मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

सोमवार, 24 जनवरी 2022

एक बुरा इंसान

 मैं साबित अक्सर बुरा ही हुआ हूँ

एक बार नहीं कई बार हुआ हूँ

मिलता है जब भी कोई अनजाना अजनबी

कहता है बस यही ,

तुम एक अच्छे इंसान हो

और बदल जाते हैं शब्द उसके ,

महज चार ही दिनों में ,

सुनने को मिलता है मुझको ,

अच्छा इंसान समझते थे तुमको हम ,

पर निकले तुम भी बुरे।

और बात हैरत की ये ,

चीख चीखकर सालों से ,

दिला रहा हूँ यकीं सबको ,

मैं बुरा इंसान हूँ ,

हाँ मैं एक बुरा इंसान हूँ।

पर करता नहीं कोई यकीं ,

वजह है बस इतनी सी ,

फैला है भ्रम लोगों में

कि ,

कहते है बुरा खुद को ,

अक्सर अच्छे इंसान ही ,

बुरा इंसान नहीं कहता बुरा

खुद को कभी।

कैसे समझाएं अब सबको ,

अपवाद हूँ मैं ,

ऐसा एक बुरा इंसान ,

जो न केवल बुरा है ,

बल्कि स्वीकार भी करता है ,

खुद के बुरे होने को।


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