मर्डर ऑन वेलेंटाइन नाइट - 4
27 Hours Ago….
15 फरवरी , 2020
स्थान - यूनिवर्सिटी रोड़।
समय - सुबह 6 बजे।
सड़क के किनारे लोगों की भीड़ जमा थी।
दिन का कोई और वक्त होता तो बात अलग थी। लेकिन सुबह के 6 बजे फुटपाथ के इर्द-गिर्द लोगों की भीड़ जमा होना विचित्र तो था ही और था रहस्मय भी !
पर जल्द ही रहस्य खुलने वाला था।
पुलिस जिप के सायरन ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
जल्द ही भीड़ छंट गयी।
जिप फुटपाथ के करीब आकर रूकी।
तीन - चार वर्दीधारी हवलदार जिप से निकले।
अंत में निकला इंस्पेक्टर सोमेश मुखर्जी !
सोमेश मुखर्जी एक 40 - 42 साल का एकदम फिट बाॅडी वाला दमदार पुलिस इंस्पेक्टर था।
फुटपाथ पर एक लाश पड़ी थी।
इंस्पेक्टर को देखते ही अधिकतर लोग लाश से दूर हट गये।
लेकिन दो शख्स अभी भी लाश के काफी करीब थे।
एक लड़की , जो लाश के पास ही घुटनों के बल बैठी थी।
वह अपने दोनों हाथों से मुंह को ढंककर जोर जोर से रोये जा रही थी।
दूसरा शख्स था , एक अधेड़ जो लाश के पास ही खड़ा था।
एक नज़र लाश पर डालने के बाद इंस्पेक्टर का ध्यान लड़की और उस अधेड़ पर गया।
साफ मालूम पड रहा था कि फुटपाथ पर पड़ी उस लाश से दोनों का कोई न कोई संबंध अवश्य था।
" फोन किसने किया था ? " - सोमेश मुखर्जी अपनी रौबदार आवाज़ में बोला।
" मैंने। " - लाश के करीब खड़े उस अधेड़ शख्स ने जवाब दिया।
मजबूत कद काठी और रौबीले चेहरे वाले उस शख्स की उम्र कोई 65 वर्ष रही होगी।
" नाम क्या है तुम्हारा ? "
" राकेश मिश्रा ! "
" लाश से क्या रिश्ता था तुम्हारा ? "
" रिचा नाम है इसका , यह कोई सड़क पर पड़ी लावारिश लाश नहीं है , जिसे आप इतनी बेअदबी से संबोधित कर रहे है ! " - इंस्पेक्टर के मुंह से ' लाश ' शब्द सुनते ही घुटनों के बल बैठी लडकी जोर से चीखी।
" आपकी तारीफ ? " - इंस्पेक्टर लड़की की ओर मुखातिब हुआ।
" रागिनी शुक्ला ! " - लड़की खड़े होते हुए बोली - " और जिसे आप लाश कह रहे हैं , वह मेरी बहन थी। "
" आपके साथ हमें पूरी हमदर्दी है। "
" वह तो आपके बात करने के लहजे से पता चल ही रहा है। " - रागिनी उपेक्षा से बोली।
" ओह, कहीं आपका मतलब ' लाश ' शब्द से तो नहीं है ?"
" बिल्कुल है। "
" इसके लिये माफी चाहूँगा , लेकिन मरने वाले शख्स की शिनाख्त हो या ना हो , उसके लिये हम पुलिस वाले ' लाश ' शब्द का ही यूज़ करते है। "
" भले ही वह आपका सगा भाई हो ? "
" क्या बकती हो ! " - इंस्पेक्टर गुस्से से चीखा।
" बस , यही गुस्सा मेरे भीतर भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि आप जाहिर कर पा रहे हैं और मैं जाहिर नहीं कर पा रही।"
" एक पुलिस इंस्पेक्टर के सामने खड़ी हो इसलिये ? "
" नहीं ! अपनी मरी हुई बहन के सामने खड़ी हूँ इसलिये। "
" आई एम साॅरी ! " - आखिरकार इंस्पेक्टर को बोलना ही पडा।
" ये कौन है ? " - इंस्पेक्टर ने राकेश मिश्रा की ओर इशारा करते हुए रागिनी से पूछा।
" मैं नहीं जानती। "
" कमाल है ! मुझे लगा , तुम जानती होगी। "
" नहीं। जब मैं यहाँ आयी थी तो ये यहीं थे। "
" क्या ? " - इंस्पेक्टर चौंका - " तुम यहाँ कब पहुंची ? "
" महज़ आधा घंटा पहले। "
इंस्पेक्टर ने राकेश मिश्रा को तवज्जों दी - " तो फोन तुमने किया था ?"
" जी हाँ। "
" इतने लोगों की मौजूदगी में तुमने ही पुलिस को इन्फाॅर्म करने की पहल की , वजह जान सकता हूँ इसकी ? "
" जब मैं यहाँ पहुंचा तो यहाँ कोई भी नहीं था। "
" और लाश ? "
" क्या ? "
" लाश थी या वो भी नहीं थी ? "
" लाश थी , लेकिन लाश के अलावा उस वक्त यहाँ और कोई नहीं था। "
" तो लाश को सबसे पहले तुमने ही देखा ? "
" यह पता लगाना आपका काम है। "
" मतलब ? "
" मैंने लाश देखते ही 100 नम्बर डायल करके अपना फर्ज निभाया , जो कि यहाँ रूककर मैं अब तक निभा रहा हूँ। "
" तुम्हें यहाँ पहुंचे हुए कितना समय हुआ है ? "
" आपके सवाल का जवाब मैंने यहाँ सार्वजनिक रूप से दे दिया तो आपके महकमे की काबिलियत पर सवाल उठने लगेंगे। "
" महकमे की चिंता करने के लिये मुझ जैसे काबिल पुलिस अफसर है यहाँ , तुम सिर्फ मेरे सवालों का जवाब देने की फिक्र करो। "
" एज यू लाइक ! " - राकेश मिश्रा ने बताया - " ठीक एक घंटे पहले , 5 बजे। "
अधेड़ व्यक्ति के शब्दों को सुनते ही आसपास खड़े लोगों में कानाफूसी शुरू हो गयी।
" एक घंटे का समय ! "
" यहाँ एक लड़की की हत्या हुई है और पुलिस सूचना मिलने के एक घंटे बाद पहुंची है ! "
" सरकारी काम ऐसे ही होते हैं। "
"मैंने आगाह किया था इंस्पेक्टर साहब ! " - अधेड़ हल्के से मुसकराया।
" पुलिस विभाग के बारे में लोगों के ये विचार आम है और ऐसे आम लोगों के आम विचारों की पुलिस कभी परवाह नहीं करती। "
" जग-जाहिर है इंस्पेक्टर साहब ! " - मिश्रा फिर मुसकराया- " पुलिस हमेशा ' खास ' लोगों की ही परवाह करती है। ' आम ' लोगों की लाशें सड - गल जाये , तब भी पुलिस के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। लेकिन वही लाश किसी खास शख्स की हो , तो पलक झपकते ही पुलिस एक्शन में आ जाती है। "
" बकवास बन्द करो। " - इंस्पेक्टर के चेहरे पर अब क्रोध झलकने लगा था।
" बकवास नहीं है ये। " - अधेड़ भी चिल्लाया - " एक घंटे पहले आपके महकमे को जानकारी हो गयी थी कि यहाँ पर किसी का मर्डर हुआ है और आप अब घटनास्थल पर पहुंच रहे हैं ! "
" मर्डर ? " - इंस्पेक्टर मुखर्जी का माथा ठनका - " तुम कैसे जानते हो कि यह मर्डर था ? "
अधेड़ एक पल के लिये सकपकाया , फिर खुद को संभालते हुए बोला - " यह सिर्फ मेरा अनुमान है। "
" लेकिन कहा तो तुमने इस तरह से मानो , तुम्हें पूरा यकीन हो ! "
" फुटपाथ पर पड़ी लाश और उसके आसपास का खून से सना फर्श देखकर कोई भी ऐसा यकीन कर सकता है। "
राकेश मिश्रा की बात सुनकर इंस्पेक्टर मुखर्जी ने एक पैनी नज़र लाश पर डाली।
साफ मालूम पड रहा था कि लाश के पेट पर किसी नुकीले हथियार से हमला किया गया था।
" एक आखिरी सवाल। " - इंस्पेक्टर बोला।
"जरुर ! " - अधेड़ बोला - " यही तो आप लोगों का पेशा है। सवाल करना , सिर्फ और सिर्फ सवाल करना। "
" बकवास बन्द करो और फालतू बातें बोलने की बजाय जवाब देने पर फोकस करो। "
" पूछिये। "
" तुम इतनी सुबह यहाँ क्या कर रहे थे ? "
" जाॅगिंग। " - अधेड़ ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
इंस्पेक्टर ने ध्यान दिया , राकेश मिश्रा अभी भी जाॅगिंग सूट में ही था।
" लाश का पोस्टमार्टम करना पडेगा। " - एकाएक ही इंस्पेक्टर रागिनी से बोला।
" वो किसलिये ? "
" ताकि हत्या के कारण का पता चल सके और यह भी कि कत्ल किस हथियार से किया गया है ! "
" आपको जो करना है , करिये। बस कातिल को सजा मिलनी चाहिए। "
" पहले कातिल का पता तो चले। "
इंस्पेक्टर मुखर्जी ने तत्काल ही अपने मातहत हवलदारों को आदेश दिया - " लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने का बन्दोबस्त करो। "
" जी सर ! " - कहते हुए हवलदार सुरेश निगम ने अपने मोबाइल से एक नंबर मिलाया।
कुछ ही देर में घटनास्थल पर एक एम्बुलेंस पहुंची।
एम्बुलेंस में से स्ट्रेचर लिए दो कर्मचारी उतरे।
उन्होंने स्ट्रेचर को फुटपाथ के किनारे सड़क पर रखा।
फुटपाथ पर पड़ी रिचा की लाश को स्ट्रेचर पर रखा और दो हवलदारों के साथ वहां से रूखसत हुए।
रागिनी नम आँखों से एम्बुलेंस को जाते देखती रही।
" आपको हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। "
" वो किसलिये इंस्पेक्टर ? " - रागिनी ने रूमाल से आँसू पोंछते हुए पूछा।
" कुछ औपचारिकतायें पूरी करनी है , कुछ सवाल करने है। " - इंस्पेक्टर ने बताया।
" ओके। "
" और तुम " - इंस्पेक्टर मुखर्जी ने मिश्रा से कहा - " अपना पता और मोबाइल नंबर नोट करवा दो , जरूरत पडने पर तुम्हें पुलिस स्टेशन बुलाया जा सकता है। "
" जरुर बुलाइये। सरकारी डिपार्टमेन्ट का यही तो काम होता है , लोगों को बुलाना , चक्कर कटवाना , बेवजह परेशान करना ! "
" तुम सरकार के या तो बहुत सताये हुए इंसान हो या खुद किसी सरकारी महकमे का हिस्सा हो। "
" वाह ! कैसे पता लगाया ? "
"सरकारी कार्यवाहियों से इतनी ज्यादा नफरत ये दो ही तरह के शख्स कर सकते हैं। "
" बिल्कुल सही कहा आपने। बहरहाल , मैं सरकार का सताया हुआ इंसान तो नहीं हूँ , लेकिन सरकारी महकमे का हिस्सा जरुर हूँ , मेरा मतलब था। "
" था ? "
" अब रिटायर्ड हूँ। "
" खुशकिस्मत हो। "
" कौन जाने ? "
" उम्मीद करता हूँ कि जब कभी पुलिस स्टेशन बुलाया जायेगा तो बिना एक पल गवाये , पहुंच जाओगे। "
" जरुर पहुंचूंगा। आपकी मदद करने में खुशी होगी। "
" सच में ? " - इंस्पेक्टर चौंका।
" हाँ , सच में। आखिर एक नौजवान लडकी का कत्ल हुआ है , दुआएं तो मिलेगी ही। "
" दुआयें ? "
" लड़की की आत्मा की , भटकती होगी अभी तो यहीं कहीं।"
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