मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

मंगलवार, 19 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 20 श्रेया की पेंटिंग

 

“ तो क्या शहर के बाकी लोगों की तरह हम भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें ? “ - श्रेया बोली - “ कुछ ना करें ? “

“ पर ऐसा हुआ क्या है, जो कुछ करने की नौबत आ गई ! “ - चकित स्वर में माँ बोली - न उड़ने वाले इंसान ने और न ही पत्थर के उस आदमी ने, ऐसा कुछ किया है, जो हम आम इंसानों को दहशत में डाल दे। “

“ तब क्या हम उनके कुछ करने का इंतजार करें ? “

“ तू क्या करना चाहती है ? “

“ कुछ नहीं। “ - गुस्से से बोलते हुए श्रेया उठ खड़ी हुई। 

“ अब जा कहाँ रही हो ? “ - श्रेया को वहाँ से जाते देख माँ ने पूछा। 



“ कहीं नहीं। बस अपने रूम में जा रही हूँ। “ - जवाब देने के साथ ही श्रेया आगे बढ़कर सीढ़ियों से होते हुए ऊपरी मंजिल पर चली गई। 



तेजी से चलते हुए वह अपने रूम में दाखिल हुई। उसका स्टडी रूम, उसका बेडरूम - सब कुछ वही था। 

रूम में प्रवेश करते ही सामने की दीवार पर एक पेंटिंग लगी हुई थी, जिसमें बहती हुई नदी दिख रही थी। नदी में चट्टाननुमा बड़े बड़े पत्थर रखे हुए थे, जो आधे पानी में डूबे हुए थे। इन पत्थरों से टकराकर नदी का जल लहरों की सृष्टि कर रहा था। इन्ही में से एक पत्थर पर एक लड़की बैठी हुई थी, जिसने ग्रीन कलर की ड्रेस पहन रखी थी। उसने अपने बायें हाथ की कोहनी को अपने घुटने से टिका रखा था और हथेली से ठुड्डी को थाम रखा था। वह किसी गहरे विचार में डूबी हुई लग रही थी। 

यह लड़की और कोई नहीं बल्कि खुद श्रेया ही थी। श्रेया को पेंटिंग बनाने का बहुत शौक था और यह उसी की बनाई हुई पेंटिंग थी। 

वैसे तो श्रेया ने इसके पहले भी ऐसी कुछ पेंटिंग्स बनाई थी और बाद में भी, जिनको कि सही मायनों में पेंटिंग का खिताब दिया जा सकता है। लेकिन, उनमें उसकी सबसे पसंदीदा पेंटिंग यही थी। इसीलिए तो यह रूम के ठीक सामने लगी हुई थी, जिससे कि कोई भी रूम के भीतर आये तो उसकी नजर सबसे पहले इसी पेंटिंग पर पड़े। 

अपनी ही बनाई इस पेंटिंग को देखकर श्रेया अक्सर कहीं खो जाया करती थी, उसे एक अलग ही अनुभूति होती थी। ऐसा लगता था, जैसे इस पूरे संसार में किसी भी वस्तु का कोई अस्तित्व नहीं है। बस यह नदी है, चट्टाननुमा ये बड़े बड़े पत्थर है और है वह खुद, बिल्कुल अकेली! यह अनुभूति उसे डराती नहीं थी, अकेलेपन का एहसास नहीं कराती थी, बल्कि यह तो उसे सुकून महसूस कराती थी। 



लेकिन, आज इस पेंटिंग को देखकर उसे कोई अलौकिक या अद्भूत अनुभूति नहीं हो रही थी। पेंटिंग को देखकर आज उसे किसी तरह का कोई सुकून हासिल नहीं हो रहा था और इसकी वजह थी, पत्थर के आदमी की न्यूज़! पत्थर की प्रतिमा के जीवित हो उठने की जो सच्ची खबर उसने टीवी पर देखी थी, उसकी वजह से ही आज इस पेंटिंग के बड़े बड़े पत्थर भी उसे डरा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि पेंटिंग में दिख रहे इन पत्थरों में से अभी कोई पत्थर जीवित होकर इंसानी रूप धारण कर लेगा और पत्थर पर बैठी गहरी सोच में डूबी लड़की को दहशत में डाल देगा। इस खौफनाक कल्पना से एक पल के लिए तो श्रेया सिहर उठी। लेकिन, फिर अगले ही पल अपना सिर झटक कर उस डरावनी कल्पना से बाहर निकल आई। 

उसका गुस्सा अब जा चुका था। गुस्से का स्थान डर ने ले लिया था।

धीरे धीरे चलते हुए वह खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। 

आकाश में बादल छाये हुए थे और हल्की हल्की बारिश आ रही थी। धीरे धीरे बारिश तेज होने लगी। बारिश की बूँदें ग्लास विंडो से टकराकर टप - टप की आवाज कर रही थी। बादल गरजने लगे थे, बिजलियाँ चमकने लगी थी। ऐसे सुहाने मौसम में श्रेया का मन मयूर की भाँति नृत्य करने लगा। उड़ने वाले इंसान और पत्थर के आदमी के बारे में सोचकर जो डर उसे लगा था और फिर माँ से बात करते हुए उसे जो गुस्सा आया था, वो सब एकाएक ही कहीं गायब हो गया। अब तो बेवजह उसे खुशी हो रही थी, जो कि स्वाभाविक ही था। उसने धीरे से ग्लास विंडो खोलकर देखा, हवा का एक झोंका बारिश की बूँदों के साथ भीतर आया और मिट्टी की सौंधी गंध के साथ उसे ठंडक का एहसास करा गया। उसने जल्दी से विंडो वापस बंद कर दी। उसे काफी अच्छा लगा। फिर से उसने खिड़की खोल दी और इस बार खिड़की के दोनों पल्ले पूरी तरह खोल दिए। बारिश की बौछारें ठंडी हवा और सौंधी खुशबू के साथ अंदर आकर श्रेया को भिगोने लगी थी। चेहरे पर बारिश की ठंडी बूँदें पड़ने से श्रेया को बहुत अच्छा लग रहा था। अब उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और चेहरे पर पड़ने वाली बारिश की बूँदों को वह गहराई से महसूस कर रही थी। कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही। फिर जब उसने ठंडक बढ़ती महसूस की, तो फिर से खिड़की बंद कर दी। 



वहीं रखे कपड़ा स्टैंड से तौलिया लेकर पहले उसने अपना मुँह पोंछा, फिर स्टडी टेबल के पास रखी चेयर पर जा बैठी। टेबल की दराज में से उसने अपनी डायरी और पेन निकाला। 

डायरी ! 

श्रेया डायरी लिखने की शौकीन थी। 

कई सारी बातें थी, जो उसके मन में आती थी। कई सारे विचार थे, जो उसके दिमाग में घूमते रहते थे। कुछ बातें और विचार तो वह अपनी फ्रेंड्स और माँ - पिताजी से शेयर कर लेती थी। लेकिन, कई सारी ऐसी बातें भी होती थी, जिनको वह किसी के भी साथ शेयर नहीं कर सकती थी। कई सारे ऐसे विचार होते थे, जिनको वह किसी के भी साथ साझा नहीं कर सकती थी। ऐसी सभी बातों और विचारों को वह डायरी में लिख लेती थी। 

इस समय भी उसके मन में ऐसी ही कुछ बातें आ रही थी, जिनको वह किसी के भी साथ शेयर नहीं कर सकती थी। 

इसीलिए उसने डायरी हाथ में ली। 

डायरी के मुखपृष्ठ पर उगते सूरज का चित्र था। 



डायरी खोलकर श्रेया ने लिखना शुरू किया। सबसे पहले उसने डायरी के खाली पेज पर सबसे ऊपर दाहिनी ओर पेन से उस दिन की दिनांक डाली - ‘ 8 अगस्त, 2024 ‘

फिर दिनांक के ठीक नीचे उसने दिन लिखा - ‘ गुरुवार ‘

फिर अगली पंक्ति में बायीं ओर से उसने अपने मन की भावनाएँ लिखनी शुरू की। 


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