“विधायक जगमोहन बंसल का इंटरव्यू लेने का टास्क तुम लोगों ने सफलतापूर्वक पूरा किया और पत्थर के आदमी पर मेरे द्वारा चाही गई रिपोर्ट भी तुम दोनों ने तय समय में तैयार कर दी।” - डेली न्यूज एजेंसी के अपने निजी केबिन में एक्जीक्यूटिव चेयर पर बैठा प्रकाश आहूजा सामने विजिटर्स चेयर पर बैठे दक्ष शर्मा और स्नेहा से मुखातिब था - “इसके लिए तुम दोनों ही बधाई के पात्र हो।”
“थैंक यू सर!” - स्नेहा विनम्रता पूर्वक बोली।
“पात्र हो बोला मैंने। बधाई दी नहीं अभी।” - अचानक ही आहूजा तल्ख स्वर में बोला।
स्नेहा के चेहरे पर झलक आई हल्की सी खुशी तुरंत ही काफ़ूर हो गई।
“और तुम, क्राइम रिपोर्टर दक्ष शर्मा!” - सीधे दक्ष की आँखों में देखते हुए आहूजा बोला - “तुम स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवानों के अपराध की ओर बढ़ते कदम विषय पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने वाले थे, क्या हुआ उसका ?”
“वो सर!” - बॉस के इस अप्रत्याशित सवाल से हड़बड़ाते हुए दक्ष बोला - “मैं उसी पर काम कर रहा हूं।”
“अच्छा!”
“जी सर! यह एक तरह की शोधात्मक रिपोर्ट है।” - बात संभालते हुए दक्ष बोला - “इसीलिए थोड़ा समय तो लगेगा।”
“ठीक है।” - आहूजा बोला - “तुम लोगों का काम अच्छा है वैसे।”
“थैंक यू सर!” - मुस्कुराते हुए दक्ष और स्नेहा बोले।
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“तो, अब सच में रिपोर्ट तैयार करोगे स्कूल कॉलेज के लड़कों पर ?” - बॉस के केबिन से बाहर आते ही स्नेहा ने पूछा।
“और नहीं तो क्या!” - दक्ष बोला - “ये तो जब मैने बहाना बनाया था, तभी से पता था कि इस पर रिपोर्ट तैयार करनी ही पड़ेगी।”
“ये आदमी भी आसानी से पीछा छोड़ता नहीं किसी का।”
“सही कह रही हो।”
स्नेहा अपने ओपन केबिन में आई और अपना कार्य करने लगी।
दक्ष भी अपने केबिन में पहुंचा।
स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के अपराध की ओर बढ़ते कदम विषय पर उसे एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी थी।
कोई कहानी या काल्पनिक लेख लिखना होता, तो आधे घंटे से ज्यादा का काम नहीं था। लेकिन रिपोर्टिंग और विशेष रूप से क्राइम रिपोर्टिंग पूरी तरह से व्यावहारिक तथा फैक्ट्स पर आधारित होती है। दक्ष को पहले फैक्ट कलेक्ट करने थे और ये काम ऑफिस में बैठे बैठे तो होने से रहा। कंप्यूटर से इंटरनेट पर कुछ समय तक नौजवानों की आपराधिक प्रवृतियों पर जरूरी जानकारी जुटाने के बाद उसने बॉस से अनुमति ली और ऑफिस से बाहर निकल गया।
पार्किंग प्लेस से अपनी बाइक निकालकर वह शहर के सबसे बड़े स्कूल की ओर चल पड़ा।
आदर्श स्कूल शहर के व्यस्त और भीड़ भरे इलाके में स्थित था।
दक्ष वहीं पहुंचा। स्कूल के ठीक सामने एक रेस्टोरेंट था। रेस्टोरेंट के बाहर बड़ा सा हॉर्डिंग लगा था, जिस पर उस रेस्टोरेंट का नाम लिखा हुआ था - ' कृष्णा रेस्टोरेंट।'
बाइक रेस्टोरेंट के बाहर ही पार्क करके दक्ष भीतर दाखिल हुआ।
एक खाली टेबल देखकर वह उसी तरफ बढ़ गया।
चाय का ऑर्डर देकर वह आसपास के माहौल का जायजा लेने लगा।
रेस्टोरेंट में इस समय भीड़ ज्यादा नहीं थी। कुछ ही लोग थे वहां पर। लेकिन, उनमें स्कूल का कोई भी स्टूडेंट नहीं था।
इस समय दोपहर के 12 बजे हुए थे।
“इस रेस्टोरेंट में स्टूडेंट्स नहीं आते ?” - चाय सर्व करने आए वेटर से दक्ष ने पूछा।
“बहुत कम।” - जवाब देते हुए वेटर बोला - “स्कूल में ही एक कैंटीन है और वैसे भी अब तो स्कूल की छुट्टी का टाइम हो रहा है।”
“माहौल कैसा है स्कूल का ?” - दक्ष ने अगला सवाल किया।
“माहौल ?” - संदेह भरे स्वर में वेटर बोला।
“भाई स्टूडेंट्स पढ़ाई लिखाई में ही इंट्रेस्टेड है यहां के या दूसरी गतिविधियों में भी लगे रहते हैं ?”
“दूसरी गतिविधियाँ ?” - उसी आश्चर्य मिश्रित स्वर में वेटर बोला - “आप क्या बोल रहे हो ? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है।”
दक्ष ने मुस्कुराते हुए जेब से अपना क्राइम रिपोर्टर वाला आई कार्ड निकाला और वेटर को दिखाते हुए बोला - “मैं डेली न्यूज एजेंसी में क्राइम रिपोर्टर हूँ। आदर्श स्कूल के स्टूडेंट्स पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए यहां आया हूँ।”
“ओह!” - दक्ष की बात समझते हुए वेटर बोला - “तो आप अखबार वाले हैं।”
“हां।” - आई कार्ड फिर से जेब के हवाले करते हुए दक्ष ने कहा - “मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरे प्रति तुम्हारा रवैया सहयोगात्मक रहेगा।”
“बिल्कुल। मुझे खुशी होगी।”
“गुड। अब मुझे बताओ कि क्या आदर्श स्कूल के स्टूडेंट्स ऐसी किसी गतिविधि में संलग्न है, जो अनैतिक हो ?”
“अनैतिक ?”
“मेरा मतलब, इस स्कूल के स्टूडेंट्स ड्रग्स, चोरी या ऐसी किसी गलत संगत में तो नहीं है ?”
“ऐसा तो कुछ भी नहीं लगता।” - सोचते हुए वेटर बोला।
“ओके।” - बोलते हुए दक्ष चाय पीने में व्यस्त हो गया।
वेटर भी दूसरे ग्राहकों को अटेंड करने लगा।
कुछ वक्त यूं ही गुजरा।
चाय पीते हुए दक्ष रेस्टोरेंट में मौजूद व्यक्तियों के साथ ही बाहर सड़क पर आने जाने वाले हर व्यक्ति को बड़े ध्यान से देख रहा था।
किसी तरह 12.30 बजे।
यह वो समय था जबकि स्कूल से बच्चों की छुट्टी होती थी।
कुछ समय पहले तक लगभग पूरी तरह से शांत सड़क, जिस पर कुछ गिने चुने लोग ही दिखाई दे रहे थे, अब स्कूली बच्चों के शोर से चीखने चिल्लाने लगी थी।
अधिकतर बच्चे सायकिल पर थे, कुछ बाइक - स्कूटी पर और कुछ पैदल।
दक्ष बड़े ध्यान से सभी बच्चों को देख रहा था।
उसकी नजरें तेजी से हर बच्चे को ऑब्जर्व कर रही थी।
बच्चों की भीड़ में कुछ ऐसे बच्चों पर दक्ष की नजर पड़ी, जो आम स्टूडेंट्स से बिलकुल ही अलग लग रहे थे। बाइक पर सवार उन लड़कों ने स्कूल यूनिफार्म तो पहनी हुई थी। लेकिन, उनके रंग ढंग स्कूली बच्चों जैसे न होकर सड़कछाप आवारा लड़कों जैसे थे। वे संख्या में 6 थे और दो अलग अलग बाइक पर सवार थे। तेजी से हॉर्न बजाते हुए वे स्कूल से बाहर निकले थे। उनकी इसी हरकत ने दक्ष का ध्यान उनकी ओर खींचा था।
“यही होंगे मेरा टारगेट।” - खुद से ही कहते हुए दक्ष जल्दी से उठ खड़ा हुआ।
क्राइम रिपोर्टिंग का फील्ड ही ऐसा होता है कि इसमें हमेशा सजगता और अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है। चाय का बिल दक्ष ने पहले ही पे कर दिया था। जानता था कि कभी भी अचानक उसे किसी भी स्टूडेंट के पीछे लगना पड़ सकता था और हुआ भी यही।
दक्ष अब एक पल भी गंवाए बिना रेस्टोरेंट से बाहर निकला, बाइक स्टार्ट की और उन दोनों बाइक के पीछे दौड़ा दी, जिन पर आवारा से दिखने वाले स्कूल के स्टूडेंट्स सवार थे।
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