हंसमुख की विदेश यात्रा



 हंसमुख यादव का असली नाम तो कुछ और ही था। लेकिन अपने हास्य विनोद प्रिय स्वभाव के कारण लोगो ने उनको हंसमुख कहना शुरू कर दिया।

हंसमुख 35 साल का युवक था।

जहां हंसमुख हो वहां हंसी की बात न हो, ऐसा भी भला कभी हो सकता है!

एक बार हंसमुख विदेश यात्रा पर अमेरिका गए। भारत अपने गांव वापस आकर वे अपने ग्रामीण साथियों को अपनी विदेश यात्रा के मजेदार किस्से सुना रहे थे।

"अमेरिका में तो सुना है बड़ी ठंड पड़ती है!" - गांव के एक बुजुर्ग जमनालाल जी बोले।

"हां। बहुत ठंड पड़ती है।"

"अपने गांव से भी ज्यादा ?" - दूसरा ग्रामीण किसनू बोला।

"अरे, यहां भी कोई ठंड पड़ती है !" - हंसमुख बोला - “आप तो 60 बसंत देख चुके हो अपने जीवन के। ठंड में कभी अपने यहां बर्फ गिरते देखी है ?”

अब किसनू ठहरा साधारण ग्रामीण। गांव से बाहर कभी कदम नहीं रखा। इसीलिए वो तो यही मानकर चल रहा था कि उनके गाँव में तो क्या पूरे भारत देश में कहीं बर्फ गिरने का कोई सवाल नहीं। तो तपाक से बोल उठा - “अरे भइया! यहां कहां बर्फ गिरने लगी ? और जब गिरती ही नहीं तो मैं भला कहां देखने लगा बर्फ को गिरते हुए ?”

“सही कहा। अब आप ही बताओ जब यहाँ बर्फ ही नहीं गिरती तो ठंड क्या खाक पड़ेगी!”

“भई, कहना क्या चाहते हो ?” - एक तीसरा ग्रामीण रमैया बोला।

“अरे, अमेरिका में सिर्फ ठंड ही नहीं पड़ती। बर्फ भी गिरती है।”

“बर्फ भी गिरती है!” - जमनालाल, किसनू और रमैया तीनों एक साथ चौंके।

साथियों पर अपनी बात का प्रभाव देखकर हंसमुख उनको और अधिक हैरान करते हुए बोला - “अरे! सिर्फ बर्फ ही नहीं गिरती, बहुत ज्यादा बर्फ गिरती है। पूरे दिन बर्फ ही गिरती रहती है।”

“तू हमारी फिरकी तो नहीं ले रहा है लड़के!” - किसनू ने संदेह भरी नजरों से देखते हुए कहा।

“अरे, काका! कैसी बात करते हो!”

“क्यों ना करूं! एक तो बर्फ गिरना बड़े आश्चर्य की बात है। दूसरे मान लिया गिरती है, तो गिर जाती होगी थोड़ी बहुत। अब पूरे दिन, चौबीसों घंटे बर्फ ही गिरती रहती है। इस बात को मानना जरा मुश्किल तो है ही।”

“वहां सच में पूरा दिन बर्फ गिरती है और ये मैं अभी एक मिनट में यहीं बैठे बैठे साबित कर सकता हूं।”

“वो कैसे ?”

“देखो! अंग्रेज लोगों की खाल कैसी होती है?”

“कैसी होती है ?”

“गोरी होती है, एकदम सफेद। बर्फ की तरह।”

“तो ?”

“तो ये कि उनकी खाल पूरे दिन बर्फ में रहने के कारण सफेद हो जाती है।”

“हां। बात तो सही है।” - किसनू को बात समझ में आ गई।

“पर, एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही।” - कुछ सोचते हुए रमैया बोला - “बर्फ गिरते रहने से वहां पूरे दिन बहुत शोर होता होगा।”

“हां, होता तो है।”

“तो जब वहां के लोग आपस में बात करते होंगे, तो बहुत चिल्लाकर बात करनी पड़ती होगी ना!”

“चिल्लाकर बात करने की बात कहां कर रहे हो रमैया!” - हंसमुख खिलखिलाकर हंसते हुए बोला - “ये उनके लिए कोई समस्या थोड़े ही है। उनके पास तो बड़े बड़े स्पीकर होते हैं। उनमें वे धीरे धीरे बोलते हैं तो भी उनकी आवाज तेज होती है।”

“अच्छा!”

“और नहीं तो क्या! उनके लिए बड़ी समस्या तो ये होती है कि जब वहां के लोग बात करना शुरू करते हैं तो बर्फ के कारण उनकी बात ही जम जाती है।”

“बात जम जाती है!” - तीनों फिर से चौंके।

“हां भाई।”

“फिर वे लोग बात कैसे करते होंगे ?” - जमनालाल ने जिज्ञासा वश पूछा।

“अरे, और कैसे करेंगे। कही भी जाते हैं तो अपने साथ बोलने के लिए स्पीकर और जमी हुई बात को तोड़ने के लिए एक छैनी और हथौड़ी साथ रखते हैं।” - हंसमुख ने समझाते हुए बताया - “स्पीकर से अपनी बात बोलो, मुंह से निकली बात जम जाए तो छैनी और हथौड़ी से बर्फ तोड़कर बात सुनने वाले के कान तक पहुंचा दो।”

“अच्छा हुआ अपने यहां बर्फ नहीं गिरती।” - किसनू बोला - “नहीं तो हमें भी अंग्रेजों की तरह स्पीकर, छैनी और हथौड़ी लेकर घूमना पड़ता।”

किसनू की इस बात पर तीनों ठठाकर हंस पड़े।


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6 Comments

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 08 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका 😊

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद 😊

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