रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 18 रहस्यमयी स्टोन मेन

 

“ बात आपकी सही है। “ - स्नेहा बोली - “ लेकिन हिस्ट्री क्या है उसकी ? पता चले रात के हम सोए सुबह उठकर देखे तो घर का सारा माल गायब… “

“ अब लगती तो नहीं ऐसी वो, बाकी तुम जानो। “ - सोचते हुए मिसेज मेहता बोली - “ वैसे भी रिपोर्टर तो सुना है, चेहरे से ही मन के भाव समझ जाते हैं। “

“ हाँ, कुछ अंदाजा तो हो ही जाता है। “

“ तो, क्या तय किया ? “ - निर्णय सुनने की आतुरता में पूछा मिसेज मेहता ने। 

“ भेज दीजिये आप उसे। “ - स्नेहा बोली - “ डिनर बना तैयार कर लेगी। वैसे भी आज वर्क ज्यादा था तो थकान तो है ही। “

“ ठीक है। “ - कॉफी का खाली कप मेज पर रखते हुए मिसेज मेहता बोली - “ चलती हूँ फिर मैं। “


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म्युजियम की टेरिस से कूदकर पत्थर का वह आदमी जंगल की तरफ चला गया था। रास्ते में पड़ने वाले छोटे मोटे पौधों को अपने विशाल पैरों से रौंधते हुए वह घने जंगल की तरफ बढ़ा जा रहा था। उसके चलने की आवाज से खरगोश, हिरण जैसे छोटे जानवरों को खतरे का आभास होने लगा था। डरकर वे इधर उधर भागने लगे थे। अभी दोपहर का ही समय था। पेड़ की शाखाओं से उसे देखते हुए बंदर ऐसे चिल्ला रहे थे, जैसे कि उनको खतरे का आभास हो गया हो! खतरे को भाँपकर ही जंगल में पेड़ों पर रहने वाले तरह तरह के पक्षी भी भरी दुपहरी में ही चहचहाने लगे थे। 

लेकिन पत्थर के आदमी को तो इसका अहसास तक नहीं था। वह तो बस अपनी ही धुन मे चले जा रहा था। इस समय उसका एक ही लक्ष्य था। एकांत, घोर एकांत स्थान पर जाना और यह लक्ष्य उसे जंगल के अंदरूनी हिस्से में ही मिल सकता था।

अंततः उसकी तलाश पूरी हुई। घने जंगल में उसे पहाड़ी गुफ़ाएँ दिखाई दी। वह एक ऐसी गुफा में दाखिल हुआ, जिसका प्रवेश द्वार काफी बड़ा था। गुफा अंदर से काफी बड़ी भी थी। 

लेकिन उसकी इच्छा तब भी पूरी नहीं हुई, क्योंकि गुफा में उसे बिल्कुल एकांत तो मिल ही नही पाया। वहाँ एक विशालकाय शेर गहरी नींद में सोया हुआ था। वह गुफा ही शायद उसका आश्रय थी। लेकिन पत्थर के आदमी को अब किसी की परवाह नहीं थी। उसे जिस एकांत की दरकार थी, वह तो अब उस शेर के वहाँ से चले जाने पर ही संभव था। 

शेर की नींद में खलल डालना उसे उचित नहीं लगा। इसीलिए उसने शेर को परेशान किए बिना ही गुफा से बाहर निकालने का फैसला किया। वह शेर की तरफ बढ़ा और अपने मजबूत हाथों से उसने शेर को उठाया। इसके बाद उसे लिए हुए वह गुफा से बाहर निकला और एक पेड़ के नीचे उसे रखकर वापस गुफा की ओर चल दिया। गुफा के बाहर बड़ी बड़ी चट्टाने रखी हुई थी। पत्थर के आदमी ने एक बड़ी सी चट्टान गुफा के प्रवेश द्वार के पास खिसकायी और गुफा में दाखिल होकर भीतर की ओर से चट्टान को गुफा के द्वार पर ऐसे लगा दिया कि उस चट्टान को हटाये बिना न कोई भीतर आ सकता था और न ही बाहर जा सकता था। 

गुफा में दिन के समय भी अंधेरे का साम्राज्य छा गया था। जिस एकांत की तलाश में पत्थर का वह आदमी भटक रहा था, वह एकांत अब जाकर उसे मिल पाया था। 

धीरे धीरे चलता हुआ वह गुफा में काफी भीतर तक चला गया। इसके बाद उसकी आँखों से एक तरह की लेजर किरणें निकली और गुफा की दीवार से टकराकर छाया चित्र की तरह का पर्दा बनाने लगी। जल्द ही दीवार में एक अजीब से व्यक्ति का अक्स उभरा। उस व्यक्ति के सिर पर एक भी बाल नहीं था। एक तरह से कहा जा सकता है कि वह एक गंजा व्यक्ति था। उसने सफेद रंग का कोट धारण कर रखा था और उसी रंग की पतलून भी पहन रखी थी। दोहरे बदन का वह व्यक्ति आयु में करीब 55 साल का लग रहा था। उसके चेहरे से क्रूरता टपक रही थी। क्रोध भरे स्वर में उसने बात शुरू की - “ हो गया काम ? “

“ नहीं। “ - पत्थर के आदमी ने अपनी स्वाभाविक भारी भरकम आवाज में जवाब दिया - “ अभी तक तो नहीं। “

“ तो जल्दी करो। “ - दीवार पर गिरी प्रकाश की किरणों के उस पार से क्रूर स्वर में वह व्यक्ति बोला - “ जानते हो ना, तुम्हारे पास समय बहुत कम है। “

“ हाँ। मैं जानता हूँ। “ - भारी आवाज में पत्थर का आदमी बोला - “ लेकिन, तुमने मेरे साथ धोख़ा किया है। “

“ क्या बकते हो ? “ - गुस्से में वह व्यक्ति बोला - “ कैसा धोख़ा ? “

“ तुमने कहा था कि अतीत की इस यात्रा में मैं 21वीं शताब्दी में जंगल के एकांत में स्थित किसी प्रतिमा के भीतर प्रकट होऊँगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। “

“ क्या तुम प्रतिमा में से प्रकट नहीं हुए स्टोन मेन ? “ - उस व्यक्ति ने पहली बार पत्थर के आदमी का नाम लेते हुए कहा। 

“ ऐसा नहीं है महीपति! “ - स्टोन मेन बोला - “ प्रकट तो मैं प्रतिमा में से ही हुआ हूँ। लेकिन किसी जंगल के एकांत स्थान में नहीं, जैसा कि आपने मुझे बताया था। बल्कि यहाँ के किसी म्युजियम में लोगों की भीड़ के बीच! “

“ क्या! “ - बुरी तरह से चौंका महीपति - “ किसी की नजरों में तो नहीं आए ना तुम ? “

“ कैसे संभव होता ऐसा ? जबकि मैं बता चुका हूँ कि वहाँ पर लोगों की भीड़ थी और उसी भीड़ के बीच में से काँच के एक केबिन मे रखी हिरण्यकशिपु की प्रतिमा में से प्रकट हुआ मैं यहाँ। “

“ ओह, तो इसका अर्थ यह हुआ कि अनेक लोगों द्वारा तुम देखे जा चुके हो। “ - इस बार थोड़े शांत और चिंतित स्वर में बोला महीपति। 

“ हाँ। “ - कहते हुए स्टोन मेन ने पुलिस से सामना होने की घटना भी बयान की। 

“ यह तो बहुत बुरा हुआ। हमारा खुफिया मिशन अब रहस्य नहीं रह जायेगा। उस युग के मानवों में से कोई न कोई अवश्य ही तुम्हारे वहाँ पर होने के उद्धेश्य का पता लगा लेगा। अगर ऐसा हुआ तो संभव है कि तुम अपने मिशन में नाकाम हो जाओ और अपनी नाकामयाबी के गंभीर परिणाम तुम्हें ही भुगतने होंगे। “

“ नहीं होगा। “ - स्टोन मेन अपनी भारी भरकम आवाज और गंभीर मुख मुद्रा के साथ बोला - “ ऐसा कभी नहीं होगा। मैं इस मिशन से सफल होकर ही लौटूंगा। “

“ किसी मुगालते में मत रहो। “ - महीपति बोला - “ तुम्हारी तो तलाश भी अब शुरू हो गई होगी। तुम्हारे लिए अच्छा यही होगा कि जल्दी से जल्दी उस प्रतिमा को लेकर बिना कोई उत्पात मचाये तुम लौट आओ। “



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