मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

शनिवार, 21 दिसंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 30 आवारा स्टूडेंट


 दक्ष बड़ी ही सावधानी से स्कूल के उन स्टूडेंट्स का पीछा कर रहा था। वे दोनों ही बाइक तेजी से हॉर्न बजाते हुए आगे चली जा रही थी। दक्ष कुछ दूरी पर पर रहते हुए ऐसे पीछे लगा था कि उसकी उपस्थिति का कैसी को आभास तक न हो।

चीखते चिल्लाते और हुड़दंग मचाते हुए वे सभी स्टूडेंट्स शहर से बाहर की तरफ चले जा रहे थे।

“ये लोग आखिर जा कहां रहे हैं ?” - सोचते हुए दक्ष उनके पीछे लगा हुआ था।

शहर से दूर एक सुनसान जगह पर वे दोनों बाइक रुकी और उन पर सवार वे 6 लड़के नीचे उतरे।

दक्ष भी उनसे कुछ दूर रुका और एक जगह छिपकर उनकी बातें सुनने लगा।

“मुझे तो यकीन नहीं हो रहा, आज हमने इतना लम्बा हाथ मारा!” - उनमें से एक बोला।

“यकीन कर ले भाई, लॉटरी ही खुल गई आज तो।” - खुश होते हुए दूसरा बोला।

“ज्यादा नहीं तो, कम से कम 50000 की तो बिक ही जाएगी ये!” - तीसरे ने अपनी जेब से कोई चीज निकालते हुए कहा।

दक्ष ने देखा, वह वस्तु सोने की एक छोटी चेन थी।

“यह कितनी सुंदर, चमकदार और स्टाइलिश है!” - चेन को ध्यान से देखते हुए चौथा लड़का बोला।

“बेचारी तनुजा! कैसे रो रही थी!” - पांचवां लड़का बोला - “अब से कभी भी कोई कीमती चीज स्कूल में लाने के बारे में सोचेगी तक नहीं।”

“पर, अमित!” - छठा लड़का बोला - “तुमको पता कैसे चला कि वह सोने की चेन अपने स्कूल बैग में रखे हुए थी ?”

तीसरा लड़का, जिसका नाम शायद अमित था, बोला - “और कहां होती! स्कूल शुरू होते से ही तो वह सबको अपने गले में पहने हुई सोने की चेन दिखा रही थी। फिर बाद में उसके गले में नहीं थी। इतनी कीमती सोने की चेन और भला कहां रखती वो ? बस लंच टाइम में मैने उसके बैग से उड़ा ली।”

स्टूडेंट्स की बातों से दक्ष को इतना तो समझ में आ ही रहा था कि इन्होंने स्कूल की ही तनुजा नाम की लड़की की सोने की चेन चुराई थी। लेकिन, इतने छोटे स्कूली बच्चों ने इस तरह की हरकत की क्यों ?... यह दक्ष समझ नहीं पा रहा था।

अपराध होते तो सबको दिखते है, अपराधियों को सजा देने का काम भी होता ही है। लेकिन, इस बात पर भला कितने लोग ध्यान देते हैं कि किसी अपराध की शुरुआत आखिर होती कैसे है ? वे कौनसी परिस्थितियां होती है जो किसी भी इंसान को, फिर चाहे वह कोई बच्चा ही क्यों ना हो, अपराध का पहला कदम उठाने को मजबूर करती है ? अगर ऐसी परिस्थितियों को उत्पन्न ही न होने दिया जाए, तो क्या अपराध रोका नहीं जा सकता ? समाज में आपराधिक प्रवृति के इंसानों में बढ़ोतरी को रोकने का क्या ये सबसे अच्छा तरीका नहीं कि एक अपराधी के अपराध करने के कारणों की पड़ताल की जाए ?.... इसी तरह के कई सवाल दक्ष के दिमाग में उभर रहे थे और ये कोई पहली बार नहीं था। 

स्नेहा ने तो बेवजह हर किसी की मदद करने की अपनी आदत और एडवेंचर की तलाश में रिपोर्टिंग को करियर के रूप में चुना था। लेकिन दक्ष, दक्ष का लक्ष्य कुछ और ही था। क्राइम रिपोर्टर बनने के पीछे दक्ष का जो मोटिव था, वह कुछ हद तक तो स्नेहा के मोटिव से मेल खाता था। लेकिन, उसके कुछ और कारण भी थे। हर किसी की मदद करना और एडवेंचर की तलाश में रहना तो दक्ष का जुनून था ही, साथ ही एक और वजह भी थी, जिसने दक्ष को रिपोर्टर बनने की दिशा में आगे बढ़ाया था और वो वजह थी समाज सुधार। हाँ, यह सच था कि दक्ष समाज में कुछ जरूरी बदलाव लाना चाहता था और इस बदलाव को लाने का जो सबसे अच्छा जरिया दक्ष को लगा था, वह पत्रकारिता ही था।

दक्ष का मानना था कि अखबार का उद्देश्य टीवी सीरियल और फिल्मों की तरह केवल TRP बढ़ाना ही नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज में अपेक्षित सुधार लाना भी होना चाहिए।

यही वजह थी कि दक्ष उन लड़कों के सोने की चेन चुराने के पीछे का मोटिव जानना चाहता था। जिससे कि चोरी करने के पीछे उनकी वजह जानी जा सके और उस वजह को नष्ट करके उन्हें अपराध के दलदल में धंसने से बचाया जा सके।

लेकिन, अभी ऐसा कर पाना दक्ष को मुश्किल लग रहा था। बहरहाल, अपना हर काम योजनाबद्ध तरीके से करने में कुशल दक्ष ने आगे की जाने वाली कार्यवाही की रूपरेखा तैयार कर ली थी। इसीलिए अब वहां और रुकना व्यर्थ था।

उसने अपने कैमरे से उस चेन के साथ सभी लड़कों की फोटो क्लिक की और वहां से जाने के लिए बाइक तक पहुंचा।

दक्ष अब बाइक स्टार्ट करके वहां से जा रहा था।

दक्ष अगर कुछ देर और वहां रुक जाता तो शायद अपने अखबार के लिए उसे एक जबरदस्त न्यूज मिल जाती।

क्योंकि दक्ष के जाने के कुछ समय बाद ही वे लड़के अपनी बाइक पर सवार होकर वहां से लौटने लगे और कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें वह खौफनाक दृश्य देखना पड़ गया।

बाइक स्टार्ट करके आगे बढ़ते हुए उन्हें मुश्किल से पांच ही मिनट हुए थे कि अचानक ही मौसम बदलने लगा। कुछ समय पहले तक जो आकाश बिलकुल साफ था, वह अचानक ही अपना रूप बदलने लगा। आकाश में एकाएक ही बादल घिर आए। तेज हवाएं चलकर आंधी का रूप धारण करने लगी।

आंधी चलने से बड़े पेड़ भी जोर जोर से हिलने लगे। आंधी इतनी तेज थी कि उनको अपनी बाइक की गति न केवल कम करनी पड़ी, बल्कि रोकनी ही पड़ गई।

“ये अचानक मौसम कैसे बदल गया ?” - एक स्टूडेंट बोला।

“हां, कुछ समय पहले तक तो कितनी तेज धूप थी!” - दूसरा बोला।

“बारिश का मौसम है, कभी भी बदल जाता है।” - अमित लापरवाही से बोला।

यही वो समय था, जब आकाश में ऊपर की ओर एक काले रंग का अक्स उभरा। वह अक्स बादलों का तो कतई नहीं था। वह तो एक इंसान की आकृति थी।

धूल भरी हवाओं के बीच भी उन्होंने साफ साफ देखा कि वह तो एक इंसान का अक्स था। एक उड़ते इंसान का अक्स!

“उड़ता इंसान!” - अमित के मुंह से निकला।

“उड़ने वाला इंसान !” - एक लड़के ने कहा।








कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें