बीए फाईनल ईयर के सभी स्टूडेंट्स की तलाशी ली जा रही थी।
" मैडम ! यह तलाशी क्यों ली जा रही है ? " - एक स्टूडेंट ने पूछा।
" प्रिंसिपल सर का आॅर्डर है। "
किसी की कुछ समझ में नहीं आया , लेकिन प्रिंसिपल सर का आॅर्डर था तो कुछ पूछने की जरूरत थी भी नहीं। सब जानते थे कि जो भी वजह होगी , जल्द ही सामने आ जायेगी।
एक - एक स्टूडेंट का बैग खंगाला जाने लगा।
कुछ ही समय बाद एक बैग में से नीले कलर का एक रिंग बाॅक्स बाकी चीजों के साथ मेज पर गिरा।
तलाशी लेने वाले ने रिंग बाॅक्स खोलकर देखा और मारे हैरत के चीख पड़ा - " मिल गयी !...गोल्डन रिंग मिल गयी। "
पूरी क्लास की नजरें आवाज़ की दिशा में घूम गयी।
चपरासी अरविंद के हाथ में रिंग बाॅक्स था और जिस बैग में से वह बरामद हुआ था , वह बैग आकाश का था।
" आकाश ?...तो तुमने चोरी की थी मेरी रिंग ! " - पलक आश्चर्य के साथ चौंकी।
" नहीं , पलक ! मुझे नहीं पता कि यह रिंग बाॅक्स मेरे बैग में कैसे आया ! " - आकाश ने सफाई देते हुए कहा।
पूरी क्लास को समझ आ चुका था कि तलाशी की वजह पलक की खोई हुई गोल्डन रिंग थी , जो अब आकाश के बैग से बरामद हो चुकी थी।
" बनो मत , आकाश ! " - प्रोफेसर आभा बोली - " रिंग तुम्हारे बैग में से बरामद हुई है , साबित हो चुका है कि रिंग तुमने ही चोरी की थी। "
सबकी नजरें आकाश पर टिकी थी।
आकाश सिर झुकाये खड़ा था।
चोर पकड़ा गया था।
कुछ ही समय बाद प्रोफेसर आभा , पलक , आकाश और चपरासी अरविंद प्रिंसिपल रूम में मौजूद थे।
" यह रही रिंग। " कहते हुए प्रोफेसर आभा ने रिंग प्रिंसिपल की मेज़ पर रखी।
प्रिंसिपल ने रिंग उठायी और ध्यान से देखते हुए कहा - " है तो शुद्ध सोने की।...देखो पलक ! यही है तुम्हारी रिंग ? "
" जी सर ! " - रिंग हाथ में लेकर उसे देखते हुए पलक बोली।
" किसके पास से मिली है यह ? "
" आकाश के बैग से बरामद हुई है सर ! " - प्रोफेसर आभा बोली।
प्रिंसिपल चौबीसा ने आकाश की ओर देखा। वह सिर झुकाये खड़ा था , जो कि किसी भी अपराधी की पहली निशानी होती है।
" आकाश ! " - प्रिंसिपल तीव्र स्वर में बोले - " तुम काॅलेज में यही सब करने आते हो ?...इस काॅलेज में विद्यार्जन का नहीं , चोरी का कार्य होता है और इसका सबसे अच्छा उदाहरण तुम जैसे स्टूडेंट है ! "
" ऐसा नहीं है सर ! " - काफी मुश्किल से बोल पाया आकाश।
" फिर कैसा है मिस्टर आकाश ? "
" मैने चोरी नहीं की है सर। "
" बकवास बन्द करो ! " - प्रिंसिपल चीखते हुए बोले - " जो हरकत तुमने की है , वो इस काॅलेज की छवि खराब करने के लिये पर्याप्त है। इसीलिये तुम्हें काॅलेज से निकाला जाता है। "
" ऐसा मत करिये सर ! " - घबराते हुए आकाश बोला - " मेरा कैरियर खत्म हो जायेगा। "
" यह सब तुम्हें चोरी करने से पहले सोचना चाहिये था। "
" जाने दीजिये सर ! " - एकाएक ही पलक बीच में बोल उठी - " मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी की भी लाइफ बरबाद हो। "
" लेकिन पलक ! जो काम आकाश ने किया है…"
" प्लीज सर ! "
" ठीक है। " - प्रिंसिपल ने कहा - " आकाश ! पलक के कहने पर तुम्हें माफ कर रहा हूँ। लेकिन आगे से ऐसी कोई हरकत की तो तुम्हारे लिये बहुत बुरा होगा। अब दफा हो जाओ यहाँ से। "
आकाश प्रिंसिपल रूम से बाहर निकला।
बाहर आते ही उसे रिचा दिखायी दी।
" रिचा मैं…" - आकाश कुछ कहना चाह रहा था , लेकिन वह अपनी बात पूरी कर पाता , इससे पहले ही ' चटाक् ' की आवाज़ के साथ रिचा की पांचों अंगुलियां उसके गाल पर छप चुकी थी।
" तुमसे ये उम्मीद नहीं थी आकाश ! " - रिचा गुस्से में चीखी - " मैं तुम्हें डिसेन्ट लडका समझती थी , लेकिन आज तुमने साबित कर दिया कि तुमसे ज्यादा गिरा हुआ इंसान कोई और हो ही नहीं सकता।...मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि तुम जैसे गिरे हुए इंसान से मैंने प्यार किया। "
" मैने रिंग नहीं चुराई। " - आकाश धीमे से बोला।
" मुझे कुछ नहीं सुनना। " - रिचा चिल्लायी - " हमारे बीच जो कुछ भी था , तुम्हारी इस एक गिरी हुई हरकत से सब खत्म हो गया। "
" रिचा ! मेरी बात सुनो। " - आकाश चीखता रह गया।
रिचा ने बात नहीं सुनी।
वह चली गयी।
आकाश को लग रहा था कि रिचा उससे दूर जा रही थी , बहुत दूर , हमेशा - हमेशा के लिये।
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