मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

रविवार, 23 जनवरी 2022

एक बार फिर

सालों पहले हुए थे तैयार रेंगने को।


क्यों ?


क्यों ना होते !


सब कोई होते है ,

उम्र के एक पड़ाव में।


उस दौर में ,


जबकि ,


असंभव सपनों को संभव करने की , 

हर मुमकिन कोशिश नाकाम हो चुकी होती है।


क्यों ? 


क्योंकि ,


किशोरवय में निकल आये ' परों ' से उड़ान भरने को आतुर ,

कुछ ही दूर तक उड़ पाता है वो ,


और ,


होता है आभास उसे ,


उन बन्धनों का ,

जकड़ा है जिनसे वो सदा से ही।


सबसे बड़ा बन्धन होता है इनमें , 

' कुछ तो लोग कहेंगे '


और एक होता है ,

' असफल हो गए तो ? '


बन्धन , जो रोकते हैं इंसान को कुछ नया करने से।


बन्धन , जो रोकते हैं इंसान को कुछ अलग करने से।


करता है जब इंसान ,

दुःसाहस इन बन्धनों को तोड़ने का


और


हो जाता है त्रुटिवश असफल अपने इनोवेशन में।


तब , 


प्रकट हो जाते है अपने साकार रूप में ये बन्धन ,


और


लगते है कतरने ' पर ' उसके।

तब , 


करना पड़ता है समझौता उसे आम जिन्दगी से


और


होना पड़ता है विवश रेंगने को।


हुए थे तैयार रेंगने को हम भी ,

रेंगते रहे सालों साल।


लेकिन अब , 


निकल आए हैं पर फिर से ,

हो रहे है आतुर उड़ान भरने को।


कितना उड़ पायेंगे ?

बन्धनों को कैसे तोड़ पायेंगे ?

और वो भी अब ?

उम्र के इस पड़ाव में !


रहने देते है इस बार ,

सवालों को सवाल ही

भरते हैं उड़ान फिर से।


हो गए असफल भी तो क्या ,

इतना ही तो होगा ,


कि


कतर दिये जायेंगे ' पर ' फिर से !

रेंगने का विकल्प तो सुरक्षित है ही।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 25 जनवरी 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सच रेंग कर कोई आखिर कितनी दूर जाएगा, मंजिल पाने के लिए उड़ान भरना जरुरी है
    दुनिया क्या कहेगी, जो यह सोचकर चुप बैठ जाते हैं वे जिंदगी भर दुनिया को ही देखते रह जाते हैं, अपने को नहीं

    बहुत सुन्दर

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  3. निकल आए हैं पर फिर से ,
    हो रहे है आतुर उड़ान भरने को।
    कितना उड़ पायेंगे ?
    बन्धनों को कैसे तोड़ पायेंगे ?
    और वो भी अब ?
    उम्र के इस पड़ाव में !
    रहने देते है इस बार ,
    सवालों को सवाल ही
    भरते हैं उड़ान फिर से।
    हो गए असफल भी तो क्या ,
    इतना ही तो होगा ,
    कि कतर दिये जायेंगे ' पर ' फिर से !
    रेंगने का विकल्प तो सुरक्षित है ही।
    बहुत ही शानदार बात कही आपने लाजवाब सृजन

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  4. कायदे की बात कही है आपने सटीक तर्क सटीक साहस।
    सुंदर अभिव्यक्ति।

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  5. किशोरवय में निकल आये ' परों ' से उड़ान भरने को आतुर ,

    कुछ ही दूर तक उड़ पाता है वो ,

    और ,

    होता है आभास उसे ,

    उन बन्धनों का ,

    जकड़ा है जिनसे वो सदा से ही
    ..
    ..
    सुन्दर रचना,

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही उम्दा अहसासों से भरपूर ।
    सुंदर सृजन ।

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  7. संभवतः किशोर वर्ग सबसे ज्यादा दबाव झेलता है। अपने सपने दूसरों की महत्वाकांक्षाओं के बोझ तले कुचले जाते हैं। विचारणीय विषय पर सार्थक चिन्तन। हार्दिक शुभकामनाएं आपको।

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