधार पर उस इलाके में रहने वाले एक - एक शख्स का बायोडाटा और रिचा के साथ उसका संबंध पता करो। " - साकेत आदेशात्मक स्वर में बोला। 

" सर ! इसमें तो बहुत समय लग जायेगा। " - फोन के उस तरफ से एक विनम्र स्वर उभरा।

" शाॅर्ट तरीका अपनाओ। "

" ओके सर ! " 

साकेत ने फोन कट किया और सिमकार्ड निकालकर , मोबाइल और सिमकार्ड दोनों ही दराज के हवाले किये।

इसके बाद साकेत ने मेज़ पर रखे लैंडलाईन फोन का रिसीवर उठाया - " बरखा ! कैबिन में आओ। " 

कुछ ही देर बाद बरखा वहां उपस्थित हुई।

" बैठो। "

बरखा कुर्सी पर बैठी।

" इस ऑफिस में तुम्हारा काम क्या है ? " 

" रिसेप्सनिस्ट हूँ सर ! " - बरखा बोली - " तो जाहिर है कि इस ऑफिस में आने वाले लोगों का लेखा - जोखा रखती हूँ। "

" पिछले तीन दिनों से कितने लोग आये हैं ऑफिस में ? "

" कोई नहीं आया सर !...ऑफिस के नियमित स्टाफ के अलावा कोई नहीं आया। "

" मतलब ऑफिस में तुम्हारे पास कोई काम नहीं है। "

" आप कहना क्या चाहते हैं सर ? " 

" पूरे दिन यहाँ बैठे - बैठे बोर नहीं हो जाती ? "

" हो तो जाती हूँ , लेकिन कर भी क्या सकते हैं। "

" कुछ तो कर ही सकते हैं। "

" क्या सर ? "

" एक छोटा सा गेम खेलते हैं। "

" गेम ? "

" हाँ , गेम खेलना पसंद नहीं है ? "

" बचपन में बहुत खेलती थी। जब से होश संभाला है , लाइफ के स्ट्रगल ने मुझे ही खिलौना बनाकर रख दिया। 

" बरखा ! तुम बातें बहुत बड़ी - बडी करती हो। बहरहाल , मैं बचपन वाले गेम की नहीं , बड़े लोगों के गेम की ही बात कर रहा हूँ। "

" कैसा गेम सर ? "

" वेलेंटाइन की रात एक लड़की अपने बाॅयफ्रेंड के साथ डिनर पर जाती है। लडका उसे उसके घर ड्राॅप करता है और उसी रात लड़की का कत्ल हो जाता है।...मजे की बात तो ये है कि लड़की को ड्राॅप किये जाने और उसके कत्ल किये जाने का वक्त एक ही है , रात 12 बजे।...तुम बताओ बरखा ! कातिल कौन है ? " 

" आपने कहा था , हम गेम खेलने वाले हैं। पर , आप तो अपने केस के बारे में बात करने लगे हैं। "

" यह गेम ही है , वक्त गुजारने के लिये , तुम्हारा भी , मेरा भी।...अब बताओ , कातिल कौन है ? "

" मुझे कोई आइडिया नहीं है सर ! "

" बिना आइडिया के बताओ। "

" मुझे तो इस केस के बारे में कुछ भी नहीं पता , फिर मैं कैसे…" 

" बरखा ! " - साकेत मुसकराते हुए बोला - " यह एक गेम है , तुम्हें सिर्फ तुक्का लगाना है। "

" सर ! आप तुक्के से कातिल को पकडेंगे ? "

" हर्ज ही क्या है ? "

" मुझे माफ करिये सर ! मैं नहीं जानती। " 

" चलो , तुम्हें कुछ क्लू देता हूँ। " - साकेत फिर शुरू हो गया - " काॅलेज में से कोई उसका कातिल हो सकता है , उसकी काॅलोनी का कोई शख्स कातिल हो सकता है , उदयपुर शहर का कोई शख्स उसका कातिल हो सकता है।"

" शहर के बाहर का कोई व्यक्ति कातिल हो सकता है। " - बरखा बोली।

" तुम्हें ऐसा लगता है ? " - साकेत ने पूछा।

" सर ! कातिल तो कहीं से भी हो सकता है ! "

" बात तो सही है। " - साकेत बोला - " एक बार ठीक से सोचकर बताओ , कातिल कौन हो सकता है ? " 

" सर ! अब मजाक बहुत हो गया। मुझे तो बस इतना ही समझ आता है कि नफरत वही कर सकता है जो प्यार करने का साहस कर सकता हो और मार वही सकता है जो जीने की वजह दे सकता हो। " 

साकेत मुसकराया - " तुम्हारी इस व्याख्या के हिसाब से तो कातिल आकाश ठहरता है। "

" तो कातिल पकड़ा गया , केस साॅल्वड। "

" लेकिन अगर आकाश को रिचा का कत्ल करना होता , तो वह तो कहीं और भी कर सकता था। उसे रिचा की काॅलोनी में ही उसका कत्ल करने की क्या जरूरत थी ? "

" कहीं और कत्ल करता तो शक उसी पर जाता। "

" ब्रिलियंट ! "

" थैंक्स सर ! " - बरखा बोली - " तो केस साॅल्व हो गया ना ? "

" हाँ , तुम्हारी तरफ से तो केस क्लोज हो ही गया। " - साकेत मुसकराते हुए बोला - " अब मैं चलता हूँ। "

" कहाँ सर ? " 

" कातिल की सूचना देने , पुलिस स्टेशन। "

" आपने सच में मान लिया है कि कातिल आकाश ही है ! " - बरखा शाॅक्ड थी।

" हाँ और गवाही तुम दोगी। "

" मैं कोई गवाही नहीं देने वाली सर ! " - बरखा थोड़ा घबराते हुए बोली - " मैंने तो बस यूँ ही मजाक में बोल दिया था। "

" तुमने नहीं , मैंने बोला था और हाँ , सिर्फ मजाक में। " - साकेत बोला - " लेकिन जा मैं पुलिस स्टेशन ही रहा हूँ। "

" पुलिस स्टेशन क्यों सर ? "

" केस के बारे में कुछ और जानकारी हासिल करने। "

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