मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

दो उल्लू



एक डाल पर बैठे दो उल्लू ,
एक गया मनाली, एक गया कुल्लू ।

उल्लूओं में छिड़ी जंग ,
दिखाया सबने अपना रंग ।

हो चाहे कोई कितना ही तंग,
डाल ना छोडेंगे
रहेंगे सब यहीं संग।

लौट आये दोनों उल्लू  ,
गये थे जो मनाली और कुल्लू ।

बोले  - ' रहेंगे हम भी यहीं,
ना जायेंगे ये डाल छोड़कर कहीं । '

बोला बुजुर्ग एक उल्लू -
" लौट आये क्यों तुम
छोड़कर मनाली और कुल्लू ? "

बोले दोनों - " नहीं रहना वहां,
पडती हो भीषण ठण्ड जहां। "

बिछा ना पाये अपना जाल,
ना हासिल कर पाये कोई डाल ।

लौट आये बस इसीलिये
दोनों उल्लू ,
छोड़कर स्वर्ग जैसा ,
मनाली और कुल्लू ।

                               - स्वरचित ( विजय कुमार बोहरा )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें