चिड़िया चहक रही है
खुशियाँ महक रही है
घर आँगन द्वार में
दीपमाला दहक रही है।
दिवाली की सुबह है
फिजा में हल्की सी ठंडक है।
खुशियों का त्योहार है
हर तरफ रंगोली की बहार है।
मन फिर क्यों अनमना सा है
क्यों बेचेन, हैरान, परेशान है!
निकल जाता हूँ
बस यूँ ही घर से
करने को चहल कदमी
सजे बाजार सजी दुकानें देखने को।
रौनक है हर तरफ
हर कहीं उत्साह है
दिवाली है ये
दीपों का त्यौहार है।
देखता हूँ इतने में ही
खड़ा एक मासूम
7 - 8 वर्ष का
दुकान के सामने
सजी है जो मिठाइयों से।
देख रहा ललचाई नजरों से
अधफटे वस्त्रों में
बिखरे बालों वाला
वह मासूम।
खरीदकर उसकी मनचाही मिठाई
थमा दी
हाथों में उसके
और लौट पड़ा घर की ओर
नहीं था अब अनमना मन मेरा
था वह तो पूरी तरह संतुष्ट।
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