रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 19 देवदूतों का आगमन


 “ मुझ तक कोई भी पहुँच नहीं पायेगा। “ - स्टोन मेन बोला। 

“ मूर्खों जैसी बातें मत करो। अपने भारी भरकम और पत्थर के शरीर को तुम लोगों से छिपाकर नहीं रख पाओगे। “

“ अगर इतनी परवाह थी आपको इस मिशन के सफल होने की, तो ऐसा धोख़ा क्यों किया मेरे साथ ? क्यों मुझे ऐसी प्रतिमा में से प्रकट करने की प्रोग्रामिंग की, जिसके आसपास लोगों की भीड़ थी ? “

“ मैंने तुम्हारे साथ कोई धोख़ा नहीं किया है! “ - महीपति चिल्लाया - “ तुम्हें एकांत स्थान में ही प्रकट होना था। प्रतिमा का चुनाव भी सही था। मेरी जानकारी के मुताबिक उस प्रतिमा को किसी म्युजियम में नहीं, बल्कि निर्जन जंगल में होना चाहिए था। वो वहीं थी। “

“ फिर म्युजियम में कैसे पहुँची ? “

“ यही वो बात है जो मुझे परेशान कर रही है। कहीं कुछ गड़बड़ हुई है और जल्दी ही उसका पता मैं लगा लूँगा। “ - आत्मविश्वास से लबरेज महीपति बोला - “ तुम अपना फोकस उस रहस्यमयी प्रतिमा की तलाश पर बनाये रखो। “

“ आप उसकी चिन्ता मत करो। “ - बोलने के साथ ही स्टोन मेन ने दीवार पर छाया चित्र के रूप में चल रही किरणों को फिर से अपनी आँखों में सोख लिया। 

दीवार पहले की तरह सामान्य हो गई। 



•••••


“ जैसा कि आप इस CCTV फुटेज में देख पा रहे हैं, अचानक से एक तेज आवाज के साथ हिरण्यकश्यप की प्रतिमा में विस्फोट हुआ और उसके बाद काँच का केबिन धूल के गुबार से भर उठा। हैरत की बात तो यह है कि धूल का गुबार छँटने के बाद काँच के केबिन को तोड़कर उसमें से पत्थर की एक प्रतिमा बाहर निकली। “ - शहर के एक लोकल न्यूज़ चैनल पर पत्थर के आदमी की न्यूज़ आज का हॉट टॉपिक बनी हुई थी। 

अपने नाजुक हाथों से रिमोट उठाकर बड़ी ही बेरहमी से श्रेया ने उसका रेड कलर का पॉवर बटन दबा दिया। 

“ अरे, टीवी बंद क्यों कर दिया ? “ - पास ही बैठी श्रेया की माँ शालिनी अग्रवाल बोली। 

रात के भोजन की तैयारी करते हुए वे मटर छिलने के साथ साथ न्यूज़ भी सुन रही थी। 

“ तो और क्या करूँ माँ! “ - श्रेया जोर से चिल्लाई - “ पहले वो उड़ने वाला इंसान और अब ये पत्थर की प्रतिमा! पता नहीं क्या हो रहा है इस शहर में! “ 




“ पूरी न्यूज़ तो सुन ले पहले! “ - शालिनी अग्रवाल बोली - “ क्या पता, वह कोई चलने वाला पत्थर का खिलौना ही हो ! “

“ अरे, माँ! ये कोई टीवी सीरियल नहीं है, जिसमें पहले ढेर सारा सस्पेंस क्रिएट होता है और फिर अंत में पता चलता है कि बात तो असल में कुछ थी ही नहीं। “ 

“ अब वो कोई खिलौना ही है या सच में कोई आदमी, यह तो पूरी न्यूज़ देखने पर ही पता चलेगा। “ 

बेमन से श्रेया ने फिर से टीवी ऑन कर दिया। 

टीवी में न्यूज एंकर बोल रही थी - “ पुलिस से हुई मुठभेड़ में पत्थर के आदमी ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वह तो शांतिपूर्ण तरीके से जंगल की ओर चला गया। कयास लगाया जा रहा है कि पत्थर का वह आदमी किसी का अहित करने की मंशा तो बिल्कुल भी नहीं रखता। लेकिन सबसे जरूरी सवाल तो अपनी जगह अभी भी कायम है कि ग्लास चैंबर में पत्थर की वह प्रतिमा आई कहाँ से ? क्या हिरण्यकश्यप की मिट्टी की प्रतिमा के भीतर पहले से ही पत्थर के आदमी की प्रतिमा रखी हुई थी ? अगर ऐसा है भी तो उस प्रतिमा में अचानक विस्फोट कैसे हो गया ? नृसिंह भगवान की प्रतिमा भी मिट्टी की ही बनी हुई है। हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में विस्फोट हुआ, काँच का केबिन भी टूटा, लेकिन भगवान नृसिंह की प्रतिमा को खरोंच तक नहीं आई ? यह कैसे संभव हुआ ? क्या ये महज एक संयोग है या कोई ईश्वरीय चमत्कार ? और सबसे अहम सवाल, पत्थर की प्रतिमा जीवित कैसे हो गई ? 




ये सारे सवाल अभी तक रहस्य बने हुए हैं। लेकिन, पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर जतिन जैन का कहना है कि जल्दी ही वे पत्थर के आदमी की गुत्थी को सुलझा लेंगे। “

“ सुन लिया माँ! “ - पूरी न्यूज़ देखने के बाद श्रेया बोली - “ कोई पत्थर का खिलौना नहीं है, कोई झूठी कहानी नहीं है। “

“ हाँ, सुन लिया। “ - कुछ सोचते हुए श्रेया की माँ बोली - “ लेकिन, जैसा कि न्यूज़ में बताया गया है, उस आदमी ने किसी का कोई नुकसान नहीं किया। “

“ तो ? “

“ और उस उड़ने वाले आदमी के बारे में भी सुनने में आया है कि वह लोगों की भलाई के लिए ही काम कर रहा है। “

“ तो क्या हुआ माँ! “

“तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आया अभी तक ? “

“ नही। “



“ अरे, देख नहीं रही हो, घोर कलियुग आ चुका है। अन्याय, अत्याचार सब तरह के पापों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे समय में या तो भगवान खुद आते हैं संसार की रक्षा करने के लिए या फिर अपने किसी दूत को भेजते हैं। “

“ माँ! आप भी कहाँ की बात कहाँ ले जाती हो। “

“ तुझे मेरी बातों पर भले ही विश्वास ना हो, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि ईश्वर ने धरती पर अपने देवदूत भेजना शुरू कर दिये है। ये दोनों जरूर ईश्वर के ही भेजे हुए दूत है। “

“ ये सब सिर्फ कपोल कल्पनाएँ है माँ! “ - श्रेया बोली - “ मुझे तो लगता है कि इस शहर पर कोई बहुत बड़ी मुसीबत टूटने वाली है और ये तो बस शुरुआत है। “

“ शुरुआत ? “ - श्रेया की माँ आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोली - “ किस चीज की शुरुआत ? “

“ वर्षा बता रही थी कि उड़ने वाला इंसान कोई ड्रैक्युला भी हो सकता है। “

“ ड्रैक्युला! “




“ हाँ, माँ! मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि अचानक से शहर में अजीब घटनाएँ क्यों होने लगी ? “ - अचानक ही घबराहट भरे स्वर में श्रेया बोली - “ हम इस शहर में आए ही क्यों! पिताजी से कहो ना, किसी और जगह चलने को। “

“ ये तू कैसी बातें कर रही है श्रेया! “ - माँ समझाते हुए बोली - “ भागना किसी समस्या का हल थोड़े ही है और अभी तक तो शहर पर कोई मुसीबत भी नहीं टूटी है। और लोग भी तो है शहर मे। जो उनके साथ होगा, वही हमारे साथ भी होगा। फिर डरने की क्या जरूरत! “



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