यह तुम ही हो

बसन्त का आगमन हुआ है ,
किसी ने इस दिल को छुआ है।

मन्द - मन्द शीतल - सी जो ये पवन है ,
लगता है तेरे ही स्पर्श की छुअन है।

खिल उठे बगिया में ज्यों ही फूल ,
ये दिल गया है सब कुछ भूल।

हो सुबह की कोयल का गुनगुनाना ,
या हो किसी चिड़िया का कोई गाना।

हर स्वर , हर शब्द के साथ जुड़ा है ,
बस यही तराना।
यह तुम ही हो , यह तुम ही हो।

शीतल चांदनी रात हो ,
या तुमसे जुड़ी कोई बात हो।

वृक्षों पर पत्ते नये आये  ,
या पूरी धरती पर हरियाली छाए।

हर लम्हा याद तेरी ही आती है ,
मेरी रुह मुझे अहसास बस यही कराती है।
यह तुम ही हो , यह तुम ही हो।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भावाव्यक्ति। बसंत के आने से सब खुशनुमा हो जाता है और जिस पर हमारी आसक्ति हो उसके आने से भी कुछ ऐसा ही माहौल हो जाता है। ऐसे में बसंत के आगमन का प्रेमिका की याद दिलाना लाजमी ही है।

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    1. कविता पढने के लिये आपने समय निकाला और इतनी सुन्दर समीक्षा दी । आभार।

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  2. हो सुबह की कोयल का गुनगुनाना ,
    या हो किसी चिड़िया का कोई गाना।

    हर स्वर , हर शब्द के साथ जुड़ा है ,
    बस यही तराना।
    यह तुम ही हो , यह तुम ही हो
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  3. वाह बहुत सुंदर विजय जी, जीवन में किसी का आना ही बसंत है।

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