मेरी दुनिया है तुझमें कहीं - 3

मेरी दुनिया है तुझमें कहीं - 3

अब तक आपने पढ़ा, सनाया का CAT क्लियर हो गया था। आगे उसे MBA करना था। लेकिन उसके पापा चाहते थे कि जल्दी से उसकी शादी हो जाए। लड़के वाले उसे देखने आने वाले होते हैं। पापा के समझाने पर आखिर वह तैयार हो जाती है।

अब आगे - 

यूनिवर्सल स्टील के ऑनर अभय भारद्वाज इस समय शर्मा निवास में अखिलेश शर्मा के यहां अपने बेटे विनीत भारद्वाज का रिश्ता लेकर आए हुए थे।

अखिलेश शर्मा एक साधारण से बैंक मैनेजर थे, जो कि अब रिटायर्ड थे। वे चाहते थे कि किसी तरह उनका रिश्ता इस करोड़पति घराने से जुड़ जाता। उनके लिए यह एक सुनहरा अवसर था, जिसे वे किसी भी स्थिति में गंवाना नहीं चाहते थे। 

“स्वीट्स लीजिए ना!” - शर्माजी ने काजू पिस्ता की प्लेट की तरफ इशारा करते हुए अभय भारद्वाज से कहा।

“वो तो हम ले ही लेंगे।” - भारद्वाज जी बोले - “पर, आपकी बेटी दिखाई नहीं दे रही।”

ठीक इसी समय रेड कलर का सूट पहने अंजू सीढ़ियां उतरती हुई नीचे हॉल में पहुंची।

सबकी नजरें अंजू की तरफ उठी।

विनीत भारद्वाज, जो अब तक बिल्कुल शांत बैठा हुआ था। अंजू को देखकर बस देखते ही रह गया।

“नमस्ते अंकल…नमस्ते आंटी !” - हाथ जोड़कर मिस्टर और मिसेज भारद्वाज का अभिवादन करने के बाद अंजू विनीत भारद्वाज की तरफ देखकर हल्के से स्माइल करते हुए बोली - “नमस्ते!”

जवाब में मुस्कुराते हुए विनीत ने भी हाथ जोड़कर कहा - “नमस्ते!”

“आओ बेटा! यहाँ बैठो।” - विनीत की मम्मी संजना भारद्वाज प्रसन्नता भरे लहजे में अंजू को अपने पास बैठने का इशारा करते हुए बोली।

“नहीं आंटी! मैं यहीं ठीक हूं।” - थोड़ा असहज होते हुए अंजू बोली और मिसेज शर्मा के पास ही बैठ गई।

मिसेज भारद्वाज को शायद यह अच्छा नहीं लगा था। अभय भारद्वाज के चेहरे से भी नाराजगी साफ झलक रही थी। और विनीत को तो जैसे इन सबसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था। वह तो मुग्ध नजरों से बस अंजू को ही देखे जा रहा था। 

लेकिन इन सबके चेहरों पर आई प्रतिक्रियाओं ने मिस्टर और मिसेज शर्मा को टेंशन में जरूर डाल दिया था। एक पल के लिए वातावरण तनावपूर्ण और बोझिल हो गया। लेकिन अगले ही पल स्थिति समझते हुए मिसेज शर्मा बोली - “अंजू! ऊपर जाकर देख। सनाया तैयार हुई कि नहीं। उसे जल्दी लेकर आ।”

“जी मम्मी!” - कहते हुए अंजू उठी और थोड़ा भागते हुए सीढ़ियों तक पहुंची और धड़धड़ाते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगी।

“अरे! आराम से जाओ बेटा!” - पीछे से मिसेज शर्मा ने कहा।

लेकिन, अंजू तो बस अपनी ही धुन में थी। उसने शायद सुना ही नहीं।

“ओह तो यह अंजली थी!... आपकी छोटी बेटी!” - अभय भारद्वाज कुछ सोचते हुए बोले।

“जी हां।” - शर्माजी ने संक्षिप्त जवाब दिया।

“माफ कीजियेगा।” - मिस्टर भारद्वाज एक नजर विनीत और उसकी मां की तरफ देखते हुए शर्माजी से बोले - “हम तो इसे सनाया समझ बैठे थे।”

“कोई बात नहीं।.. हो जाता है ऐसा। ज्यादा फर्क भी तो नहीं है दोनों की उम्र में।” - शर्माजी बनावटी हँसी हंसते हुए बोले।

जवाब में मिस्टर और मिसेज भारद्वाज भी हँस पड़े।

लेकिन विनीत…विनीत के चेहरे पर हल्की सी उदासी झलक रही थी , जिसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया।

इसी समय ईशान रूम से निकलकर बाहर आया।

“नमस्ते अंकल…नमस्ते आंटी…” - बोलने के साथ ही वह सबके पैर भी छूने लगा।

“अरे वाह! बड़ा संस्कारी बेटा है आपका!” - अभय भारद्वाज बोले।

अब तक ईशान अपनी मम्मी के पास सोफे पर बैठ गया था।

पर नजरें उसकी स्वीट्स की प्लेट्स पर ही जमी थी। वह ललचाई नजरों से चमचम की प्लेट की तरफ देख रहा था। फिर अपनी मम्मी की तरफ देखा तो मम्मी ने इशारे से मना किया। ये सब मिसेज भारद्वाज ने देखा तो बरबस ही उनके चेहरे पर मुस्कान उभर आई। उन्होंने हाथ बढ़ाकर चमचम की प्लेट उठाई और ईशान की तरफ बढ़ाते हुए कहा - “लो बेटा!”

ईशान ने मम्मी की तरफ देखा तो मम्मी ने भी मुस्कुराते हुए मूक सहमति दे दी। खुश होते हुए ईशान ने प्लेट में से एक चमचम उठा ली।

इसी समय सीढ़ियों पर सनाया और अंजू दिखाई दी। सनाया ने पिंक कलर का सूट पहना हुआ था। कानों में झुमके, गले में नेकलेस भी पहना था। खुले बालों में वह गजब का कहर ढा रही थी। देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वह बड़े मन से तैयार हुई थी। 

उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। अंजू के साथ ही वह धीरे - धीरे सीढ़ियां उतर रही थी।

सनाया को देखकर मिस्टर और मिसेज भारद्वाज के चेहरे खुशी से खिल उठे। और विनीत…उसके चेहरे पर जो उदासी के बादल थे, वे सनाया को देखते ही छंट गए। वह भी अब काफी खुश दिखाई दे रहा था। सनाया का रूप तो जैसे उस पर बिजलियां गिरा रहा था।

सीढ़ियां खत्म हुई तो अंजू के साथ सनाया धीमी गति से समतल फर्श पर चलते हुए उनके करीब पहुंची।

“नमस्ते अंकल…नमस्ते आंटी!” - अपने दोनों हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए सनाया ने अभिवादन किया।

फिर एक नजर विनीत पर डालकर धीमे से बोली - “नमस्ते!”

विनीत भी मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर बोला - “नमस्ते!”

इस बार मिसेज भारद्वाज ने सनाया को अपने पास बैठने के लिए तो नहीं कहा। लेकिन, वह खुद ही चलते हुए सोफे पर उनके पास ही जाकर बैठ गई। ऐसे लग रहा था जैसे कि अंजू ने सनाया को नीचे जो कुछ हुआ था, उसके बारे में बता दिया था।

“तो ये है आपकी बड़ी बेटी सनाया!” - अभय भारद्वाज मुस्कुराते हुए बोले।

“हां!” - मिसेज शर्मा बोली - “और यही लड़की है।”

मिसेज शर्मा की इस बात पर सभी एक बार फिर हँस पड़े।

नहीं हँसे थे तो वो थे ईशान, जिनको पता नहीं था कि हंसने की वजह क्या थी और अंजू, जो सबके हँसने की वजह तो जानती थी, लेकिन मारे संकोच के खुद में ही गड़ी जा रही थी।

खुद को बहुत रोकने की कोशिश करने पर भी सनाया के चेहरे पर भी हँसी आ ही गई थी। अब ये बात बिल्कुल साफ थी कि उसकी गैर मौजूदगी में लड़के वालों ने अंजू को ही सनाया समझने की जो भूल कर दी थी, उसके बारे में अंजू सनाया को बता चुकी थी।

सनाया को हंसते हुए देख, विनीत बस सम्मोहित सा उसे देखे ही जा रहा था।

और हँसी खुशी के इस माहौल पर थोड़ा सा ब्रेक उस समय लग गया, जब सनाया को हंसते देख शर्माजी को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने एक तेज नजर सनाया पर डाली, जिसे देख, सनाया हंसना छोड़ एकदम सीरियस मोड में आ गई।


आगे क्या हुआ ? क्या सनाया को विनीत पसंद आया ? देखने दिखाने की बात शादी तक पहुंची या नहीं ? जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले भाग का।


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