शनिवार, 24 अगस्त 2024

हिप्नोटाइज - थ्रिलर उपन्यास ( भाग - 7 )

  




दिव्या ने अमर को काॅल किया।

" हैलो! "

" हैलो अमर! मैं दिव्या बोल रही हूँ। "

" कैसी हो ? "

" ठीक हूँ। " - कहते हुए दिव्या बोली  - " अमर ! तुमसे मिलना था। क्या अभी तुम मेरे घर आ सकते हो ? "

" हाँ । "

□  □  □

कुछ ही देर में अमर दिव्या के सामने था।

वे दोनों इस समय दिव्या के घर के बाहर खड़े थे।

" अमर! " - दिव्या बोली  - " आधी अधूरी सच्चाई हमेशा घातक होती है। "

" तुम कहना क्या चाहती हो ? "

" कुछ कन्फ्यूजन है, तुमने जो अपने दोस्तों के बारे में बताया; हो सकता है कि वो पूरी तरह से सच न हो! "

" हो ही नहीं सकता। " - अमर जोर से बोला  - " मैंने जो कुछ भी तुम्हें बताया, वो बिल्कुल सच है और वैसे, तुम ये सब क्यों पूछ रही हो ? "

" अमर! एक बार, सिर्फ एक बार जो कुछ भी तुम्हारे साथ हुआ, उस पर फिर से विचार करो, हो सकता है कि तुम्हें कोई गलतफहमी हुई हो और दोबारा विचार करने से तुम्हारी गलतफहमी दूर हो जाये। "

" हो सकता है कि तुम सही हो। " - अमर कुछ सोचते हुए बोला  - " लेकिन, मेरे कुछ विचार करने या न करने से क्या फर्क पड़ेगा ? "

" अकेले विचार करने से फर्क नहीं पडेगा, लेकिन साथ मिलकर विचार करने से जरुर फर्क पड़ेगा। "

" साथ ? " - अमर चौंक उठा  - " किसके साथ ? "

" अपने दोस्तों के साथ, जो अंदर बैठे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। "

" क्या ? कौन दोस्त ? "

" सचिन, सनी और भारती। "

अमर की आंखें आश्चर्य से चौड़ी होती चली गयी ।

" वे सब यहाँ क्या कर रहे हैं ? " - उसने पूछा।

" उन्हे मैंने बुलाया है ताकि आपसी गलतफहमियां दूर हो सके। बस एक बार अपने दोस्तों से मिल लो और सारे गिले- शिकवे दूर कर लो। "

" दिव्या! तुम बहुत अच्छी हो। " - अमर बोला - " पर, मैं नहीं। "

" क्या मतलब ? "

" मुझे किसी से नहीं मिलना। " - कहते हुए अमर वहां से जाने लगा।

" रुको अमर! " - दिव्या ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकना चाहा- " मेरी खातिर सिर्फ एक बार अपने दोस्तों से मिल लो। "

अमर विवश था।

कोई ओर होता, तो अमर लापरवाही से वहां से जा चुका होता। लेकिन यह दिव्या थी, जो दोस्त के रुप में अमर के मन पर छा चुकी थी।

" ठीक है। " - अमर ने कहा  - " पर मेरा दावा है कि इससे कुछ भी फायदा नहीं होगा। "

" देखते है। "

दिव्या और अमर के भीतर दाखिल होते ही सब एकदम से खड़े हो गये।



" ये सब दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं है, मैं यहाँ पर सिर्फ दिव्या की वजह से आया हूँ। " - कहते हुए अमर बडी शान से वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया।


अमर के बात करने के तरीके और सोफे पर बैठने की शैली उसे रॉयल साबित कर रही थी। यह स्वाभाविक भी था, आखिर वह शहर के एक बहुत बड़े व्यापारी पंकज जडेजा का इकलौता बेटा जो था।


लेकिन दिव्या को यह सब थोड़ा अजीब लगा, क्योंकि जब से वह अमर से मिली थी , तब से उसे अमर का व्यवहार सामान्य-सा ही लगा। हाॅस्पिटल में  , राॅयल कैसीनो में  - हर कहीं अमर का व्यवहार ऐसा रहा, जैसे वह एक आम इंसान हो, बिल्कुल साधारण। लेकिन, यहाँ पर तो वह ऐसे बिहेव कर रहा था जैसे वह कोई बहुत महत्वपूर्ण शख्सियत हो!


" तुम्हारा रूडली बिहेव अभी तक चेंज नहीं हुआ ? " - सनी बोला।


" तुम इतना कैसे बदल गये अमर ? " - भारती उदास स्वर में बोली - " हम पूरे एक साल बाद मिल रहे हैं, फिर भी तुम्हारे मन में हमारे लिए नफरत बिल्कुल वैसी ही है, जैसी पहले थी।"


" मैं यहाँ बेकार की बातें सुनने नहीं आया हूँ। " - अमर थोड़ा तेज स्वर में बोला।


" तुम कभी किसी की सुनते कहाँ हो ? " - सचिन बोला  - " बस खुद ही कुछ भी सोचने और मानने लगते हो। तुम्हारी सोच, तुम्हारी इमेजिनेशन, तुम्हारे फैसले - सब कुछ इकतरफा होते हैं; सिर्फ इकतरफा। "


" यह सच नहीं है ! " - अमर चीखा।


" यही सच है। " - सचिन एक - एक शब्द पर जोर देते हुए बोला।


" सब चुप हो जाओ। " - एकाएक दिव्या वहीं रखी एक कुर्सी पर बैठते हुए बोली  - " पहले मेरी बात सुनो। "


" हम तो सुन लेंगे, लेकिन अमर.... " - सनी अमर की ओर देखते हुए बोला  - " अमर कभी किसी की नहीं सुनता। "


" अमर भी सुनेगा। " - दिव्या ने कहा  - " सब कुछ सही हो जायेगा, बस मैं जो भी बोल रही हूँ, उस पर भरोसा करना होगा। " 


" ठीक है। " - सबने एक स्वर में कहा।


अब दिव्या ने बोलना शुरू किया  - " बहुत सीधी-सी बात है, अमर की रिकार्डिंग सबने सुनी है। " 


" रिकार्डिंग ? " - अमर अचानक ही चौंक उठा  - " कैसी रिकाॅर्डिंग ? "


" अमर ! तुमने अपने और अपने दोस्तों के बारे में जो कुछ भी मुझे बताया था, वो सब मैंने रिकॉर्ड कर लिया था। " - दिव्या ने बताया।


" लेकिन, तुमने ऐसा क्यों किया ? " 


" वो सब मैं बाद में बताऊंगी, पहले मुझे अपनी बात कह लेने दो। " 


अमर दिव्या पर भरोसा करता था, जानता था कि दिव्या जो करेगी, उसके फायदे के लिये ही करेगी; इसीलिये वह शांत रहा।


दिव्या आगे बोली  - " अमर का कहना है कि तुम तीनों ने इसे धोखा दिया, तुम्हारी दोस्ती सच्ची नहीं है। जबकि तुम लोगों का कहना है कि अमर झूठ बोल रहा है। " 


" हाँ। यही बात है। " - सनी, सचिन और भारती  एक स्वर में बोले।


अब दिव्या ने अमर की ओर देखते हुए पूछा  - " तुम्हें कुछ कहना है ? "


" नहीं। " - अमर आवेश में आकर बोला - " मुझे जो कहना था, वो मैं कह चुका, अब मुझे कुछ नहीं कहना। "


" तो तुमने अपने और अपने दोस्तों के बारे में जो कुछ कहा, वो सब सच था ? " 


" सौ फीसदी सच! " - अमर की आंखों से स्पष्ट था कि वह सच बोल रहा था।


" अमर ! " - दिव्या बोली - " किसी एक ने कहा होता कि तुम झूठ बोल रहे हो, तो एक पल के लिये मैं मान भी लेती कि तुम झूठे नहीं हो; लेकिन यहाँ तो तीन  - तीन शख्स तुम्हें झूठा ठहरा रहे हैं और शख्स भी कौन ?....तुम्हारे दोस्त! दुनिया के सबसे अच्छे दोस्त! "


" मै झूठ नहीं बोल रहा हूँ। " 


" तो ये तीनों झूठ बोल रहे हैं ? " 


" हाँ, ये तीनों न केवल झूठे, बल्कि धोखेबाज भी है, स्वार्थी भी और मतलबी भी ! " - अमर गुस्से से चिल्लाया। 


" चुप हो जाओ अमर ! " - चीखते हुए भारती की रुलाई फूट पड़ी  - " बहुत बोल चुके हो तुम ! तुम इतने क्यों बदल गये अमर  ! कैसे बदल गये ?...किसे मतलबी, स्वार्थी और धोखेबाज कह रहे हो ?...उन दोस्तों को, जिन्होंने हमेशा तुम्हारी मदद की। जब - जब भी तुम्हें भावनात्मक सपोर्ट की जरूरत थी, तब हमेशा ही हम तुम्हारे साथ थे। तुम मांगकर तो देखते, तुम्हारे लिये जान तक दे सकते थे। "


भारती के आंसुओं का अमर के मन पर कोई असर नहीं हुआ।

उसने उपेक्षा से कहा  - " जो फीजिक्स के नोट्स तक नहीं दे सकती, वो जान देने की बात करती है ! " 


" बन्द करो अपनी बकवास अमर ! बन्द करो। " - भारती रोते हुए बोली  - " तुमने कभी मांगे ही नहीं मुझसे नोट्स, तो मैं कैसे देती ? " 


सचिन भी बोला - " मुझसे भी तुमने कभी मेरा लकी बेट नहीं मांगा अमर! पता नहीं तुम्हें इतना झूठ बोलने की लत लग कैसे गयी ! " 


" और मुझसे मेरी पुरानी बाइक तुम मांगोगे ही क्यों ? " - तुमने ये भी झूठ ही कहा है। " 


वाह ! क्या बात है ! " - अमर व्यंग्य से मुसकराते हुए बोला - " देख रही हो दिव्या ! जिन घटनाओं ने मेरे इन दोस्तों को मतलबी साबित कर दिया, जिन घटनाओं ने मेरी खुशनुमा जिन्दगी को तबाह कर दिया; उन्हीं घटनाओं को मेरा झूठ बता रहे हैं ये सब ! मेरी कल्पना....मेरी ही बनायी मनगढ़ंत कहानी! मैं खुद ही झूठी कहानी बनाकर अपनी ही जिन्दगी को तबाह करूंगा ! कोई इंसान खुद को तबाह करने के लिये झूठ बोलेगा ! जिन दोस्तों के बिना जिसे सांस लेने में तकलीफ होती हो, वह बेवजह ही उनसे दूर हो जायेगा ! दिव्या ! तुम्हें लगता है ऐसा कभी हो सकता है !

" नहीं। " - दिव्या गंभीर स्वर में बोली - " ऐसा कभी नहीं हो सकता। " 

" हम भी मानते हैं कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। " - सनी बोला - " लेकिन , यह भी सच है कि अमर जिन घटनाओं का जिक्र कर रहा है , वो कभी हुई ही नहीं। " 

" क्या मतलब ? " - दिव्या ने पूछा।

" मै बताता हूँ। " - कहते हुए सचिन बोला - " जिस अमर को हम जानते थे , वो कभी झूठ बोल ही नहीं सकता था , आज अमर झूठ बोल रहा है। जरुर अमर के साथ कुछ गड़बड़ है। " 

" प्लीज! अब तुम लोग चुप हो जाओ। " - अचानक से दिव्या बोली - " रवि ! तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे ? " 

" मैं ? " - रवि चकित होकर बोला - " मैं क्या बोलूं ?.....मैं कुछ समझ नहीं पा रहा। अमर झूठ नहीं बोल सकता , अमर के बेस्ट फ्रेंड सचिन , सनी और भारती झूठे हो नहीं सकते। मुझे…." - कहते - कहते रवि अचानक रुक गया। 

" क्या हुआ रवि ? " - दिव्या ने पूछा - " तुम रुक क्यों गये ? "

" मुझे….मुझे लगता है कि इनमें से कोई भी झूठ नहीं बोल रहा। " - रवि ने अपनी बात पूरी की। 

" क्या ? " - सभी बुरी तरह से चौंके। 

" हाँ। " - रवि बोला - " ना अमर झूठ बोल सकता है , ना भारती , ना सचिन , ना सनी। मुझे लगता है , कोई गलतफहमी हुई है; कोई बहुत बडी गलतफहमी ! "

" कैसी गलतफहमी ? " - दिव्या ने संशय भरे स्वर में पूछा।

" पता नहीं , लेकिन कुछ तो है। "

सब , कुछ देर के लिये सोच में पड गये।

" एक उपाय है। " - एकाएक दिव्या बोली - " सच पता लगाने का एक उपाय है। " 

" क्या ? " - सबने एक स्वर में पूछा। 

" डॉक्टर प्रभाकर। " - दिव्या ने बताया।

" डॉक्टर प्रभाकर ? " - रवि चौंका।

" वे जयपुर के बेस्ट हिप्नोथेरेपिस्ट है। "

" अब ये हिप्नोथेरेपिस्ट क्या बला है ? " - सचिन ने पूछा। 

" लाइव डिटेक्टर मशीन तो  सिर्फ आदमी के झूठ को पकडती है , लेकिन एक हिप्नोथेरेपिस्ट, हिप्नोटिज्म के जरिये व्यक्ति के अवचेतन में दबी पडी ऐसी बातों को भी बाहर निकाल देता है , जिन्हें वह व्यक्ति खुद भी भूल चुका हो। " - दिव्या ने बताया - " इस विधि में आदमी सिर्फ सच बोलता है। " 

" तो तुम्हें अब भी लगता है कि हममें से कोई झूठ बोल रहा है ? "  - सनी ने पूछा। 

" नहीं , बात यह नहीं है। " - दिव्या बोली - " आप सबको हिप्नोटाइज करके वह गलतफहमी दूर की जा सकती है , जिसकी वजह से आप लोगों के बीच में इतनी दूरियाँ बढ़ी हैं। " 

" ठीक है , हम तैयार हैं। " - भारती बोली।

" और अमर! तुम ? " - दिव्या ने पूछा। 

" मुझे कोई प्राॅब्लम नहीं है। " 

" ओके , तो मैं डाॅक्टर प्रभाकर को काॅल करके उनसे मिलने का वक्त तय कर लेती हूँ। " - कहते हुए दिव्या ने इंटरनेट से डाॅक्टर प्रभाकर का फोन नंबर ढूंढ निकाला और काॅल किया।

" हिप्नोथेरेपिस्ट !......हिप्नोथेरेपिस्ट ! " 

" सचिन ! तुम क्या बडबडा रहे हो ? " - सनी ने सचिन को बुदबुदाते हुए देख पूछा। 

" कुछ नहीं। " - सचिन बोला - " मुझे लगता है कि मैंने यह नाम पहले भी कहीं सुना हुआ है। " 

" कौनसा नाम ? " 

" हिप्नोथेरेपिस्ट। " - सचिन गहरी सोच में डूबते हुए बोला। 

" तो ? " - सनी ने लापरवाही से कहा - " सुन लिया होगा कभी , इसमें इतना सीरियस होने की क्या जरूरत ? "

" शायद , तुम ठीक कहते हो। " 

   

          - क्रमश  :







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिन्दी प्रेमी

  आ गया फिर से हिन्दी दिवस उपेक्षित! अनादृत! हिन्दी भाषा को गौरव दिलाने का दिन!  वही दिन जब बहुतेरे आंग्ल भाषी भारतीय सप्रयास बोलेंगे हिन्दी...