कवि आहत कोई कविता बनाते हुए अपनी ही धुन में चले जा रहे थे।
इतने में ही सामने से आते हुए एक पैंट - शर्टधारी महाशय ने उनको रोकते हुए पूछा - “ आप कवि आहत है न ? “
“ हाँ। “
“ मुझसे मिलिए। “ - महाशय बड़े ही उल्लसित स्वर में बोले - “ मैं कवि उत्थानक हूँ। “
“ उत्थानक आपका मूल नाम है या उपनाम ? “
“ अजी, मैं कवियों का उत्थान करता हूँ, इसीलिए लोग मुझे कवि उत्थानक कहते है। “ - जवाब देते हुए वे महाशय बोले - “ आपको धन्य करना चाहता हूँ। “
“ आप किसी संस्था से है? “ - आहत ने अगला प्रश्न दागा।
“ मैं खुद एक संस्था हूँ। एकला चलो पर विश्वास करता हूँ। “ - बोलते हुए वे महाशय एक पैर पर खड़े हो गए।
फिर लड़खड़ाकर गिर पड़े।
दोबारा उठकर बोले - “ हाँ, बोलिये। आपको कैसा उत्थान चाहिए? “
फिर बिना जवाब की प्रतीक्षा किए ही वे पुरस्कारों के पैकेज बताने लगे - “ अखिल भारतीय पुरस्कार के लिए आपको लाख, दो लाख खर्च करना पड़ेगा। जितनी टाँगे खींचो, उतने गिरेंगे। “
कवि आहत विस्मित भाव से सुन रहे थे।
“ राज्य स्तरीय पुरस्कार के लिए आपके तीस हजार खर्च होंगे। “
“ त…तीस हजार! “
“ जिला स्तर के पुरस्कार से संतोष हो तो पंद्रह हजार खर्च करिए। “ - उत्थानक के पास सस्ते पैकेज भी थे।
“ मैं समझा नहीं। “
“ पुरस्कार, सम्मान लेने के लिए स्वयं प्रबंध करना होता है। “ - समझाने की गरज से कवि उत्थानक बोले - “ जैसे आपको अखिल भारतीय कवि शिरोमणि का पुरस्कार लेना हो तो सारी व्यवस्था हमारी होगी। “
हतप्रभ आहत सुन रहे थे।
“ आपको अंगवस्त्रम के साथ एक लाख का चेक भेंट किया जाएगा, जो वस्तुतः आपका ही होगा। “ - ठठाकर हँसते हुए उत्थानक बोले - “ वह बाद में आप हमें वापस देंगे। व्यवस्था का सारा खर्च और मेरा कमीशन उसी में से तो होगा। “
उत्थानक आगे बोले - “ सम्मान मिलने पर कवियों में आप ईर्ष्या से देखे जायेंगे। “
“ वह तो मैं अब भी देखा जाता हूँ। “
“ बोलिये, एक लाख देते हैं ? “
“ नहीं। “
“ तीस हजार ? “
“ नहीं। “
“ अरे, तो पंद्रह हजार ही दीजिये। जिले का कवि पुरस्कार की व्यवस्था कर दूँगा। “
“ जी नहीं। “
“ आप पहले कवि है जो इनकार कर रहे है। अजीब कवि है आप। विकास की गंगा आपके सामने है, दूसरों की तरह बहती गंगा में हाथ धोना नहीं चाहते। “
“ मेरी कविताएं ही मेरा पुरस्कार है। आप सुनना चाहेंगे ? “
और जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही आहत शुरू हो गए - “ ईश्वर की मिक्सी में पिस जाते है भ्रष्टाचारी। यह बात और है कि वह अब तक ख़राब है। “
उत्थानक महोदय सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए।
समाप्त
बहुत बढ़िया ,व्यंग्यात्मक रचनाएँ आजकल कम पढ़ने को मिलती है।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंयह रचना मेरी नहीं है। इसे अनंत कुशवाहा जी ने चित्रकथा के रूप में लिखा था।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्यात्मक रचना सटीक सार्थक लेखक की पैनी नजर और लेखन कौशल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंपुरस्कार की यह धांधली, वाकई दुखद है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसही है
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