मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 1
आर्ट्स कॉलेज की तीन लड़कियाँ रहस्यमयी ढंग से अचानक लापता हो गई। इनमें से एक की लाश यूनिवर्सिटी रोड़ पर पाई गई। कातिल इतना चालाक था कि उसने न कोई सबूत छोड़ा , न सुराग !
महज एक मामूली सी गोल्डन रिंग , जिसे चुराने वाले ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी एक छोटी - सी हरकत एक के बाद एक घटनाओं की ऐसी श्रृंखला को जन्म देगी , जो कई जिदंगियों को तबाह करके रख देगी।
***
" तुम लाइफ में कभी कुछ नहीं कर सकते। "
" यू आर जस्ट लूजर ! "
" बुद्धि तो बेच ही खायी है तुमने। "
" चुप हो जाओ। " - चीखते हुए साकेत अग्निहोत्री अचानक उठ बैठा।
चौंककर साकेत ने अपने इर्द-गिर्द निगाह डाली। साकेत इस समय अपने पलंग पर था। एक छोटा सा बल्ब रात के घने अंधेरे को अपने प्रकाश से दूर करने का प्रयास कर रहा था।
साकेत ने पास ही मेज़ पर रखी अलार्म घड़ी की ओर देखा।
घड़ी इस वक्त रात के 2 बजकर 10 मिनट का समय बता रही थी। मेज़ पर ही रखे गिलास से उसने पानी पिया और उठकर कमरे की सारी लाइट्स ऑन कर दी।
लाइट्स ऑन होते ही कमरा उजाले से इस तरह जगमगा उठा मानो आधी रात के समय भी कमरे के भीतर ही दिन के सूरज ने अपना साम्राज्य कायम कर लिया हो।
" आई एम सक्सेसफुल परसन !...आई एम द बेस्ट !...आई केन डू इवरीथिंग ! " - खुद से ही कहते हुए साकेत आधी रात के समय भी अपने हॉलनुमा कमरे में तेजी से चहलकदमी करने लगा।
यह सच था कि साकेत आज एक सक्सेसफुल परसन था। रूपयो - पैसों की तो शुरू से ही कोई कमी नहीं रही , तो आर्थिक दृष्टि से देखा जाये , तो वह हमेशा से ही सक्सेसफुल रहा। लेकिन , सफलता भी अजीब चीज़ होती है , लोगों के नजरिये के अनुसार सफलता का मापदंड बदलता रहता है। कुछ लोगों के लिये सफलता का मापदंड पैसा है , तो कुछ के लिये स्वास्थ्य !
और साकेत !...साकेत के लिये सफलता का मापदंड क्या था ?
इस सवाल का जवाब साकेत के अतीत में छिपा हुआ था।
बहरहाल , आज साकेत अपने मापदंड के हिसाब से बेहद सफल शख्स था।
लेकिन , आप चाहे जितने भी सफल हो , अतीत कभी पीछा नहीं छोडता।
कुछ देर चहलकदमी करने के बाद साकेत कम्प्यूटर के सामने बैठ गया।
वह अपना अतीत भूल नहीं पा रहा था।
उसे अपना ध्यान भटकाना था।
कम्प्यूटर स्टार्ट करने के बाद उसने ' प्रोफेशनल फाइल्स ' नाम वाला फोल्डर ओपन किया।
' डायमंड थीफ ' ' संध्या मर्डर केस ' - जैसे कई केस की डिटेल इस फोल्डर में थी।
पिछले दो सालों के अपने जासूसी कैरियर में साकेत ने 17 केस साॅल्व किये थे।
वह कभी असफल नहीं हुआ था।
साकेत अपने एक - एक केस के बारे में सोच - सोचकर खुश हो रहा था।
" कौन कहता है , मैं ' सक्सेसफुल परसन ' नहीं हूँ ? " - साकेत ने अपने आप से कहा - " आज तक जो काम हाथ में लिया है , उसे पूरा किया है। "
हाँ , साकेत अग्निहोत्री जासूस था , एक प्राइवेट डिटेक्टिव !
धन - दौलत , ऐश्वर्य - शौहरत - सब कुछ तो था उसके पास। फिर भी उसने जासूसी के इस पेशे को अपनाया था , निश्चित तौर पर पैसों के लिये तो नहीं !
फिर क्या वजह थी ?
शौक ?
आदत ?
नहीं !...कमी....एक कमी थी साकेत में बचपन से ही।
हर वक्त अपने ही खयालों में खोया रहता था और इसी वजह से न तो कोई काम वह ठीक से कर पाता था , न छोटी - छोटी बातें याद रख पाता था और ऊपर से तीन - तीन भाइयों की डांट , पापा को भी तो बिल्कुल भरोसा नहीं था कि साकेत लाइफ में कभी कुछ कर भी पायेगा !
….बस एक छोटी सी कमी ने अनगिनत सपनों और अनगिनत सपनों ने एक बडे मिशन को जन्म दिया।
और अपने उसी मिशन की बदौलत आज साकेत अग्निहोत्री ' प्राइवेट डिटेक्टिव बन बैठा था और हाँ एक सक्सेसफुल परसन भी !
लगभग आधे घंटे तक पुराने केस देखते - देखते साकेत की आंखें भारी होने लगी थी।
2:45 बजे साकेत ने कम्प्यूटर बंद किया , लाइट्स ऑफ़ की और दोबारा खुद को बिस्तर के हवाले कर दिया।
सुबह खिड़की से आती धूप ने साकेत की नींद में बाधा डाली। साकेत की निगाह घड़ी पर पडी , 8 बज चुके थे।
वह जल्दी से उठा , उसने पास ही की दीवार पर लगा एक स्विच ऑन किया।
स्विच ऑन होते ही नीचे के एक कमरे में एक अलार्म बजा , जिसका परिणाम यह हुआ कि 10 मिनट के भीतर ही 30 - 32 साल का , गठीले बदन वाला एक नौजवान कॉफी का कप लिये साकेत के समक्ष उपस्थित था।
यह साकेत का विश्वसनीय नौकर ' गौरव ' था।
गौरव गरीब घर का लडका था , लेकिन था बडा ईमानदार !
एक बार साकेत का पर्स कहीं गिर गया था , 7 - 8 हजार रूपये से कम नहीं थे उसमें। वह गौरव को सड़क पर रखा मिल गया , उसी में साकेत का आधार और पेन कार्ड भी था। बस जो पता आधार और पेन कार्ड पर लिखा हुआ था , उसी पते पर गौरव जा पहुंचा और साकेत को उसका पर्स मिल गया।
गौरव की ईमानदारी देखकर साकेत बहुत प्रभावित हुआ और उसने अच्छी - खासी तनख्वाह पर गौरव को अपने घर में नौकर रख लिया।
साकेत धन - साधन सम्पन्न तो था ही , चिंता उसे किसी बात की थी नहीं। ले देकर बस एक ही परेशानी थी , घर को व्यवस्थित रखने और साकेत के लिये खाने - पीने की व्यवस्था करने वाला कोई न था , सो यह परेशानी भी गौरव के आते ही दूर हो गयी।
वैसे , साकेत अग्निहोत्री जैसे प्राइवेट डिटेक्टिव का पर्स खोना और उसमें भी आधार - पेन कार्ड का गुम होना , गले उतरने वाली बात तो थी नहीं , इसीलिये लोगों का मानना था कि साकेत ने गौरव की ईमानदारी को परखने के लिये ही अपना पर्स जानबूझकर सडक पर गिरा दिया था।
लेकिन , साकेत कोई भगवान तो था नहीं , जो उससे कोई गलती ना हो ! हो सकता है कि भूल से पर्स गिर ही गया हो।
चाहे जो रहा हो , पर दोनों ही परिस्थितियों में गौरव को तो लाभ ही हुआ था। उसे एक अच्छी - सी नौकरी मिल गयी , एक अच्छे मालिक का साथ मिला और साथ ही साकेत अग्निहोत्री जैसे हाई प्रोफाइल शख्स के साथ रहने से उस गरीब का जीवन स्तर भी सुधर गया।
गौरव ने कॉफी का कप साकेत के हाथ में दिया और वहां से चला गया।
कॉफी का कप हाथ में लिये हुए साकेत बालकनी में आ गया।
सुबह की धूप के साथ कॉफी पीना , साकेत का मानना था कि भाग्यशाली लोगों को ही यह सुख मिल पाता है। असल में , अकेलेपन के दंश से पीड़ित व्यक्ति के लिये छोटी - छोटी चीजों में ही सुख छिपा होता है।
बालकनी से नीचे की ओर देखने पर साकेत को वही दृश्य दिखायी दिया , जो हर रोज दिखता था।
दो - तीन सरकारी कर्मचारी जॉगिंग करते हुए दिख रहे थे।
दिनभर आॅफिस में बैठकर कुर्सी तोडते हुए अपनी चर्बी बढाना और फिर उसे कम करने के लिये सुबह - सुबह जॉगिंग करना , अजीब समस्या है बेचारों के साथ !
जल्दी ही साकेत ने काॅफी खत्म की और तैयार होने के लिये बाथरूम में घुस गया , जो उसके रूम से ही अटैच था।
करीब 9 बजे जैसे ही साकेत तैयार हुआ , उसके मोबाइल पर एक कॉल आयी।
" हैलो ! " - काॅल रिसीव करते हुए साकेत बोला।
" हैलो ! अग्निहोत्री सर बोल रहे हैं ? " - फोन के उस तरफ से एक महिला स्वर उभरा - " डिटेक्टिव साकेत अग्निहोत्री ? "
" बोल रहा हूँ , आप कौन ? "
" सर , मैं रागिनी बोल रही हूँ। "
" कौन रागिनी ? "
" आप मुझे नहीं जानते सर ! लेकिन , मैं आपको जानती हूँ। "
" कैसे ? "
" जैसे पूरा शहर जानता है। "
" मैं समझा नहीं। "
" सर , आप शहर के सबसे अच्छे प्राइवेट डिटेक्टिव है , मुझे आपकी मदद की जरूरत है। "
" ओह ! " - साकेत को अब कुछ - कुछ समझ आया - " तो क्लाइंट हो ! "
" जी सर ! " - रागिनी बोली - " आप ऐसा कह सकते हैं। "
" कहिये , क्या मदद कर सकता हूँ आपकी ? "
" फोन पर नहीं बता सकती। क्या हम कहीं मिल सकते हैं ? "
" ओके , मेरे घर आ जाओ। "
" ठीक है सर ! मैं बस आधे घंटे में पहुंचती हूँ। "
" मेरा पता लिख लो। "
" जरूरत नहीं सर ! मैं जानती हूँ। "
" कैसे ? "
" जैसे पूरा शहर जानता है। " - कहने के साथ ही रागिनी ने फोन कट कर दिया।
- क्रमशः
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