आत्मसम्मान
प्यारा होता है सभी को
आत्मसम्मान अपना।
होते हैं प्रेमी सभी
आत्मसम्मान के।
चाहना इसको
करना रक्षा इसकी
नहीं है बुरा
बिल्कुल भी नहीं।
लेकिन,
खड़ी होती है समस्या
जब,
किसी एक का आत्मसम्मान
लगता है करने क्षीण
किसी दूसरे के आत्मसम्मान को!
या कि हो जाता है
किसी एक का आत्मसम्मान
परिणत घमंड में।
यही,
उस एक के
आत्मसम्मान का विस्तार!
उस एक के
घमंड की पराकाष्ठा!
लगती है दबाने
किसी दूसरे के
आत्मसम्मान को!
और तब,
बचाने को रिश्ते
निभाने को वादे।
कोई एक,
मार देता है
प्राणों से भी प्रिय
आत्मसम्मान को अपने।
कर लेता है समझौता
आम जिन्दगी से।
और बन जाता है
एक मशीन!
मशीन,
जिसे कुछ महसूस नहीं होता।
महज इसलिए कि
बचा रह सके
उस एक का
विस्तारित आत्मसम्मान!
फल फूल
सके
घमंड उसका
और बच सके
कुछ रिश्ते!
10 Comments
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में बुधवार 04 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसोचने के लिए मजबूर करती रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteअपने आत्मसमान की क़ीमत पर बचाया रिश्ता दूर तक नहीं चलता
ReplyDeleteजी। बिल्कुल सही है।
Deleteबढिया 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteउत्तम पंक्तियाँ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
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