मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 26 अमोल और जतिन पंचायत भवन में


ड्राईवर स्वराज का तर्क तो पुरातत्वविद् जैन को मुर्खतापूर्ण लगा, लेकिन बात में दम था। हो सकता था कि कुलकर्णी उतनी कोशिश नहीं कर रहा हो, जितनी कि करनी चाहिए। 

“ कुछ हद तक तुम्हारी बात सही हो सकती है। “ - कुछ सोचते हुए जतिन बोला - “ मैं ही जाकर बात करता हूँ। शायद कुछ हासिल हो जाए। “

“ कुछ हद तक नहीं सर! “ - स्वराज उत्साहित स्वर में बोला - “ मेरी बात सौ फीसदी सच है। “ 

“ देखते हैं। “ - कहते हुए जतिन गाड़ी का गेट खोलकर बाहर निकला। 

“ तो, तुम अभी तक तुम यहीं हो! “ - कुलकर्णी के पास जाकर जतिन बोला। 

“ जतिन की बात सुनकर अमोल पीछे की ओर घूमा। 

“ सर! आप भी चल रहे हैं! “ - गाड़ी से निकलकर अपने पास तक आ पहुँचे जतिन जैन को देखकर अमोल बोला - “ मुझे तो लगा था कि हर बार की तरह इस बार भी आप गाड़ी के भीतर ही बैठना पसंद करेंगे। “

जतिन मुस्कुराते हुए बोला - “ चलें अब ? “

“ बिल्कुल। “ - जवाब देने के साथ ही अमोल कुलकर्णी गाँव की ओर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गया। 

पीछे पीछे जतिन भी चलने लगा। 

धूल - मिट्टी और पत्थरों से मिलकर बनी उस कच्ची पथरीली जमीन पर चलते हुए वे धीरे धीरे गाँव के भीतर की तरफ बढ़ रहे थे। रास्ते में दोनों किनारों पर थोड़ी बहुत झाड़ियाँ और कहीं कहीं बड़े पेड़ भी लगे हुए थे। कुछ आगे जाने पर कच्चे - पक्के मकान दिखाई देने लगे। लेकिन अभी तक उन्हें कोई भी आदमी दिखाई नहीं दिया। 

“ क्या बात है अमोल! यहां कोई रहता भी है या नहीं ? “ - चलते-चलते जतिन बोला - “ हम गांव के इतना भीतर आ चुके हैं, लेकिन अभी तक एक भी व्यक्ति दिखाई नहीं दिया। “

अमोल कुछ बोलता, इससे पहले ही उन्हें एक मकान के सामने चारपाई पर एक व्यक्ति बैठा दिखाई दिया।

“ चलकर उसे व्यक्ति से पूछते हैं सर ! “ - बोलते हुए अमोल कुलकर्णी ने अपने कदमों की गति तेज कर दी। 

कुछ ही समय में वे दोनों ही उसे व्यक्ति के पास जा पहुंचे। 

“ राम राम भाई! “ - दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए जतिन बोला।

“ राम राम! “ - संदेह भरी नजरों से देखते हुए वह व्यक्ति बोला।

“ हम लोग परदेसी हैं, बाहर से आए हैं। “

“ वह तो आप लोगों के पहनावे से समझ में आ ही रहा है। “ - वह व्यक्ति बोला - “ किसके यहां आए हैं ? “

“ क्या ? “

“ अरे, इस गांव में आप लोग किसके यहां आए हो ? “

“ किसी के यहां नहीं। “ 

“ क्या मतलब ? “

“ हम पुरातत्व विभाग से हैं और यहां पुरानी वस्तुओं की तलाश में आए हैं। “ - अमोल बोला।

“ क्या ? पुरानी वस्तुएं ? मैं कुछ समझ नहीं। “ 

“ सौ - पचास साल पुरानी वस्तुएं जैसे पुराने सिक्के, मूर्तियां आदि। “

“ क्या ? “ - वह व्यक्ति चकित स्वर में बोला है “ स्मगलर हो ? “

“ अरे, नहीं नहीं। स्मगलर नहीं है हम लोग। “ - थोड़ा घबराते हुए अमोल बोला।

“ अगर स्मगलर नहीं हो तो पुरानी मूर्तियों की तलाश में क्यों घूम रहे हो ? “

“ अरे, हम लोग सरकारी आदमी है। सरकार ने पुरानी वस्तुओं को संरक्षित रखने के लिए हमें नियुक्त किया हुआ है। “

“ देखो भाई ! “ - वह व्यक्ति बोला - “ तुम लोग क्या बोल रहे हो , मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। पहनावे से तुम लोग बड़े विद्वान लगते हो और मैं ठहरा अनपढ़ आदमी! “

“ अच्छा ! इतना तो बताइए कि इस गांव का नाम क्या है ? “ - जतिन ने पूछा।

“ सेमलपुर। “ - वह व्यक्ति बोला।

“ और यहां इतने सारे मकान है , पर आदमी एक भी नजर नहीं आ रहा। ऐसा क्यों ? “ - अमोल ने जिज्ञासा वश पूछा।

“ दोपहर का समय है ना, सब काम पर गए हुए हैं। “

“ ओह! “

“ ठीक है। तो हम लोग थोड़ा घूम लेते है आपके गाँव में। शायद हमारे काम की कोई वस्तु मिल जाए। “ - कहते हुए जतिन आगे बढ़ने लगा।

“ वैसे तो यहां ऐसा कुछ मिलने वाला है नहीं, लेकिन अगर कुछ मिल ही गया तो क्या आप उसे ऐसे ही लिए जाएंगे ? “ - पीछे से उसे व्यक्ति ने पूछा। 

“ अरे, यूं ही थोड़े ही लिए जाएंगे। “ - पुरातत्वविद जैन बोला - “ हम सरकारी कर्मचारी हैं और सरकार कोई भी कार्य करती है तो उसकी एक प्रक्रिया होती है। उसी प्रक्रिया के अनुसार सारा कार्य किया जाता है। यहां पर अगर हमें कोई पुरातात्विक वस्तु मिलती है तो उसे ले जाने से पहले हम इस गांव के सरपंच से बात करेंगे। “

“ ओह ! “ - कुछ सोचते हुए वह व्यक्ति बोला - “ और आपको लगता है कि सरपंच आपको वह वस्तु ले जाने देंगे ? “

“ क्यों नहीं सरपंच आपके गांव के मुखिया हैं और सरकार की तरफ से आपके प्रतिनिधि भी। वह भला सरकारी काम में बड़ा क्यों डालेंगे ? “

काफी देर से चुप अमोल कुलकर्णी बोला - “ सर ! इस व्यक्ति से बात करके हम अपना समय ही खराब कर रहे हैं। इससे अच्छा तो हम सीधे इस गांव के सरपंच से ही मिल लेते। “

“ अरे , तो आप लोगों को पहले बोलना था ना, मैं ले चलता हूं आपको सरपंच साहब के घर। “ - बोलते हुए वह व्यक्ति एकाएक ही चारपाई से उठ खड़ा हुआ और बोला - “ मेरे पीछे-पीछे आइए। “

वह व्यक्ति आगे आगे चलने लगा और कुलकर्णी के साथ जतिन जैन उसके पीछे हो लिया। 

“ अच्छा, वैसे अभी तक तुमने अपना नाम भी नहीं बताया। “ - मित्रवत व्यवहार करते हुए जतिन बोला - “ तुम हमारी इतनी मदद कर रहे हो तो कम से कम तुम्हारा नाम तो हमें पता होना ही चाहिए। “

“ बात आपकी सही है। “ - मस्ती भरी चाल से चलते हुए वह व्यक्ति बोला - “ लेकिन , नाम तो अभी तक आप लोगों ने भी नहीं बताया। “

“ ओह, हाँ। “ - जतिन बोला - “ मैं एक पुरातत्वविद हूं और मेरा नाम जतिन जैन है। यह मेरा सहायक अमोल कुलकर्णी है। “

“ बढ़िया। मैं जयमल हूँ। “ - वह व्यक्ति बोला - “ मैं एक साधारण सा किसान हूं। “

कुछ ही दूर जाने पर उन्हें एक पक्की इमारत दिखाई दी, जिस पर बड़े काले अक्षरों में ग्राम पंचायत सेमलपुर लिखा हुआ था। 

वे पंचायत भवन में दाखिल हुए। 

“ राम-राम सरपंच जी! “ - भीतर जाते ही जयमल बोला।

पंचायत कार्यालय में एक विजिटर्स चेयर पर बैठे एक व्यक्ति ने हल्के से मुस्कुरा कर अभिवादन स्वीकार करते हुए वहां रखी दूसरी चेयर्स पर उन्हें बैठने का इशारा किया। 

संभवतः वही व्यक्ति सेमलपुर गांव का सरपंच था।

वे तीनों ही चेयर्स पर बैठे। 

“ कहो जयमल! कैसे आना हुआ ? “ - पूछते हुए सरपंच अमोल और जतिन की ओर देखते हुए बोला - “ और यह दोनों कौन है ? “

“ यह सरकारी आदमी है, पुरातत्व विभाग से आए हैं। “


“ पुरातत्व विभाग से ! “ - चकित स्वर में सरपंच बोला।


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