“ कल शाम 7 बजे ऑफिस से निकालकर मैंने पार्किंग प्लेस से अपनी बाईक उठाई और अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट ‘ नीलम रेस्टोरेंट ‘ की ओर रुख किया, जो ऑफिस से घर के रास्ते में दो ही किलोमीटर की दूरी पर है। दिनभर के काम की थकान के बाद घर जाकर डिनर बनाने के झंझट से बचने के लिए अक्सर मैं अपना डिनर वहीं लेता हूँ। वहाँ मैंने हमेशा की तरह आराम से डिनर किया। इसके बाद मैं घर की ओर चल पड़ा। शहर की व्यस्त सड़कों और 2 - 3 ट्रैफ़िक सिग्नल को क्रॉस करके घर पहुँचते पहुँचते मुझे एक घंटा लग गया। “ - पिछली रात दक्ष के साथ जो दो घटनाएँ घटित हुई थी, उनके बारे में वह विस्तार से स्नेहा को बता रहा था।
“ मतलब, घर पहुँचते पहुँचते तुमको आठ बज गए। “
“ हाँ। और जैसा कि तुम जानती हो, मेरा घर मेहताब रोड़ के अपने डेली न्यूज़ ऑफिस से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विनायक कॉलोनी में है। “
“ हाँ। जानती हूँ और मैं कई बार आई भी हूँ वहाँ। “ - स्नेहा बोली - “ जो मुझे पहले से पता है, उसके बारे में बोलने के बजाय तुम सीधे मुद्दे पर क्यों नहीं आते ! “
“ अब तुम्हीं ने तो कहा था, पूरी डिटेल में बताने को। “ दक्ष मासूमियत भरे अंदाज में बोला।
स्नेहा ने गुस्से भरी नजरों से दक्ष की ओर देखा।
“ अच्छा। ठीक है। अब आता हूँ असली बात पर। “ - हँसते हुए दक्ष ने वाकया आगे बढ़ाया - “ घर पहुँचकर मैंने अपनी बाईक को घर के बाहर ही पार्क किया, अपने बैग में से घर की चाभी निकाली और लॉक खोलकर भीतर दाखिल हुआ। इसके बाद ऑफिस बैग और हेलमेट उनके नियत स्थान पर रखकर मैंने टेलीविजन ऑन किया। आरामदायक वस्त्र पहनकर कुछ देर रिमोट से चैनल चेंज करता रहा। “
“ क्या कर रहे हो ! “ - स्नेहा अचानक से गुस्से में बोली - “ घर में तुमने क्या किया, क्या नहीं किया - ये सब छोड़कर बताओगे भी कि आखिर घटित क्या हुआ तुम्हारे साथ ? “
“ अरे, अरे! “ - दक्ष समझाने के अंदाज में बोला - “ बस में आ ही रहा हूँ टॉपिक पर। “
स्नेहा थोड़ी शांत हुई।
दक्ष ने बात आगे बढ़ाई - “ करीब आधे घंटे तक टीवी देखने के बाद मैंने वही किया जो मैं हमेशा किया करता हूँ। बैठे बैठे अपने अतीत और भविष्य के बारे में सोचना और इससे उकताहट होने पर नाईट वॉक पर निकलकर मिलने वाले परिचितों और पड़ोसियों से बतियाना, उनके हाल चाल मालूम करना, कुछ उनकी सुनना, कुछ अपनी सुनाना और अंत में लौटकर फिर घर आना।.. यह सब करते करते किसी तरह दस बज गए, जो कि मेरे रुटिन के मुताबिक मेरा सोने का वक्त होता है।… तो दिनभर का थका हारा मैं बिस्तर के हवाले हुआ। “
“ फिर ? “ - पूछते हुए स्नेहा बिल्कुल सावधान होकर बैठ गयी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि जिन घटनाओ को सुनाने के लिए दक्ष ने इतनी लंबी चौडी भूमिका बाँधी थी, प्रस्तावना तैयार की थी, उनको सुनने का वक्त आ चुका था।
“ अब तक तो वही सब चल रहा था, जो हर रोज चलता है। दस बज चुके थे और अब सोते समय मैं यही सोच रहा था कि जब सुबह मेरी आँख खुलेगी तो फिर से वही उठकर तैयार होना, ऑफिस जाना और अपना डेली रुटिन फॉलो करना होगा। वह सब तो खैर होना ही था। लेकिन वो सब होने से पहले पूरी एक रात बाकी थी और इस रात में क्या कुछ होने वाला था, इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था।
हर रात की तरह इस रात भी मैं घोड़े बेचकर सो गया। लेकिन सुबह तक सोया ही न रह सका। रात को करीब एक बजे के आसपास मेरी आँख खुली। आँख खुलते ही कानों में झमाझम… झमाझम की आवाज पड़ी। बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी।… तो क्या इसी वजह से मेरी आँख खुली थी ? तेज मूसलाधार बारिश ने मेरी नींद में खलल डाला था ?... ये एक वजह हो सकती थी। लेकिन सिर्फ यही एक वजह थी, इस पर मुझे संदेह था।…क्योंकि बारिश की झमाझम के साथ ही एक आवाज और मुझे सुनाई दे रही थी। वह आवाज बहुत तेजी से और लगातार आए जा रही थी।
दरवाजा खटखटाने की आवाज!
इलेक्ट्रिक बेल होने के बावजूद घर का मुख्य दरवाजा खटखटाने की आवाज!
वो भी रात के इस वक्त!
क्या मामला था ?
पता करने के लिए मुझे न केवल बेड से उठना था, बल्कि दरवाजा खोलकर देखना भी था कि आखिर रात के एक बजे बिना किसी पूर्व सूचना के आने वाला शख्स आखिर था कौन! और सबसे बड़ा रहस्य कि डोरबेल होने के बाद भी वह दरवाजा क्यों खटखटा रहा था ?
किसी अनिष्ट की आशंका से मेरा हृदय ‘ धाड - धाड ‘ बज रहा था और यही वो पल था जब मुझे अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर याद आई।
अलमारी की दराज में से रिवॉल्वर निकालकर उसके चैंबर को बुलेट से लोड किया।
इसके बाद बिल्कुल सधे कदमों से मैं बेडरूम से बाहर निकला और बाहर हॉल में चलते हुए घर के मेन गेट तक पहुँचा। दरवाजा खटखटाने की आवाज अब भी आ रही थी। आगंतुक जो कोई भी था, लगातार हाथ से दरवाजा खटखटाये जा रहा था।
दाहिने हाथ में रिवॉल्वर थामे, बाएँ हाथ से मैंने तेज गति से दरवाजा खोला और अंगुली ट्रिगर पर रखकर रिवॉल्वर का रुख आगंतुक की ओर कर दिया।
इसके बाद जो मैंने देखा, वो मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। मेरे सामने चेहरे पर खौफ के भाव लिए एक लड़की खड़ी थी। “ - बताते हुए दक्ष ने कॉफी का आखिरी घूँट हलक से नीचे उतारा और कप को मेज पर रख दिया।
“ लड़की! “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली - “ तुम्हारी कोई परिचित होगी। “
“ नहीं। मैं उसे जानता तक नहीं। वो सूरत ही मैंने लाइफ में पहली बार देखी। “
“ एक अनजान लड़की! आधी रात को! “ - आश्चर्य के साथ कुछ सोचते हुए स्नेहा बोली - “ जरूर किसी मुसीबत में फंसी होगी। “
“ हाँ। बोलती तो वो ऐसा ही थी। “ - कहते हुए दक्ष ने श्रद्धा की पूरी कहानी बताई।
“ ओह! “ - स्नेहा बोली - “ तो वह घर से भागी हुई लड़की है और उसे डर है कि उसके चाचा उसकी खोज करते हुए किसी भी वक्त यहाँ शहर में आ सकते हैं। “
“ हाँ और अभी उसने मुझे अपनी रामकहानी सुनाकर खत्म की ही थी कि अचानक से घर का मेन डोर खुला, पर बेहद धीमी गति से।
असल में, हुआ यह था कि उस अजनबी लड़की के आने के बाद से ही मेरा सारा ध्यान उसी पर था। मुझे डर था कि वो मेरे लिए खतरा ना बन जाए। इसीलिए मैंने उसे उस समय तक रिवॉल्वर की नोक पर रखा, जब तक कि मुझे उस पर पूरा भरोसा नहीं हो गया। इस बीच मैं घर का मेन डोर भीतर से बंद करना भूल ही गया था और उसी का परिणाम था कि
वे बिना किसी परेशानी के मेन डोर से घर में दाखिल हो गये।
वैसे तो रात के समय किसी अजनबी सज्जन से दिखने वाले इंसान को भी मैं संदेह की नजरों से देखता और उससे वैसा ही बर्ताव करता, जैसा कि मैंने श्रद्धा के साथ किया। पर, यहाँ तो मामला बिल्कुल ही क्लियर था। वे दो थे और दोनों के ही न केवल चेहरे मास्क से ढँके थे, बल्कि हाथों में चाकू भी थे। उनके खतरनाक इरादों को भाँपने में मुझे एक पल भी नहीं लगा और अपनी रिवॉल्वर से दनादन दो फायर मैंने उनके घुटनों पर किए। “
शेष अगले भाग में