ट्रेन चल रही है
शाम ढल रही है
आने को है स्टेशन कोई
कुछ तो कमी खल रही है।
यादों में कोई
बातें किसी और से
रूप इंसान का एक,
हैं चेहरे कई कई।
सच्चा कौनसा
कौनसा है झूठा
समझने का हुनर आ गया जिसको
समझो वही है सिकंदर।
खेल क्या है
खेलना कैसे है
पहले जानो
फिर समझो
फिर खेलकर
जिंदगी अपनी धूल कर दो।
पाना क्या है
कुछ नहीं
खोना क्या है
अपना सब कुछ।
हो गर तैयार खेलने के लिए
स्वागत है झूठे चेहरों की इस दुनिया में
करने को जिंदगी अपनी धूल
करने को जीवन की सबसे बड़ी भूल।
स्वार्थ इर्ष्या नफरत और संशय के इस घिनोने संसार में
स्वागत है।
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