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रविवार, 25 अगस्त 2024
ईशा मर्डर केस ( भाग - 6 )
" उस रेस्टोरेंट में तुम लोग कितनी देर तक रुके थे ? " - " इंस्पेक्टर चौबीसा ने पूछा।
" करीब 2 घंटे तक। "
चौबीसा चौंका - " मतलब , 10 बजे तक ? "
" हाँ।...नहीं।….मेरे विचार से 9.30 बजे से कुछ ऊपर का टाइम हुआ होगा। "
" तुमने ईशा को उसके घर तक ड्रॉप करने के बारे में नही सोचा ? "
" कैसे सोचता ?...मुझे खुद टैक्सी करके जाना पड़ा। मेरे पास कोई निजी साधन तो था नहीं। "
" ईशा ने कुछ बताया था , कहाँ जा रही है वो ? "
" नहीं। लेकिन मैंने देखा था , वो पैदल ही जाने के मूड में दिख रही थी। "
" किस तरफ गई थी ? "
" दिनकर ब्रिज की ओर। "
" वहाँ से दिनकर ब्रिज की दूरी तकरीबन कितनी रही होगी ? "
" पैदल चलने वाले इंसान को करीब 15 मिनट तो लग ही जायेंगे वहाँ से। "
" ठीक है। तो अब आगे क्या प्रोग्राम है ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।
" प्रोग्राम ? "
" होटल में कितने दिन और रुकोगे ? "
" मैं अपने मम्मी - पापा से मिलना चाहता हूँ। पर हिम्मत नहीं हो रही। "
" वो तो जुटानी ही पड़ेगी और बेहतर होगा कि यह काम तुम जल्द ही कर लो। "
" जल्द ही , क्यों ? "
" क्योंकि खुद को दुनिया की नजरों में मरा हुआ साबित करके न केवल अपनी फैमिली को , बल्कि पुलिस को भी तुमने धोखा दिया है। अब जल्द ही हकीकत सबके सामने लेकर आओ। "
" जी सर ! "
" अभी तुम जा सकते हो। लेकिन अगली बार तुमसे होटल में नहीं , तुम्हारे घर पर मिलना चाहूँगा तुमसे। "
बिना कुछ बोले रवि वहाँ से चला गया।
□ □ □
शाम के 6 बज चुके थे।
सुबह 8 बजे से ही इंस्पेक्टर चौबीसा ईशा मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे।
कई लोगों से मिलने के बाद , कइयों से पूछताछ करने के बाद अब वह काफी थक चुके थे।
लेकिन कुछ और लोगों से मिलना अभी बाकी था।
महज 15 मिनट की हल्की - सी झपकी और एक कप कॉफी लेने के बाद इंस्पेक्टर ने खुद को दोबारा तरोताजा महसूस किया और घर के बाहर लॉन में आकर केस की बारीकियों पर विचार करने लगा।
" ईशा का कातिल कौन हो सकता है ?...क्या उसके अंकल ने प्रोपर्टी हथियाने के लिए उसका कत्ल किया ?... या अमित ने ही ईशा को मार डाला , सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अमित के अलावा किसी और से भी प्यार करती थी ? "
इंस्पेक्टर चौबीसा किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था।
जल्द ही वह बाइक लेकर बाहर निकला।
करीब 2 घंटे बाद पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर चौबीसा ईशा मर्डर केस से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लोगों के साथ मौजूद था।
अर्जुनसिंह , रवि , अमित , पायल , सुरेश , आयशा , चाँद भाई - ये सभी वहाँ उपस्थित थे।
ये सभी पुलिस स्टेशन के एक कॉन्फ्रेंस रूम में एकत्र हुए थे।
" आप लोगों को यह जानकर खुशी होगी कि ईशा के कातिल का पता चल चुका है। "
" कौन है वो ? " - अर्जुनसिंह ने पूछा।
" बस थोड़ा सा सब्र रखिये। " - कहते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा ने बताना शुरू किया - " कातिल के रूप में जिन लोगों पर मुझे संदेह था , वे थे - अर्जुनसिंह , अमित , चाँद और रवि। इन चारों में से कोई एक कातिल होना चाहिए था। जैसे - जैसे मैं मामले की गहराई में उतरता गया , मुझे कुछ नई और चौंकाने वाली जानकारियां हासिल हुई। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली जानकारी तो ये थी कि ईशा का अभिनव नाम का जो बॉयफ्रेंड था , उसका अस्तित्व ही नहीं है। अभिनव के बारे में पता करने के लिए मैं शारदा नगर गया , तो मुझे पता चला कि इस नाम का कोई शख्स वहाँ रहता ही नहीं है। तब मेरा ध्यान उस मोबाइल की ओर गया , जो पायल से लिया गया था। मैं जल्द ही सायबर ब्रांच पहुंचा और ईशा के साथ अभिनव नाम के उस शख्स की फोटो और जिस मोबाइल नंबर से वो फोटो send की गई थी , उस नम्बर के बारे में पता किया।...फोटो एडिट की हुई थी। "
" क्या मतलब ? " - अर्जुनसिंह ने पूछा।
" मतलब , दो अलग - अलग इमेज को जोड़कर फेक फोटोज बनाई गई थी। "
" ऐसा किसने और क्यों किया ? "
" यह पता करने का एक ही तरीका था। उस मोबाईल नम्बर का पता करना , जिसके माध्यम से वह फोटो पायल के मोबाइल में भेजी गई।...सायबर ब्रांच वालों को यह पता करने में ज्यादा समय नहीं लगा। वह नम्बर पायल के नाम से ही दर्ज था। "
" यह झूठ है ! " - पायल चीखी - " वो नम्बर मेरा नहीं था। मेरे मोबाइल पर किसी ने वे फोटोज send की थी। "
" तुम सही कह रही हो , वो मोबाइल नंबर तुम्हारा नहीं था। लेकिन , उस नम्बर की सिम खरीदने के लिए तुम्हारे डॉक्यूमेंट यूज़ किये गए थे और इसीलिए वह नम्बर तुम्हारे नाम पर दर्ज था। "
" मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि जिस किसी ने भी यह सब किया , उसे तो अपना काम हो जाने के बाद सिमकार्ड को तोड़ कर फेंक देना चाहिए था और उसने ऐसा किया भी होगा। " - एकाएक अमित बोला - " फिर आपको कैसे पता चला कि उस सिमकार्ड को यूज़ कौन कर रहा था ? "
" बुद्धिमत्तापूर्ण सवाल ! " - चौबीसा बोला - " लेकिन थोड़ा सा और दिमाग पर जोर दिया होता , तो तुमको ये सवाल पूछने की जरूरत नहीं पड़ती। "
" मतलब ? "
" हमने ये पता किया कि पिछले एक हफ्ते के दौरान उस नम्बर वाली सिम को किसने और कहाँ से खरीदा। "
" लेकिन यह पता करना तो काफी मुश्किल काम है ? "
" हमारे आपके लिए मिस्टर अमित ! …. साइबर ब्रांच वालों के लिए नहीं। "
" किसने खरीदी थी वो सिम ? " - पायल ने पूछा।
" सुरेश ने। " - इंस्पेक्टर चौबीसा ने कहा।
सभी बुरी तरह से चौंक उठे।
किसी को यकीन नहीं हो रहा था।
" लेकिन सुरेश ऐसा क्यों करेगा ? " - अमित ने पूछा।
" बताओ सुरेश ! " - इंस्पेक्टर ने सुरेश की ओर देखते हुए कहा।
" मैंने किसी का खून नहीं किया। " - सुरेश चीखा।
अचानक से इंस्पेक्टर ने रिवॉल्वर निकालकर सुरेश की कनपटी पर तान दी और ट्रिगर पर अपनी अँगुली का दबाव बढ़ाने लगा।
" नहीं। रुको। बताता हूँ। " - सुरेश चीखा - " अपनी गलत आदतों की वजह से मुझ पर बहुत सारा कर्ज हो गया था। जुआ और ड्रग्स - मेरी इन दो बुरी आदतों की वजह से ऐसा हुआ था। तब ईशा ने मेरी मदद की।...यह करीब दो महीने पहले की बात है। कर्ज से मुक्त होने के बाद मैंने अपनी दोनों ही बुरी आदतें छोड़ दी थी। लेकिन ईशा के दिये हुए 5 लाख रुपये मैं चुका नहीं पा रहा था और ईशा मुझे अपने अंकल को सब कुछ बताने की धमकी दे रही थी। अगर ऐसा हो जाता , तो बात मेरे घर तक पहुँच सकती थी , जो कि मैं नहीं चाहता था और 5 लाख रुपये चुकाने की क्षमता भी मुझमें नहीं थी।...इस मुसीबत से निकलने के लिए मैंने एक योजना बनाई। किसी तरीके से पायल के डॉक्यूमेंट हासिल करके उसके नाम का सिम कार्ड खरीद लिया और उसे वे एडिट किये हुए फोटोज और मैसेज भेजे। कल रात जब अमित पायल से मिलने गया तो मैंने आयशा को उसके घर ड्रॉप किया और ईशा के पीछे लग गया। दिनकर ब्रिज पर उसे अकेला पाकर मैंने रिवॉल्वर से शूट कर दिया। मुझे लगा कि मेरी प्रॉब्लम खत्म हो गई। "
अपनी बात खत्म करते हुए सुरेश फूट - फूटकर रोने लगा।
" केवल पाँच लाख रुपये जैसी छोटी रकम के लिए तुमने मेरी भतीजी को मार डाला ! " - अर्जुनसिंह चीखा।
सुरेश का बयान रिकॉर्ड हो चुका था , जो कि अदालत में काम आने वाला था।
समाप्त
ईशा मर्डर केस ( भाग - 5 )
" रवि खन्ना ! " - वह बोला - " क्या बात है इंस्पेक्टर साहब ? "
देवेश चौबीसा कुछ बोल पाता , इसके पहले ही इंस्पेक्टर चौहान वहाँ आ पहुँचा।
" आप तो काफी जल्दी पहुँच गए ! " - आश्चर्य प्रकट करते हुए चौहान बोला।
" केस ही कुछ ऐसा है इंस्पेक्टर ! "
" तो क्या निष्कर्ष निकाला ?....यह वही है , जिसकी आपको तलाश थी ? "
" जी हाँ , शख्स भी वही है और इसका नाम भी। " - कहते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा रवि से रूबरू हुआ - " तुमको मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। "
" क्या ? " - रवि बुरी तरह से चौंका - " लेकिन मैंने किया क्या है ? "
" पुलिस स्टेशन चलने में दिक्कत हो तो हम किसी रेस्टोरेंट में भी चल सकते हैं। "
रवि ने अजीब नजरों से इंस्पेक्टर की ओर देखा।
" आप मजाक कर रहे हैं ? "
" तुमसे कुछ बहुत जरूरी बातें करनी है।...अब ये बातें तुम कहाँ करना चाहते हो , ये तुम डिसाइड कर सकते हो। "
" आप अपराधियों के साथ बड़ी नरमी से पेश आते हैं ! " - इंस्पेक्टर चौहान बोला।
" यह अपराधी की स्थिति पर निर्भर करता है और मेरे विचार से इस अपराधी की स्थिति इस समय दयनीय है। " - कहते हुए देवेश चौबीसा रवि से बोला - " तो क्या सोचा ? "
" आपके घर चल सकते हैं हम ? " - रवि मासूमियत से बोला।
" तुमसे यही उम्मीद थी। " - मुस्कराते हुए इंस्पेक्टर चौबीसा ने कहा।
□ □ □
इंस्पेक्टर देवेश चौबीसा के घर का ड्राइंगरूम !
20 वर्षीय रवि के चेहरे से मासूमियत छलक रही थी।
" तो , शुरू हो जाओ। " - चौबीसा बोला।
" क्या ? "
" कौन हो ? कहाँ से आये हो ? क्या करते हो ?...अपने बारे में जो बता सकते हो , बताना शुरू करो। "
रवि ने आश्चर्य से चौबीसा की ओर देखा।
" आप मेरे बारे में क्यों जानना चाहते हो ? " - रवि ने पूछा - " मैंने किया क्या है ? "
" ईशा को जानते हो ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।
" ईशा ? "
" ईशा सिंह। बिज़नेसमैन अर्जुनसिंह की भतीजी ! "
" हाँ , जानता हूँ। "
" लास्ट बार कब देखा था तुमने उसे ? "
" कल रात को ही मिला हूँ। "
" कहाँ ? "
" निहारिका मॉल में। "
" क्यों ? "
" क्या ? "
" क्यों मिले थे ? "
" बस यूँ ही। "
" क्या बोल रहे हो तुम ? "
" सच कह रहा हूँ सर ! "
" उससे मिलने की कोई खास वजह नहीं थी तुम्हारे पास ? "
" नहीं। " - रवि ने दृढ़ता से जवाब दिया।
" उसने फोन किया था तुमको। "
" नहीं। "
चौबीसा चौंका - " ईशा ने कॉल करके तुमको मॉल में नहीं बुलाया था ? "
" नहीं। " - रवि निर्विकार भाव से बोला - " हम वहाँ एक्सिडेंटली मिले थे। "
" ओके। ये बताओ कि ईशा से तुम्हारी क्या बात हुई थी ? "
" खास कुछ नहीं ! "
" फिर भी। "
" उससे आपको कोई मतलब नहीं। "
" मतलब नहीं होता तो तुम इस वक़्त यहाँ नहीं होते। "
" मैं नहीं बता सकता। " - रवि बोला - " आप ईशा से ही क्यों नहीं पूछ लेते यह सब ? "
" क्या ? " - इंस्पेक्टर ने रवि की ओर चौंककर देखा।
" क्या हुआ ? "
" तुम ये क्या बोल रहे हो ? "
" क्या बोल रहा हूँ ? "
" क्या तुम्हें नहीं पता कि ईशा…"
" ईशा ?...ईशा क्या ? "
" ईशा मर चुकी है। "
" ये आप क्या कह रहे हैं इंस्पेक्टर साहब ? "
" तुम तो ऐसे बिहेव कर रहे हो , जैसे तुम्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं। "
" मुझे सच में नहीं पता और ना ही मैं अब भी इस बात पर यकीन कर पा रहा हूँ। "
" यकीन कर लो। तुम्हारे लिए यही ज्यादा बेहतर होगा , क्योंकि इस वक़्त तुमसे की जा रही इन्क्वायरी की इकलौती वजह ईशा के कातिल की तलाश है। "
" क्या मतलब ? " - रवि फिर चौंका - " ईशा का किसी ने कत्ल किया है ? "
" हाँ। " - देवेश चौबीसा ने बताया - " दिनकर ब्रिज पर उसकी लाश पाई गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात क्लियर हो चुकी है कि किसी ने काफी करीब से उसे शूट किया है। "
" लेकिन कोई ईशा को क्यों मारना चाहेगा ? "
" यही पता करने के लिए तो तुमसे पूछताछ की जा रही है और अगर तुम मदद करो तो शायद कातिल तक पहुंचना काफी आसान हो जायेगा। "
" कैसी मदद ? "
" कल रात तुम ईशा से मिले थे ? "
" मैं बता चुका हूँ। "
" लेकिन ये नहीं बताया कि तुम दोनों के बीच बात क्या हुई थी ? "
" वह मुझे देखकर बुरी तरह से चौंक उठी थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उसके सामने जीवित खड़ा हूँ। "
" ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें होटल में देखकर मैं चौंका था ? "
" हाँ , कुछ - कुछ वैसे ही। " - रवि कुछ सोचते हुए बोला - " लेकिन आप मुझे देखकर क्यों चौंके थे ? "
" जिस वजह से ईशा चौंकी थी। "
" क्या ? मतलब मुझे जीवित देखकर ? "
" बिल्कुल ! "
" पर आपको कैसे पता कि मैं…"
" यह सब छोड़ो।...तुम आगे बताओ। "
" ठीक है। " - कहते हुए रवि ने मॉल में ईशा से हुई बातचीत के बारे में विस्तार से बताना शुरू किया।
□ □ □
" उसे एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं जीवित उसके सामने खड़ा हूँ। "
" तुम ? "
" ईशा ! " - मैं खुशी से चहकते हुए बोला - " तुम कैसी हो ? "
" तुम तो मर चुके थे ! "
" ज्यादा बात नहीं। मैं थोड़ी शॉपिंग कर लूँ , फिर बात करते हैं। "
करीब एक घंटे तक हम मॉल में शॉपिंग करते रहे।
उस पूरे टाइम वह आश्चर्य में पड़ी खोई - खोई सी रही।
इसके बाद हम बाहर आकर एक रेस्टोरेंट में पहुँचे।
" तुम कौन हो ? " - एकाएक ही ईशा ने पूछा।
" रवि ! " - मैं बोला - " तुम्हारा रवि , ईशा। "
" झूठ ! वो तो बहुत पहले मर चुका है। "
मैं हँसा।
" तुम्हारी शक्ल रवि से मिलती जरूर है , लेकिन तुम रवि नहीं हो सकते। "
" क्यों नहीं हो सकता ? "
" क्योंकि वह मर चुका है। "
" कोई लड़का रेल की पटरी पर मरा हुआ मिलता है और महज उसकी जेब में मिले एक लेटर के आधार पर उसकी शिनाख्त कर ली जाती है। कमाल है ! "
" तुम...तुम कहना क्या चाहते हो ? " - आशंकित स्वर में वह बोली।
" वह मैं नहीं था। "
" ये तो मुझे पता है। "
" अरे , मेरे कहने का मतलब है कि वह मैं यानी कि रवि नहीं था। "
" अच्छा ! फिर वो कौन था ? "
" उस दिन जब 10th क्लास का रिजल्ट आया था और मैं बहुत अपसेट था , तब यूँ ही घूमते हुए मैं एकांत में उस स्थान पर जा पहुँचा , जहाँ से हर 10 मिनट मैं एक ट्रेन गुजरती थी। मैं दुःखी तो था ही , साथ ही डरा हुआ भी था। मुझे डर था कि मैं अपने पापा के गुस्से का सामना कैसे करूँगा। मेरे मन में आया कि मैं ट्रेन की पटरियों पर लेट जाऊं , कुछ देर में ट्रेन आएगी और फिर सारी प्रॉब्लम खत्म !...मैं बस सोच ही रहा था कि तभी कुछ ऐसा हुआ , जिसके बारे में मैंने कल्पना भी नहीं की थी।...अचानक ही कहीं से एक लड़का पटरियों के बीच आकर खड़ा हो गया , इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता , अचानक ही एक ट्रेन वहां से गुजरी और लड़का मर गया। एक ही पल बाद सब शांत हो गया। उस लड़के को जिस हाल में मैंने देखा था , उसके बारे में सोचते ही मेरी रूह तक काँप उठती है। उसकी हालत देखकर मेरे दिमाग में अब दो बातें घूम रही थी। या तो मैं भी उस लड़के की तरहअपना जीवन समाप्त कर दूँ , या फिर वहां से गुजरने वाली अगली ट्रेन में बैठकर कहीं दूर , बहुत दूर भाग जाऊँ।...लेकिन मैं जानता था कि मैं कहीं भी जाऊं , मेरे पापा मुझे कहीं से भी ढूंढ निकालेंगे। तब मेरे दिमाग में एक तीसरी बात आई। मैंने जल्दी से एक कागज और पेन का बंदोबस्त किया और एक सुसाइड नोट लिखा। फिर , वह नोट उस लड़के की पॉकेट में डाल दिया।
फिर रेलवे स्टेशन पहुंचकर एक ट्रेन में बैठकर दिल्ली चला गया। "
" क्या ? " - पूरी कहानी सुनकर ईशा चौंक उठी - " ये सब तो किसी फिल्मी कहानी की तरह लग रहा है ! "
" हाँ , लेकिन सच यही है। "
" तुम वापस क्यों आये हो ? "
" मैंने सोचा था कि बाहर आज़ादी से रह सकूँगा। लेकिन अपने कंप्यूटर के सीमित ज्ञान की वजह से मैं सिर्फ एक छोटी सी नौकरी ही हासिल कर पाया , जिससे बड़ी ही मुश्किल से मैं जीवन जीने लायक पैसे कमा पा रहा था। अब मेरा हौंसला टूट चुका है और साथ ही अकेलापन भी मुझसे सहन नहीं हो रहा था। घर की याद आई तो मैं यहाँ आ गया। "
" तो अभी तक घर नहीं गए ? "
" हिम्मत नहीं हो रही। एक होटल में रुका हुआ हूं। 2 - 3 दिन में पर्याप्त हिम्मत जुटा लेने के बाद मैं घर चला जाऊंगा। "
" अच्छा ! "
" प्लीज , तुम मेरे बारे में किसी को मत बताना। अभी मैं किसी का भी सामना करने की हालत में नहीं हूँ। "
" नहीं बताऊंगी। अब मैं चलती हूँ। "
" मैं इतने सालों बाद आया हूँ। तुम्हें मुझसे और कुछ नहीं कहना ? "
" सच कहूँ तो मुझे अभी भी तुम्हारी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा। जब मुझे भरोसा हो जाएगा कि तुम ही मेरे रवि हो , तब बात करूँगी। "
मैं मुस्कराया - " तुम आज भी वैसी ही हो। अजनबियों से बहुत डरती हो। "
इसके बाद वह चली गई।
मैं भी होटल में लौट आया। "
□ □ □
ईशा मर्डर केस ( भाग - 4 )
अमित के हेल्पिंग नेचर की वजह से ही ईशा और रवि से हमारी फ्रेंडशिप हो गई।
ईशा और रवि कंप्यूटर क्लास जॉइन करने से पहले ही एक - दूसरे को जानते थे।
न केवल जानते थे , बल्कि रिलेशनशिप में भी थे।
जबकि मैं हिन्दी टाइपिंग सीखने के बहाने अमित से नजदीकियां बढ़ाना अब शुरू कर रही थी।
सब कुछ ठीक चल रहा था।
इसी बीच एक घटना घटी।
हम लोगों के 10th का रिजल्ट आया।
सभी अच्छे नंबरों से पास हुए थे।
लेकिन , रवि पास नहीं हो पाया।
वह फैल हो गया।
रवि के लिए हम सबको अफसोस हुआ। लेकिन , हमें उम्मीद नहीं थी कि इस छोटी सी घटना की वजह से वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा।
अगले दिन उसकी लाश ट्रेन की पटरियों पर पाई गई।
उसने ट्रैन के आगे कटकर अपनी जान दे दी थी।
साथ में एक लेटर भी मिला , जो उसकी पॉकेट से बरामद हुआ था।
लेटर में उसके मरने की वजह का जिक्र था।
10th क्लास में फैल होने के बाद अपने पापा के गुस्से का सामना करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पा रहा था और इसी वजह से उसने आत्महत्या कर ली। "
पायल की पूरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर बोला - " तो आपका कहना है कि फोटो में जो शख्स ईशा के साथ है , वो ईशा का बॉयफ्रेंड था और तीन साल पहले ही मर चुका है ? "
" निश्चित तौर पर। " - पायल बोली - " और आप चाहे तो रवि के घर जाकर भी तसल्ली कर सकते हैं। "
" ओके। एड्रेस बताईये। "
पायल ने बताया।
" तुमको अपना मोबाइल भी देना होगा। " - इंस्पेक्टर बोला।
" मोबाइल ? " - पायल चौंकी - " वह क्यों ? "
" जिस नम्बर से आपको वाट्सएप के जरिये मैसेज किया गया था , वो नम्बर दोबारा हासिल करने के लिए इसकी हमें जरूरत पड़ेगी। " - देवेश चौबीसा बोला - " हाँ , आप चाहे तो सिम कार्ड निकाल सकती है। "
" ओके। "
□ □ □
इंस्पेक्टर देवेश चौबीसा रवि के घर पहुंचकर उसके पिता जगत से मिला।
" आपके पास अपने बेटे रवि की कोई फोटो होगी ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।
" अभी लाता हूँ। " - कहते हुए जगत खन्ना उठा और वहाँ से चला गया।
कुछ ही पलों के बाद वह दोबारा प्रकट हुआ।
उसके पास एक फोटो एलबम थी।
" यह हमारी फैमिली फोटो एलबम है। इसमें आपको रवि की कई फोटो मिल जाएगी। "
इंस्पेक्टर एलबम देखने में व्यस्त हो गया।
" आखिर बात क्या है इंस्पेक्टर साहब ? " - जगत खन्ना ने हिम्मत करके तीसरी बार पूछा।
इंस्पेक्टर चौबीसा ने अभी तक खन्ना को यह नहीं बताया था कि उसकी यहाँ मौजूदगी की वजह क्या थी !
इस बार भी वह कुछ नहीं बोला और सामने रखी टेबल पर एलबम को रखकर तेजी से उसे फ्लिप करने लगा।
उसे यकीन नहीं हो रहा था।
फोटो में वही लड़का था , जो ईशा के साथ मॉल में घूमता हुआ CCTV में कैद हुआ था और पायल के मुताबिक , जो तीन साल पहले ही मर चुका था।
बहरहाल , अभी जगत खन्ना से रवि के विषय मे पूछताछ की जानी बाकी थी।
" क्या मैं आपके बेटे रवि से मिल सकता हूँ ? " - फोटो एलबम को एकाएक ही बन्द करके एक तरफ खिसकाते हुए इंस्पेक्टर ने पूछा।
" क्या बकवास कर रहे हैं आप ? " - जगत खन्ना अप्रत्याशित ढंग से चीखा - " एक तो जबसे आप यहाँ आये हैं , आने का प्रयोजन स्पष्ट किये बिना ही सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और अब ऐसी बेबुनियाद बातें करके भावनात्मक रूप से मुझे तकलीफ भी पहुँचा रहे हैं ! "
" ये रही बुनियाद। " - CCTV फुटेज से प्रिन्ट की हुई फोटो को टेबल पर फेंकते हुए इंस्पेक्टर बोला - " देख लो इसको , तुम्हारा ही बेटा है ना ये ? "
खन्ना ने फोटो ध्यान से देखी।
उसे अपने देखे हुए पर यकीन नहीं हो रहा था।
" य… यह तो रवि की फोटो है। रवि अगर जिन्दा होता , तो बिल्कुल ऐसा ही दिखता।...ये उसका कोई हमशक्ल है। " - आंखें फाड़े एकटक फोटो को देखते हुए जगत खन्ना बोला।
हमशक्ल शब्द सुनते ही इंस्पेक्टर चौंका।
" आपके कितने बेटे है ? "
" बेटा मेरा एक ही था और वो तीन साल पहले ही मर चुका है। "
" कैसे ? "
खन्ना ने बताया।
कहानी बिल्कुल वही थी जो पायल ने सुनाई थी।
10th में फैल होने की वजह से उसने ट्रैन से कटकर अपनी इहलीला समाप्त कर दी थी।
" फिर उस दिन ईशा के साथ मॉल में कौन था ?...रवि का कोई हमशक्ल ? " - इंस्पेक्टर का दिमाग काम नहीं कर रहा था - " आपको पूरा यकीन है कि आपका बेटा तीन साल पहले ही मर चुका है ? "
" मैंने अपने हाथों से उसकी चिता को आग दी थी। "
" ओके मिस्टर जगत ! " - उठते हुए इंस्पेक्टर बोला - " सहयोग के लिए धन्यवाद। "
□ □ □
" आपको क्या लगता है सर ! " - कॉन्स्टेबल यश बोला - " ईशा के साथ जो लड़का मॉल में गया था , वो उसका कोई हमशक्ल था ? "
" पता नहीं। कोई हमशक्ल था या खुद रवि ही ! "
" रवि कैसे हो सकता है सर ! वह तो तीन साल पहले ही मर चुका है न ! "
" उसका भूत होगा। " - जीप ड्राइव करते हुए ड्राइवर कॉमेडी भरे अंदाज़ में बोला।
लेकिन कोई हंसा नहीं।
" होने को कुछ भी हो सकता है। " - इंस्पेक्टर बोला - " लेकिन हकीकत हमे नहीं पता। सच जानने वाला शख्स मर चुका है। "
" तो अब ? "
" हमें उस लड़के को कहीं से भी ढूँढ निकलना होगा। " - कुछ सोचते हुए चौबीसा बोला - " पुलिस स्टेशन चलो। "
जीप पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ी।
जल्द ही वह फोटो शहर के सारे पुलिस स्टेशनों में भिजवा दी गई।
फोटो में जो शख्स था , रवि या उसका कोई हमशक्ल , उसे देखते ही गिरफ्तार करने का वारंट निकाला गया।
साथ ही इंस्पेक्टर चौबीसा ने एक जरुरी काम और किया।
तीन साल पहले ट्रैन दुर्घटना में मारे गए रवि की F I R जिस थाने में दर्ज हुई थी , उसका पता लगाकर , उसकी फ़ाइल मंगवाई गई। यह काम थोड़ा मुश्किल था। फिर भी कुछ सरकारी कार्यवाहियां करके इंस्पेक्टर चौबीसा ने 24 घंटों के भीतर ही वह फ़ाइल अपनी मेज तक लाने में सफलता हासिल कर ली।
अब चौबीसा को फ़ाइल का मुआयना करना था।
उसने फ़ाइल ओपन की।
उसका एक एक पन्ना पलटकर देखा।
पूरी फ़ाइल को ध्यान से देखकर उसने फ़ाइल परे रख दी।
इधर से इंस्पेक्टर का फ़ाइल को परे रखना हुआ और उधर से टेलीफोन घनघना उठा।
चौबीसा ने रिसीवर उठाते हुए कहा - " हेलो , इंस्पेक्टर देवेश चौबीसा स्पीकिंग ! "
" मैं प्रतापपुर थाने से इंस्पेक्टर रूपेश चौहान बोल रहा हूँ। जिस शख्स की हमें मिल गया है। "
" क्या ?...कब ?...कहाँ ?..." - देवेश चौबीसा जो सुन रहा था , उस पर यकीन कर पाना काफी मुश्किल था।
" चंद्रेश होटल से अभी फोन के माध्यम से सूचना मिली है। मैं वहीं जा रहा हूँ , आप भी सीधा वहीं पहुंचिये। "
फोन रखते ही चौबीसा ने ड्राइवर को जीप निकालने का आदेश दिया।
अगले ही पल जीप बिजली की सी गति से सड़क पर दौड़ी जा रही थी।
जल्द ही जीप चंद्रेश होटल के सामने रुकी।
इंस्पेक्टर चौबीसा तूफानी गति से होटल में दाखिल हुआ।
होटल मैनेजर सामने ही दिख गया।
" कहाँ है रवि ? " - मैनेजर को देखते ही चौबीसा ने पूछा।
" आइये मेरे साथ। " - कहने के साथ ही मैनेजर इंस्पेक्टर को एक लिफ्ट में लेकर गया। लिफ्टबॉय को तीसरी मंजिल पर जाने के लिए आदेशित किया गया।
जल्द ही वे तीसरी मंजिल पर थे।
इंस्पेक्टर चौबीसा समझ चुका था कि इंस्पेक्टर रूपेश चौहान अभी तक यहाँ नहीं पहुंचा था।
मैनेजर के साथ वह रूम नम्बर 205 के सामने पहुँचा।
मैनेजर ने डोरबेल बजाई।
जल्द ही गेट खुला।
गेट खोलने वाले शख्स को देखकर चौबीसा बुरी तरह चौंक उठा।
वह रवि ही था या शायद उसका कोई हमशक्ल !
" यस ? " - सवालिया निगाहो से देखते हुए उसने पूछा।
" तुम्हारा नाम क्या है ? " - सवाल इंस्पेक्टर चौबीसा ने किया।
ईशा मर्डर केस ( भाग - 3 )
पायल ने बताना शुरू किया - " मुझे कुछ दिन पहले ही एक अननोन नम्बर से मेरे वॉट्सएप्प पर कुछ फोटो मिली , जिसमें ईशा की किसी अजनबी के साथ क्लिक की हुई फोटो थी। फोटो भेजने वाले ने उस अजनबी लड़के का नाम और एड्रेस भी सेन्ड किया था।...कुछ दिन तक तो मैंने परवाह नहीं की। लेकिन , दिमाग में फिर से बार - बार अमित ही घूमने लगा। मैं उससे अब भी प्यार करती थी। उसी ने मुझे ईशा के लिए छोड़ा था , मैंने तो हमेशा सिर्फ उसी को चाहा था।...मुझे लगा कि ईश्वर ने अमित को ईशा से दूर करने और मेरे नजदीक लाने का इतना सुनहरा अवसर मुझे दिया है , तो इसका लाभ जरूर उठाना चाहिए। बस इसीलिए मैंने कल रात उसे कॉल करके अपने घर बुलाया। मुझे लगा कि जब अमित को ईशा के दूसरे बॉयफ्रेंड के बारे में पता चलेगा , तो उसका मन ईशा के प्रति नफरत से भर उठेगा और शायद उसका मेरे प्रति पुराना प्यार जाग उठेगा। लेकिन , ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। "
" तुमने पता करने की कोशिश नहीं की कि वे फोटो तुम्हें भेजने वाला शख्स कौन था ? " - इंस्पेक्टर ने पूछा।
" मैंने कॉल किया था। लेकिन नंबर स्विच ऑफ बता रहा था। "
" जिस नम्बर से तुमको वे इमेज भेजी गई थी , वे नम्बर हमको मिल सकते हैं ? "
" नहीं। "
" क्या ? " - इंस्पेक्टर चौंका - " वजह ? "
" नम्बर मैंने डिलीट कर दिया। "
" तब तो फोटो भी डिलीट हो गई होगी ? "
" नहीं। इमेज डाऊनलोड होते ही मोबाइल की गैलरी में सेव हो जाती है। इसीलिए इमेज नष्ट नहीं हुई। "
" ओके। " - कुछ सोचते हुए इंस्पेक्टर बोला - " मेरे पास भी एक फोटो है। "
" आपको भी किसी ने व्हाट्सएप पर भेजी है ? "
इंस्पेक्टर मुस्कराया - " नहीं। लेकिन , जहाँ से भी मुझे मिली है , है काम की ही। तुमको यह बताना है कि वह फोटो है किसकी ! "
" मेरी पहचान की हुई , तो जरूर बता सकूँगी। "
इंस्पेक्टर ने फोटो दिखाई।
बहुत ध्यान से देखने के बाद पायल कहीं गहन विचारों में खो गई।
" किस सोच में पड़ गई ? " - देवेश चौबीसा ने पूछा।
" ये फोटो कितनी पुरानी है इंस्पेक्टर साहब ? "
" पुरानी ? " - इंस्पेक्टर चौंका - " कल रात की ही है। "
" आपने कभी किसी मुर्दे को मॉल में घूमते हुए देखा है ? " - शून्य में कहीं दूर देखते हुए पायल बोली।
" क्या ? " - इंस्पेक्टर देवेश चौबीसा ने चकित स्वर में पूछा - " तुम कहना क्या चाहती हो ? "
" इस फोटो में ईशा के साथ जो लड़का है , वो पिछले साल ही मर चुका है। "
" क्या बकवास कर रही हो तुम ? " - इंस्पेक्टर चिल्लाया।
" बकवास नहीं कर रही इंस्पेक्टर साहब ! जो सच है वो बोल रही हूँ। "
" और सच क्या है ? "
" यही कि फोटो में ईशा के साथ जो लड़का है , वो एक साल पहले ही मर चुका है। "
" ये मुर्दा है या जिन्दा - यह तो बाद की बात है। पहले हम ये तो जान ले कि यह लड़का है कौन ? "
" है नहीं , था। "
" ठीक है। तुम्हारे शब्दों में था।...अब बताओ कौन था ये लड़का ? "
" रवि। " - पायल ने बताना शुरू किया - " जिससे ईशा मर जाने की हद तक प्रेम करती थी। "
" ये सब तुम्हें कैसे मालूम ? "
" ईशा मेरी फ्रेंड थी और वो मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाती थी।….साफ तौर पर कहूँ तो ईशा मेरी बेस्ट फ्रेंड थी। लेकिन सिर्फ तब तक , जब तक कि उसने मुझसे अमित को छीन नहीं लिया। "
" छीन लिया मतलब ? "
" मतलब छीन लिया। किस्मत ने उससे उसका रवि छीन लिया और उसने मुझसे मेरा अमित छीन लिया। "
" हुआ क्या था ? "
" वही बता रही हूँ। " - पायल अपनी बात जारी रखते हुए बोली - " करीब तीन साल पहले 10th क्लास के एग्जाम खत्म होने के बाद समर वकेशन में मैंने बेसिक कंप्यूटर टाइपिंग सीखने के लिए एक कंप्यूटर सेन्टर जॉइन करने के बारे में सोचा। पता नहीं , यह महज इत्तेफाक था या कुछ और कि उसी कंप्यूटर सेंटर पर मेरी मुलाकात अपने उन तीन दोस्तों से हुई , जो जल्द ही मेरे जीवन में बहुत खास बन गए। वैसे तो वे तीनों ही बहुत खास थे। लेकिन , अमित
...उसकी बात कुछ अलग ही थी। यह आप भी जल्द ही समझ जायेंगे कि अमित क्यों इतना खास था !
सबसे पहले मैं उसी से मिली थी।
हम लोगों के बैच में करीब 25 स्टूडेंट्स थे।
सब वहाँ एक ही उद्देश्य के लिए आये थे।
फ़ास्ट और प्रोफेशनल टाइपिंग सीखना।
इंग्लिश टाइपिंग कोई खास समस्या नहीं थी। सभी बड़े इंटरेस्ट से इंग्लिश टाइपिंग सीख रहे थे।
असल समस्या थी , हिन्दी टाइपिंग !
आपको पता होना चाहिये कि अल्फाबेट के A अक्षर को टाइप करने से हिन्दी वर्णमाला का कौनसा अक्षर टाइप होगा।
हालांकि सभी स्टूडेंट्स को एक लिस्ट मुहैया कराई गई थी , जिससे हिन्दी टाइपिंग काफी आसान हो जाती थी। लेकिन फिर भी इंग्लिश टाइपिंग के मुकाबले हिन्दी टाइपिंग ज्यादा मुश्किल थी।...शायद इसीलिए ज्यादातर स्टूडेंट्स का फोकस इंग्लिश टाइपिंग पर ही था। लेकिन अमित !...वह हमेशा हिन्दी टाइपिंग को ही अधिक तवज्जो देता था , जिसका परिणाम यह निकला कि जल्द ही वह हिन्दी टाइपिंग में परफ़ेक्ट हो गया।
और इतना ही नहीं , उसने बाकी स्टूडेंट्स की भी मदद करनी शुरू कर दी।
किसी को भी हिन्दी टाइपिंग में कोई समस्या होती , तो अमित मदद के लिए हमेशा तैयार रहता।
उसकी इसी गुड हैबिट की वजह से मैं उससे काफी प्रभावित हो गई और मन ही मन उसे चाहने लगी।