बात उन दिनों की है, जब हंसमुख अमेरिका में रहकर एक कार रिपेयरिंग कंपनी में काम कर रहे थे। वैसी कंपनियों को हमारे देश में 'गैराज' कहा जाता है। लेकिन, अमेरिका जैसे विकसित देशों में तो गैरेज को भी कंपनी का दर्जा मिला हुआ है।
तो, हंसमुख यादव उसी कार रिपेयरिंग कंपनी में काम कर रहे थे। काम करते - करते हंसमुख ने कार रिपेयरिंग ही नहीं सीखी। रिपेयरिंग के साथ - साथ कार बनाना भी सीख लिया और हो सकता है कि आपको यकीन ना आए लेकिन सच तो यही है कि हंसमुख कार वैज्ञानिक तक बन गए।
कैसे ?
अरे भई, हंसमुख यादव कोई आम आदमी थोड़े ही न थे। वे तो आम आदमियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सबके अगुआ थे, क्रांतिकारी थे। बचपन से ही क्रिएटिव माइंड के थे। जो चीज जैसी होती थी, वैसी क्यों होती थी - इस पर वे गहराई से सोचते थे, समझते थे और चीजों को बदलने की भी कोशिश करते थे।
उनकी इन्हीं कोशिशों की बदौलत कार रिपेयरिंग और कार बनाने की कार्य प्रणाली सीखने के साथ - साथ उन्होंने यह भी सोचा कि कार जैसी होती है, वैसी क्यों होती है। वो वैसी क्यों नहीं होती, जैसी कि नहीं होती है! और वो जैसी नहीं होती है, उनको वैसा कैसे कर सकते हैं।
बस इन्हीं सब बातों को सोचते - सोचते उनके क्रिएटिव माइंड ने उन्हें एक ऐसी कार बनाने के लिए प्रेरित किया, जैसी कि आज दिन तक किसी ने बनाने की सोची तक नहीं थी।
बस फिर क्या था!
हंसमुख ने एक ऐसी कार बना डाली जो इंसान की आवाज सुनकर चलती थी और आवाज सुनकर ही रुकती थी।
अब, जबकि कार चाबी से ही चल जाती है तो हंसमुख को भला ऐसी कार बनाने की क्या सूझी, जो इंसान की आवाज सुनकर ही चलती और रुकती हो !
इसकी एक वजह तो हमने पाठकों को ऊपर बता ही दी है। दूसरी एक और वजह ये थी कि कार की चाबी कई बार हम कहीं रख देते हैं और जब हमें कहीं जाना होता है तो काफी समय चाबी ढूंढने में ही लग जाता है। कभी - कभी तो पूरा घर ही उथल - पुथल करना पड़ जाता है। तो, ऐसी समस्याओं से आम आदमी को निजात दिलाने के लिए हंसमुख ने ऐसी कार बना डाली जिसको चलाने के लिए चाबी तो क्या इग्निशन तक की जरूरत ना पड़े।
हंसमुख दुनियादार आदमी थे। दुनिया देखी थी उन्होंने। अब ऐसी गलती तो वे कर नहीं सकते थे ना कि बिन चाबी के कोई भी इंसान उनके द्वारा आविष्कार की गई कार को चला पाता!
नहीं, इतने बड़े अहमक नहीं थे हंसमुख यादव।
उन्होंने कार को इंसानी आवाज से चलाने के लिए भी एक कोड बनाया था। एक ऐसा कोड, जिसको कोई भूल भी नहीं सकता था और बिना जाने, जिसका कोई इस्तेमाल भी नहीं कर सकता था।
कार का मालिक चाहे तो दुनिया भर में उस कोड को बांटता फिरे। पर, हंसमुख ने तो वह कोड सिर्फ उसी व्यक्ति को देना था, जो कि उस कार को खरीदता।
वह कोड कुछ इस तरह था - कार को स्टार्ट करके चलाने के लिए उसकी ड्राइविंग सीट पर बैठकर बोलना पड़ता था - “रुक!”
रुक सुनते ही कार चल पड़ती थी और निर्देश सुनकर चलती जाती थी और निर्देश भी कैसे! सब कोड में थे। जैसे कि कार को बाईं तरफ मोड़ना हो तो बोलना पड़ता था - “दाईं तरफ” और दाईं तरफ मोड़ना हो तो बोलना पड़ता था “बाईं तरफ” मतलब , सारे कोड बड़े सरल थे, बस हर निर्देश को उल्टा बोल दो।
फिर कार चालक जब अपनी मंजिल पर पहुंच जाता, तब कार को रोकने के लिए बोलना पड़ता था - “चल!”
चल सुनते ही कार रुक जाती थी।
हंसमुख ने कार को चलाने और रोकने के लिए इतने सरल और अजीब से कोड का इस्तेमाल क्यों किया ? - ये सवाल आपके दिमाग में चक्करघिन्नी की तरह जरूर घूम रहा होगा।
इसकी वजह ये है कि एक तो कठिन कोड को भूलने का डर रहता है और दूसरा उल्टे कोड मतलब, चलने के लिए रुक और रुकने के लिए चल जैसे कोड का इस्तेमाल हंसमुख ने इसलिए किया, ताकि उनको कार के ऑनर के अलावा कोई और समझ न पाए।
कार का आविष्कार हो जाने और उसे चलाकर टेस्ट कर लेने के बाद जब हंसमुख पूरी तरह आश्वस्त हो गए। तो, अगले दिन आविष्कार को पेटेंट कराने की योजना बनाकर लंबी तानकर सो गए।
लेकिन, अब इसे हंसमुख का दुर्भाग्य कहें या उस चोर की बुरी किस्मत , जिसने कि उसी रात वह कार चुरा ली।
कार चोरी होना हंसमुख का दुर्भाग्य था - ये तो आपकी समझ में आ रहा होगा। लेकिन, कार चुराने वाले चोर की किस्मत को मैंने बुरी क्यों कहा, ये बात आपको जरूर खटक रही होगी।
जल्दी ही आप समझ जाएंगे कि मैने चोर की किस्मत को बुरी क्यों कहा।
तो जब रात के घने अंधेरे में हंसमुख सहित मोहल्ले के सारे लोग नींद के आगोश में थे , एक चोर कार चुराने के लिए कार का गेट खोलकर अंदर दाखिल हो गया। आश्चर्य तो हुआ उसे कि कार लॉक क्यों नहीं थी! कितनी आसानी से वह कार का दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गया और बैठा भी कहां! ड्राइविंग सीट पर!
साथ लाया चाबियों का गुच्छा, जो वह हमेशा अपने साथ रखता था। काम ही था उसका कार और बाइक चोरी करना।
ड्राइविंग सीट पर बैठते ही उसने चाबियों का गुच्छा निकाला और कार चलाने के लिए इग्निशन ढूंढने लगा। लेकिन, था ही कहां इग्निशन कार में, जो उसे मिलता!
“अरे! इग्निशन तो इसमें है ही नहीं।” - चोर उलझन में पड़ गया - “इस कार में चाबी लगती कहां है!”
कुछ देर सोचने के बाद चोर ने चाबी को कार में हर कहीं लगाने का प्रयास किया। पर उससे होना क्या था! कार को नहीं चलना था, नहीं चली।
“अरे, ये कार चलती कैसे है ?” - चोर झल्लाया - “कितनी देर से कोशिश कर रहा हूं। ये तो बस यहीं रुकी हुई है।”
चोर ने जैसे ही ' रुकी ' शब्द बोला, कार चल पड़ी।
कार अचानक कैसे चलने लगी, ये तो चोर को समझ नहीं आया। लेकिन फिर भी वह ये सोचकर खुश हुआ कि कार चली तो सही।
तो कार बिल्कुल नाक की सीध में चली जा रही थी। मोहल्ले से बाहर जाकर एक जगह कार को मोड़ने की नौबत आई।
चोर ने स्टेयरिंग घुमाया, पर उससे क्या होना था! स्टेयरिंग पहियों से कनेक्ट थोड़ी ना था। वह तो उस चोर जैसे ही किसी अजनबी को मूर्ख बनाने के लिए लगाया था हंसमुख ने।
“अरे, ये तो मुड़ ही नहीं रही। अब क्या करूं ?” - चोर फिर उलझन में पड़ गया।
कार को बाईं तरफ मोड़ना था, पर वो बाईं तरफ मुड़ नहीं रही थी।
“अरे, ये दाईं तरफ ही क्यों जा रही है !” - आखिर परेशान चोर चिल्ला उठा।
बस फिर क्या था!
कार ने जैसे ही “दाईं तरफ” निर्देश सुना, वह बाईं तरफ मुड़ गई।
“शुक्र है। कार मुड़ गई, नहीं तो किसी इमारत से टकरा जाती।
तो, किसी तरह गिरते पड़ते, सड़कों पर दाएं - बाएं लहराते कार चली जा रही थी। चोर कभी झल्लाता, परेशान होता, फिर कार को ठीक से चलते देख खुश होता किसी अनजानी राह पर चला जा रहा था।
चलते - चलते वह कार शहर से बाहर ऐसे इलाके में आ गई, जहां खाली मैदान था, चढ़ाई थी। अब चोर घबरा उठा। उस रास्ते वह पहले भी आ चुका था।
आगे खाई थी, वो भी बहुत गहरी - यह बात वो जानता था।
“अरे, इस कार को अब कैसे रोकूं! आगे तो खाई है। ये नहीं रुकी, तो इसके साथ मैं भी खाई में गिर जाऊंगा।”
चोर बार - बार ' रुक' बोल रहा था और कार इस निर्देश को सुनकर बस चलती ही जा रही थी।
“अरे, ये रुक क्यों नहीं रही! कैसे रोकूं इसको।” - चोर बुरी तरह डर गया था।
कार निर्देश सुनकर अपनी गति बढ़ाती ही जा रही थी।
अब कार खाई के बिलकुल करीब पहुंच गई थी। वह खाई से बस दो फुट की दूरी पर ही थी जब चोर के मुंह से निकला - “ये तो चलती ही जा रही है! अब मैं खाई में गिर ही जाऊंगा।”
चोर का डर के मारे बुरा हाल था। उसकी ऊपर की सांस ऊपर को और नीचे की सांस नीचे को रुकी हुई थी।
इसी समय “चल” निर्देश सुनकर कार रुक गई।
कल्पना भी नहीं की जा सकती कि कार के रुकने से चोर को कितनी खुशी हुई!
राहत की साँस लेते हुए वह बोला - “अच्छा हुआ कार रुक गई, नहीं तो आज मैं खाई में गिर ही जाता।”
रुक शब्द सुनते ही कार फिर चलने लगी।
“अरे! ये कार तो फिर से चलने लगी।” - चोर फिर परेशानी भरे स्वर में बोला।
चल सुनकर कार फिर रुक गई।
“अच्छा हुआ रुक गई। अब जल्दी से कार से बाहर निकलता हूँ।
रुक सुनते ही वह फिर से चली।
इस तरह चलते - रुकते, रुकते - चलते वह कार खाई के बिलकुल करीब पहुंच गई। मारे दहशत के यमराज के दिखने की कल्पना करते हुए चोर चिल्ला उठा - “ये तो चलती ही जा रही है, अब मैं जरूर खाई में गिरकर मर जाऊंगा!”
“चल” निर्देश सुनते ही कार रुक गई।
लेकिन अब हालत ये थी कि कार के आगे के दोनों पहिए खाई के ठीक ऊपर हवा में झूल रहे थे।
कार को रुकी हुई देखकर चोर ने पीछे की सीट पर जाकर गेट खोलने की सोची। जिससे कि वह कार से बाहर निकल कर अपनी जान बचा सके।
लेकिन, यही वो पल था, जब खुशी से चोर बोल उठा - “कार रुकी हुई है। अब मैं पीछे की सीट पर जाता हूं, फिर दरवाजा खोलकर बाहर कूद जाऊंगा। कार के खाई में गिरने का दुख तो होगा, पर मैं तो बच ही जाऊंगा।”
चोर बच भी जाता, पर उसकी खुद से जोर - जोर से बात करने की बुरी आदत ने उसे बुरी तरह से फंसा दिया।
कार ने “रुक” निर्देश सुन लिया था और वो फिर से चल पड़ी। चलते हुए चोर को लेकर सीधी खाई में जा गिरी।
बेचारे हंसमुख अगले दिन सुबह कार को गायब पाकर फिर से नई कार बनाने में जुट गए।
और उधर कोई दूसरा चोर फिर किसी नई कार को चुराने चल पड़ा!

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