रॉकी ने अपनी पॉकेट से मोबाइल निकालकर उसमें समय देखा। तीन बजकर तीस मिनट हो रहे थे।
“पता नहीं ये किस मुसीबत में फंस गया मैं!” - सोचते हुए रॉकी म्यूजियम की ओर बढ़ रहा था।
रॉकी के साथ जो कुछ भी हुआ था, वो सब उसके दिमाग में किसी मूवी के रील की तरह चलने लगा।
उस रात वह अपने दोस्तों एकलव्य, रुद्र और अक्षय के साथ उस पब में देर तक शराब पीता रहा था। यहां तक तो फिर भी ठीक था। लेकिन, इसके बाद अचानक ही उसके मन में लॉन्ग ड्राइव पर जाने की इच्छा होने लगी। बस वो अपने तीनों दोस्तों के साथ निकल पड़ा और कार ड्राइव करते हुए शहर से बाहर म्यूजियम की तरफ आ गया। लापरवाही से ड्राइव करते हुए एकाएक ही सामने एक बाइक वाला आ गया, जिसको बचाने के चक्कर में उसकी कार जबरदस्त तरीके से लहरा गई और वे उस पेड़ से जा टकराए। कार के पेड़ से टकराने की तेज आवाज ने ही स्टोनमैन का ध्यान उनकी तरफ खींचा था।
“पापा ने इस पत्थर के आदमी के बारे में बताया था। इस पर गोलियां कोई असर नहीं करती।” - रॉकी सोच रहा था - “कौन है ये और कहां से आया है ?... उस प्रतिमा के साथ ये क्या करने वाला है ?... हो ना हो ये जरूर कोई एलियन है।…अब चाहे जो हो, अपने दोस्तों को बचाने के लिए किसी भी तरह से मुझे वो प्रतिमा ढूंढकर उसको देनी ही होगी।”
म्यूजियम के पास पहुंचकर रॉकी ने देखा कि म्यूजियम की इमारत के बाईं तरफ एक पेड़ इमारत की छत के ठीक ऊपर तक फैला हुआ था। मतलब, पेड़ पर चढ़कर इमारत तक पहुंचा जा सकता था।
बिना एक भी पल गंवाए वह पेड़ पर चढ़ने लगा और कुछ ही समय में वह पेड़ के शीर्ष पर जा पहुंचा।
इसके बाद पेड़ की जो शाखा इमारत की छत तक जा रही थी, उस शाखा से होते हुए वह छत पर जा पहुंचा।
यहीं पर वो गलती कर गया। उसे लगा था कि छत के रास्ते म्यूजियम में दाखिल होने से वह किसी की नजर में नहीं आएगा। लेकिन, छत के रास्ते आने से ही वह किसी की नजर में आ गया था।
वह नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ ही रहा था कि किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया।
आधी रात के समय किसी के द्वारा अपना हाथ पकड़े जाने की अनुभूति ने रॉकी को भीतर तक से दहला दिया। धाड़ धाड़ बजते हृदय और सस्पेंस भरे लहजे में उसने पीछे घूमकर देखा, तो रूह कांप उठी उसकी। गनीमत थी कि ऑन दी स्पॉट उसे अटैक नहीं आ गया।
काले वस्त्र पहने, काले ही रंग का लबादा ओढ़े और आंखों पर काले रंग का नकाब चढ़ाए अचानक ही छत पर प्रकट होने वाला वह शख्स उड़ने वाले इंसान के अलावा और कोई हो ही नहीं सकता था!
रॉकी ने उड़ने वाले इंसान को पहले कभी देखा नहीं था। लेकिन उसकी लाइव फुटेज देखने और उसके बारे में सुनने से ही उसे अंदाजा हो गया था कि जो इंसान इस समय उसके सामने खड़ा था, वह वही उड़ने वाला इंसान था।
उड़ने वाले इंसान ने अभी तक रॉकी का हाथ पकड़ा हुआ था। रॉकी ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की। लेकिन उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी। रॉकी को लग रहा था जैसे उसका हाथ किसी इंसानी पकड़ में नहीं, बल्कि फौलादी पकड़ में था।
उसे लग रहा था कि यह उड़ने वाला इंसान, असल में कोई इंसान नहीं बल्कि उस पत्थर के आदमी की तरह ही कोई एलियन है और शायद लोहे का बना हुआ है!
“कौन हो तुम ?” - उड़ने वाले इंसान ने भारी आवाज में पूछा।
“म.. मैं.. मैं रॉकी हूँ।”
कालयोद्धा ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा।
“राकेश माथुर। इंस्पेक्टर अभय माथुर मेरे पिता है और मैं आर्ट्स कॉलेज में पढ़ता हूं।” - रॉकी जल्दी से बोला।
“हुम! तो तुम कॉलेज स्टूडेंट हो।”
“हां।”
“आधी रात को यहां इस म्यूजियम में चोरों की तरह क्यों दाखिल हो रहे हो ?” - कालयोद्धा ने सख्त आवाज में पूछा।
“व.. वो.. वो मैं।”
“जल्दी जवाब दो।”
“तुम भी तो यहां चोरों की तरह आए हो!” - कालयोद्धा को वह स्टोनमैन के बारे में बता नहीं सकता था। इसीलिए जो मन में आया, वही बोलता गया वो।
“मैं यहां आया हूं तुम जैसे अपराधियों को अपराध करने से रोकने के लिए।” - कालयोद्धा भारी आवाज में बोला - “मैं एक रक्षक हूँ! कालयोद्धा हूँ।”
कालयोद्धा ने जैसे ही अपना नाम बताया, आकाश में बादल गरजने लगे। तेज आवाज के बिजलियां चमकने लगी।
मौसम में अचानक हुए उस परिवर्तन से रॉकी की रूह तक काँप उठी।
“अब बताओ, क्या करने आए थे यहां पर तुम ?” - कालयोद्धा ने अपना सवाल दोहराया।
रॉकी कालयोद्धा को न तो स्टोनमैन के बारे में कुछ बता सकता था और न ही उस प्रतिमा के बारे में, जिसकी तलाश में वह म्यूजियम में दाखिल होने की कोशिश कर रहा था। उसे कोई ऐसा बहाना बनाना था, जिस पर कालयोद्धा आसानी से विश्वास कर सके।
“बताते हो या फेंक दूं तुम्हें इस छत से नीचे!”
“नहीं, नहीं। बताता हूं।” - रॉकी आतंकित स्वर में बोला - “मैं यहां पर पुरानी दुर्लभ प्रतिमाएं चुराने आया था, ताकि उनको ऊंचे दामों पर विदेशियों को बेच सकूं।”
“तो, तुम देश के गद्दार हो!” - कालयोद्धा चीखा - “तुझ जैसे देश के दुश्मनों को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं है। तुझे तो मर जाना चाहिए।”
कालयोद्धा रॉकी का हाथ पकड़े हुए ही आकाश में काफी ऊपर तक उड़ता चला गया।
“य.. ये तुम क्या कर रहे हो ?” - मारे आतंक के हलक फाड़कर चिल्ला उठा रॉकी।
“वही जो तुझ जैसे गद्दारों के साथ करना चाहिए।” - घृणा भरे शब्दों में बोला कालयोद्धा - “तुझे नीचे फेंककर तेरी जान लेने जा रहा हूं मैं!”
“नहीं!” - मारे भय के चीख उठा रॉकी।

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