मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 5
भूपालनगर पुलिस स्टेशन कैम्पस में जिप प्रविष्ट हुई।
जीप से दो हवलदार , इंस्पेक्टर मुखर्जी और रागिनी बाहर निकले।
पुलिस स्टेशन के मुख्य द्वार पर खड़े हवलदारों ने इंस्पेक्टर को सलाम ठोंका।
बिना कोई जवाब दिये इंस्पेक्टर आगे बढ़ा।
रागिनी ने नोट किया , इंस्पेक्टर कुछ ज्यादा ही घमंडी था।
अपनी सीट पर पहुंचकर इंस्पेक्टर मुखर्जी ने हवलदार नोखेलाल को चाय लाने के लिए निर्देशित किया।
" प्लीज , टेक योर सीट ! " - इंस्पेक्टर एक कुर्सी की ओर संकेत करते हुए रागिनी से बोला।
रागिनी इंस्पेक्टर के ठीक सामने रखी कुर्सी पर बैठ गयी।
हवलदार ने बाहर जाने के लिये पुलिस स्टेशन की चौखट पर कदम रखा ही था कि उसे फिर से इंस्पेक्टर का स्वर सुनाई दिया - " कड़क ज्यादा , मीठी कम। "
" जी सर। " - कहते हुए नोखेलाल ने तेजी से बाहर की ओर कदम बढाये।
" क्या नाम बताया तुमने अपना ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।
" रागिनी सर , रागिनी शुक्ला ! "
" हाँ। " - इंस्पेक्टर मुखर्जी दिमाग पर जोर देते हुए बोला - " तो मिसेज रागिनी…."
" मिस…"
" क्या ? "
" मिस रागिनी। "
" ओह , तो तुम रहती कहाँ हो ? "
" आदर्श नगर काॅलोनी में। "
" कब से ? "
" हमेशा से। हमारा पुश्तैनी मकान आदर्श नगर काॅलोनी में ही है। अंतिम बार पापा ने मोडिफाई करवाया था उसे। "
" तुम्हारे पिताजी करते क्या है ? "
" है नहीं थे , वे अब इस दुनिया में नहीं है। तीन साल पहले एक कार एक्सीडेंट में माँ और पिताजी दोनों का देहांत हो गया। "
" ओह , साॅरी ! "
" वैसे , पापा बिजनेसमेन थे , एक बेहद सफल बिजनेसमेन। "
" अच्छा ! "
" हाँ , और हम दोनों बहनों के लिये इतना कुछ छोड़ गये थे कि हम अपना जीवन आराम से बिता सके। "
" तुम्हारा मतलब दौलत से है ? "
" निश्चित तौर पर। "
" तुम्हारा कोई भाई वगैरह…"
" नहीं है। "
" कोई रिश्तेदार ? "
" कोई नहीं है। हम दोनों बहनें इस दुनिया में अकेली थी। "
" ओह ! "
" और अब रिचा के जाने के बाद मैं इस दुनिया में बिल्कुल अकेली रह गयी हूँ। "
नोखेलाल ने चाय मेज पर रखी।
इंस्पेक्टर मुखर्जी ने चाय का एक गिलास रागिनी की ओर बढाया।
" रिचा को तुमने अंतिम बार कब देखा था ? "
" कल शाम 7 बजे। "
" कहाँ ? "
" घर पर। "
" वो कहीं बाहर गयी थी ? "
" जी हाँ। "
" कहाँ ? "
" अपने काॅलेज के एक फ्रेंड के साथ डेट पर। "
" नाम जानती हो तुम उस फ्रेंड का ? "
" हाँ। आकाश माथुर। "
" मतलब , कल शाम 7 बजे के बाद वह घर नहीं लौटी ? "
" सही कहा आपने। "
" और उस दौरान तुम कहाँ थी ? "
" घर पर। "
" तुमने किसी थाने में अपनी बहन की गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं लिखवायी ? "
" नहीं। "
" क्या ? " - इंस्पेक्टर मुखर्जी बुरी तरह से चीखा - " कल शाम से तुम्हारी बहन गायब थी और तुमने कोई रिपोर्ट नहीं लिखवायी ?...और तो और पूरी रात तुम घर पर ही थी ! "
" रिचा 7 बजे गयी थी और रात 12 बजे तक लौट आने वाली थी। 12 बजे तक उसके लौट आने की प्रतीक्षा की मैंने। जब वो नहीं आयी तो मैंने वो किया , जो मुझे ठीक लगा। "
" क्या किया तुमने ? "
रागिनी ने बताना शुरू किया -
12.30 बजे मैंने रिचा के मोबाइल पर काॅल किया।
उसका मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था।
मैं एकाएक चिंतित हो उठी।
मैंने 2 - 3 बार और काॅल किया , लेकिन हर बार फोन स्विच ऑफ ही बता रहा था।
बिना एक पल गवाये मैंने आकाश का नंबर डायल किया।
इस बार घंटी बजी !
मैंने राहत महसूस की।
आकाश का फोन चालू था , मेरी चिंता थोड़ी कम हुई।
कुछ देर घंटी बजती रही।
उधर से कोई जवाब नहीं मिला।
मेरी चिंता फिर बढ़ गयी।
" आकाश ने काॅल अटेंड क्यों नहीं की ? " - बहुत सोचने पर भी वजह मेरी समझ में नहीं आयी।
मेरी कांपती अंगुलियां मोबाइल स्क्रीन पर दोबारा थिरकी।
मैंने मोबाइल का स्पीकर आॅन किया।
दोबारा घंटी बजी।
इस बार फोन उठा।
" हैलो ! " - मेरी आवाज में घबराहट थी।
" हैलो ! "
" हैलो , आकाश ! कहाँ हो तुम ? "
" घर पर। " - आकाश ने जवाब दिया - " लेकिन तुमने इतनी रात गये फोन कैसे किया और तुम घबरायी हुई क्यों हो ? "
" रिचा...रिचा कहाँ है ? "
" क्या ? "
" रिचा आकाश ! रिचा तुम्हारे साथ थी ना , कहाँ है वो ? "
" क्या ? वो अभी तक घर नहीं पहुंची ? "
" क्या कह रहे हो ? "
" मैंने आधे घंटे पहले उसे ड्राॅप किया था। "
" कहाँ ? "
" क्या ? "
" कहाँ ड्राॅप किया था ? "
" यूनिवर्सिटी रोड़ पर , जहां से तुम्हारी काॅलोनी की गली शुरू होती है। "
" लेकिन , वो अभी तक घर नहीं पहुंची और उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ है। "
" क्या ? हाउ इज पाॅसिबल ! उसे आधे घंटे पहले ही घर पहुंच जाना चाहिये था। अगर वो घर नहीं पहुंची , तो गयी कहाँ ? "
" मुझे कैसे पता होगा ? आकाश ! मुझे बहुत टेंशन हो रही है। क्या तुम मेरे घर आ सकते हो ? "
" अभी ? "
" आकाश ! पिछले आधे घंटे से मेरी बहन का कुछ पता नहीं है और तुम…"
" ठीक है तुम चिंता मत करो , मैं 10 मिनट में पहुंचता हूँ। " - कहने के साथ ही आकाश ने फोन कट कर दिया।
मुझे अब किसी तरह 10 मिनट निकालने थे।
ना चाहते हुए भी मेरे मन में तरह तरह के संदेह उठने लगे थे।
" रिचा कहाँ होगी ? आधी रात के समय अपनी काॅलोनी में पहुंचने के बाद एक लड़की कहाँ जा सकती है ? " - मुझे बहुत ज्यादा चिंता हो रही थी।
मेरे लिये एक - एक मिनट निकालना भारी पड़ रहा था।
मैं अपने कमरे में ही व्यग्रता से चहलकदमी करने लगी।
किसी तरह 10 मिनट बीते।
लेकिन आकाश अभी तक नहीं आया था।
मैंने कुछ मिनट और इंतज़ार किया।
लेकिन न डोरबेल बजी , न फोन की घंटी।
मैंने फिर से आकाश को काॅल किया।
इस बार घंटी नहीं गयी।
आकाश का मोबाइल स्विच ऑफ हो चुका था।
मुझे लगा कि कहीं गलती से मैंने रिचा का नंबर तो डायल नहीं कर दिया !
अपने संदेह को दूर करने के लिये मैंने मोबाइल स्क्रीन पर निगाह डाली।
स्क्रीन पर आकाश का ही नंबर था।
मेरे हाथ से मोबाइल छूटकर फर्श पर गिर पड़ा।
गनीमत थी कि मोबाइल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
कुछ देर पहले ही आकाश से मेरी बात हुई थी और अब उसका मोबाइल स्विच ऑफ था।
मैंने फर्श पर गिरा फोन उठाया।
दोबारा आकाश को काॅल किया।
आकाश का मोबाइल अभी भी बंद था।
मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था और मैं कुछ सोचना भी नहीं चाहती थी।
बहुत सोचने पर भी मेरे मानस पटल पर ऐसे किसी शख्स की कोई छवि अंकित नहीं हुई , जिससे इस आधी रात के वक्त में मदद ली जा सके।
मुझे सुबह होने तक सब्र करना ही था।
मैंने सोने की कोशिश की।
बहुत कोशिशों के बावजूद मैं नींद के आगोश में न समा सकी।
मेरी पूरी रात करवटें बदलने में बीती।
4 बजे के आसपास मुझे नींद ने आ घेरा।
सुबह 5.30 बजे डोरबेल बजने पर मेरी आंख खुली।
" इतनी सुबह कौन होगा ? " - सोचते हुए मैंने गेट खोला।
सामने पडौस वाले शर्मा अंकल थे और इस समय वे बहुत घबराये हुए लग रहे थे।
" क्या बात है अंकल ! आप इतनी सुबह सुबह...सब ठीक तो है ना ? " - अंकल काफी शाॅक्ड लग रहे थे तो मैंने ही पहल करके पूछा।
" मेरे साथ आओ। "
" कहाँ ? "
" बताता हूँ , पहले चलो तो। "
शर्मा अंकल के साथ मैं अपनी काॅलोनी से बाहर आयी।
बाहर , यूनिवर्सिटी रोड़ पर पहुंचकर मैंने देखा कि सड़क के किनारे कुछ लोग जमा थे।
" यहाँ इतने लोग क्यों इकट्ठा है ? " - मैंने जानना चाहा।
" रिचा ! "
" क्या ? "
" रिचा ! लाश ! " - शर्मा अंकल भर्राए हुए स्वर में बोले।
मैं दौडी।
लोगों की भीड़ चीरते हुए मैं आगे बढ़ी।
सड़क के किनारे लोगों की भीड़ जमा होने की वजह से मैं वाकिफ हुई।
मेरे सामने रिचा की लाश पड़ी थी।
हरदम खुशी से चहकने वाली रिचा अब एक लाश में तब्दील हो चुकी थी।
" इसके बाद जो हुआ , वो सब तो आप जानते ही हैं। " - रागिनी बोली।
" तुम्हें आकाश का एड्रेस मालूम है ? "
" हाँ। "
" बोलो। "
" हिरणमगरी सेक्टर 4 "
" तुम चिंता मत करो , F.I.R. लिखी जा चुकी है। कातिल जल्द ही पकड़ा जायेगा। " - इंस्पेक्टर मुखर्जी ने कहा - " अभी तुम जा सकती हो। अपना और आकाश का मोबाइल नंबर लिखवा दो। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आते ही तुम्हें इन्फाॅर्म कर दिया जायेगा। "
रागिनी वहां से रुखसत हुई।
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