“ वर्षा के भरोसे ? “ - स्नेहा बोली।
“ बहुत काम की लड़की है वो। “ - हल्के से मुस्कुराते हुए विशाल बोला - “ हाँ, कभी कभी कुछ गड़बड़ जरूर कर देती है। “
“ अच्छा! “
“ हाँ। अब देखो ना, रॉकी के सामने ही उसने चैरिटी की बात छेड़ दी। “ - विशाल बोला - “ वो तो मैंने बात संभाल ली। वरना, रॉकी को अगर पता चल जाता कि उसे और उसके दोस्तों को मैं चैरिटी के पैसों से पार्टी देने वाला हूँ, तो वह कोई इंफोर्मेशन देना तो दूर की बात है और उल्टे गुस्से में आ जाता। “
“ सही है। “ - हँसते हुए स्नेहा बोली - “ इसका तो सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि वर्षा से तुमको सावधान रहने की जरूरत है। उसकी वजह से कभी तुम किसी मुसीबत में पड़ सकते हो। “
“ बातों को छिपाकर रखने की कला उसमें नहीं है। हमेशा कुछ न कुछ बोलती ही रहती है। लेकिन फिर भी बहुत सी बार बहुत काम की साबित होती है। “ - विशाल बोला।
“ ठीक है। बट, बी केयरफुल! “
तभी दरवाजे पर से डोरबेल की आवाज सुनाई दी।
“ मैं देखता हूँ। “ - बोलते हुए विशाल उठा।
आगे बढ़कर उसने गेट खोला तो सामने , पड़ोस में रहने वाली साक्षी मेहता को खड़े पाया।
साक्षी करीब 30 वर्षीय महिला थी, जो अपने बिजनेसमैन पति और 5 साल के बेटे के साथ उनके ठीक सामने वाले मकान में रहती थी।
“ स्नेहा है घर में ? “ - विशाल के पीछे घर के भीतर दाँये बाएँ झांकते हुए मिसेज मेहता ने पूछा।
स्नेहा अभी बस कुछ देर पहले ही आई थी। उसकी स्कूटी भी अभी तक बाहर ही खड़ी थी। जाहिर सी बात थी कि मिसेज मेहता ये कन्फर्म करके ही आई थी कि स्नेहा घर में ही है। फिर भी यह स्त्री सुलभ स्वभाव ही था कि उन्होंने ऐसा प्रश्न किया।
“ हाँ। वो बस अभी ही आई है। “ - व्यवहार सुलभ मुस्कुराहट चेहरे पर लाते हुए विशाल बोला - “ आप आइये ना भीतर! “
विशाल दरवाजे से पीछे हटा। मिसेज मेहता घर में दाखिल हुई।
“ अरे, मिसेज मेहता! आइये ना! कैसी है आप ? “ - औपचारिकतावश उठते हुए स्नेहा बोली।
“ मैं ठीक हूँ। तुम बताओ। “ - साक्षी मेहता सोफे पर बैठते हुए बोली - “ तुम कैसी हो ? और सब कैसा चल रहा है ? “
“ सब ठीक ही है। “
“ सॉरी टू डिस्टर्ब यू! “ - मिसेज मेहता बोली - “ मुझे पता है कि तुम ऑफिस से बस अभी ही लौटी हो और डिनर की तैयारी भी करनी होगी तुमको! “
“ हाँ। आपकी दोनों ही बातें सही है मिसेज मेहता! “ - स्नेहा बोली - “ ये रोज के काम तो चलते ही रहते है। पर, आप कहाँ रोज रोज आती हो! “
मिसेज मेहता रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए बोली - “ हाँ। मैं रोज नहीं आ पाती और इसकी वजह ये नहीं है कि मुझे टाइम नहीं मिलता। मेरे पास तो बहुत टाइम होता है। लेकिन, तुम्हारे पास नहीं होता। पर, आज जो डील मैं तुम्हारे लिए लेकर आई हूँ ना, उसको अगर तुम मान लो, तो तुम्हारे पास टाइम ही टाइम होगा। “
“ डील ? “ - स्नेहा ने चकित स्वर में पूछा।
“ हाँ, डील। “ - मिसेज मेहता बोली - “ और इसी की वजह से मुझे इस समय तुमको डिस्टर्ब करने आना पड़ा। “
इसी समय विशाल, जो काफी समय से वहाँ से गायब था, किचन से आता दिखा। उसके हाथ में कॉफी का कप था।
सोफे के सामने की मेज पर उसने वह कप रख दिया।
“ तुमने बेवजह तकलीफ की विशाल! “
“ इसमें तकलीफ कैसी मिसेज मेहता! “ - बोलते हुए विशाल अपने स्टडी रूम की ओर बढ़ गया।
“ क्या बात है मिसेज मेहता! “ - स्नेहा ने उत्सुक होकर पूछा - “ ऐसी क्या डील लेकर आई हो, जिसे मान लेने पर मेरे पास टाइम ही टाइम होगा ? “
“ तुमको एक सर्वेंट की जरूरत थी ना ? “
“ हाँ। मैंने कई बार आपसे कहा भी है कि कोई सस्ती सी मेड मिल जाए जो रसोई संभालने के साथ साथ घर का बाकी काम भी करने को तैयार हो, तो मजा आ जाए। “
“ समझ लो स्नेहा! मेड की तुम्हारी तलाश पूरी हो गई। “
“ सच में ? “
“ हाँ और वो भी फ्री ऑफ कोस्ट! “
“ क्या! फ्री ऑफ कोस्ट! “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली - “ आप मजाक तो नहीं कर रही! यहाँ सस्ती मेड मिलना मुश्किल है और आप फ्री में काम करने वाली मेड की बात कर रही है ! “
“ नहीं, कोई मजाक नहीं है ये। “ - कॉफी सिप करते हुए मिसेज मेहता बोली - “ काम करने के लिए पैसा तो वह नहीं लेगी। लेकिन, उसकी एक शर्त है। “
“ शर्त ? “
“ हाँ। उसे रहने के लिए छत, पहनने को कपड़ा और दो वक्त के भोजन की दरकार है। इसके बदले जितना चाहो, उससे काम ले सकती हो। “
“ क्या ? “ - स्नेहा चौंकी - “ ये कैसी सस्ती मेड हुई ? इतनी डिमांड कौन करता है! “
“ कोई नहीं करता। “ - मिसेज मेहता बोली - “ लेकिन ये स्पेशल केस है। “
“ स्पेशल केस ? “
“ किस्मत की मारी लड़की है। बेघर, बेसहारा। और तुमको भी तो हर किसी की मदद करने में खुशी मिलती है। इसीलिए मुझे लगा, शायद तुम मान जाओगी। “
“ ओह! पर है कौन वो और अभी कहाँ रहती है ? “
“ मेरे घर पर। उसी के भरोसे तो बेटे को घर पर छोड़कर आई हूँ। “ - मिसेज मेहता बोली - “ और जहाँ तक रहने का सवाल है तो एक बेसहारा लड़की भला कहाँ रहेगी! यूँ ही भटकती फिर रही थी और भटकते हुए आज दोपहर में मेरे घर आ पहुँची और लगी काम माँगने। “
“ अच्छा! “ - स्नेहा बहुत ध्यान से सुन रही थी।
“ और नहीं तो क्या! मेरे घर में भला काम ही कितना होता है! तो अपने यहाँ तो उसे मैं रख नहीं सकती थी। पर फिर मुझे तुम्हारा खयाल आया और मैंने सोचा कि शाम को ही तुमसे इस बारे में बात करती हूँ। “
“ ओह! “ - स्नेहा बोली - “ नाम क्या बताया आपने उसका ? “
“ बताया कहाँ है अभी तक ? “
“ नहीं बताया ? “ - दिमाग पर जोर देते हुए स्नेहा बोली - “ हाँ, तो नहीं बताया होगा। अब बता दीजिये। “
“ श्रद्धा। “ - मिसेज मेहता बोली
“ श्रद्धा ! “ - बोलते हुए स्नेहा सोचने लगी - “ ये नाम तो सुना हुआ सा लग रहा है।… कहाँ सुना था! “
“ क्या हुआ स्नेहा! “ - मिसेज मेहता बोली - “ किस सोच में डूब गई ? “
“ यह नाम मैंने सुना हुआ है। “
“ हाँ, तो सुना होगा कहीं। क्या बड़ी बात है! “ - मिसेज मेहता बोली - “ तुम तो रिपोर्टर हो। दिनभर में पचासों नाम सुना करती हो। इसी नाम की किसी और लड़की का नाम सुन लिया होगा। अब इस नाम पर किसी का कॉपीराइट तो नहीं , जो यह अपने आप में अकेला हो! “
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