मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 3

 मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 3

36 Hours Ago…

14 फरवरी , 2020 

स्थान - नैचुरल लेक व्यू रेस्टोरेंट।

समय - रात 9 बजे।

उदयपुर की पिछोला झील के किनारे स्थित नैचुरल लेक व्यू रेस्टोरेंट रात के अंधेरे में भी रंग - बिरंगी लाइट्स से जगमगा रहा था।

रेस्टोरेंट की छत पर इस समय कैंडल लाइट डिनर चल रहा था। करीब 10 - 12 गोल टेबलें लगी हुई थी। टेबलों पर सुन्दर मेज़पोश बिछे हुए थे। हर टेबल पर पानी से भरा एक बाउल रखा हुआ था ,जिसमें गुलाब की पंखुडियों पर छोटी - छोटी कैंडल तैर रही थी। 

हर टेबल पर नवयुवक और नवयुवतियां बैठे हुए थे। छत के फर्श पर लाल रंग वाले दिल का शेप लिये हुए बैलून बिखरे हुए थे। 

कलरफुल लाइट्स से हल्का - हल्का प्रकाश छत के एक - एक हिस्से को रोशन कर रहा था। धीमे स्वर में रोमांटिक इन्स्ट्रुमेंट म्यूजिक बज रहा था।

3 - 4 वेटर एक टेबल से दूसरी टेबल की ओर किसी से आॅर्डर लेने , तो किसी को आॅर्डर सर्व करने के लिये घूम रहे थे।

रेस्टोरेंट की छत से पिछोला झील का दृश्य बहुत ही मनोरम दिखाई दे रहा था। झील से आने वाली ठंडी हवा की लहरों का स्पर्श हृदय को प्रफुल्लित करने वाला था।

यह वेलेंटाइन नाइट थी !

" वाऊ ! इट्स अमेजिंग ! " - खुश होते हुए रिचा बोली।

" क्या ? " - आकाश ने पूछा।

" यहाँ का एनवायरमेंट ! " 

" तुम्हें पसंद आया ? " 

" बहुत ज्यादा। " - खुशी से चहकते हुए रिचा बोली।

आकाश ने रिचा की ओर देखा।

व्हाइट राउंड नेक फ्लोरल प्रिंटेड ड्रैस में वह बहुत खूबसूरत दिखाई दे रही थी।

रिचा को इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी कि नैचुरल लेक व्यू रेस्टोरेंट की छत पर बैठकर इस समय वह जिस जन्नती अहसास को जी रही थी , उस एनवायरमेंट को अरेंज करने में आकाश को कितनी मोटी रकम खर्च करनी पडी थी !

" लड़कियां कभी परवाह नहीं करती। " - आकाश ने सोचा।

" तुम आज बहुत हैंडसम लग रहे हो। " - एकाएक ही रिचा बोली।

रेड टी - शर्ट में आकाश बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

" मतलब रोज नहीं लगता हूँ ? " 

" नहीं , वो बात नहीं है। " 

" क्या बात है फिर ? " - आकाश ने प्यार भरी नज़रों से सीधे रिचा की आंखों में देखते हुए पूछा।

" न...नहीं ! कुछ नहीं। "

" क्या कुछ नहीं ? " 

" अरे , मेरा मतलब यह था कि रोज की तुलना में आज तुम कुछ ज्यादा ही हैंडसम लग रहे हो। " - कहते हुए रिचा डिनर करने में व्यस्त हो गयी।

" और तुम्हें पता है , तुम कैसी लग रही हो ? "

" कैसी ? " - रिचा ने डिनर की प्लेट से अपनी नजरें हटायी और आकाश की ओर देखते हुए पूछा।

" बिल्कुल परी जैसी। "

रिचा जोर से हंसी - " ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया ? " 

" अभी तक तो मैंने कुछ भी नहीं बोला है , तुम ज्यादा तारीफ के काबिल हो। " 

" ओह , रियली ? " 

" यस। " 

आकाश और रिचा पिछले दो सालों से साथ थे।

दोनों ही आर्ट्स काॅलेज , उदयपुर में फाइनल ईयर के स्टूडेंट थे।

'आर्ट्स काॅलेज' सुखाडिया यूनिवर्सिटी कैम्पस में ही स्थित था।

आकाश और रिचा की पहली मुलाकात दो साल पहले काॅलेज में ही हुई थी।

आकाश को आज भी अच्छी तरह से याद था।

काॅलेज का पहला दिन !

वह बाइक से काॅलेज पहुंचा।

यूनिवर्सिटी के पार्किंग प्लेस पर बाइक पार्क करते समय उसकी निगाह एक लड़की पर पड़ी , जिसने बस अभी ही यूनिवर्सिटी में प्रवेश किया था।

लाल रंग की ड्रैस में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी।

आकाश ने एक नज़र लडकी पर डाली , फिर अपना बैग लेकर काॅलेज की ओर बढ़ चला।

आकाश बहुत खुश था।

रंग - बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित स्टूडेंट्स !

हरे - भरे पेड़ - पौधों और रंग - बिरंगे फूलों से सजा कैम्पस ! 

उसे प्रसन्नता थी इस बात की कि आर्ट्स काॅलेज को चुनना , उसका बिल्कुल सही फैसला था।

प्रसन्न मन और मस्तीभरी चाल से धीरे-धीरे कदम बढाता हुआ आकाश यूनिवर्सिटी कैम्पस में बिल्कुल सीधे चले जा रहा था।

चलते - चलते अचानक ही आकाश को महसूस हुआ जैसे….जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है !

उसने पीछे मुड़कर देखा।

एकाएक ही वह बुरी तरह से चौंक उठा।

उसके हृदय की गति सामान्य से कई गुना ज्यादा बढ़ गयी।

पीछे वही लडकी आ रही थी , जिसे उसने पार्किंग प्लेस से यूनिवर्सिटी गेट के भीतर प्रविष्ट होते हुए देखा था !

" यह मेरा पीछा क्यों कर रही है ? " - आकाश कशमकश में था।

चलते - चलते एकाएक ही आकाश के पीछे मुड़कर देखने से लडकी के चलते हुए कदम भी ठिठक गये।

आकाश से कुछ फासले की दूरी पर ही लडकी रुक गयी।

एक पल के लिये दोनों की नज़रें मिली , लडकी तत्काल ही आकाश की नजरों से अपनी नजरें हटाकर दूसरी तरफ देखने लगी।

सकुचाकर आकाश ने भी लडकी पर से अपना ध्यान हटाया और दोबारा आगे की ओर चलने लगा।

" नहीं , मेरा वहम रहा होगा। " - आकाश ने मन ही मन सोचा - " मैं तो उस लड़की को जानता तक नहीं। " 

कुछ ही कदम आगे चलने पर आकाश को ' आर्ट्स काॅलेज ' की इमारत दिखाई दी। 

आकाश इमारत के भीतर दाखिल हुआ।

उसे फिर से लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है। 

आकाश ने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा , वही लाल ड्रैस वाली लड़की उसे फिर से दिखाई दी। आकाश को अजीब तो लगा , लेकिन वह समझ कुछ नहीं पाया।

कुछ ही पलों के बाद वह क्लासरूम में पहुंचा। क्लासरूम काफी बड़ा था।

आकाश जाकर एक खाली सीट पर बैठ गया।

आकाश को बैठे हुए 3 - 4 सैकेंड ही बीते होंगे कि क्लासरूम में वही लडकी प्रविष्ट होते हुए दिखी।

अब आकाश की समझ में आया कि इसे भी इसी क्लास में आना था !

अब उसका यह वहम खत्म हो गया कि लड़की उसका पीछा कर रही थी।

हकीकत में , लडकी उसके पीछे नहीं चल रही थी , बल्कि वही लडकी के आगे - आगे चल रहा था।

लड़की उसका पीछा नहीं कर रही थी - यह सोचकर आकाश को काफी राहत महसूस हुई।

कुछ ही देर बाद क्लास शुरू हुई।

हिस्ट्री की क्लास थी।

बोरिंग क्लास !

बोरिंग प्रोफेसर !

बोरिंग लेक्चर !

आकाश को हिस्ट्री ज्यादा पसंद नहीं थी।

लेकिन काॅलेज के पहले ही दिन , पहली ही क्लास में उसे हिस्ट्री पढनी पडी।

क्लास खत्म होने के बाद सारे स्टूडेंट्स क्लास से बाहर जाने लगे।

लेकिन , आकाश अपनी सीट पर बैठा रहा।

जब से वह काॅलेज आया और उसने लाल ड्रैस वाली लड़की को देखा , तब से उसके भीतर एक अजीब सी हलचल होने लगी थी।

आकाश ने देखा , लड़की कुछ लिख रही थी।

कुछ ही देर में पूरी क्लास खाली हो गयी।

अब क्लास में सिर्फ दो ही स्टूडेंट थे।

एक , आकाश और दूसरी वह लाल ड्रैस वाली लड़की !

आकाश अपनी सीट से उठा।

धीरे-धीरे चलते हुए वह लड़की की सीट तक पहुंचा।

लड़की लिखने में इतनी तल्लीन थी कि उसे अहसास तक नहीं हुआ कि कोई लडका उसके पास आकर खड़ा हुआ है।

" हैलो। " - सकुचाते हुए आकाश धीमे से बोला।

आकाश की आवाज़ इतनी धीमी थी कि लड़की उसके 'हैलो' को सुन भी नहीं पायी , हालांकि वह उसके काफी पास खड़ा था।

आकाश इस बार थोड़ा जोर से बोला - " हैलो ! मैं आपसे कुछ बात कर सकता हूँ ? " 

लड़की ने आकाश की ओर देखा - " कहिये।"

" मेरा नाम आकाश है। " - आकाश ने हाथ आगे बढाते हुए कहा।

" मैं रिचा हूँ। " - लड़की मुसकराते हुए बोली और आकाश से हाथ मिलाया।

" कहाँ खो गये आकाश ! " - रिचा के इस वाक्य ने आकाश को जैसे सोते से जगा दिया।

अतीत की स्मृतियों से निकलकर आकाश ने अपनी नज़रें वर्तमान परिदृश्य पर डाली।

डिनर खत्म हो चुका था।

कुछ लोग जा चुके थे , कुछ जाने की तैयारी में थे।

" कहीं नहीं। " आकाश हल्के से मुसकराते हुए बोला।

" थैंक्स ! " 

" क्या ? " 

" थैंक्स ! " 

" यह किसलिये ? "

" मेरी वेलेंटाइन नाइट को इतना खूबसूरत बनाने के लिये। " 

" और ? " 

" इस शानदार डिनर के लिये। "

" और ? "

" इस जन्नती अहसास के लिये। "

" और ? "

" मुझे घर ड्राॅप करने के लिये। " 

" वो कब किया मैंने। " 

" अब करोगे ना ! "

" हाँ , लेकिन तुमने मुझे थैंक्स बोला। " 

" तो ? "

" उस काम के लिये जो मैंने अभी किया भी नहीं। "

" एडवांस नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं। "

" होती तो है। " 

" तो बस वही समझ लो। "

" समझ लिया। " 

" तो अब चलें ? "

" श्योर ! "

कुछ ही पलों के बाद वे बाइक पर थे।

और बाइक सडक पर दौडे जा रही थी।

रात के बारह बज चुके थे।

जल्द ही बाइक यूनिवर्सिटी रोड़ पर पहुंची।

यहाँ से बस चार ही कदम की दूरी पर रिचा का घर था।

आकाश ने बाइक रोकी।

रिचा बाइक से उतरी।

" बाय ! " 

" बाय ! " - कहते हुए आकाश ने बाइक स्टार्ट की।

रिचा गली के भीतर अंधेरे में गुम हो गयी।

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मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 2

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