मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

रविवार, 22 दिसंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 31 काल योद्धा


 “वहीं रुक जाओ।” - एक भारी और गंभीर आवाज ने कहा।

आवाज में ऐसी कशिश थी कि उनको रुक जाना पड़ा।

उन्होंने देखा, यह आवाज उसी उड़ने वाले इंसान की थी।

वह आकाश में ऐसे खड़ा था, जैसे कि जमीन पर खड़ा हो।

मारे खौफ और आश्चर्य के फटी आंखों से वे सभी उस उड़ने वाले इंसान को देख रहे थे। आकाश में खड़े उड़ने वाले इंसान ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे। उसके कंधे से जो लबादा लहरा रहा था, वह भी काले रंग का ही था। 

“स्कूल में पढ़ने वाले मासूम बच्चे!” - व्यंग्यात्मक लहजे में बोल रहा था वह उड़ने वाला इंसान - “जब चोरी जैसे अपराध करने पर उतर आए, तब वे मासूम नहीं रह जाते। अपराधी बन जाते हैं और अपराधियों के लिए विधाता ने एक ही विधान बनाया है - 'दंड।' तुम लोगों ने अपराध किया है और अब मुझे पूरा अधिकार है कि मैं तुम्हें दंड दूं।”

“नहीं, नहीं। हमें कुछ मत करना।” - सभी लड़के समवेत स्वर में गिड़गिड़ाए।

“य…ये लो। ये सोने की चेन, जिसे मैने तनुजा के बैग में से चुराया था।” - लगभग रोने के से अंदाज में अमित बोला - “इसे ले लो। अब हम कभी चोरी नहीं करेंगे। कसम खाते हैं।”

“हाँ, हाँ। हम अब कभी चोरी नहीं करेंगे।” - अमित की हां में हां मिलाते हुए सभी एक साथ बोले।

“कर भी नहीं पाओगे।” - अब तक आकाश में खड़ा वह इंसान धीरे धीरे नीचे आते हुए बोला।

जल्दी ही वह जमीन पर आ गया।

फिर धीमी गति से चलते हुए वह उन लड़कों के पास पहुँचा।

सभी लड़के डरकर अपने कदम पीछे हटाने लगे।

अमित भी पीछे हटते हुए जेब से सोने की चेन निकाल चुका था। उसने चेन को उड़ने वाले इंसान की तरफ उछाला। उड़ने वाले इंसान ने हवा में अपना हाथ लहराते हुए चेन को पकड़ा। अमित ने देखा, उसने काले रंग के दस्ताने पहन रखे थे।

सोने की चेन हाथ में आते ही उड़ने वाले इंसान ने अपना हाथ उन सभी लड़कों की तरफ इस तरह बढ़ाया कि वे उसकी हथेली बिलकुल साफ देख सके। इसके बाद उस हथेली से एक तेज रोशनी निकली और उन सभी लड़कों के शरीर में समाती चली गई।

“य…ये क्या है!” - घबराते हुए अमित बोला - “क्या अब हम मर जायेंगे ?”

“डरो नहीं।” - धीमे से मुस्कुराते हुए उड़ने वाला इंसान बोला - “मरोगे नहीं तुम लोग। बस भूल जाओगे।…भूल जाओगे कि दुनिया में चोरी जैसी कोई चीज भी होती है। जब भी किसी चीज को चुराने का खयाल तुम लोगों के दिमाग में आएगा, मेरा अक्स उभरेगा। कोई भी अपराध करने से पहले तुमको याद आएगा - ' काल योद्धा। ' और ये चेन जहां से तुमने चुराई है, वहीं पर रख देना।”

इसके बाद वह अचानक ही गायब हो गया।


•••••


सुबह के 10.30 बजे थे। यह वो समय था, जब आदर्श स्कूल में लंच होता था। ज्यादातर बच्चे घर से लाया हुआ टिफिन बॉक्स खा रहे थे। लेकिन, कुछ ऐसे स्टूडेंट भी थे, जो स्कूल से बाहर जाकर आस पास के रेस्टोरेंट में कुछ खा पी रहे थे। इन्हीं में शामिल थे, वे 6 लड़के भी। 

स्कूल के पास ही के एक रेस्टोरेंट में बैठे वे आलू पराठा खा रहे थे।

“अच्छा हुआ, जो मैने लंच टाइम में क्लास के खाली होते ही जल्दी से सोने की वह चेन तनुजा के बैग में वापस रख दी। अब वो उसे मिल जाएगी और….”

“और अब आगे कुछ मत बोल।” - जयंत बोला - “भूल जाने दे वो सब। मैं तो अब अपने घर में भी चोरी नहीं करूंगा।”

“भूलना इतना आसान है क्या!” - भावेश ने कहा - “याद नहीं, क्या बोला था उसने! जब भी हम कोई अपराध करने की सोचेंगे, पहले उसका अक्स हमारे दिमाग में उभरेगा।”

“हाँ। भावेश सही कह रहा है। उसको भूलने के लिए सबसे पहले हमें हर गलत काम से तौबा करनी होगी।”

“पता नहीं क्या जादू किया उसने! उसकी सूरत दिमाग से हट ही नहीं रही।” - विकास बोला।

“बंद करो अब ये फालतू बातें।” - संदेश ने कहा तो सभी चुप होकर नाश्ता करने लगे।

खाने के बाद जब वे बिल पे करने काउंटर पर पहुंचे तो उनको बताया गया कि उनका बिल पे कर दिया गया है।

“ किसने किया ?” - अमित ने पूछा।

“मैंने।” - इस आवाज को सुनते ही सबने पीछे मुड़कर देखा तो वहां दक्ष खड़ा था।

“आपने ?” - अमित ने हैरत भरे स्वर में पूछा - “लेकिन क्यों ? और आप हो कौन ?”

“मुझे अपना दोस्त समझ लो।” - मुस्कुराते हुए दक्ष बोला।

“ऐसे कैसे समझ लें दोस्त ? हम तो आपको जानते तक नहीं।” - भावेश बोला।

“और वैसे भी हम पहले ही काफी परेशान है, आप हमारी परेशानी और मत बढ़ाओ।” - विकास बोला।

“मैं परेशानी बढ़ाने नहीं, कम करने आया हूँ।” - दक्ष बड़ी ही चतुराई से बोला - “मै एक रिपोर्टर हूँ और तुम लोगों के स्कूल पर एक आर्टिकल लिखने में तुम्हारी मदद चाहता हूं।”

“हम भला क्या मदद कर सकते हैं ?” - अमित बोला।

“पहले आराम से बैठते हैं। फिर बताता हूँ।” - कहते हुए दक्ष खुद एक मेज से लगी चेयर पर बैठा और बाकी सबको भी बैठने का संकेत किया।

दक्ष के निर्देशानुसार वे सब भी बैठ गए।

फिर अमित ने पूछा - “अब बताइए।”

“बात कोई बहुत बड़ी नहीं है और ना ही ऐसी कि तुम लोगों को किसी तरह की कोई परेशानी हो।”

सब ध्यान से सुन रहे थे।

दक्ष आगे बोला - “आदर्श स्कूल में पढ़ाई कैसी चल रही है ? टीचर्स कैसा पढ़ाते हैं और पढ़ाई के साथ और कौन कौनसी गतिविधियां कराई जाती है ? बस इसी तरह की कुछ जानकारी देकर तुम लोग मेरी मदद कर सकते हो। तुम लोगों के स्कूल के बारे में अखबार में बड़ी खबर छपेगी।”

“बस इतना ही ?” - चकित स्वर में अमित बोला।

“हाँ और क्या!” - दक्ष बोला।

लड़के जानकारी देते गए और दक्ष सुनता रहा।

अंत में दक्ष बोला - “मैने सुना है, स्कूल में चोरियां बहुत होती है। स्टूडेंट्स भी कभी कभार ऐसी हरकत कर बैठते हैं।”

“नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है।” - भावेश बोला।

“ठीक है। “ - बोलते हुए दक्ष जाने के लिए खड़ा हुआ।

“अगर मैं आपको कोई बड़ी खबर दूं तो मुझे कुछ मिलेगा ?” - अचानक ही अमित ने पूछा।

“बड़ी खबर ?” - दक्ष फिर से चेयर पर बैठते हुए बोला।

“हाँ, बहुत बड़ी खबर।”

“क्या है वो ?”

“पहले आप बताओ, मुझे क्या मिलेगा ?”

“क्या चाहिए तुमको ?”

“कम से कम 5000 रुपए।”

“क्या ?” - दक्ष हैरत भरे स्वर में बोला।




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