“ उन सबको भी यही लगता है, जो कि श्रेया के पीछे पड़े है। “ - पवन बोला।
“ श्रेया के अगर इतने ही चाहने वाले है तो कोई तो होगा, जिसे श्रेया भी चाहती हो ? “ - कुछ सोचते हुए यश बोला - “ कौन हो सकता है वो ? “
“ पता नही। “ - पवन लापरवाही से बोला - “ और मेरे खयाल से तो अब तुम्हें श्रेया को अपने दिल और दिमाग दोनों से ही निकालकर बाहर फेंक देना चाहिए। आखिर उसी ने तो रेस्टिकेट करवाया है तुमको। “
इसके बाद पवन वहाँ से चलता बना।
वह जानता था कि आप किसी से चाहे कितनी ही बातें कर लो। सुनने वाला सब भूल जायेगा। लेकिन वो बात, वो वाक्य, वो शब्द, जिसको बोलने के बाद वार्तालाप समाप्त कर दिया गया है, आसानी से नहीं भूल पायेगा।
और उसने ठीक वही किया था।
वार्तालाप के अंत में उसने ऐसी बात बोली थी, जिसे सुनकर यश श्रेया को न केवल अपने दिल से बाहर निकाल फेंके, बल्कि कुछ कुछ नफरत भी करने लगे।
आखिर यश पवन का सबसे अच्छा दोस्त था और अब वह इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका था कि श्रेया से दूर रहने में ही यश की भलाई है।
कुछ देर पहले यश ने जिस हाथ में लव लेटर थाम रखा था, उसी हाथ में अब उसके पास उसका रेस्टिकेशन लेटर था। पवन के जाने के बाद कुछ देर तक वह उसे घूरता रहा। उस समय लेटर में लिखा हुआ एक शब्द भी उसे दिखाई नहीं दे रहा था। उन शब्दों की जगह उसे तो बस श्रेया का ही चेहरा दिखाई दे रहा था। श्रेया का मासूम सा चेहरा, जिसको देखकर यश को बड़ा सुकून मिलता था। लेकिन इस समय उस चेहरे को देखकर यश को कोई सुकून नहीं मिल रहा था। हँसती - खिलखिलाती सी मासूम श्रेया का चेहरा इस समय उसे गुस्से और नफरत से भरा हुआ लग रहा था।
श्रेया के गुस्से से भरे चेहरे की कल्पना करते हुए यश की मुख मुद्रा भी गंभीर हो उठी थी।
“ श्रेया! तुमको मैंने दिल से चाहा था, लेकिन तुम मेरे प्यार को समझ नहीं पाई! “ - खुद से ही बोलते हुए उसने तेजी से अपने कदम कॉलेज से बाहर की ओर जाने वाली सड़क पर बढ़ा दिये।
•••••
प्रताप म्युजियम में इस समय संग्रहालय अधीक्षक विकास सक्सेना और वहाँ के अन्य कर्मचारियों के अलावा पुरातत्व विभाग के महानिदेशक समीर चौबिसा , संयुक्त महानिदेशक अनुराग देसाई, पुरातत्वविद् जतिन जैन और अन्य कई अधिकारी व कर्मचारी भी मौजूद थे। एक तरह से पूरा पुरातत्व विभाग ही आज उस छोटे से संग्रहालय में एकत्रित हो गया था।
क्या बेवजह ?
नहीं।
बिना किसी वजह के इस संसार में कहीं कुछ होता है भला !
क्या वजह थी ?
पत्थर का इंसान!
स्टोनमेन!
हाँ, वह सिर्फ उस शहर में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत देश में हलचल मचा चुका था। तभी तो पुरातत्व विभाग के सबसे बड़े अधिकारी और महानिदेशक तक को वहाँ आने के लिए मजबूर होना पड़ा।
“ तो, इसी नृसिंह की प्रतिमा के पास थी वह प्रतिमा, जिसमें से पत्थर का आदमी प्रकट हुआ ! “ - महानिदेशक समीर चौबिसा प्रताप म्युजियम के हॉल में मौजूद नृसिंह भगवान की प्रतिमा को ध्यान से देखते हुए बोले।
“ जी हाँ। “ - विकास सक्सेना ने कहा - “ प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तो हिरणकश्यप की ही प्रतिमा में से पत्थर का वह आदमी प्रकट हुआ था। “
“ और उस प्रतिमा में वह कहाँ से आया ? “
“ यह तो शोध का विषय है सर! “ - अधीक्षक सक्सेना विनम्रतापूर्वक बोले - “ काँच के जिस केबिन मे पत्थर का वह आदमी, हिरणकश्यप की प्रतिमा में विस्फोट के बाद ही दिखाई दिया था। इसीलिए सहज ही यह अनुमान लगा लिया गया कि वह प्रतिमा मे से ही प्रकट हुआ होगा। “
“ और यह प्रतिमा इस म्युजियम में कहाँ से आई ? “ - कुछ सोचते हुए समीर चौबिसा ने प्रश्न किया - “ कौन लाया इसे यहाँ ? “
“ नृसिंह और हिरणकश्यप की ये प्रतिमाएँ यहाँ मैं लेकर आया था। “ - पुरातत्वविद् जतिन जैन ने कहा - “ यहाँ पास ही सेमलपुर नाम का एक छोटा सा गाँव है। वहीं पर एक पुराने महल में ये प्रतिमाएँ रखी हुई थी। वहाँ से मैं इन्हें यहाँ ले आया। “
“ मेरे विचार से “ - दाहिने हाथ से अपने नजर के चश्मे को अपनी आँखों पर ठीक से एडजस्ट करते हुए समीर चौबिसा बोले - “ इतनी जानकारी तो आपको होगी ही कि म्युजियम में स्थान पाने का गौरव उन्ही कलाकृतियों को हासिल होता है, जो एंटीक पीस हो, जिनमें कुछ ऐसी खासियत हो जो कि उनको बाकी कालाकृतियों से बहुत खास दर्जा दिलाती हो ? “
“ जी हाँ, बिल्कुल है। “ - जतिन जैन सहज भाव से बोले।
“ तब मिस्टर जैन, मिट्टी की बनी इस मूर्ति आपको ऐसी क्या खास बात दिखी कि आपने इसे इस म्युजियम में जगह दिला दी ? “
“ वही, जो अधिकतर कलाकृतियों में दिखा करती है। “
“ क्या ? “
“ प्राचीनता सर! “ - पुरातत्वविद् जैन बोले - “ यह प्रतिमा भले ही इस संग्रहालय की शोभा बढ़ाने वाली अन्य प्रतिमाओं की तरह पत्थर या सोने - चाँदी की न होकर मिट्टी की बनी हुई है, लेकिन उतनी ही एंटीक है, जितनी कि दूसरी प्रतिमाएँ। बल्कि मैं तो कहता हूँ कि मिट्टी से बनी हुई होने के कारण यह प्रतिमा अपने आप में अद्भुत है। “
“ अच्छा! “
“ जी सर! काफी पुरानी होने के बावजूद अभी तक यह सुरक्षित है, जबकि इसके साथ की ही मिट्टी से बनी दूसरी प्रतिमाएँ टूटी फूटी अवस्थाओं में मिली है। “ - जतिन जैन उत्साह भरे स्वर में बोले जा रहा था - “ आप खुद सोचिये सर! हिरणकश्यप की प्रतिमा में विस्फोट हुआ, पत्थर का आदमी काँच का केबिन तक तोड़कर यहाँ से बाहर निकल गया। लेकिन इस नृसिंह की प्रतिमा को एक खरोंच तक नहीं आई! क्या यही एक बात साबित नहीं करती कि यह प्रतिमा कितनी अद्भुत और एंटीक कलाकृति है ? “
“ वह सब तो ठीक है। “ - कुछ सोचते हुए समीर चौबिसा बोले - “ लेकिन, बात इस विषय पर हो रही थी कि आखिर तुमने मिट्टी की एक साधारण सी दिखने वाली प्रतिमा के बारे में यह कैसे पता लगा लिया कि वह एक दुर्लभ कलाकृति है ? “
“ बताया तो, इसकी पुरातनता के आधार पर। “
“ कितनी पुरानी प्रतिमा है ये ? “
“ 350 ईस्वी, गुप्तकाल। “
“ क्या! “ - बुरी तरह से चौंकते हुए बोले चौबिसा - “ ये प्रतिमा इतनी पुरानी है! कैसे ? “
“ क्या मतलब सर ? “
“ अरे, मेरा मतलब है कि इतनी पुरानी प्रतिमा तक तुम पहुँचे कैसे ? तुमको इस जगह… क्या नाम बताया था तुमने ? “
“ सेमलपुर। “
“ हाँ, इस सेमलपुर गाँव और जिस प्राचीन महल में ये प्रतिमा तुमको मिली, उसके बारे में पता कैसे चला ? “ - उत्तेजित स्वर में पूछा समीर चौबिसा ने - “ तुमको किसने बताया ये सब ? “
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