मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 10
साकेत ने मेज़ की दराज खोली।
दराज में 4 - 5 पुराने मोबाइल और कुछ सिमकार्ड रखे हुए थे।
साकेत ने एक मोबाइल उठाया , उसमें एयरटेल का एक सिमकार्ड डाला और एक नंबर डायल किया।
" हैलो ! " - फोन के उस तरफ से कोई बोला।
" हिरणमगरी सेक्टर 4 में एक लडका रहता है , आकाश माथुर। नज़र रखो उस पर और हर 24 घंटे में मुझे रिपोर्ट करो। "
" ओके। " - बोलने के साथ ही फोन कट कर दिया गया।
साकेत ने मोबाइल से सिमकार्ड निकाला और लापरवाही से उसी दराज में डाल दिया।
इसके बाद दराज को लाॅक किया और चाभी अपनी जेब के हवाले की।
साकेत ने रिस्टवाॅच पर निगाह डाली।
7:30 बजे थे।
साकेत उठा और आॅफिस से बाहर निकला।
कुछ ही देर बाद साकेत की कार उदयपुर की सड़कों पर दौड़ रही थी।
जल्द ही कार एक फोटो स्टूडियो के सामने रूकी।
कार पर नजर पडते ही स्टूडियों का मालिक उसके पास आया और उसने एक लिफाफा साकेत की ओर बढाया।
" कितने ? " - साकेत ने पूछा।
" 300 रूपये। "
साकेत ने पांच सौ रुपये का नोट बढाते हुए कहा - " बाकी के जमा कर लेना। "
" ओके सर ! "
साकेत ने कार आगे बढायी।
साकेत कुछ ही दूर गया होगा कि उसका मोबाइल बज उठा।
साकेत ने कार सड़क के किनारे खड़ी की , ड्राइव करते हुए वह मोबाइल पर बात करना पसंद नहीं करता था।
साकेत ने मोबाइल स्क्रीन पर निगाह डाली।
फोन रागिनी का था।
" हैलो ! " - काॅल रिसीव करते हुए साकेत बोला।
" सर , मैं रागिनी…"
" हाँ , रागिनीजी ! नंबर सेव है आपका। बोलिये , क्या बात है ? "
" आप मेरे घर आ सकते हैं ? "
" इस वक्त ? "
" कुछ बताना था सर आपको। बहुत जरूरी है। "
" ठीक है , मैं पहुंचता हूँ। "
साकेत ने कार स्टार्ट की और आदर्श नगर काॅलोनी की ओर चल पडा।
कुछ ही समय बाद साकेत रागिनी के घर उसके ड्राइंग रूम में बैठा था।
वहां रागिनी के अलावा एक और लड़की मौजूद थी , जो साकेत के लिये अजनबी थी।
" यह चित्रा है , सर ! रिचा की काॅलेजमेट ! " - परिचय कराते हुए रागिनी बोली।
" ओह ! हैलो , मिस चित्रा ! " - हाथ बढाते हुए साकेत बोला।
" हैलो , सर ! " - चित्रा ने हाथ मिलाते हुए कहा।
" सर ! चित्रा कुछ बताना चाहती है आपको , रिचा के बारे में। " - रागिनी बोली।
" ओके। " - साकेत बोला।
" सर ! मैं और रिचा एक ही क्लास में पढते थे। मैं उसे काफी अच्छे से जानती थी। " - चित्रा ने कहा - " रागिनी ने रिचा के कत्ल की जानकारी मिलने से लेकर आपसे हुई मुलाकात तक का पूरा मैटर मुझे बताया और जहाँ तक मुझे पता है , रिचा को परेशान करने वाली एक घटना करीब एक महीने पहले काॅलेज में घटित हुई थी। "
" क्या हुआ था ? " - साकेत ने पूछा।
" एक लडके से रिचा की थोड़ी अनबन हुई थी। "
" कौन था वो लड़का ? "
चित्रा ने एक निगाह रागिनी पर डाली , फिर बोली - " आकाश ! "
" क्या ? " साकेत और रागिनी दोनों एक साथ चौंक उठे।
" हुआ क्या था ? पूरी बात बताओ। " - साकेत ने पूछा।
चित्रा ने बताना शुरू किया।
□ □ □
1 Month Ago…
16 जनवरी , 2020
स्थान - आर्ट्स काॅलेज , उदयपुर।
" मेरी गोल्डन रिंग 24 कैरेट की थी, शुद्ध सोने की। वो मुझे नहीं मिली तो इस मामले को मैं पुलिस स्टेशन ले जाऊंगी। " - आर्ट्स काॅलेज के प्रिंसिपल रूम की एक - एक ईंट ' पलक ' की तेज आवाज से गूंज रही थी।
" पलक ! तुम काॅलेज की बहुत अच्छी स्टूडेंट हो , लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम एक के बाद एक गलतियाँ करती जाओ। " - प्रिंसिपल महेंद्र चौबीसा ने कहा।
" गलती ? " - पलक चौंकी।
" तुमने एक साथ तीन गलतियाँ की हैं। एक , तुम सीधे प्रिंसिपल रूम में घुस आयी हो , जबकि सब जानते हैं कि इस रूम में बिना अनुमति प्रवेश वर्जित है। दो , तुमने अपनी समस्या के लिये मुझे , काॅलेज - प्रिंसिपल को पुलिस स्टेशन जाने की धमकी दी है। तीन , तुमने अपनी समस्या को अभी तक ठीक से एक्सप्लेन भी नहीं किया है।...अब मेरी बात सुनो , पहले तुम आराम से कुर्सी पर बैठो और अपनी परेशानी बताओ। "
अब तक क्रोध में भरी पलक , प्रिंसिपल के शब्द सुनकर थोड़ी संयमित हुई।
प्रिंसिपल चौबीसा के ठीक सामने रखी एक कुर्सी पर बैठते हुए वह बोली - " सर , कल ही पापा ने मुझे सोने की एक रिंग दिलवायी थी। आज उसे मैं काॅलेज लेकर आयी थी। मैंने सबको वह रिंग दिखायी , सबने खूब तारीफ भी की। इसके बाद वह रिंग मैंने अपने बैग में रख दी थी और अब रिंग गायब है।...मुझे पूरा यकीन है कि उसे किसी ने चुरा लिया है। "
" तुम्हें सोने की रिंग काॅलेज में नहीं लानी चाहिये थी और अगर ले भी आयी थी तो तुम्हें सबको दिखानी नहीं चाहिये थी।...अब जबकि किसी ने उसे चुरा लिया है तो तुम उसके लिये इतना परेशान हो रही हो ! "
" मुझे नहीं पता था कि इस काॅलेज में इतने घटिया स्टूडेंट पढते हैं जो चोरी भी कर सकते हैं। "
प्रिंसिपल चौबीसा मुसकराये - " यह एक सरकारी काॅलेज है , तुम्हें समझदारी और सावधानी से काम लेना चाहिये था। खैर , जो होना था वो हो चुका। रिंग ढूंढने के लिये मुझसे जो हो सकता है , वो मैं करता हूँ। जिस - जिसको तुमने रिंग दिखायी थी , उनके नाम बताओ। "
" रिंग तो सबने देखी थी।...क्लास के सभी स्टूडेंट्स ने। "
" क्लास के स्टूडेंट्स ने ? "
" जी सर ! "
" किस समय की बात है ये ? "
" 11.30 बजे , हिन्दी की क्लास शुरू होने से ठीक पहले।"
" ओके। " - कहते हुए प्रिंसिपल ने मेज़ पर रखी काॅलबैल बजायी।
तत्काल ही चपरासी संतोष ने कक्ष के भीतर कदम रखा।
" प्रोफेसर आभा मेनारिया को भेजो यहाँ। "
" जी सर। "
कुछ समय बाद हिन्दी की प्रोफेसर आभा मेनारिया ने प्रिंसिपल रूम में प्रवेश किया - " आपने बुलाया सर ? "
" यस , प्लीज कम इन एण्ड टेक योर सीट। "
प्रिंसिपल ने पूरी बात बतायी।
" ओह , यह तो बहुत बुरा हुआ। "
" हमें अपने स्तर पर रिंग ढूंढने के लिये प्रयास करना होगा।...काॅलेज में 6 चपरासी है , सभी से कहो कि क्लासरूम के एक - एक स्टूडेंट की तलाशी ले। "
" जी सर ! " - कहते हुए प्रोफेसर आभा उठ खड़ी हुई - " चलो पलक ! "
पलक ने प्रिंसिपल की ओर देखा।
" मुझे पूरी उम्मीद है कि रिंग जल्द ही मिल जायेगी। " - प्रिंसिपल महेंद्र चौबीसा बोले।
□ □ □

0 Comments