मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 9
6.30 बजे साकेत अपने आॅफिस पहुंचा।
आॅफिस के बाहर बड़े - बड़े अक्षरों में ' साकेत डिटेक्टिव एजेंसी ' लिखा हुआ था।
यह तीन मंजिलों वाली एक विशाल इमारत थी , जिसका खुद का पार्किंग प्लेस भी था।
कार नियत स्थान पर पार्क करके साकेत आॅफिस में दाखिल हुआ।
आॅफिस में प्रविष्ट होते ही रिसेप्सनिस्ट ' बरखा श्रीमाली '
' गुड ईवनिंग सर ! ' कहते हुए कुर्सी से उठ खडी हुई।
साकेत अग्निहोत्री ने हल्की सी स्वीकारोक्ति के साथ अभिवादन किया।
सीढियों के रास्ते होते हुए साकेत पहली मंजिल में स्थित अपने कैबिन में प्रविष्ट हुआ , जहाँ पहले से ही उसका सहयोगी ' अनिकेत सिंह राजपूत ' उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
वक्त बचाने के लिये यह साकेत की एक तकनीक थी।
हाॅस्पिटल से निकलते ही साकेत ने अनिकेत को काॅल कर दिया था और इसी का परिणाम था कि अपने कैबिन में प्रविष्ट होते ही साकेत को अनिकेत अपना इंतज़ार करते हुए मिल गया था।
साकेत को देखते ही अनिकेत ' गुड ईवनिंग सर ! ' बोलने के साथ ही कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
अनिकेत , साकेत का ही हमउम्र करीब 30 वर्षीय नौजवान था।
साकेत ने उसे बैठने का संकेत किया और खुद भी ' मास्टर चेयर ' के हवाले हुआ।
" एक नया केस आया है अनिकेत ! उसी के संबंध में तुमसे थोड़ा ' विचार - विमर्श ' करना था। "
" जरूर सर ! " - अनिकेत बोला।
अनिकेत जानता था कि साकेत के विचार - विमर्श में सिर्फ ' विचार ' होते थे और वे भी केवल साकेत के विचार।...विमर्श जैसी कोई चीज साकेत के इस ' विचार - विमर्श ' में शामिल नहीं होती थी।
" रिचा नाम की एक लड़की का मर्डर हुआ है। " - कहते हुए साकेत ने ' रिचा मर्डर केस ' से संबंधित हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े तथ्य अनिकेत को बताये।
" बडी अजीब घटना है ! " - अनिकेत बोला - " रात 12 बजे आकाश ने रिचा को ड्राॅप किया और उसी वक्त घर पहुंचने से पहले ही रिचा का कत्ल हो गया ! "
" घटना अजीब है , विचित्र है , लेकिन हमारा काम घटना की विचित्रता पर अभिभूत होना नहीं है , बल्कि यह पता लगाना है कि घटना को अंजाम देने वाला शख्स कौन हो सकता है ?...तुम बताओ कौन हो सकता है ? "
" बिना सबूत , सुराग या गवाह के कैसे किसी को कातिल करार दिया जा सकता है ? "
साकेत मुसकराया।
" यही तो इस केस का सबसे मजेदार पक्ष है , न सबूत , न सुराग , न गवाह ! फिर भी आपको कातिल का पता लगाना है। "
" आप जानते हैं सर ! यह असंभव है। "
" इसी असंभव को तो संभव कर दिखाना है। "
" मैं इस समय किसी भी निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ हूँ।...आप बताइये सर ! आपको क्या लगता है ? "
" फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। " - साकेत बोला - " मैंने तुम्हें एक खास काम के लिये बुलाया था। "
" कैसा काम सर ? "
साकेत ने बताया।
" हो जायेगा सर ! लेकिन , आपको लगता है कि इससे केस में कुछ मदद मिलेगी ? "
" उम्मीद तो है और इस समय हमें अंधेरे में ही तीर चलाने होंगे। किस्मत अच्छी रही , तो कोई एक तीर निशाने पर जरूर लगेगा और वही एक तीर इस केस को सफलता के शिखर तक पहुंचाने का काम करेगा। "
" ठीक है , तो कल सुबह ही मैं इस काम को अंजाम दे दूंगा। "
" कल नहीं , आज। आज रात में ही। "
" आज ही ? "
" यह केस बहुत उलझा हुआ है। कातिल इतना शातिर है कि उसने कोई सुराग तक नहीं छोड़ा। इसका मतलब समझते हो तुम ? "
" जी सर ! कातिल तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। "
" सही कहा और इसीलिये हमें कातिल तक जल्द से जल्द पहुंचना होगा , क्योंकि जितना ज्यादा वक्त हम कातिल तक पहुंचने में लगायेंगे , उतने ही ज्यादा बच निकलने के तरीके वो इजाद कर लेगा और इसीलिये हमें बिना एक पल गवाये अपने हर काम को तेजी से अंजाम देना होगा। "
" ठीक है सर ! तो मैं चलता हूँ। "
" ओके। "
अनिकेत वहां से चला गया।

0 Comments