मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 2
करीब 9.30 बजे रागिनी डिटेक्टिव साकेत अग्निहोत्री के बंगले में प्रविष्ट हुई।
" वेलकम मिस रागिनी ! " - कहते हुए साकेत ने रागिनी को बैठने का संकेत किया।
" सर , मैं…." - रागिनी कुछ कहना चाह रही थी।
बात काटते हुए साकेत बोला - " पहले कुछ खा लीजिये , काम की बातें करने के लिये तो पूरा दिन पडा है। "
कमरे में प्रविष्ट होने के बाद साकेत ने दरवाजा भीतर से बंद किया और एक कुर्सी पर बैठते हुए बोला - " यह मेरा ' कॉन्फ्रेंस रुम ' है। यहाँ पर चाहे जितना जोर से बात करो , आवाज़ बाहर नहीं जायेगी। "
" वाह ! ये तो बढिया है। " - एक कुर्सी पर बैठते हुए रागिनी बोली।
"वैसे , इस घर में किसी भी गोपनीय से गोपनीय बात के 'लीक' होने की कोई संभावना नहीं है , क्योंकि घर में मेरे अलावा सिर्फ मेरा नौकर गौरव रहता है , जिस पर मैं आंख बंद करके भी भरोसा कर सकता हूँ। फिर भी एक जासूस होने के नाते जरूरत से ज्यादा सजग रहने की आदत सी है और मेरी इसी आदत का परिणाम है , यह कॉन्फ्रेंस रुम। "
" क्या ? " रागिनी बुरी तरह से चौंक उठी - " इतने बड़े बंगले में आप अकेले रहते हैं ? "
" गौरव भी यहीं रहता है। " - साकेत ने याद दिलाया।
" फिर भी , इतने बड़े बंगले में सिर्फ दो लोग ? "
" अजीब लग रहा है ? "
" हाँ। " - कहते हुए रागिनी ने सवालिया नजरों से साकेत की ओर देखा।
" शौक। " - साकेत ने एक शब्द में जवाब दिया - " शौक बडी चीज़ है मिस रागिनी ! "
" और आपके माता - पिता ? "
चौंकने की बारी अब साकेत की थी।
" क्या ? " - साकेत जैसे सोते से जागा।
" आपके माता - पिता सर , आपका परिवार ? " - रागिनी ने फिर पूछा।
साकेत ने एक पल सोचा , फिर गंभीर स्वर में कहा - " मेरा कोई परिवार नहीं है। इस दुनिया में मैं अकेला हूँ , बिल्कुल अकेला। "
" सॉरी सर ! मुझे पता नहीं था। " - अफ़सोस जाहिर करते हुए रागिनी बोली।
" जैसे पूरे शहर को पता नहीं है। " - हल्के से मुसकराते हुए साकेत बोला।
रागिनी भी धीमे से मुसकरायी।
" इधर - उधर की बातें बहुत हो चुकी , अब कुछ काम की बातें हो जाये ? " - साकेत ने कहा।
" श्योर ! " - रागिनी ने बताना शुरू किया - " मैं आदर्श नगर काॅलोनी में रहती हूँ। मेरे साथ एक बहुत बड़ी ट्रेजडी हो गयी है , हालांकि पुलिस इस बारे में छानबीन कर रही है लेकिन उन पर मुझे जरा भी भरोसा नहीं है। मुझे त्वरित परिणाम चाहिये और इसमें सिर्फ आप ही मेरी मदद कर सकते हैं। "
" पुलिस से भी ज्यादा विश्वास एक प्राइवेट डिटेक्टिव पर ! वजह जान सकता हूँ इसकी ? "
" एक नहीं , दो - दो वजह है मेरे पास। " - रागिनी ने कहा - " पहली , पुलिस विभाग सरकारी तंत्र का एक हिस्सा है , जिसके काम करने का तरीका इस पर निर्भर करता है कि F.I.R. दर्ज कराने वाला एक आम आदमी है या कोई वी आई पी। वी आई पी हुआ तो 24 घंटे के भीतर ही केस सॉल्व हो जाता है और आम आदमी हुआ तो 24 महीने तक भी ढुलमुल गति से पुलिस का काम जारी और सिर्फ जारी रहता है। "
" और दूसरी वजह ? "
" आपने अपने अब तक के जासूसी कैरियर में 17 केस लिये है और सब के सब अप्रत्याशित रूप से सफल हुए हैं। इसकी वजह है , आप एक बार में सिर्फ एक ही केस पर काम करते है और तब तक शांत नहीं बैठते , जब तक कि केस सॉल्व ना हो जाये। "
साकेत हल्के से मुसकराया - " तब तो आपका एक प्राइवेट डिटेक्टिव पर , विशेषकर , डिटेक्टिव साकेत अग्निहोत्री पर भरोसा करना बिल्कुल वाजिब है। बहरहाल , अब आप अपने केस के बारे में बताइये। क्या ट्रेजडी हुई है आपके साथ ? "
" कत्ल हुआ है। " - अब तक शांतिपूर्ण तरीके से बात कर रही रागिनी एकाएक ही इमोशनल हो उठी और उसकी रूलाई फूट पड़ी।
रोते समय उसका पूरा शरीर हिल रहा था। आंखों से अश्रुधारा बह निकली , अपने दोनों हाथों से उसने मुंह को ढंक लिया और उसके रोने की गति हर सेकेंड के साथ बढ़ती गयी।
साकेत यह तो नहीं समझ पाया कि कत्ल किसका हुआ होगा , लेकिन इतना अंदाजा उसे जरुर हो गया था कि जिसका कत्ल हुआ , उससे रागिनी भावनात्मक रूप से जुडी हुई थी।
पर्याप्त रो चुकने के बाद रागिनी ने पर्स में से अपना रूमाल निकाला।
साकेत ने मेज़ पर रखा पानी का गिलास रागिनी की ओर बढाया।
" सॉरी ! " - पानी पीते हुए रागिनी बोली।
" इट्स ओके। " - साकेत ने कहा - " आप चाहें तो हम कल बात कर सकते हैं। "
" नहीं। " - रागिनी सख्ती से बोली - " मैं कातिल तक जल्द से जल्द पहुंचना चाहती हूँ। "
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